मंगलवार, 12 जुलाई 2011

अभी ‘बहुत कुछ‘ सीखना है युवराज को

अभी ‘बहुत कुछ‘ सीखना है युवराज को

(लिमटी खरे)

कांग्रेस के सुकुमार युवराज राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में पदयात्रा पर गए और उन्होंने कहा कि उन्होंने संसद मंे जो नहीं सीखा वह ग्रामीणों के बीच जाकर सीखने को मिला। मतलब साफ है कि राहुल गांधी जमीन से जु़ड़े नेता नहीं हैं। देश का एक आम आदमी जिसे देश की रीढ़ किसान के दुख दर्द के बारे में बखूबी मालुम है उसमें और राजनीति में पैदा नहीं वरन् ‘‘अवतरित‘‘ हुए राहुल गांधी मंे अंतर स्वाभाविक ही है। कांग्रेसी नेताओं की राजनीति नेहरू गांधी परिवार के बलबूते चलती है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। यही कारण है कि रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के साथ हुई रावणलीला और अण्णा हजारे प्रकरण में चुप्पी साधने वाले राहुल गांधी की पदयात्रा के दरम्यान थैलियों के मुंह खोल दिए गए और मीडिया को गजब तरीके से खरीद लिया गया। सारे समाचार चेनल राहुल के स्तुतिगान और महिमा मण्डन में लगे थे, किसी ने भी राहुल से रामदेव या हजारे के मामले में पूछने का साहस नहीं जुटाया। दरअसल निहित स्वार्थों के चलते कुछ मीडिया मुगल इन नेताओं के घरों की चैखट पर मुजरा करते नजर आ रहे हैं।

कांग्रेस के आला नेता चाहते हैं कि देश की राजनीति कें सक्रिय हुए नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी के सदस्य राहुल गांधी प्रधानमंत्री का पद संभालें। आज भी सामंती प्रथा लागू नजर आती है। कितने आश्चर्य की बात है कि कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह सरेआम यह कहते हैं कि राहुल गांधी शादी कर लें और देश की बागडोर संभालें। सामंती व्यवस्थाओं में रियाया को समय समय पर अनेक सूचनाएं दी जाती थीं। इनमें महत्वपूर्ण होती थी कि अब फलां राजकुमार जवान हो गए हैं और अब वे राजकाज संभालने के योग्य हो गए हैं। फिर उनका राज्याभिषेक कर दिया जाता था। कांग्रेस भी उसी तर्ज पर ही चल रही है।

राजा दिग्विजय सिंह अब देश की प्रजा को बता रहे हैं कि नेहरू गांधी परिवार के युवा सदस्य राहुल गांधी अब बड़े हो गए हैं और वे राजकाज संभालने के योग्य हो गए हैं। क्या दिग्विजय सिंह ने कभी यह सोचा है कि उनके इस कथन का तातपर्य क्या निकल सकता है। इसका मतलब साफ है कि वजीरे आजम डाॅ.मनमोहन सिंह आपका समय पूरा अब आप प्रधानमंत्री आवास यानी 7, रेसकोर्स रोड़ से अपना बोरिया बिस्तर समेट लो। भले ही मनमोहन सिंह के राज में सबसे अधिक घपले और घोटाले हुए हों, किन्तु आज भी देश का एक बहुत बड़ा वर्ग उन्हें ईमानदार ही मानता है। अनेक बुद्धिजीवी मनमोहन सिंह को ‘भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक‘ भी मानते हैं।

कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों में नरसिंहराव ही इकलौते ऐसे चेहरे हैं जिन्होंने कांग्रेस को नेहरू गांधी परिवार से दूर रखकर अपने बल पर खड़े होने की सीख दी। मनमोहन सिंह राज्य सभा से हैं उनका जनाधार नहीं है, इसलिए मनमोहन पूरी तरह कांग्रेस के पिट्ठू माने जाते हैं। पिछले कुछ दिनों से उन्होंने जो रवैया अख्तियार किया है उससे साफ होने लगा है कि अब मनमोहन भी नरसिंहराव की तर्ज पर चलने का प्रयास कर रहे हैं। मनमोहन के प्रयास अगर सफल हुए तो कांग्रेस के कार्यकर्ता सोनिया राहुल के आभा मण्डल से निकलकर धरातल पर आ सकेंगे।

कल तक देश पर एक छत्र राज्य करने वाली कांग्रेस चंद सूबों मंे ही सिमटकर रह गई है। गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तीन एसे बड़े राज्य हैं जहां कांग्रेस का नामलेवा भी नहीं बचा है। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि गुजरात से सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल तो मध्य प्रदेश से राहुल गांधी के अघोषित गुरू राजा दिग्विजय सिंह हैं। साथ ही साथ उत्तर प्रदेश से राहुल और सोनिया खुद हैं।

