कैसे सुधरे नगर पालिका!
(शरद खरे)
नगर पालिका शब्द का व्यवहारिक अर्थ होता है नगर को पालने वाला। अर्थात नगर
को बुनियादी सुविधाएं मुहैया करवाने वाला। नगर पालिका के गठन की अवधारणा यही रही
कि नगरीय सीमा के अंदर रहने वालों को बुनियादी जरूरतों के लिए भटकना न पड़े। सिवनी
नगर पालिका के हालात देखकर लगता है मानो सिवनी में नगर के बजाए नरक पालिका का शासन
हो। सत्ता में बैठे नुर्माइंंदे, देश दुनिया की
चिंता कर विज्ञप्तियों का अंबार लगाए हुए हैं, पर सिवनी की सुध किसी को नहीं है।
कांग्रेस में अजीब परंपरा का चलन हो गया है। जिला कांग्रेस कमेटी के तीन
प्रवक्ता हैं। तीनों प्रवक्ताओं की तोप की नाल शिवराज सिंह चौहान पर ही जाकर टिक
जाती है। शिवराज सिंह चौहान की जन विरोधी नीतियों के बारे में लिख लिखकर वे न तो
ऊबते, न उबासी लेते और न ही थकते हैं। इनका धैर्य काबिले तारीफ ही
माना जा सकता है। ये भूल जाते हैं कि शिवराज सिंह चौहान को कोसने के लिए प्रदेश
कांग्रेस कमेटी में पहले माणक अग्रवाल तो अब मुकेश नायक प्रवक्ता के बतौर मौजूद
हैं। इनका मूल काम सिवनी जिले के अंदर की अनियमितताओं आदि पर प्रकाश डालने का है।
वस्तुतः इस काम से ये मुंह ही चुराते नजर आते हैं। एक दैनिक अखबार (हिन्द गजट
नहीं) में विधायक श्रीमती नीता पटेरिया की निधि से दी जाने वाली राशि की फेहरिस्त
छपती है,
इसमें कांग्रेस के नेताओं पदाधिकारियों के
रिश्ते-नातेदारों के नाम होते हैं। तब भी इन्हें शर्म नहीं आती और न ही अफसोस ही
होता है श्रीमती नीता पटेरिया को कि वे जनता विशेषकर गरीब गुरबों को दी जाने वाली
राशि को अपने विरोधी दलों के संपन्न लोगों को देकर एक गलत और निंदनीय परंपरा का
आगाज़ कर रही हैं।
यही आलम भारतीय जनता पार्टी का है। भाजपा के इकलौते प्रवक्ता भी लिए दिए
अपना गुबार या भड़ास केंद्र की कांग्रेस सरकार पर निकालते हैं। कांग्रेस पर या
मनमोहन सिंह पर वार करने के लिए देश में मुख्तार अब्बास नकवी या प्रकाश जावड़ेकर
हैं न भई,
आप तो सिवनी जिले पर केंद्रित रहिए। हरवंश
सिंह ठाकुर कांग्रेस के विधायक रहे, पर भाजपा ने
उन्हें सदा ही बचाए रखा। यह नूरा कुश्ती नहीं तो क्या है? जनता अब भरमाने में नहीं आने वाली। जनता अब आज़िज आ चुकी है इस
तरह की नीतियों से।
बहरहाल, बात नगर पालिका की हो रही है। नगर
पालिका परिषद् में कांग्रेस और भाजपा के पार्षद लगभग बराबरी से ही हैं। पालिका
अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी भारतीय जनता पार्टी के हैं तो उपाध्यक्ष राजिक अकील
कांग्रेस के। कांग्रेस के पास 12 पार्षद हैं। आज कांग्रेस के सारे पार्षद अपने
अपने दिलों पर हाथ रखकर ईश्वर, अल्लाह, जीज़स, गुरूनानकदेव आदि
अपने अपने ईष्ट को हाजिर नाजिर मानकर यह बात कहें कि वे उनके वार्ड में नगर पालिका
की व्यवस्था से संतुष्ट हैं! अगर नहीं तो क्या किया है पार्षदों ने उस जनादेश के
सम्मान का जो जनता ने उन्हें दिया है। हमारा यही प्रश्न भाजपा के पार्षदों से भी
है।
नगर पालिका परिषद् के कार्यालय के अंदर कमीशनखोरी की गलाकाट स्पर्धा मची
हुई है। जिस पार्षद को कमीशन नहीं मिला वही अध्यक्ष के खिलाफ तलवार पजाने लगता है।
फिर अध्यक्ष कुछ ढीले पड़ते हैं और पार्षद उनकी गोद में जा बैठता है। हम पूरी
जिम्मेदारी के साथ कांग्रेस के पार्षदों से पूछना चाहते हैं कि क्या उनके वार्ड
में मच्छर भगाने के लिए फॉगिंग मशीन साल भर से घूम रही है? क्या उनके वार्ड में रोजाना साफ सफाई हो रही है? क्या उनके वार्ड में नियमित साफ पीने योग्य पानी की आपूर्ति
हो रही है?
