फोरलेन का दुखड़ा
(शरद खरे)
वर्ष 2008 के उपरांत सड़कों के मामले में सिवनी
वासियों की किस्मत बेहद खराब मानी जा सकती है। 2008 के विधानसभा चुनावों के दौरान ही सिवनी में एनएचएआई के
फोरलेन पर षणयंत्र का ताना बाना बुना गया। इस ताने बाने में तत्कालीन जिला कलेक्टर
पिरकीपण्डला नरहरि की भूमिका भी संदिग्ध ही मानी जा सकती है क्योंकि उस समय बिना
किसी को विश्वास में लिए ही 18 दिसंबर 2008 को पिरकीपण्डला नरहरि ने एक आदेश जारी कर सड़क निर्माण में
आने वाली वन और गैर वन भूमि पर से पेड़ों की कटाई प्रतिबंधित कर दी थी।
इसके बाद 2009 की गर्मियों में
जनमंच का गठन हुआ। जनमंच ने इस सड़क को बनवाने के हर संभव प्रयास आरंभ में किए, किन्तु शनैः शनैः जनमंच से भी लोगों का भरोसा उठने लगा और
इसके बाद लोगों की रूचि इस दिशा में लगभग समाप्त ही हो गई। कोई ना कोई राजनैतिक
शक्ति भले ही वह कांग्रेस या भाजपा से जुड़ी रही हो ने इस सड़क के लिए हुए हर आंदोलन
में दिशा भटकाने का ना केवल जबर्दस्त काम किया है, वरन् वह अपने इरादों में सफल भी रही है। इसी बीच शराब व्यवसाई
रहे और लखनादौन मस्जिद के सरपरस्त, वरिष्ठ अधिवक्ता
तथा राय पेट्रोलियम के संचालक दिनेश राय के नेतृत्व में लखनादौन जनमंच का गठन भी
किया गया। इस संगठन ने भी दिल्ली लखनादौन एक कर दिया, पैसा पानी की तरह बहाया। अपने काम को जस्टीफाई करने के लिए
पत्रकारों के दल को कई बार अज्ञात व्यक्ति के खर्च पर दिल्ली की सैर करवाई गई।
चर्चा और चटखारों में पत्रकारों के दल को ‘आईपीएल‘ की टीम की संज्ञा भी दी गई, क्योंकि शराब उत्पादक विजय माल्या ने आईपीएल में टीम खरीदी थी
और यहां शराब व्यवसाई पत्रकारों को कथित तौर पर खरीद रहा था। एक बार हाईवे जाम
करने पर तत्कालीन एडीएम अलका श्रीवास्तव ने लिखित आश्वासन दिया था इस सड़क को बनाने
का। इस तरह का प्रचार मीडिया में हुआ था। एडीएम अलका श्रीवास्तव का वह पत्र या तो
दिनेश राय की बैठक की शोभा बढ़ा रहा होगा या फिर रद्दी की टोकरी में पड़ा होगा पर
सड़क नहीं बन पाई यही अंतिम सत्य है।
इस सड़क का काम जिला कलेक्टर के आदेश से रोका गया था। कलेक्टर के आदेश को
कमिश्नर या राजस्व मण्डल में चुनौति दी जा सकती थी। चुनौति दी भी गई पर
प्रतीकात्मक। बताते हैं, तत्कालीन आयुक्त
ने ऑफ द रिकार्ड कह दिया अरे सब जानते तो हैं, उपर से प्रेशर है। बस हो गया चुनौति का निराकरण। प्रदेश में
भाजपा सरकार है, कांग्रेस विपक्ष में है। केंद्र में
बिल्कुल उलट स्थिति है। बावजूद इसके इस सड़क को बनवाने के लिए ना कांग्रेस संजीदा
है ना ही भाजपा फिकरमंद नजर आती है।
इस सड़क पर सैकड़ों निरीह, निरपराध लोगों की
जान जा चुकी है। इनकी गैर इरादतन हत्याओं का पाप किसके सर मढ़ा जाएगा? निहित स्वार्थों की पूर्ति होने पर सभी अपने अपने बिलों में
