बोरिंग डिपार्टमेंट
(अतुल खरे)
कलाकार - अमिताभ बच्चन, संजय दत्त,
लक्ष्मी मंचु, राणा डग्गुबती, नतालिया कौर, मधु शालिनी,
विजय राज, अभिमन्यु शेखर सिंह, दीपक तिजोरी।
निर्माता निर्देशक - रामगोपाल वर्मा।
चर्चित निर्माता निर्देशक रामगोपाल वर्मा
अंडरवर्ल्ड की दुनिया पर इससे पहले भी कंपनी और सरकार जैसी फिल्में बना चुके हैं। लेकिन,
उनकी यह विशेषज्ञता डिपार्टमेंट फिल्म में नहीं दिखती। पुलिस डिपार्टमेंट के नियम-कानूनों
की लक्ष्मण रेखा लांघकर गुंडों का सफाया करने का कॉन्सेप्ट नया तो नहीं है फिर भी इस
फिल्म की कहानी अच्छी है जिसे वर्मा ठीक से डायरेक्ट नहीं कर पाए।
अंडरवर्ल्ड के आतंक को खत्म करने के लिए होम
मिनिस्टर, होम सेक्रेटरी और डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस गुप्त मीटिंग करके
एक डिपार्टमेंट बनाते हैं। भ्रष्ट पुलिस अफसर और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट महादेव भोसले
(संजय दत्त) इसके हेड हैं। उनकी टीम में एक इमानदार अफसर शिव नारायण(राणा डग्गुबती)
भी शामिल है। डिपार्टमेंट में महादेव और शिव के बीच पावर गेम शुरू हो जाता है। इन दोनों
की लड़ाई का फायदा भ्रष्ट नेता और पूर्व अंडरवर्ल्ड डॉन सर्जेराव गायकवाड (अमिताभ बच्चन)
उठाता है। वह दोनों का इस्तेमाल कर अपनी सत्ता चलाता है।
फिल्म को शुरुआती कुछ मिनटों में देखने के
बाद ऐसा लगता है कि यह फिल्म बहुत रोमांचक होगी। लेकिन, कुछ देर बाद कई छोटे-छोटे
प्लॉट में बंटी कहानी बोर करने लगती है। क्रिएटिविटी के नाम पर किया गया कैमरा मूवमेंट
समझ से परे है। जैसे कि जब पुलिस अफसर बात करते रहते हैं तो कैमरा उनके फेस और एक्सप्रेशन्स
को फिल्माने के बदले उनके बॉडी लैंग्वेज के साथ चाय-पानी के ग्लास पर फोकस रहती हैं।
अमिताभ बच्चन फिल्म की इज्जत बचाते हैं और
इसमें जान फूंकते हैं। बिग बी की एक्टिंग शानदार है। संजय दत्त और राणा डग्गुबती ने
साधारण एक्टिंग की है। मधु शालिनी और अभिमन्यु अपनी भूमिका में बहुत असहज लगे हैं।
विजय राज ने अच्छी एक्टिंग की है लेकिन उनका कैरेक्टर आधा-अधूरा लिखा गया है। दीपक
तिजोरी और लक्ष्मी मंचु की कोई खास भूमिका नहीं है।
डायरेक्शन के मामले में भी राम गोपाल वर्मा
पिछड़ गए हैं। एक बेहतर कहानी को पर्दे पर आधे-अधूरे ढंग से रामगोपाल वर्मा ने उतारा
है। कैरेक्टर्स के बीच बिना किसी खास संवाद के बेमतलब के एक्शन सीन्स हैं। फिल्म पर
डायरेक्टर की पकड़ कमजोर है।
म्यूजिक/डायलॉग्स/सिनेमेटोग्राफी/एडिटिंग-रामगोपाल
वर्मा ने फिर साबित किया है कि फिल्म में गीतों को लेकर उनके पास कोई खास टेस्ट नहीं
है। रिमिक्स सॉन्ग श्थोड़ी सी जो पी ली हैश् और नतालिया कौर का आइटम सॉन्ग सी ग्रेड
का लगता है। खराब एडिटिंग के साथ-साथ क्रिएटिविटी के नाम पर बेअसर सिनेमेटोग्राफी की
गई है। कुछ डायलॉग्स प्रभावशाली हैं लेकिन कुल मिलाकर इसे बेहतर नहीं कहा जा सकता।
इस बोरिंग डिपार्टमेंट को अमिताभ बच्चन के
लिए देखा जा सकता है। बाकी इस फिल्म में कुछ भी ऐसा खास नहीं, जिसके लिए इसे देखा
जाए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें