शनिवार, 31 मार्च 2012

नई दुनिया हो गया नेशनल दुनिया!


नई दुनिया हो गया नेशनल दुनिया!

 

 

(कार्यालय डेस्क)


नई दिल्ली (साई)। बड़े अरमान से दिल्ली दरबार में दस्तक देने आया नई दुनिया नष्ट हो गया. जब अखबार दिल्ली आया था तब उसके लिए नारा गढ़ा गया था कि खबर वह है जो नई दुनिया छापता है. यानी बाकी के अखबार जो कुछ छापते हैं वह कूड़ा है. लेकिन कैसा दुर्भाग्य रहा इस अखबार का कि जिन आलोक मेहता को बड़े अरमानों से नई दुनिया समूह ने अपना समूह संपादक बनाया था उन आलोक मेहता ने अखबार के साथ इतना अधिक अखबारी अत्याचार किया कि अखबार ज्यातातर कूड़ाघर की शोभा ही बढ़ाता रहा. कैसा दुखद संयोग है कि खबर की तलाश में जब हम नई दुनिया के नई दिल्ली स्थित आफिस पहुंचे तो 26 मार्च का छपा हुआ नई दुनिया का एक बंडल जमीन पर पड़ा हुआ मिला. अंदर नेशनल दुनिया का काम चल रहा है.
तो क्या नई दुनिया ने दिल्ली में अपना नाम बदलकर नेशनल दुनिया कर लिया? नहीं. आलोक मेहता की ष्कृपाष् से नई दुनिया की जो नियति होनी थी वह हो गई. नई दुनिया की जगह कनाट प्लेस के ओंकारदीप बिल्डिंग से अब नेशनल दुनिया छप रहा है. यह नेशनल दुनिया आलोक मेहता का अपना अखबार है जिसका पहला संस्करण आज दिल्ली के मीडिया मार्केट में फेंका जा चुका है.
जब हम नई दुनिया कार्यालय के बाहर खड़े थे, तब तारीख थी 30 मार्च और समय था शाम के साढ़े सात बजे. कनाट प्लेस के इनर और आउटर सर्कल के बीच में जो एक तीसरा सर्कल है वहां एक बीयर बार के सामने नई दुनिया का दफ्तर बनाया गया था. लेकिन 30 मार्च की शाम बाहर बोर्ड अभी भी नई दुनिया का ही नजर आ रहा था लेकिन अंदर नजारा बदल गया था. अंदर नेशनल दुनिया का काम हो रहा था. आप कह सकते हैं कि आलोक मेहता ने नई दुनिया को नष्ट करने के बाद उसके दफ्तर पर कब्जा कर लिया है और अब वे वहीं से अपना अखबार निकाल रहे हैं.
आलोक मेहता के नेशनल दुनिया का पहला संस्करण 30 मार्च को बाजार में आ चुका है. सूत्र बता रहे हैं कि अखबार एक दिन की तैयारी से निकला है. कोई डमी नहीं. कोई प्रयोग नहीं. इसी दफ्तर से कल नई दुनिया छपा था, आज नई नेशनल दुनिया निकल गया. नीचे पहुंचने पर कुछ पत्रकारनुमा प्राणी आवाजाही करते नजर आये. भगदड़ का माहौल तो नहीं था लेकिन माहौल में तेजी साफ दिखाई दे रही थी. नीचे बैठे एक नौजवान से बोर्ड देखने के बाद भी जब हमने जानना चाहा कि नई दुनिया का आफिस यही है तो उसने पुष्टि कर दी. इसके बाद जब पूछा कि नया वाला अखबार का दफ्तर कहां है तो उसने कहा कि वही है. बाकी बची कसर नई दुनिया के दफ्तर के बाहर बैठे गार्ड ने पूरी कर दी. हमने एक वरिष्ठ पत्रकार का नाम लिया कि वे आये हैं क्या तो उसने कहा कि हम एक दिन पहले ही नौकरी पर आये हैं इसलिए यहां किसी को पहचानते नहीं है. बात और साफ हो गई.
तो क्या आलोक मेहता ने नई दुनिया के दफ्तर पर कब्जा कर लिया? पता नहीं. लेकिन अखबार के दफ्तर के अंदर नेशनल दुनिया का ही काम चल रहा था. हालांकि जो अखबार छपकर 30 मार्च को मार्केट में आया है उसमें कनाट प्लेस वाले दफ्तर का पता नहीं है बल्कि आलोक मेहता के घर नवभारत टाइम्स अपार्टमेन्ट का पता दिया हुआ है. इस नेशनल दुनिया के लिए लिखे गये विशेष संपादकीय ष्वही हैं हम, वही है दुनियाष् में आलोक मेहता ने लिखा है कि वही टीम अब आपके लिए नेशनल दुनिया लेकर आ गई है. उसी टीम के अधिकांश लोगों की खबरों के साथ फोटो भी छपी है लेकिन आलोक मेहता ने उस अखबार (नई दुनिया) के बारे में जानकारी नहीं दी है कि उसका क्या हुआ? क्या नई दुनिया ही नेशनल दुनिया बन गया या फिर नई दुनिया का गढ्ढे में गाड़कर यह नया अखबार शुरू कर दिया गया है?
सच्चाई जो भी हो लेकिन सामने यही दिख रहा है कि आलोक मेहता तो वही हैं, लेकिन नई दुनिया अब नहीं है. अब जो है वह नेशनल दुनिया है जो किसी एसबी मीडिया प्रा. लि. का प्रकाशन है जो आनन फानन में दिल्ली के मार्केट में उतार दिया गया है.
(विस्घ्फोट डॉट काम से साभार)

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