मंगलवार, 12 जुलाई 2011

शादी कर हड़प लेते हैं आदिवासियों की जमीन




शादी कर हड़प लेते हैं आदिवासियों की जमीन


(हिमांशु कौशल)

सिवनी (म.प्र.)। आदिवासियों से उनकी जमीने न छिने इसे लेकर सरकार ने जो कठोर नियम बनाये हैंैं वे उनकी जमीन बचाने के लिये तो पर्याप्त हैं ही नहीं बल्कि इन नियमों के कारण गाँवों में आदिवासी परिवारों की युवतियाँ असुरक्षित हो गयी हैं वहीं दूसरी तरफ शहरों में आदिवासियों की जमीनों को हड़पने के लिये दलाल, पटवारी, उप पंजीयक सी सक्रिय हैं.

गाँव के ग्रामीण हो या शहर के शहरी शोषण तो आदिवासियों का हो ही रहा है पर अंतर इतना है कि पहले गाँव में पुलिस का ऐसे लोगों को संरक्षण होता है तो शहर में प्रशासनिक अंग के अधिकारी ऐसे लोगों से मिले हुए होते हैं जो आदिवासियों का शोषण करते हैं.

0 गाँव में शादी करके हड़प लेते हैं जमीन

सिवनी जिला आदिवासी बहुल है. यहाँ के आदिवासियों के पास पुश्तैनी जमीने बहुत हैं. आदिवासियों की पुश्तैनी जमीन हड़पने के लिये गाँव के अन्य समुदाय, वर्गों के लोग किसी ऐसे आदिवासी परिवार जिसके पास जमीन होती है, की बेटी को प्रेम का, शादी का प्रलोन दे फँसाते हैं और अपने साथ रख लेते हैं या फिर कई बार तो आदिवासी परिवार की लड़की को गा कर ले जाते हैं और उसकी अस्मत लूट उसे अपने पास रख लेते हैं और बाद में उसपर व उसके परिवार वालों पर दबाव डाल जमीन हड़पने की कोशिश करते हैं और ऐसे मामलों में कई बार तो महिला स्वयं ी अपने माता पिता ाई के विरूद्ध हो जाती है.


0 हिरणदास की हत्या: एक उदाहरण

अी हाल ही में समीपस्थ ग्राम ईंदावाड़ी निवासी हिरणदास गेडाम की हत्या इसका उदाहरण है. हिरणदास की बहन हिरंतीबाई अपने पिता व परिवार की इच्छा के विरूद्ध मुस्लिम समुदाय के ग्राम विजय पानी निवासी गुलजार के साथ चली गयी थी जिसके खफा होकर उसके पिता स्व. देवाजी गेडाम ने अपने पैसे से खरीदी गयी जमीन अपने पुत्र एवं पोतों के नाम लिख दी थी. हिरंतीबाई और गुलजार जमीन पर हिस्सा चाहते थे पर हिरणदास अपने पिता की वसीयत के मुताबिक कोई हिस्सा नहीं देना चाहता था फलस्वरूप हिरंतीबाई एवं उसके पति ने षड़यंत्र कर ग्राम विजयपानी स्थित खेत को जोतना चाहा जिसमें विवाद हुआ है और हिरणदास की हत्या कर दी गयी जबकि उसके दोनों पुत्र जो कि उसके बाद जमीन के मालिक होते पर ी प्राणघातक हमले किये गये. हालाकि हिरंतीबाई की शादी बहुत पहले हुई थी और शादी के समय जमीन शायद कोई मुद्दा नहीं था पर हिरंतीबाई के ाई की हत्या का कारण जमीनी विवाद ही था और यह अी ी बहस का मुद्दा है कि उस जमीन पर हिरंतीबाई का हक बनता है या नहीं जिसका निर्णय अदालत करेगी.

0 कई बार तो शादी ी नहीं करते हैं

अनुसूचित जाति जनजाति के परिवार की जमीन हड़पनव उस परिवार की लड़की को गा ले जाने वाले तो कई बार तो लड़की से विधिवित शादी ी नहीं करते हैं बस उसे यूँ ही अपने पास रख लेते हैं और उसकी अस्मत लूट लूट कर उसे प्रताडि़त करते हैं तथा पिता व ाइयों को मजबूर करते हैं कि वे अपनी जमीन का हिस्सा उनके नाम कर दें.

लड़की के पिता व ाई किसी कीमत में पुनः लड़की को अपने घर वापस नहीं रखते क्योंकि आदिवासी लोग परंपरा रीति रिवाज के मामले में आज ी कट्टर हैं. मजबूर होकर लड़की को पति के सामने समर्पण करना ही पड़ता है.

0 पुलिस ी नहीं देती साथ

जब आदिवासी लड़की को उसके परिवार वाले पुनः अपने पास रखने को तैयार नहीं होते और पति उसे प्रताडि़त करता है तो वो पुलिस की शरण में जाती है. यहाँ पुलिस वाले उसे उलटा परेशान करना शुरू करते हैं उससे पूछते हैं शादी कब करी जब वह बताती है कि इतने साल पहले हुई तो कहते हैं कि कहाँ शादी की थी वहाँ का प्रमाण पत्र ला, फोटो ला, शादी का कार्ड ला इत्यादि इत्यादि. अब जब पुरूष ने उससे विधिवत शादी की ही नहीं होती है तो प्रमाण पत्र और कार्ड होते ही नहीं और जब महिला ये सब प्रस्तुत नहीं कर पाती तो पुलिस वाले स्वयं महिला पर चारित्रिक लांक्षन लगा उसे गा देते हैं.

