प्रदूषण के मानकों
को ताक पर रख दिया झाबुआ पावर ने
निर्माण कार्य और
कार्यकारी अवस्था में प्रदूषण के मामले में मौन है झाबुआ पावर
(ब्यूरो कार्यालय)
घंसौर (साई)। सफल
और मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान
झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के छटवीं अनूसूची में
अधिसूचित आदिवासी तहसील घंसौर में डाले जा रहे 1260 मेगावाट (कागजों
में 1200 मेगावाट)
के पावर प्लांट में पर्यावरण के नियम कायदों मानकों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही
हैं। इसके बावजूद मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल का मौन आश्चर्यजनक ही माना
जा रहा है।
गौरतलब है कि 22 अगस्त 2009 को इस संयंत्र के
प्रथम चरण के लिए 600 मेगावाट
के पावर प्लांट की लोकसुनवाई में मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा जो कार्यकारी
सारांश जमा किया गया था उसमें संयंत्र की लागत 2900 करोड़ रूपए एवं
जमीन की आवश्यक्ता 600 हेक्टेयर
दर्शाई गई थी। इस समय कार्यकारी सारांश की कंडिका क्रमांक आठ में कंपनी ने साफ
किया था कि वह निर्माण कार्य के समय 181 करोड़ पचास लाख रूपए और कार्यकारी अवस्था
में 9 करोड़ पांच
लाख रूपए की राशि का प्रावधान पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम के लिए कर रही है।
इसके उपरांत इसके
दूसरे चरण की लोकसुनवाई 22 नवंबर 2011 को संपन्न हुई। इस लोकसुनवाई के दूसरे दिन
मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की आधिकारिक वेब साईट पर कंपनी का वही (22 अगस्त 2009 वाला) कार्यकारी
सारांश डाल दिया गया। इसमें दूसरे चरण के लिए भी कंपनी को 600 हेक्टेयर जमीन की
आवश्यक्ता दर्शाई गई है। इसमें भी कार्यकारी सारांश की कंडिका क्रमांक आठ में
कंपनी ने साफ किया था कि वह निर्माण कार्य के समय 181 करोड़ पचास लाख
रूपए और कार्यकारी अवस्था में 9 करोड़ पांच लाख रूपए की राशि का प्रावधान
पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम के लिए कर रही है।
22 नवंबर
2011 को
घंसौर के गोरखपुर में हुई लोकसुनवाई में प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के क्षेत्रीय
अधिकारी जबलपुर के समक्ष मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के महाप्रबंधक ए.एन.मिश्रा ने
स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया था कि कंपनी अपने निर्माण के आरंभ से 22 नवंबर
2011 तक
क्षेत्र में वृक्षारोपण करने में असफल रही। पीसीबी के अधिकारियों के समक्ष मेसर्स
झाबुआ पावर लिमिटेड के प्रबंधन की स्वीकारोक्ति के बाद भी मध्य प्रदेश प्रदूषण
नियंत्रण मण्डल द्वारा मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के उपर शस्ति आरोपित न करना
पीसीबी और कंपनी की मिली भगत की ओर साफ इशारा कर रही है।
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