क्या उनके वार्ड में आवारा मवेशी, सुअर और कुत्तों का आतंक नहीं है? अगर है तो उन्होंने क्या किया? सिर्फ एक पत्र लिखकर उसकी पावती रख लेने से कुछ नहीं होता
पार्षद महोदयों! जनता को आप क्या बताएंगे। एक पुराना शेर याद पड़ता है -‘तुम राह में चुपचाप खड़े हो तो गए हो, किस किस को बताओगे कि घर क्यों नहीं जाते. . .।‘
कांग्रेस द्वारा भाजपा शासित नगर पालिका के खिलाफ आंदोलन चलाए गए। अध्यक्ष
राजेश त्रिवेदी के खेत में सड़क किनारे लगने वाले पेवर ब्लाक बनते पकड़े गए। इसके
लिए कांग्रेस पार्षद विशेषकर उपाध्यक्ष राजिक अकील बधाई के पात्र हैं, किन्तु जब दो वक्त के बजाए एक वक्त ही साफ पानी की बात आती है
तो कहां चला जाता है कांग्रेस के पार्षदों का आंदोलन करने का माद्दा। एक ठेला
हटवाने के लिए कांग्रेस के पार्षद जमीन आसमान एक कर देते हैं पर आवारा मवेशी, सुअर, कुत्तों की बारी
आती है तब क्यों इन पार्षदों को सांप सूंघ जाता है।
नगर पालिका परिषद् प्रशासन के निकम्मेपन की हद तो तब हो जाती है जब इसे
जिले के कलेक्टर का भय भी नहीं रह जाता। संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव ने
स्पष्ट और कड़े निर्देश इस बावत दिए हैं कि सड़कों पर आवारा मवेशी, सुअर कुत्ते आदि न घूमते पाए जाएं जिससे यातायात प्रभावित हो।
किन्तु नगर पालिका प्रशासन को जिला कलेक्टर की परवाह लेश मात्र भी नहीं है तभी तो
आदेश के लगभग एक माह बीतने के बाद भी आवारा सुअर, मवेशी, कुत्ते सड़कों पर
धमाचौकड़ी करते नजर आ रहे हैं।
इस मामले में कांग्रेस की चुप्पी तो मैनेज्ड समझ में आती है, पर भारतीय जनता पार्टी की विधायक श्रीमती नीता पटेरिया के साथ
ही साथ जिला अध्यक्ष नरेश दिवाकर और नगर अध्यक्ष प्रेम तिवारी को मानो सन्निपात हो
गया हो। इनके मुंह भी पता नहीं किस उपकार के बदले सिल गए हैं। हमारा कहना महज इतना
है कि एक परसेंट ही सही मानवता के नाते इन्हें जागना ही होगा, वरना सिवनी शहर जिसे शिव की नगरी कहा जाता है की जनता कराह
कराह कर दम तोड़ देगी! अब संवेदनशील जिला कलेक्टर से ही अपेक्षा की जा सकती है कि
वे ‘कड़े निर्देश‘ के बजाए ‘कठोर कदम‘ स्वयं ही उठाएं
और जनता को नारकीय पीड़ा से मुक्ति दिलवाएं।
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