0 महाकौशल प्रांत का सपना . . . 8
तपस्वियों की जन्मभूमि है महाकौशल प्रांत
महर्षि, ओशो, शंकराचार्य जैसी विभूतियों को जन्मा है महाकौशल ने
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। भारत गणराज्य का हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश वैसे तो कभी का आत्मनिर्भर हो चुका होता, किन्तु राजनैतिक इच्छा शक्ति के अभाव में आज भी यह हर मोर्चे पर जूझ ही रहा है। हृदय प्रदेश में महाकौशल प्रांत भी है जिसे प्रथक करने का आंदोलन अब जोर पकड़ने लगा है। महाकौशल प्रांत में न जाने कितने तपस्वी हुए हैं जिनके तप अनुभव आदि से देश विदेश में शांति और संपन्नता ने द्वार खटखटाए हैं।
महाकौशल प्रांत के गर्भ से अनेक एसी महान विभूतियों ने जन्म लिया है जिन्होंने देश विदेश में अध्यात्म, तप, त्याग और बलिदान का मार्ग दिखाते हुए लोगों में सकारात्मक उर्जा का संचार किया है। इन विभूतियों में सनातन पंथी हिन्दु धर्म के द्विपीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी का नाम सबसे उपर आता है। शंकराचार्य ही महाराज पिछले चार दशकों से ज्यादा समय से देश को दिशा देने का काम कर रहे हैं। समय समय पर उनके बातए मार्ग पर चलकर लोक पुण्य अर्जित करते हैं।
माना जाता है कि परमपूज्य शंकराचार्य जी की पादुका पूजन मात्र से ही वेतरणी को पार किया जा सकता है। सिवनी जिले का यह सौभाग्य ही माना जाएगा कि जगतगुरू का अवतरण सिवनी जिला बना। जिस तरह भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का साक्षी मथुरा वृंदावन बना उसी तरह जगतगुरू की बाल क्रीड़ाओं का साक्षी सिवनी जिला बना। मानवता और धर्म का सार बताने वाले दिव्य महापुरूष के द्वारा निर्मित और पूजित पूजन स्थलों में आज भी धर्मध्वाजा शान से लहराती दिख जाती है।
देश विदेश में अपने बौद्धिक कौशल का लोहा मनवाकर विश्व को शांति के मार्ग पर चलने का पथ दिखाने वाले आध्यात्मिक गुरू महर्षि महेश योगी (महेश श्रीवास्तव) भी इसी महाकौशल की माटी में अवतरित हुए हैं। वे महाकौशल की प्रस्तावित राजधानी जबलपुर की विभूति हैं। महर्षि महेश योगी ने अपने आध्यात्मिक कौशल के बल पर न केवल भारत वरन समूचे विश्व में भारत का डंका बजाया है। आज उनके द्वारा स्थापित महार्षि विद्या मंदिर देश के कमोबेश हर जिले में विद्यार्थियों के विद्यार्जन का जरिया बने हुए हैं, जिनमें करोड़ों विद्यार्थी लाभान्वित हुए बिना नहीं हैं। प्रायमरी से लेकर स्नातकोत्तर तक हर स्तर का शिक्षण महर्षि के विद्यालयों में संभव है।
यह महज संयोग नहीं है कि इस तरह की महान विभूतियों का अवतरण महाकौशल प्रांत में हुआ, यह इस धरा का सौभाग्य ही माना जाएगा कि देश विदेश में प्रथक तरीके से आध्यात्म का पाठ पढ़ाने वाले चर्चित आचार्य रजनीश भी नरसिंहपुर जिले के गाडरवारा में ही अवतरित हुए। ओशो ने समूचे विश्व में अपनी आध्यात्मिक चेतना का लोहा मनवाया। महाराष्ट्र के पूना शहर को अपनी कर्मस्थली के तौर पर चुनकर उन्होंने देश में भी आध्यात्मिक चेतना का जो संचार किया वह अनवरत जारी है।
इसके साथ ही साथ दिल्ली को कर्मस्थली बनाने वाले स्वामी प्रज्ञानंद अपने आध्यात्मिक संदेशों से देश विदेश में कीर्ति फैला रहे हैं वे भी जबलपुर जिले से हैं। राजस्थान के जयपुर को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले स्वामी प्रज्ञनानंद जी भी सिवनी जिले के केवलारी तहसील के साठई गांव में अवतरित हुए हैं। जगतगुरू शंकराचार्य स्वरूपानंद जी महाराज से दीक्षित स्वामी प्रज्ञनानंद जी के शिष्य देश भर फैले हुए हैं। उनके मधुर कंठ से निकलने वाली भागवत कथा का आनंद लेते हुए श्रृद्धालु इतने भाव विभोर हो उठते हैं कि कथा के पंडाल में ही भक्तिमय नृत्य आरंभ हो जाता है।
इन समस्त विभूतियों के बारे में जिकर करने का ओचित्य महज इतना ही है कि महाकौशल की माटी को कर्मभूमि बनाने वाले जनसेवकों को इस माटी के महत्व के बारे में बताया जा सके। महाकौशल की माटी से चुनाव जीतकर राजनीतिक पायदान चढ़ने वाले नेताओं को यह बताया जा सके कि वे किस पावन धरा को अपनी कर्मभूमि बनाए हुए हैं। अब वक्त आ गया है जब इन जनसेवकों को अपनी माटी का कर्ज उतारकर प्रथक महाकौशल के आंदोलन में जान फूॅकना होगा।
(क्रमशः जारी)
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