गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

कौन पा रहा है थापर से पगार!


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . .  56

कौन पा रहा है थापर से पगार!

संयंत्र प्रबंधन की ना पर पीसीबी की हां!



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा देश के हृदय प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील में लगाए जा रहे 1200 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट में कंपनी की पगार कौन ले रहा है इस बात को लेकर संशय बना ही हुआ है। संयंत्र प्रबंधन द्वारा प्रदूषण रोकने और पर्यावरण को बनाए रखने के मसले पर कहा जाता है कि उनके द्वारा वृक्षारोपण अब तक नहीं किया गया, वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश प्रदूषण मण्डल का कहना है कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा पिछले तीन सालों में साईट पर कोई वृक्षारोपण नहीं किया गया है।
ज्ञातव्य है कि मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा घंसौर के बरेला ग्राम में 600 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट के लिए लोकसुनवाई के दौरान ही पर्यावरण से बचाव के लिए वृक्षारोपण करने का संकल्प लिया गया था। इसके उपरांत 22 नवंबर 2011 को हुई इसके दूसरे चरण (600 या 660 मेगावाट कुल मिलाकर 1200 या 1260 मेगावाट स्पष्ट नहीं) की लोकसुनवाई में संयंत्र के महाप्रबंधक श्री मिश्रा ने साफ तौर पर स्वीकार किया था कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा 22 नवंबर 2011 तक कोई वृक्षारोपण नहीं करवाया गया था।
इसके उपरांत जब इस संबंध में मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के क्षेत्रीय कार्यालय जबलपुर के प्रभारी श्री बुन्देला से चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि संयंत्र प्रबंधन ने वृक्षारोपण करवाया था। बकौल बुन्देला, वे इस बात की तसदीक करके बताएंगे कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा कराए गए वृक्षारोपण में से कितने वृक्ष अब तक बचे हुए हैं। वस्तुतः जब संयंत्र प्रबंधन स्वयं ही स्वीकार कर रहा है कि उसके द्वारा वृक्षारोपण नहीं कराया गया से साफ हो जाता है कि मण्डल के क्षेत्रीय कार्यालय जबलपुर के प्रभारी श्री बुन्देला किसी कारण विशेष के चलते ही संयंत्र प्रबंधन का पक्ष ले रहे हैं।
श्री बुंदेला ने आज चर्चा के दौरान कहा कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा पिछली बरसात में वृक्षारोपण करवाया था। जब उनके संज्ञान में संयंत्र प्रबंधन श्री मिश्रा की नकारोक्ति लाई गई तो उन्होंने कहा कि पता नहीं क्या बात है पर हम दावे के साथ कह सकते हैं कि वृक्षारोपण पिछली बरसात में कराया गया था। अब शोध इस बात पर किया जाना चाहिए कि आखिर मध्य प्रदेश सरकार से कौन पगार ले रहा है और गौतम थापर की जेब से किसकी पगार निकाली जा रही है।
एक तरफ तो संयंत्र के महाप्रबंधक श्री मिश्रा द्वारा मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड से पगार लेकर वास्तविकता सामने लाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के क्षेत्रीय कार्यालय जबलपुर के प्रभारी श्री बुंदेला द्वारा मध्य प्रदेश सरकार से तनख्वाह लेकर बिना मौका मुआयना किए हुए ही पता नहीं किस दबावमें संयंत्र का पक्ष आंख बंद कर लिया जा रहा है।
2009 से संयंत्र की स्थापना आरंभ हो चुकी है। इसके उपरांत दिसंबर 2011 तक की अवधि में वाहनों की आवाजाही आदि से पर्यावरण का जो नुकसान हुआ है उसका भोगमान कौन भोगेगा इस बारे में भी मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल खामोशी ही अख्तिायार किए हुए है। अब वृक्षारोपण होने पर संयंत्र के आरंभ होने तक पौधे पेड़ का रूप धारण नहीं कर पाएंगे जिससे पर्यावरण का असंतुलन बरकरार रहने की ही उम्मीद है।
कुल मिलाकर सिवनी जिले की आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर में पर्यावरण बिगड़े, प्रदूषण फैले, क्षेत्र झुलसे या आदिवासियों के साथ अन्याय हो इस बात से मध्य प्रदेश सरकार के प्रदूषण नियंत्रण मण्डल और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को कुछ लेना देना नहीं है। यह सब देखने सुनने के बाद भी केंद्र सरकार का वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, जिला प्रशासन सिवनी सहित भाजपा के सांसद के।डी।देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर चुपचाप नियम कायदों का माखौल सरेआम उड़ते देख रहे हैं।

(क्रमशः जारी)

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