पेंशनर्स और
निःशुल्क दवाएं
(शरद खरे)
सरकारी नौकर अर्थात
लोकसेवक, जनता का
सेवक, जो अपने
जीवन के महत्वपूर्ण तीस से चालीस साल सरकार में रहकर जनता की सेवा में बिता देता
है। पहले 58, अब साठ या
बासठ साल की आयु में वह सेवानिवृत होता है। साठ साल की आयु को पा लेने के उपरांत ‘उर्जावान‘ का तमगा तो सियासी
लोगों को ही मिलता है। वास्तव में साठ की आयु के उपरांत शरीर में वह जोश नहीं रह
पाता, शरीर शिथिल
होने लगता है, काम में
स्फूर्ति नहीं रह जाती है। वैसे भी आदि अनादि काल से मानव शरीर को कर्म के हिसाब
से अनेक आश्रमों में बांटा गया है। साठ की आयु के उपरांत मनुष्य को वानप्रस्थ
आश्रम में जाने की सलाह दी जाती है। अर्थात साठ के उपरांत आराम और प्रभु में ध्यान
लगाया जाए।
राजनेता भले ही 45 से 65 वर्ष की आयु को
अघोषित तौर पर यौवन की अवस्था मानते हों पर वास्तव में यह अवस्था यौवन की नहीं
वरन् प्रौढ़ावस्था के आगाज की मानी जाती है। प्राचीन काल में साठ की आयु में मनुष्य
नाती पोतों वाला हो जाता था, तब युवा पीढ़ी जीविकोपार्जन के काम में लग
जाया करती थी तो साठ की आयु के बाद वाले नाती पोतों की सेवा टहल में अपना समय बिताते।
‘सठियाना‘ वाली कहावत तो सभी
ने सुनी होगी। साठ के बाद के लोगों को भूलने की बीमारी भी हो जाती है। तभी कहा
जाता है फलां आदमी सठिया गया है। अर्थात साठ के पार के लोगों को आराम की आवश्यक्ता
अधिक होती है।
वैसे सरकार के लिए
अपनी जवानी और प्रौढ़ावस्था न्यौछावर करने वाले नुमाईंदों को अब आने वाले समय में
कुछ भी मिलने की उम्मीद बेमानी ही होगी। इसका कारण यह है कि वर्ष 2003 के उपरांत नई
भर्ती में अखिल भारतीय सेवाओं के साथ ही साथ कुछ अन्य सेवाओं को छोड़कर शेष में
पैंशन तक की पात्रता समाप्त कर दी गई है। विडम्बना देखिए कि महज पांच साल के लिए
सांसद या विधायक बनने वाला आजीवन पैंशन का हकदार होता है, पर सारा जीवन सरकार
की सेवा करने वाले को पैंशन से वंचित ही रखा जा रहा है।
इसी तरह पैंशनर्स
को दवाओं के मामले में भी बहुत ही रूलाया जा रहा है। सिवनी जिले में पैंशनर्स खून
के आंसू रो रहे हैं। पैंशनर्स की मानें तो जबसे जिला चिकित्सालय में डॉ.सत्यनारायण
सोनी ने सीएस का प्रभार संभाला है तबसे पैंशनर्स की स्थिति बेहद खराब हो गई है।
पैंशनर्स दवा के लिए इस तरह लालायित हैं मानो उन्हें उनका अधिकार नहीं भीख दी जा
रही हो। वहीं जिला चिकित्सालय में व्याप्त चर्चाएं कह रही हैं कि डॉ.सत्यनारायण
सोनी ने सात अंकों की बड़ी राशि खर्च कर सिविल सर्जन का पद पाया है, जब तक वे उसकी
भरपाई न कर लें तब तक यह क्रम बदस्तूर जारी रहेगा। इन बातों में कितनी सच्चाई है
यह बात या तो डॉ.सोनी ही जानते होंगे या स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी, पर जिला चिकित्सालय
में जिस तरह की अराजकता व्याप्त है उससे तो इन बातों में दम प्रतीत हो रहा है।
जिला चिकित्सालय
में पहले पैंशनर्स के लिए दवाओं की खरीदी के लिए लोकल परचेस वाले दवा विक्रेता के
पास से दवाएं खरीदी जाती रही हैं। इसके उपरांत टीएमसी पेटर्न को अपनाया गया। इसके
बाद अब दवाओं की खरीद भी स्थानीय स्तर पर बंद कर दी गई। अब तो वे ही दवाएं
पैंशनर्स को मिल सकती हैं जो अस्पताल प्रशासन ने लालफीताशाही के चलते खरीदी हैं।
कहा जाता है कि जिन दवाओं में कमीशन ज्यादा होता है उन्हें ही खरीदा जाता है। साठ
की आयु के बाद रक्तचाप की बीमारी होना आम बात है। इसके लिए डेढ़ सौ से अधिक तरह की
दवाएं आती हैं, बाजार में, पर पैंशनर्स को महज
लोसार ही मिल पाती है, क्योंकि शेष दवाएं स्टाक में हैं ही नहीं।
डॉ.सत्यनारायण सोनी
की गुण्डागर्दी तो देखिए! पिछले दिनों कलेक्टर को पैंशनर्स ने शिकायत कर कहा कि
डॉ.सोनी ने पैंशनर्स को बाहर की दवाएं नहीं लिखने की हिदायत दी है। कलेक्टर के
हस्तक्षेप के बाद मामला सुलटा, पर यह क्या? हाल ही में डॉ.नेमा
ने ही इस तरह के किसी आदेश के अस्तित्व में होने से इंकार कर दिया। बेचारे
पैंशनर्स दवाओं के लिए वृद्धावस्था में भटक रहे हैं। दवा वितरण के लिए अस्पताल में
पैंशनर्स का अलग काउंटर है। यहां पदस्थ एक कर्मचारी ने बीते दिनों डॉ.सोनी के
सामने ही दो टूक शब्दों में पैंशनर को दवा देने से मना कर दिया। डॉ.सत्यनारायण
सोनी खामोश रहे। पैंशनर के परिजन ने भला बुरा कहा। यहां तक कह डाला कि दवाओं की
खरीदी में कमीशन खाया जाता है तभी तो अदना सा कर्मचारी सिविल सर्जन के सामने ही
दवा न देने की बात कहने का साहस जुटा पा रहा है! डॉ.सत्यनारायण सोनी की खामोशी बता
रही थी कि वे उस अदने से कर्मचारी से जरूर किसी न किसी बात पर दबे अवश्य ही हैं।
जिला चिकित्सालय
में पैंशनर्स परेशान हैं, उनकी परेशानी का कारण साफ है कि उन्हें दवाएं नहीं मिल पा रही
हैं। कई तो असाध्य गंभीर रोग से पीड़ित हैं, जिनकी सारी पैंशन ही दवाओं में जा रही है।
यह आलम तब है जब जिला चिकित्सालय में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी
डॉ.वाय.एस.ठाकुर की पत्नि श्रीमती शशि ठाकुर लखनादौन तो जिला मलेरिया अधिकारी के
प्रभार वाले डॉ.एच.पी.पटेरिया की पत्नि श्रीमती नीता पटेरिया सिवनी विधायक हैं।
दोनों ही चिकित्सक लंबे समय से सिवनी में ही पदस्थ हैं। निहित स्वार्थ में उलझे
चिकित्सकों को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे भी कल सेवानिवृत होंगे और उनके पेंशनर
बनने के बाद उनके साथ भी इसी तरह का सुलूक अगर किया गया तो . . .।
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