सोमवार, 30 नवंबर 2009

इस रात की सुबह नहीं . . .

इस रात की सुबह नहीं . . .





(लिमटी खरे)




पच्चीस साल का वक्त कम नहीं होता, 25 बरस में एक पीढी पूरी तरह जवान और परिपक्व हो जाती है। इन पच्चीस सालों में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के रहवासी आज तक अपने अधिकारों की लडाई लडने पर मजबूर हैं, सरकारें आती गईं, निजाम बदलते रहे पर आज भी भोपाल गैस त्रासदी के पीडित पथराई आखों से सरकारों को देख रहे हैं।


1984 में 2 और 3 दिसंबर की दर्मयानी रात में समूचे विश्व की सबसे बडी औद्योगिक त्रासदी ने जन्म लिया था। यूनियन काबाZईड से रिसती कीटनाशक मिथाइल आईसोसाईनेट (मिक)ने जो कहर बरपाया था, आज भी भोपाल उससे उबर नहीं सका है। पुराने भोपाल के यूनियन काबाZइड के इस प्लांट में टेंक नंबर 610 में तकरीबन 42 टन मिथाइल आईसोसाइनेट गैस भरी हुई थी।



बताते हैं कि उस समय इस टेंक में पानी चले जाने के कारण हुई रासायनिक क्रिया के चलते टेंक का तापमान 200 डिग्री के करीब पहुच गया था। चूंकि टेंक इतना अधिक तापमान सहने की स्थिति में नहीं था लिहाजा रात दस बजे टेंक के वाल्व खोल दिए गए थे। परिणामस्वरूप जहरीली गैस हवा में मिल गई। इन गैस के बादलों में मिक के अलावा नाईट्रोजन आक्साईड, कार्बन डाय आक्साईड, मोनो मिथाईल अमीन, कार्बन मोनो आक्साईड, फास्जीन हाईड्रोजन क्लोराईड जैसी गैसें भी थीं, जिनके चलते हजारों लोग कभी न जागने वाली नींद में सो गए और आज भी इस गैस त्रासदी का दंश झेलने को मजबूर हैं, न जाने कितने लोग।


आधे घंटे के अंदर ही आसपास के क्षेत्र के लोगों की आंखों में जलन, दम घुटने, कफ बनने, फेंफडों में जलन अंधापन आदि की शिकायत होने लगी। रात एक बजे पुलिस ने मोर्चा संभाला, किन्तु यूनियन काबाZईड ने गैस रिसाव से इंकार कर दिया। 25 बरस पहले 3 दिसंबर को रात दो बजे पहला मरीज दाखिल किया गया। इसके बाद दो बजकर दस मिनिट पर खतरे का सायरन बज उठा।


अलह सुब्बह चार बजे गैस रिसाव पर काबू पा लिया गया। महज छ: घंटों में ही इस गैस ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के तकरीबन दस हजार लोगों को मौत के आगोश में ढकेल दिया और इसके बाद कालांतर में मरने वालों की तादाद लगभग 35 हजार हो गई।



सरकारी आंकडों पर गौर फरमाएं तो 3787 लोग इस हादसे में असमय ही काल के गाल में समा गए थे, जबकि दूसरे स्त्रोत साफ तौर पर इस बात को इंगित करते हैैं कि इसमें लगभग दस हजार लोग मारे गए थे। इसके बाद एक के बाद एक कर गैस जनित रोगों के चलते 25 हजार से अधिक लोग काल कलवित हो चुके हैं। मौटे तोर पर यह बात सामने आ चुकी है कि लगभग पांच लाख लोग गैस प्रभावित हैं आज भी।


पिछले साल अक्टूबर तक 10 लाख 29 हजार 517 मामले पंजीबद्ध किए गए थे, जिसमें से गैस के मुआवजे के लिए 5 लाख 74 हजार 366 मामलों को मुआवजे के लिए चििन्हत किया गया था। इस अवधि में 1549 करोड रूपए के लगभग मुआवजा भी बांट दिया गया है।


यूनियन काबाZइड के चेयरमेन वारन एंडरसन आज बुजुर्ग और अशक्त हो चुके हैं। भारत के जनसेवकों के राजतंत्र की व्यवस्था देखिए कि इन 25 सालों में भारत और प्रदेश सरकार द्वारा एंडरसन और उसके सहयोगियों को कभी भी कानूनी तौर पर कटघरे में खडा नहीं किया जा सका है।


गैस प्रभावित लोगों को आज भी सांस लेने में तकलीफ, अंधापन, आंखों, सीने में जलन, उल्टी की शिकायत आम है। इतना ही नहीं गैस के दुष्प्रभाव दीघZकालिक होने के कारण केंसर और वंशानुगत घातक रोगों की जद में हैं, राजधानी के पांच लाख लोग।



