मध्य प्रदेश में
लूट की खुली छूट
(वीरेन्द्र जैन)
जब भी राजनीतिज्ञों
के संरक्षण में पल रहे आर्थिक अपराधियों के निवासों, कार्यालयों पर आयकर
अधिकारी, लोकायुक्त
या आर्थिक अपराध शाखा के लोग छापामार कार्यवाही करते हैं तब ये अपनी ज़िम्मेवारी से
बचने व स्वयं को निरपेक्ष दर्शाने के लिए, ऐसे बयान देते हैं। रोचक यह है कि पिछले
दिनों म.प्र. में भाजपा से जुड़े व्यापारियों ठेकेदारों के कार्यालयों, निवासों, फार्महाउसों पर
आयकर विभाग द्वारा मारे गये छापों के बाद उपरोक्त बयान आने से पहले ही भाजपा के
प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा का बयान आ जाता है कि “क्या भाजपा से जुड़े
लोग व्यापार नहीं करेंगे”।
भाजपा के प्रदेश
अध्यक्ष प्रभात झा,
जो मूलतरू बिहार के निवासी हैं, और जिन्हें सम्भवतः
मध्य प्रदेश में उनकी अतिरिक्त प्रतिभा के कारण ही अध्यक्ष के रूप में स्थापित
किया गया है, को यह भी
नहीं मालूम कि आयकर विभाग के लोग किसी पर उसके व्यापार करने के लिए छापे नहीं
मारते अपितु देय कर के अपवंचन के सन्देह पर ही कार्यवाही करते हैं। सच तो यह है कि
प्रदेश के नेताओं और आर्थिक सामाजिक अपराधियों के साथ उनके सम्बन्धों का पता हर
दृष्टिवान को है, और
प्रभातजी का उक्त बयान संघ परिवार की सच को भटकाने की परम्परा के अनुसार ही है।
सम्बन्धित
व्यापारियों को मुख्यमंत्री समेत सरकार से कितना संरक्षण मिला हुआ था इसकी
गम्भीरता को समझने के लिए इतना ही काफी है कि आयकर विभाग को यह छापा मारने की तिथि
तब तय करनी पड़ी जब कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने उद्योग मंत्री के साथ
विदेश यात्रा पर निकले। इससे पता चलता है कि इस प्रदेश में सरकार के संरक्षण में
पल रहे लुटेरों को उचित कर के दायरे में लाने के लिए भी आयकर विभाग को कितना फूंक
फूंक कर कदम उठाना पड़ता है। छापे के दौरान रात्रि में ढाई बजे उक्त ठेकेदार के
लोगों ने आयकर अधिकारियों पर अनुचित दबाव बनाने की कोशिश की थी जिससे तनाव बन गया
था। एक व्यक्ति तो छापों में लगी जीप को ही लेकर भाग गया जिसे बाद में पकड़ा गया और
उसे एक मानसिक रोग से ग्रस्त सरकारी कर्मचारी बताया गया। संयोग से जरूरी जब्त
कागजात उस गाड़ी में नहीं थे। यह पता नहीं चला कि उक्त कर्मचारी का मानसिक रोग केवल
आयकर विभाग की छापामार टीम के साथ लगी जीप के सामने ही क्यों उभरा और इससे पहले इस
रोग से ग्रस्त होकर वह कितनी गाड़ियां ले कर भाग चुका है। यदि वह सचमुच इतना गम्भीर
मानसिक रोगी है तो अभी तक सरकारी नौकरी में कैसे बना हुआ है?
स्मरणीय है कि
पिछले वर्ष जिन आईएघ्स दम्पति पर छापा पड़ा था जिसमें कई सौ करोड़ रुप्यों की नकदी
समेत जमीन जायदादों के कागजात प्राप्त हुये थे, उसी दौरान प्रदेश
में करोड़ों रुपये खर्च करके एक हिंदू संगम आयोजित किया जा रहा था जिसका अध्यक्ष
इसी आईघ्एस अधिकारी के पिता को बनाया गया था जो एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी हैं
और छापों में उन की भी तफ्तीश हुयी थी। कहा जाता है कि धर्म के नाम पर चलने वाले
इस तरह के कामों में भाग लेने का उनका पहला अवसर था जो अपने बेटे बहू के कामों को
शासकीय संरक्षण दिलाये जाने के लिए उन्हें स्वीकारना पड़ा था। अगर ऐसा नहीं होता तो
भाजपा सरकार के परोक्ष सहयोग से आयोजित इस आयोजन की अध्यक्षता भोपाल के पूर्व
भाजपा सांसद सुशील चन्द्र वर्मा को भी दी जा सकती थी जिन्होंने पिछले दिनों भाजपा
में अपनी निरंतर उपेक्षा से दुखी होकर आत्महत्या कर ली। वे प्रदेश के एक पूर्व
कर्मठ ईमानदार आईएएस अधिकारी भी थे जो मुख्य सचिव जैसे सर्वाेच्च पद से
सेवानिवृत्त हुये थे।
सच तो यह भी है कि
