भरत यादव का आभार
(शरद खरे)
सिवनी में पहली बार
डेंगू की आहट वाकई दुःखद है। अब तक सिवनी के निवासियों ने डेंगू के नाम को मीडिया
में ही देखा और पढ़ा था कि किस तरह डेंगू का डंक देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के
निवासियों को हलाकान किए हुए रहता था। पूरे साल विशेषकर दीपावली के उपरांत से लेकर
होली तक डेंगू का दंश दिल्ली वासी झेलते रहते थे। दिल्ली में कमोबेश रोजाना ही
सैकड़ों डेंगू के मरीजों के भर्ती होने तथा एक दो चार की मौत की खबरें आम हुआ करती
थीं। इस साल भी गत दिवस तक डेंगू प्रभावितों की तादाद दिल्ली में एक हजार के उपर
जा पहुंची है। दिल्ली में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली सरकार
के हाथ पैर बारिश के उपरांत डेंगू के कारण फूल जाना स्वाभाविक ही है।
सिवनी में भी इस
बार डेंगू के दंश से लोग बुरी तरह प्रभावित ही नजर आ रहे हैं। डेंगू ने लोगों को
जिस कदर डरा रखा है वह वाकई चिंता का विषय है। सिवनी में मच्छर जनित रोगों के लिए
जिम्मेदार मच्छरों के लिए बहुत ही उपजाऊ माहौल बना हुआ है। सिवनी का प्रशासन पड़ोसी
जिले मण्डला में डेंगू की भयावहता से भी नहीं चेता, जो निंदनीय है।
जिला कलेक्टर बार बार डेंगू और मच्छर जनित रोगों से निपटने के लिए उपाय करने हेतु ‘कड़े निर्देश‘ जारी करते रहे हैं, विडम्बना ही कही
जाएगी कि उच्च स्तरीय राजनैतिक पकड़ वाले मोटी चमड़ी वाले प्रदेश शासन के अधिकारी
कर्मचारियों पर भी संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव के ‘कड़े निर्देश‘ कुछ असर नहीं डाल
सके हैं।
जिला मुख्यालय में
सबसे पहले विवेकानंद फिर शहीद वार्ड में डेंगू ने दस्तक दी। शनैःशनैः डेंगू का
प्रकोप सारे जिले में पहुंच गया। ऐसा नहीं कि एक ही दिन में डेंगू का प्रकोप फैला
हो। डेंगू का दंश दो तीन माहों में ही तेज हुआ है। जिला कलेक्टर के निर्देश पता
नहीं क्यों संबंधित विभाग के आला अधिकारी हवा में उड़ाने पर ही आमादा नजर आते हैं।
यह सही है कि जिला कलेक्टर के पास समूचे जिले पर नजर रखने का काम होता है अतः वे
निर्देश देने के बाद उन निर्देशों पर अमल हो रहा है अथवा नहीं इस बारे में ध्यान रख
पाएं यह संभव प्रतीत नहीं होता है।
जिला कलेक्टर के
अधीन अतिरिक्त कलेक्टर, संयुक्त कलेक्टर, एसडीएम आदि होते हैं जिनका काम टीम भावना के
रूप में काम करके कलेक्टर के दिशा निर्देशों का पालन सुनिश्चित करवाना होता है।
साथ ही साथ जिला कलेक्टोरेट में हर विभाग का एक प्रभारी अधिकारी (ओआईसी) होता है।
यह प्रभारी अधिकारी डिप्टी कलेक्टर स्तर का होता है। जिला कलेक्टर के निर्देशों का
पालन सुनिश्चित हो यह काम ऑफीसर इंचार्ज डिप्टी कलेक्टर का भी होता है। विडम्बना
ही कही जाएगी कि स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय निकाय विभाग के अधिकारी अगर झींगा
मस्ती में समय काट रहे हैं तो ओआईसी डिप्टी कलेक्टर्स भी उनकी बेसुरी थाप पर ही
अपनी आसनी पर आनंद के साथ आंखें बंद किए हुए नीरो के मानिंद चैन की बंसी बजा रहे
