योगगुरू से राजगुरू
होने का सपना चूर
(विस्फोट डॉट काम)
नई दिल्ली (साई)।
योगगुरू से राजगुरू बनने का सपना पाले बाबा रामदेव ने एक बार फिर गुलाटी मारी है।
चार दिन पहले दी गई अपनी जुबान से पलट गए हैं। हमेशा किसी भी बात को गोल-मोल
घुमाकर कहनेवाले बाबा रामदेव ने पहले लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया लेकिन
बालकिशन की गिरफ्तारी के तुरंत बाद रंग बदलते हुए चुनाव लड़ने से साफ मना कर दिया
है।
ऐसा नहीं है कि
उन्होंने हृदय परिवर्तन के कारण राजनीति में आने का फैसला टाल दिया हो। बल्कि अपने
सहयोगी बालकृष्ण की गिरफ्तारी के दबाव के कारण उन्हें यह फैसला लेना पड़ा है। अपनी
बात को भीष्म प्रतिज्ञा बताते हुए उन्होंने कहा कि मै कभी भी चुनाव नहीं लडूंगा।
कुछ दिन पहले ही
पुणे में अपने आंदोलन का ऐलान करते हुए उन्होंने पत्रकारों के सवालों के जवाब में
कहा था कि चुनाव लड़ना कोई बड़ी नहीं है। उन्होंने इस बात संकेत दिए थे कि अगर दिल्ली
में होनेवाला आंदोलन सफल रहा और जनता उनका साथ दे, तो वे 2014 के चुनावों में
भाग ले सकते हैं। इस बयान के बाद सभी जगह इस बात चर्चा हो रही थी कि बाबा का आखिरी
पड़ाव राजनीति ही है। आंदोलन और सत्याग्रह तो केवल उस पड़ाव तक पहुंचने का रास्ता
है। इसलिए वे हमेशा किसी भी नेता का नाम अपने भाषणों और बयानों में लेने से कतराते
रहे हैं। जिसकी झलक तब दिखी थी जब बाबा और अन्ना जंतर-मंतर पर एक साथ आए थे और
केजरीवाल के नाम लेने पर बाबा ने आपत्ति जताई थी।
उन्होंने चुनाव न
लड़ने का फैसला निश्चित रूप से बड़े भारी दिल से लिया है। उनके सहयोगी, उनके हमराज और उनकी
कम्पनियों के कर्ता-धर्ता आचार्य बालकृष्ण को कल सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया है।
जिसके बाद अचानक बाबा का हृदय परिवर्तित हो गया। बालकृष्ण की गिरफ्तारी के बाद
बाबा के लिए एक तरह से मुश्किलों का दौर शुरू हो गया है।
बालकृष्ण ने ही बाबा
की सभी आर्थिक जिम्मेदारियों का बोझ अपने कंधों पर ऊठा रखा है। बाबा भी बालकृष्ण
की कंधे पर बंदूक रखकर हर जगह कहते फिरते थे कि बाबा के हाथ तो बिल्कुल खाली है।
कहने का अर्थ है कि उनका न तो खाता है और न ही कोई कम्पनी बाबा के नाम पर है। सभी
कार्यभार और असल ताले की चाबी तो बालकृष्ण ही है। अगर उन्हें कुछ भी होता है तो
बाबा का यह भरा-पूरा सम्राज्य एक तरह से अनाथ हो जाएगा। बाबा के काम-धंधे के चौपट
होने तक की आशंका बालकृष्ण की गिरफ्तारी के बाद जताई जा रही है। बालकृष्ण पर जाली
दस्तावेजों के जरिए पासपोर्ट बनाने का आरोप लगा है, लेकिन अगर गंभीरता
से सोचा जाए इसके कई पहलू सामने आ सकते हैं कि पहले तो उन्होंने संपूर्णानंद
संस्कृत महाविद्यालय से जाली दस्तावेज बनवाए। जिसकी पुष्टी वहां के रजिस्ट्रार ने
कर दी है। उनके मुताबिक जिस रोल नंबर की बात बालकृष्ण के प्रमाणपत्रों में है वह
किसी और के नाम पर है। इसका सीधा अर्थ है कि उन्होंने गैर कानूनी तरीके से जाली
प्रमाणपत्र बनवाए। दूसरे उसी जाली दस्तावेजों के सहारे पासपोर्ट बनावाया।
वे असल में किस देश
के नागरिक हैं इस बात पर संदेह बरकरार है। सीबीआई के मुताबिक नेपाल सरकार से उनके
नेपाली नागरिक होने की सूचना मांगी गई थी। लेकिन वहां से अब तक कोई जवाब नहीं आया
है। इसका मतलब है की उनपर कई तरह के और आरोप लग सकते हैं। बालकृष्ण के हिरासत में
होने से एक तरह से बाबा की गर्दन की सरकार और प्रशासन के हाथ में लग गई है। जिसे
जितना दबाओं दर्द और नुकसान तो बाबा को ही होना है।
बाबा की छवि वैसे
भी आम जनता में कुछ खास बची नहीं है। जो बची भी है उसे वे बार-बार अपने बदलते
बयानों से गवाते जा रहे हैं। पिछले साल जब 4 जून से रामलीला मैदान में उन्होंने आंदोलन
छेड़ा था तो लोगों को लगा कि शायद इसका कुछ अच्छा नतीजा निकले। लेकिन जिस तरह जान
की खतरे की बात कहकर वे महिलाओं के कपड़े पहनकर वहां से भागे। उससे जनता में बाबा
की एक डरपोक की छवि बन गई। जो अभी तक धुंधली नहीं पड़ी है। बाबा हमेशा पहले जोश में
कुछ भी बोल देते हैं और बाद में उससे पलट जाते हैं। शायद यही फर्क है अन्ना और बाब
रामदेव में। अन्ना तोल-मोल के बालते हैं और बाबा बोलने के बाद तोल-मोल करते हैं और
लोगों के बीच हास्य का कारण बनते हैं।
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