0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 47
कैसे होगा जल प्रदूषण प्रबंधन
दो सालों में नहीं बन पाई वर्षा जल संरक्षण प्रणाली
प्रदूषण नियंत्रण मण्डल निगल रहा देखकर मख्खी
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)। मध्य प्रदेश सरकार के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल और केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा देश के हृदय प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील में लगने वाले कोल आधारित पावर प्लांट में पर्यावरण प्रदूषण के नियम कायदों की खुलकर अनदेखी की जा रही है। देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर जिनका इकबाल राजनैतिक तौर पर काफी हद तक बुलंद है के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के पास न जाने कौन सी जादू की छड़ी है कि एमपी की भाजपा और केंद्र की कांग्रेसनीत सरकार भी इस मामले में आंखों पर पट्टी चढ़ाए बैठी है।
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के सूत्रों का कहना है कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा पर्यावरण और प्रदूषण मानकों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, और आला अफसारन नीरो के मानिंद बांसुरी बजाने में लगे हुए हैं। संयंत्र प्रबंधन द्वारा प्रदूषण रोेकने या कम करने के लिए निर्धारित वृक्षारोपण न किए जाने के बाद भी मण्डल द्वारा संयंत्र प्रबंधन पर कोई शस्ति निरूपित न करना अपने आप में एक आश्चर्यजनक अजूबा ही है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार कूलिंग टॉवर बलोडाउन, डी.एम.प्लांट, फिल्टर बैक वॉश, बायलर ब्लोडाउन आदि के द्वारा उत्सर्जित होने वाली उष्मा काफी हद तक मानव के लिए हानीकारक बताई जा रही हैं। संयंत्र प्रबंधन का दाव है कि सभी स्ट्रीम्स से उपचारित जल को तालाब में एकत्रित किया जाएगा और उसका उपयोग धूल के दमन और हरित पट्टिका के विकास के लिए किया जाएगा। यक्ष प्रश्न आज भी यही बना हुआ है कि जब अब तक हरित पट्टिका कागजों में ही हरे रंग से विकसित हो रही है तो उसके लिए पानी की आवश्यक्ता शायद नहीं ही है।
संयंत्र प्रबंधन द्वारा तालाब कहां बनाया जाएगा यह बात भी अभी स्पष्ट नहीं हो सकी है। संयंत्र प्रबंधन को तालाब बनाने के लिए जमीन को खोदना आवश्यक होगा। सूत्रों का कहना है कि संयंत्र प्रबंधन को जमीन इस शर्त पर दी गई है कि वह जमीन की सतह का ही उपयोग करेगा। अगर उसमें वह खुदाई आदि करता है तो इसके लिए उसे प्रथक से अनुमति लेना होगा। तालाब खोदने के लिए संयंत्र प्रबंधन को खनिज विभाग से अनुमति की दरकार होगी, जो अब तक शायद ली ही नहीं गई है। कहा जा रहा है कि अवैध खनन के अनेक मामले भी प्रशासन के पास संयंत्र प्रबंधन के लंबित ही हैं।
सबसे अधिक आश्चर्य तो इस बात पर है कि संयंत्र प्रबंधन ने अब तक वर्षा जल संरक्षण प्रणाली ही विकसित नहीं की है। कुल मिलाकर सिवनी जिले की आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर में पर्यावरण बिगड़े, प्रदूषण फैले, क्षेत्र झुलसे या आदिवासियों के साथ अन्याय हो इस बात से मध्य प्रदेश सरकार के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को कुछ लेना देना नहीं है। यह सब देखने सुनने के बाद भी केंद्र सरकार का वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, जिला प्रशासन सिवनी सहित भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर चुपचाप नियम कायदों का माखौल सरेआम उड़ते देख रहे हैं।
(क्रमशः जारी)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें