उत्तराखण्ड में
धार्मिक यात्रा यानि मौत को निमंत्रण
बस के ड्राइवर की गलती मध्य प्रदेश के 24 तीर्थयात्रियों की मौत
(चंद्रशेखर जोशी)
देहरादून (साई)।
उत्तराखण्ड में धार्मिक यात्राओं में जाने का मतलब है मौत को निमंत्रण देना, हादसों के अलावा समय पर चिकित्सक
न मिलने के अभाव में 30 श्रद्धालुओं की हृदय गति रुकने
से मौत हुई है।
उत्तराखण्ड के
ऋषिकेश में 22 मई 2012 मंगलवार को बद्रीनाथ हाइवे पर व्यासी के पास यात्रियों से भरी बस गंगा में
गिर गयी। जिसमें 24 लोगों की मौत हो गई है। दुर्घटना दिन में करीब एक बजे मालाकुंठी के पास
हुई।
मध्य प्रदेश के
41 तीर्थयात्रियों
के दल को लेकर 13 मई को चारधाम यात्रा पर निकली संयुक्त रोटेशन की बस दस दिन बाद मंगलवार को
वापस ऋषिकेश लौट रही थी। जैसे ही बस व्यासी के पास पास पहुंची, पीछे से आ रहे तेज रफ्तार डम्पर
ने उसे ओवरटेक के दौरान टक्कर मार दी। बस अनियंत्रित होकर सड़क किनारे बने पैराफिट तोड़ते
हुए करीब डेढ़ सौ मीटर गहरी खाई में जा लुढ़कते हुए गंगा में जा समाई। दुर्घटना के वक्त चालक छिटककर सड़क पर गिर गया।
जिससे वह सुरक्षित बच निकला।
वहीं दूसरी ओर
यह भी चर्चा है कि बस की स्टेयरिंग छोड़कर ड्राइवर भागता नहीं तो शायद यात्रियों की
जान बच जाती। जिस जगह हादसा हुआ है, वहां सड़क इतनी चौड़ी है कि तीन वाहन आसानी से पास हो सक ते हैं। बस में ट्रक
की टक्कर लगने के बाद ड्राइवर की ओर से उसे रोकने का जरा भी प्रयास नहीं किया गया।
यदि ऐसा हुआ होता तो वहां पर टायरों के घिसटने के निशान जरूर होते। 30 साल के बस चालक की इस हरकत से यह
लगने लगा है कि इस रूट पर चलने वाली रोटेशन की बसों और अन्य वाहनों की जांच में कोताही
की जा रही है। यह भी पता चला है कि चारधाम यात्रा पर जो जांच पड़ताल इंटरसेप्टर के जरिये
की जाती है, वह केवल बाहर से आने वाले वाहनों तक ही सीमित है। लोकल बसों को बिना किसी जांच
के ही छोड़ दिया जाता है।
घटना स्थल पर
जांच के लिए गए गढ़वाल मंडल आयुक्त कुणाल शर्मा ने बताया कि प्रत्यक्ष रूप से देखने
पर पूरी गलती बस के ड्राइवर की जान पड़ती है। ऐसे चालकों को बस ले जाने के लिए कैसे
अनुमति दी गई, इसकी जांच के आदेश डीआईजी पौड़ी को दिए गए हैं।
बस हादसा अपने
पीछे कई अनसुलझे सवाल छोड़ गया। वहीं दुर्घटना में सुरक्षित बचे बस चालक को भी यकीन
नहीं आ रहा है कि आखिर वह पल इतना क्रूर क्यों बन गया। व्यासी बस हादसे में जहां 26 लोग मौत की नींद सो गए और कई मौत
से जंग लड़ रहे हैं वहीं बस चालक सुनील गैराला इस दुर्घटना में सुरक्षित बच गया। सेंदुल
गांव घनसाली टिहरी गढ़वाल निवासी सुनील गैरोला ने बताया कि वह पिछले बीस वर्ष से चालक
के रूप में काम कर रहा है। इसी यात्रा काल में वह दूसरी बार चारधाम यात्रा और एक बार
गंगोत्री धाम की यात्रा कर चुका है। सुनील का कहना है कि पीछे से आ रहे ट्रक ने अचानक
बस को ओवरटेक करते हुए टक्कर मार दी। जिससे मैं बस से संतुलन खो बैठा। वहां पर जगह
कम होने के कारण बस सीधे बाई ओर बने पैराफीट में चढ़ गई और ड्राइविंग सीट का दरवाजा
खुल गया, जिससे मैं नीचे गिर गया।
वही दूसरी ओर
भाजपा के नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट ने यात्रा मार्ग पर चिकित्सा व्यवस्था दुरुस्त ना
होने के लिए प्रदेश सरकार को जिम्मेदार बताया। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि भाजपा सरकार
ने यह व्यवस्था की थी कि चार धाम यात्रा के वक्त यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले प्रमुख
चिकित्सालयों में छह माह के लिए चिकित्सकों की पर्याप्त व्यवस्था होगी। लेकिन इससे
इतर कांग्रेस सरकार चारधाम यात्रा के प्रति संवेदन शून्य बनी हुई है। ऋषिकेश चिकित्सालय