दुबककर बैठ जाते हैं नहीं हुई तो सड़कों पर शेर बनकर गरजते नजर आते हैं। दरअसल, इस तरह के लोग शतुर्मुग के मानिंद होते हैं। जो समझते हैं
दुनिया के बाकी लोग बेवकूफ और अंधे हैं, उन्हें कुछ दिखाई
नहीं पड़ रहा है। वे शतुर्मुग की तरह अपना सर रेत में गड़ाकर समझते हैं कि उन्हें
कोई देख नहीं रहा है।
सिवनी का सौभाग्य था कि एक बड़े अफसरान की तैनाती जबलपुर में हुई और किस्मत
से वे नागपुर के रहने वाले निकले। दो तीन बार सड़क मार्ग से जाने पर उन्हें इसकी
जर्जरावस्था का अहसास हुआ। कहते हैं कि उन्होंने तत्कालीन जिला कलेक्टर अजीत कुमार
सहित अपने विभाग के आला अफसरान को बुलाया और सड़क को निश्चित समय सीमा में सुधारने
का फरमान जारी कर दिया। साथ ही साथ इस सड़क के आवश्यक सुधार के लिए कोर्ट में
परिवाद लगाने का मशविरा भी दिया। कहा जाता है कि एक अधिकारी ने इसकी खबर जनमंच को
भी दी पर परिवाद नहीं लगाया जा सका, क्योंकि पुराने
परिवाद ही लंबित थे। अगर नया परिवाद लगाया जाता तो आज स्थिति कुछ ओर होती। सिवनी
के एक वरिष्ठ अधिवक्ता इस पूरे वाक्ये के साक्षात गवाह भी हैं।
बहरहाल, जबलपुर में तैनात उक्त वरिष्ठ
अधिकारी जो सिवनी मूल के निवासी नहीं थे, की व्यक्तिगत
रूचि के चलते सिवनी से खवासा का सड़क का हिस्सा मोटरेबल हो गया। इससे स्पष्ट हो
जाता है कि अगर नेता, स्वयंसेवी संगठन, सांसद विधायक, एनएचएआई, जिला प्रशासन चाहता तो यह हिस्सा 2008 से ही चलने लायक रहता। अगर नहीं हुआ तो सभी की नियत पर संदेह
करना वाजिब है! अब हर कोई इसके 2013 तक मोटरेबल ना
हो पाने के लिए अपने अपने तरीके से अपनी सफाई पेश करे पर अंतिम सत्य यही है कि 2008 के बाद एक अधिकारी जो सिवनी मूल का नहीं था की व्यक्तिगत
रूचि के चलते यह मार्ग 2013 में ही मोटरेबल
हो पाया,
जबकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2012 जनवरी में ही प्रकरण अपने पास से डिस्पोज कर दिया गया था।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि सिवनी के नेता, यहां तक कि निहित स्वार्थों को मूल मंत्र मानकर मीडिया के
पेशे में आए चुनिंदा कथित मीडिया मुगल भी पूंजीपति धनाड्य नेतानुमा ठेकेदारों के
हाथों की कठपुतली बने रहे।
एक बार फिर यह सड़क मार्ग बुरी तरह जर्जर हो चुका है।
समाजसेवी नरेंद्र ठाकुर ने इसके सुधार के लिए कलेक्टर से गुहार लगाकर जिम्मेदार
अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही की मांग की है। ‘देर आयद दुरूस्त आयद‘ की तर्ज पर नरेंद्र ठाकुर का यह कदम स्वागत योग्य है।
जिला कलेक्टर से अपेक्षा है कि इस सड़क के इस दर्द को अपने कठोर शब्दों वाले डीओ
लेटर के रूप में एनएचएआई के आला अधिकारियों को भेजें और जमीनी हकीकत से आवगत कराते
हुए भविष्य के खतरे के प्रति आगाह करवाएं।
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