पूरे मध्य प्रदेश में जो लूट मची हुई है उसमें छापों की घटनाएं आये दिन की बात हो
गयी हैं जिनमें करोड़ों की अनुपातहीन सम्पत्ति बरामद हो रही है, और हर छापे के बाद
यह भी सामने आता है कि सम्बन्धित को किसी न किसी रूप में मंत्रियों या नेताओं से
संरक्षण प्राप्त रहा है। उल्लेखनीय यह है कि लोकायुक्त या प्रदेश पुलिस की आर्थिक
अपराध शाखा सत्तारूढ नेताओं को बचा कर कार्यवाही करती महसूस होती है पर जब भी कोई
केन्द्रीय एजेंसी भी छापा मारती है तो उसे सरकार में शामिल जनप्रतिनिधियों के
सम्मान और राजनीतिक प्रतिक्रियाओं का भी ध्यान रखना होता है। गत वर्षों में आयकर
विभाग ने प्रदेश के मंत्रियों के आसपास रहने वाले रिश्तेदारों,अधिकारियों और
दलालों के यहाँ तो छापे मारे पर मंत्रियों, विधायकों को छुआ भी नहीं। शायद यह स्थानीय
पुलिस से सहायता लेने की मजबूरी में करना पड़ता होगा।
शिवराज सिंह चौहान की
छवि को मासूम बनाने के लिए जनसम्पर्क विभाग करोड़ों रुपये फूंक रहा है, पर स्सच यह है कि
उनका शासन आने के बाद प्रदेश सरकार में सबसे तेज उछाल भरने वाले इन ठेकेदारों, व्यापारियों, सप्लायरों, की आर्थिक प्रगति
के आंकड़े आँखें फाड़ देने वाले होते हुए भी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की निगाहें
झुकती नजर नहीं आयीं अपितु ‘चोरी और सीनाजोरी’ वाला मुहावरा
चरितार्थ करती दिखीं। जिन दिलीप सूर्यवंशी के पास शिवराज का शासन आने से पहले कुल
बारह डम्पर थे उनके पास आज 1820 डम्पर हैं जिनकी कीमत साढे चार सौ करोड़ से
अधिक होती है। इसके साथ ही सवासौ करोड़ रुपयों की कीमत के 143 ग्रेडर और 82 करोड़ कीमत के
ग्यारह क्रशर मेस्टो भी हैं। अभी पूरी
कार्यवाही का समेकन होना शेष है। शिवराज के संरक्षण से प्रदेश भर में सड़कों के
निर्माण के ठेके उन्हीं के पास हैं, क्योंकि उनका जुड़ाव उनके छात्र जीवन से रहा
है।
उल्लेखनीय है कि गत
दिनों एक ईमानदार कर्मठ खनिज सचिव शैलेन्द्र सिंह को उनकी पद स्थापना से दो महीने
के अन्दर ही हटा दिया गया था क्योंकि वे खनिज माफिया की लूट पर लगाम लगाना चाहते
थे। उन्होंने प्रदेश के खनन क्षेत्रों पर वन विभाग द्वारा सफलता पूर्वक अपनायी गयी
विधि, सेटेलाइट
से निगरानी रखने की तैयारी शुरू कर दी थी, इस विधि में वास्तविक खनन की गणना भी सम्भव
हो सकती है। वे निजी कम्पनियों की जगह भारत सरकार के सरकारी उपक्रमों और खनिज निगम
को उत्खनन का काम सौंपना चाह्ते थे। खनिज सचिव बनते ही उन्होंने रेत उत्खनन के अधिकार
जिला कलेक्टरों को दे दिये थे। अन्य खदानों के आवंटन के अधिकार कलेक्टरों को देने
के लिए विधि विभाग को प्रस्ताव भी भेज दिया था, जिससे खदान आवंटन
की फाइलें मंत्री तक नहीं जातीं और प्रदेश की आय बढ जाती।
अफवाह यह भी रही कि
इन छापों की पृष्ठभूमि तैयार करने में उमाभारती से सम्बद्ध रहे अधिकारियों की
विशेष भूमिका रही है। उमाजी तो पार्टी अनुशासन में बँधी होने के कारण मध्य प्रदेश
में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं, पर भाजपा के पूर्व थिंक टैंक गोबिन्दाचार्य
ने बिना देर किये बयान दिया कि “इन घटनाओं से भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता
अवश्य दुखी हो रहे होंगे उनका मनोबल जरूर गिरा होगा, वे पार्टी का बचाव
करने में स्वयं को विवश लाचार और उदास पाते होंगे। सिद्धांतहीन राजनीति से हटकर
सत्तानिष्ठ राजनीति होने का यह स्वाभाविक दुष्परिणाम है। कार्यकर्ता आधारित
कार्यशैली की के बजाय धन आधारित कार्यशैली बन जाने का यह नतीजा है। सब सत्ता की
आपाधापी और धन की लूट में लगे हैं। म.प्र. में जो हालात हैं वे बाकई चिंताजनक हैं।“
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