बड़े नेताओं ने अपने अपने क्षेत्र बांट लिए हैं। हर नेता के क्षेत्र में कांग्रेस का बट्टा बैठा हुआ है। सच है कि अगर किसी नेता के क्षेत्र मंे दूसरा कांग्रेस का दबंग विधायक या संसद सदस्य चुनकर आ गया तो फिर उसकी पूछ परख कम होना लाजिमी है। यही कारण है कि मध्य प्रदेश का ही उदहारण अगर लिया जाए तो दिग्गी राजा के मालावांचल, ज्योतिरादित्य के चम्बल, कमल नाथ के महाकौशल में कांग्रेस की सांसे जमकर फूल चुकी हैं।

यह था कांग्रेस का राष्ट्रव्यापी परिदृश्य। इन परिस्थितियों के बाद भी राहुल गांधी पता नहीं किस रंग का चश्मा लगाकर देश और अपने मतदाता को देख रहे हैं। उत्तर प्रदेश में वे पदयात्रा करते हैं। कभी किसी दलित के घर रात बिताते हैं। मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के टपरियन गांव जाकर वहां एक बेसहारा की बेटी के विवाह के लिए बीस हजार रूपए देने का वादा करते हैं, फिर भूल जाते हंै। राहुल का वादा सूबे के भाजपाई निजाम शिवराज सिंह चैहान द्वारा पूरा किया जाता है। यह है कांग्रेस के संगठन की जमीनी हकीकत।

अपनी पदयात्रा में राहुल कहते हैं कि संसद से ज्यादा उन्हें यहां सीखने को मिला। राहुल सच कह रहे हैं, वकई उन्हें जमीन से जुड़ने पर काफी कुछ सीखने को मिला होगा, वरना तय शुदा प्रोग्राम और चापलूसों से घिरे रहने के अलावा राहुल करते भी क्या हैं। उनके कार्यालय में अत्याधुनिक संचार साधन हैं, किन्तु सभी जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं। लेपटाप और ब्लेक बैरी फोन से सुदूर ग्रामीण अंचलों की वास्तविक स्थिति का भान नहीं हो सकता है।

कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी के इर्द गिर्द जमा भीड़ में पंचानवे फीसदी लोग बिना रीढ़ अर्थात जनाधार वाले हैं। जिनका जनाधार ही नहीं हैं, उन बैसाखियों पर चलकर मां बेटा सोच रहे हैं कि वे कांगे्रस को मजबूत बना लेंगे। जो लोग जनता के सामने जाकर चुनाव लड़कर संसद या विधानसभाओं में पहुंचने का माद्दा नहीं रखते वे कुशल प्रबंधक हो सकते हैं पर देश की किस्मत नहीं बदल सकते। बुंदेलखण्ड की एक कहावत इन पर चरितार्थ होती है कि ‘‘सूपा तो सूपा, अब चलनी बोले, जिसमें 172 छेद‘‘।

ब्रितानी हुकूमत के पहले तक देश में प्रजा का सही हाल जानने के लिए राजाओं द्वारा भेस बदलकर असलियत से रूबरू हुआ जाता था। आज के समय में राहुल गांधी औचक दौरे तो करते हैं किन्तु उनके ये दौरे कितने औचक होते हैं इस बारे में वे खुद भी भली भांति जानते हैं। एसपीजी और कांग्रेस के प्रबंधकों का दल उनके दौरे के पहले उनके अनुकूल माहौल तैयार कर देते हैं। अब इन परिस्थितियों में भला राहुल गांधी जमीनी हकीकत से कैसे दो चार हो सकते हैं।

राहुल गांधी ने इशारों ही इशारों में बयान वीरों को भी समझा दिया है कि वे अभी राजकाज संभालने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हो पाए हैं। जिस तरह गैर राजनैतिक राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे तो उनके सारे मित्रों ने उन्हें घेर लिया और फिर चल पड़ा था लूट का सिलसिला। अनुभवहीन राजीव गांधी को बोफोर्स मामले में जबरन ही फसा दिया गया था। बोफोर्स तोप मामले में नेहरू गांधी परिवार को जितनी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी उतनी शायद ही कभी किसी ने झेली हो। राहुल गांधी अभी पूरी तरह परिपक्व नहीं माने जा सकते हैं। उन्हें अपने इर्द गिर्द चाटूकारों के बजाए जनाधार वाले लोगों को स्थान देना होगा, वरना नेहरू गांधी परिवार की साख और मीडिया को खरीद कर उनका महिमा मण्डन आखिर कब तक हो पाएगा?

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