0 मामला गेहूं ई-उपार्जन का
किसानों को बुरी तरह छल रहीं समितियां
(अय्यूब कुरैशी)
सिवनी (साई)। सरकार द्वारा देश के अन्नदाता किसान को राहत देने और उसकी उपज का वाजिब मूल्य दिलाने की गरज से ई-उपार्जन के माध्यम से गेहूं खरीद का कार्यक्रम चलाया जा रहा है, किन्तु जिन खरीदी केंद्रों पर इस कार्य को अंजाम दिया जा रहा है, वहां इन किसानों को बुरी तरह लूटा जा रहा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार किसानों की आम शिकायत है कि जब भी वे खरीद केंद्र पर जाकर अपना माल बेचने का प्रयास करते हैं, खरीद केंद्रों में उनके गेहूं को प्रति क्विंटल एक से डेढ़ किलो ज्यादा गेहूं देने पर मजबूर किया जा रहा है। किसानों के अनुसार जब वे इस मामले में चीख पुकार करते हैं तो उन्हें धमका कर भगा दिया जाता है।
नहीं हो रही ग्रेडिंग!
बताया जाता है कि खरीद केंद्र में खरीदी के वक्त गेहूं की कोई ग्रेडिंग नहीं की जा रही है। इसके चलते किसानों से तो अच्छा और बढ़िया गेहूं खरीदा जा रहा है पर किसानों की आड़ में व्यापारियों द्वारा बेचे जाने वाला गेहूं पिछले साल का और घटिया गुणवत्ता वाला है। किसानों के आरोप को मानें तो जिस तरह इसके पूर्व धान की खरीद में घालमेल किया गया था, वही घालमेल अब गेहूं खरीद में दिख रहा है।
मजे में हैं परिवहन कर्ता
वहीं, दूसरी ओर संबंधित सरकारी कर्मचारियों की मिली भगत से परिवहन कर्ता ठेकेदार द्वारा सरकार के बनाए गए रूट चार्ट और प्लान को दरकिनार कर अपनी ढपली-अपना राग की कहावत को चरितार्थ किया जा रहा है। परिवहनकर्ता ठेकेदार द्वारा लीड को बढ़ाने के चक्कर में निर्धारित स्टोरेज स्थल के बजाए मनमर्जी के साथ ही गेहूं को ले जाकर डंप किया जा रहा है।
उदाहरण स्वरूप छः अप्रैल को 175 मीट्रिक टन गेहूं को केवलारी से डुंगरिया के बजाए सिवनी लाया गया। इसी तरह पलारी का गेहूं फोरलेन वाले स्थल के बजाए दूसरे जिले बालाघाट में ले जाकर वारासिवनी में डंप कराया गया है। 805 मीट्रिक टन यह गेहूं अगर बालाघाट जिले में ले जाया गया है तो इसका कंप्यूटर पर इंद्राज होना था पर बाहर के जिले के लिए इंद्राज शून्य ही दर्शा रहा है।
छुई का गेहूं फोरलेन के बजाए नरेला में तो मोहगांव का 3000 मीट्रिक टन गेहूं जो कारीरात जाना था उसे वहां के बजाए धूमा ले जाया गया है। इस तरह परिवहन कर्ता द्वारा मनमाने रूप से हजारों मीट्रिक टन गेहूं को निर्धारित स्थान के बजाए मनमाने ढंग से कहीं और ले जाकर डंप किया जा रहा है। यह सब देखने सुनने के बाद भी संबंधित सरकारी नुमाईंदे चिरपरिचत शैली में मौन ही साधे बैठे हैं।
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