में सर्जन और इएमओ तक नहीं हैं। समझा जा सकता है पहाड़ की चिकित्सा व्यवस्था किस कदर
खराब है।
आपदा की दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखण्ड में किसी
भी हादसे के समय सारी कसरत कागजी ही साबित होती रही हैं। हादसे में पुलिस लेकिन खाली
हाथ पहुंची तथा चार सौ मीटर गहरी में उतरने के लिए जवानों के पास एक अदद रस्सी तक नहीं
थी। ग्रामीणों और राफ्टिंग संचालकों ने संसाधनों के दम पर तुरंत राहत कार्य शुरू कर
दिया और कुछ जानें बचाने में कामयाब रहे।
व्यासी के समीप
दोपहर पौने एक बजे मध्यप्रदेश के तीर्थयात्रियों से भरी बस गंगा में समाई तो वहां चीख
पुकार मच गई।
0 शिवम जोशी की भूमिका सबसे अहम रही।
दुर्घटना का शिकार
हुई बस के ठीक पीछे श्यामपुर के पांच युवक रोशन उपाध्याय, शिव प्रसाद रतूड़ी, देवेंद्र पुंडीर, मुकेश रणाकोटी व विजेंद्र भंडारी
कार से आ रहे थे। दुर्घटना देखकर पांचों युवक मौके पर ही रुक गए। पांचों युवक और समीप
के एक होटल के कर्मचारी जितेंद्र रावत, नवीन, कैलाश, मुन्ना, रणविजय व विक्रम आदि उसी तत्काल खाई में उतरे। उन्होंने मलबे और पानी में डूब
रहे घायलों को बाहर निकाला। खाई से शवों को मुख्य मार्ग तक लाना मुमकिन नहीं था, ऐसे में इन लोगों को तरकीब सूझी।
उन्होंने गंगा में राफ्टिंग कर रहे एक दल को रोक कर सभी घायलों को राफ्ट की मदद से
मालाखुंटी पहुंचाया जहां गंगा से मुख्य मार्ग बेहद नजदीक था। घटनास्थल से कुछ ही दूरी
पर स्थित स्थानीय निवासी शिवम जोशी की जे-2 राफ्टिंग कंपनी की भूमिका इस रेस्क्यू में सबसे अहम रही।
0 प्रत्यक्षदर्शियों कहना है कि
दुर्घटनाग्रस्त
हुई बस के ठीक पीछे अपने साथियों के साथ कार में सवार श्यामपुर खदरी निवासी रोशन उपाध्याय
का कहना था कि हमारी कार काफी दूर से उस बस
के ठीक पीछे चल रही थी। अचानक पीछे से तेज गति से आ रहे एक ट्रक ने हमारी कार को ओवरटेक
किया और फिर बस को ओवरटेक करने लगा। अचानक सामने से सेना के तीन ट्रक इस मोड़ पर आ पहुंचे।
सामने से आ रहे ट्रकों से बचने के लिए चालक ने ओवरटेक करते हुए ही ट्रक को बाई ओर मोड़
दिया जिससे बस का अगला हिस्सा ट्रक की चपेट में आ गया और बस अनियंत्रित होकर सड़क की
बाई ओर बने पैराफीट तो तोड़ती हुई खाई में जा गिरी।
उत्तराखण्ड की चार धाम यात्रा के 25 दिन हुए हैं जिसमें 30 मौतें हो चुकी हैं। हादसे प्रशासन
की असलियत सामने ला रहे हैं। इस यात्रा के
अभी पूरे पांच माह का समय शेष है, शुस्घ्आती माह में ही हादसे दर्शा रहे हैं कि चार धाम यात्रा के नाम पर उत्तराखण्ड
में कुछ भी तैयारी नहीं हैं।
उत्तराखण्ड में
प्रत्येक वर्ष धार्मिक यात्राओं के आयोजन के तहत इनमें कैलाश-मानसरोवर यात्रा, अमरनाथ यात्रा और चारधाम यात्रा
भी शामिल है। उत्तराखंड की चारधाम यात्रा के लिए सरकारी मशीनरी की ओर से कोई ठोस बंदोबस्त
नहीं किए जाते। केदारनाथ और यमुनोत्री पहुंचने के लिए लोगों को कई किमी का सफर पैदल
नापना होता है। सरकारी मशीनरी की तैयारियों की पोल खुलकर हर साल सामने आती है। यात्रा
मार्गाे पर चिकित्सा व्यवस्था एवं चिकित्सकों
की कमी हर साल रहती है। हादसों के अलावा समय पर चिकित्सक न मिलने के अभाव में 30 श्रद्धालुओं की हृदय गति रुकने से मौत हो गई।
चारधाम यात्रा
रूट पर चिकित्सकों की कमी है। असल में गढ़वाल के सभी जिलों में पहले से ही चिकित्सकों
की कमी है। ऐसे में ऐन मौके पर व्यवस्थाएं करने में स्वास्थ्य विभाग को मुश्किल का
सामना करना पड़ता है। उत्तराखण्ड में एक भी कॉर्डिओलॉजिस्ट नहीं है। यात्रा रूट पर सामान्य
फिजिशियन ही ह्दय रोगियों को देख रहे हैं।
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