दूसरी परिस्थिति में कई बार महिला शादी के कुछ सबूत पेश कर ी देती है तो इन सबूतों का इस्तेमाल पुलिस अपना चंदा बढ़वाने में कर लेती है. हालाकि घरेलू हिंसा महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 बहुत मजबूत है पर इसके तहत मामलों की कायमी बहुत कम होती है फिर इसके दुरूपयोग की संावना ी अधिक है.

0 क्या कहता है कानून

ारतीय कानून कहता है जिस प्रकार जन्म और मृत्यु का पंजीयन होना चाहिये उसी प्रकार शादियों का ी पंजीयन होना ही चाहिये. पहले ारत में शादियों का पंजीयन अनिवार्य नहीं था किन्तु 25 अक्टूबर गुरूवार 2005 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरिजित पश्यत और एस.एच. कपाडि़या की युगलपीठ ने अपने एक 14 पृष्ठीय फैसले में केन्द्र सरकार और राज्य सरकार को आदेशित किया है कि वे ारत में शादियों का पंजीयन अनिवार्य करें.

इस आदेश के बाद पहले जिले में अपर कलेक्टर या डिप्टी कलेक्टर लेवल का एक मैरिज रजिस्ट्रर होता था पर अब सरकार ने नगरीय क्षेत्रों के लिये नगर पालिका और ग्रामीण क्षेत्रों के लिये सरपंच सचिवों को शादियों के रजिस्ट्रेशन हेतु अधिकृत कर दिया है पर 10 फीसदी लोग ी अपनी शादियों का रजिस्ट्रेशन नहीं कराते हैं और प्रशासन ी इसके लिये पहल नहीं करता है.

0 टूट रही धार्मिक व्यवस्था

ारत में पुरातन काल से हर धर्म में शादी का पंजीयन कराने की व्यवस्था है. हर धर्म में समाज के बीच समाज के रजिस्टर में न केवल विवाह का पंजीयन होता है बल्कि वर पक्ष और वधु पक्ष आपस में जिन उपहारों का आदान प्रदान करते हैं उन्हें ी समाज के सामने प्रदर्शित किया जाता है. धीरे धीरे अंतर्जातीय विवाह होने लगे जिससे समाज में शादी के पंजीयन की प्रक्रिया उतनी ठोंस नहीं रही तो सरकार ने मैरिज रजिस्ट्रेशन वैकल्पिक कर दिया और फिर सुप्रीम कोर्ट ने विवाह के पंजीयन को अनिवार्य ही कर दिया पर उपहारों का रजिस्ट्रेशन अब ी वैकल्पिक ही है सरकार इसे ी अनिवार्य बनाने की योजना बना रही है.

0 उपहार सूचना के लिये ी प्रोत्साहन

इसके अलावा डी.ए.वी.पी. कई बार यह विज्ञापन ी जारी करता है कि शादी के दौरान वर पक्ष और वधु पक्ष आपस में जो उपहारों का आदान प्रदान करते हैं उसकी सूचना ी मैरिज रजिस्ट्रेशन के साथ दें हालाकि उपहारों की सूचना देना अनिवार्य नहीं है पर शादी का पंजीयन जो अनिवार्य है न लोग उसे कराते हैं ऐसे में उपहारों की जानकारी देने का तो सवाल ही नहीं उठता.


0 शहर

आदिवासियों की जमीनों को हड़पने का एक तरीका शादी है जो मुख्यतः गाँवों में प्रचलित है तो दूसरा तरीका शहरी लोगों में प्रचलित है जो दलाल के माध्यम से होता हुआ जाता है जिसमें पटवारी, उप-पंजीयक और कलेक्टर जो कि जिले का सबसे बड़ा राजस्व अधिकारी होता है सब मिले हुए होते हैं.

इस प्रक्रिया में दलाल अहम ूमिका निाता है. वह खरीददार को किसी आदिवासी को धोखे में रखकर या उसकी किसी मजबूरी का फायदा उठाकर उसकी जमीन किसी अमीर को बिकवा देता है. अब नियमों के हिसाब से आदिवासी की जमीन आदिवासी ही खरीद सकता है. इस नियम को काटने के लिये जो अमीर जमीन खरीदता है वह अपने घर में काम कर रहे किसी नौकर या नौकरानी के नाम पर बिना उसे बताये ही जमीन ले लेता है और उसका अंगूठा या हस्ताक्षर वह स्वयं करता है. इस तरह के और ी कई हथकंडे अपनाये जाते हैं. इस तरीके के मूल में या तो आदिवासी को धोखे में रखना होता है या उसकी मजबूरी का फायदा उठाना.

0 इस तरह जिले में आदिवासियों की जमीनों को हड़पने का सिलसिला जारी है.

धोखाधड़ी किये जाने का अपराध धारा 420 के तहत कायम किया जाकर आगे की कार्यवाही प्रारं कर दी गयी है. प्रार्थी रामजी विश्वकर्मा ने पुलिस को बताया है कि वाहन खरीदने के बाद से वह प्रतिमाह 07 किश्तों का ुगतान कर चुका है जिसमें से केवल कंपनी के पास 03 किस्तों का ुगतान प्राप्त हुआ है, शेष 04 किस्त सुशील पांडे द्वारा पैसा लिये जाने के बाद ी जमा नहीं किया गया है. प्रार्थी ने बताया कि उसके द्वारा जमा की गयी किश्तों में पहली बार 36 हजार, दूसरी बार 70 हजार तथा तीसरी बार 01 लाख रूपये कंपनी के खाते में जमा होने बताये गये हैं जबकि शेष 04 किश्तों की रकम 02 लाख 13 हजार जो जमा नहीं है वह आरोपी सुशील पांडे द्वारा हड़प ली गयी है और इसी आधार पर इस 02 लाख 13 हजार की धोखाधड़ी का मामला सुशील पांडे के विरूद्ध दर्ज किया गया.

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