हैं। वरना क्या कारण है कि जिला कलेक्टर के बार बार ‘कड़े निर्देश‘ देने के बाद भी अब
तक डेंगू के लार्वा और मरीज मिलने का सिलसिला थम नहीं सका है। क्या कारण है कि गत
दिवस संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव को एक बार फिर से दुबारा ‘कड़े निर्देश‘ जारी करने पड़े।
इसके लिए सिवनी की जनता कलेक्टर के प्रति आभारी ही होगी।
जिला मलेरिया
अधिकारी कार्यालय का काम मच्छर जनित रोगों की रोकथाम का है। मच्छरों पर नियंत्रण
करने का काम भी उनके ही विभाग का है। इस पद पर पेशे से चिकित्सक और सिवनी विधायक
श्रीमती नीता पटेरिया के पति डॉ.एच.पी.पटेरिया पदस्थ हैं। श्रीमती पटेरिया अभी भी
सिवनी विधायक हैं। क्या उन्होंने कभी जिला कलेक्टर से मिलकर जिला मुख्यालय में
डेंगू के लार्वा और मरीज मिलने की बात पर चर्चा की? क्या कभी उन्होंने
सिवनी विधानसभा में ही जाकर डेंगू या मलेरिया के मरीजों की सुध ली? जाहिर है नहीं, अगर वे ऐसा करतीं
तो उन्हें अपने ही ‘स्वामी‘ के खिलाफ आवाज
बुलंद करनी होती।
हो सकता है श्रीमती
नीता पटेरिया इस बार विधानसभा चुनावों की टिकिट की दौड़ में ‘खरगोश और कछुआ‘ की कहानी के एक
पात्र के मानिंद कच्छप गति से चलने वाले युवा नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी
के दामन पर स्याह छींटे डालना चाह रही हों कि यह काम नगर पालिका परिषद् का है इस
काम में भला वे क्यों दिलचस्पी लें! पर श्रीमती नीता पटेरिया को यह नहीं भूलना
चाहिए कि जिला मुख्यालय के मतदाताओं ने भी उन्हें विधायक बनने के लिए मिले जनादेश
में बड़ी भूमिका निभाई है।
वहीं दूसरी ओर
लखनादौन विधायक श्रीमती शशि ठाकुर के पति डॉ.वाय.एस.ठाकुर मुख्य चिकित्सा एवं
स्वास्थ्य अधिकारी हैं। वे चाहते तो डीएमओ डॉ.पटेरिया की मश्कें खींच सकते थे। हो
सकता है वे यह सोचकर खामोश हो जाते हों कि अगर उन्होंने ऐसा किया तो कहीं लोग यह न
समझें कि यह मामला राजनीति से प्रेरित है। वैसे भी सीएमओ के ‘ईयर मार्क‘ आवास पर डॉ.पटेरिया
ने कब्जा जमाया हुआ है। डॉ.ठाकुर एक अन्य आवास में रहने पर मजबूर हैं, पहले से ही वे खून
का घूंट पी रहे होंगे, अब और लानत मलानत तथा राजनैतिक विद्वेष शायद वे न चाहते हों।
जो भी हो, जो भी सियासी
समीकरण हों, पर भाजपा
के जिलाध्यक्ष नरेश दिवाकर क्या धृतराष्ट्र की भूमिका में आ चुके हैं, कि एक ओर तो सिवनी
में डेंगू मलेरिया के मसले में वे पार्टी कार्यकर्ताओं (चाहे वे विधायक हों) के
रिश्तेदारों की ढील पर मौन हैं वहीं दूसरी ओर लखनादौन में भाजपा का निर्माणाधीन
आशियाना उजाड़ने और मण्डल अध्यक्ष को थाने में बिठाकर कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ने
पर भी खामोशी अख्तियार किए हुए हैं। कुल मिलाकर सत्ता के मद में चूर भारतीय जनता
पार्टी के पदाधिकारियों और नेताओं को इस बात से लेना देना नहीं रह गया है कि वे
रियाया के सुख चैन का ख्याल रखें, आजाद मुल्क में रियाया कम से कम बुनियादी सुविधाएं
पाने की हकदार तो है।
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