पच्चीस सालों में मंथर गति से चलते राजनैतिक समीकरणों में सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह रहा है कि दुनिया के सबसे खौफनाक औद्योगिक हादसे के बावजूद भी किसी भी सियासी दल ने आज तक इस मामले को राजनैतिक तौर पर चुनावी मुद्दा नहीं बनाया है।


गैस राहत के नाम पर भोपाल में अस्पताल अवश्य खोल दिए गए हैं। इसके साथ ही साथ गैस पीडितों को चििन्हत करने के लिए विशेष अदालतों की स्थापना भी की गई है। इससे गैस पीडितों को वाजिब हक मिला हो या नहीं पर बिचौलियों की तबियत से चांदी हो गई है।



सरकार द्वारा गैस के दुष्प्रभाव पर शोध करने के लिए अनेक शोध करवाए हैं, विडम्बना ही कही जाएगी कि करोडों खर्च करने के बावजूद भी नतीजा सिफर ही है। 1985 से 1994 के बीच हुए पहले शोध का ही सरकार द्वारा खुलासा नहीं किया गया है, जो फिर आने वाले समय की कौन कहे।


गैस के दीघZकालिक प्रभावों का अध्ययन 24 साल से जारी है, किन्तु इस बारे में कोई ठोस राय सामने नहीं आ सकी है। बीमारियों के संक्रमण और वंशानुगत प्रभावों और जटिल बीमारियों को भुगत रहे परिवारों को राहत कब मिल सकेगी यह बात आज भी भविष्य के गर्भ में ही छिपी हुई है।

युवराज की साफगोई







ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
युवराज की साफगोई
कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री और कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी ने बडे ही सहज तरीके से स्वीकार किया है कि वे राजनीति में इसलिए आए हैं, क्योंकि उनका परिवार राजनीति में है। दूसरी तरफ राहुल गांधी परिवारवाद की सख्त मुखालफत भी करते हैं। वे कहते हैं कि कांग्रेस में नेता वही बनेगा जिसके पीछे जनता होगी। चुम्बक के उत्तर दक्षिण धु्रव का मिलन अगर कहीं होते दिख रहा है तो वह है कांग्रेस के सर्वशक्तिमान महासचिव राहुल गांधी के बयानों में। परिवारवाद कांग्रेस में नहीं होगा, किन्तु वे इसलिए राजनीति में आए हैं क्योंकि उनका परिवार राजनीति में है। यह 21वीं सदी का भारत देश है, इसमें हर भारत वासी चाहता है कि देश में भगत सिंह पैदा हो, पर अपने नहीं पडोस के घर में, ताकि शहीद हो तो अपने बजाए पडोसी का बेटा। अरे राहुल गाध्ंाी को अगर मिसाल ही देनी थी, तो वे राजनीति को तिलांजली देकर जता देते कि परिवारवाद के सख्त खिलाफ है कांग्रेस का पायोनियर नेहरू गांधी परिवार। क्या करें पीढी दर पीढी कांग्रेस की सत्ता इसी परिवार को हस्तांतरित होती जो रही है। 21वीं सदी में कांग्रेस आज भी सामंतशाही परंपरा को ढो रही है, जो आश्चर्यजनक है।
ओवर नाईट को राजनीति की लाल झंडी
रेल मंत्री ममता बनर्जी भले ही स्वयंभू मेनेजमेंट गुरू और पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव से आगे निकलने के जतन कर रही हों पर कांग्रेस उनके इस अभियान में पलीता लगाने से नहीं चूक रही है। मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से भोपाल चलने वाली ओवर नाईट एक्सप्रेस को प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर तक के लिए बढाने की घोषणा की जा चुकी है। 1 नवंबर से इसे आरंभ भी करना था। इसके लिए इस रेल का समय भी रात 11 से घटाकर साढे दस कर दिया गया है। मजे की बात तो यह है कि इसका विस्तार इंदौर तक करने की कोई घोषणा अब तक नहीं की गई है। बताते हैं कि इसके पीछे कांग्रेस की उहापोह की स्थिति जिम्मेवार है। दरअसल प्रोटोकाल के अनुसार रेल को आरंभ या गन्तव्य के संसदीय क्षेत्र वाला सांसद हरी झंडी दिखाकर रवाना करता है। भोपाल, इंदौर और जबलपुर में भाजपा के सांसद हैं। अगर इसे आरंभ किया गया तो फिर वाहवाही भाजपा के खाते में जाएगी। प्रदेश में वाणिज्य उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और सडक परिवहन मंत्री कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र से आरंभ होने वाली रेल गाडियां कब की आरंभ हो चुकी हैं, पर संस्कारधानी को औद्योगिक राजधानी से जोडने के लिए महूर्त की तलाश जारी है।
महारानी का नया पैंतरा
राजस्थान की महारानी एवं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की सियासत आज तक कोई समझ नहीं सका है। राजस्थान में राजपाट गंवाने के बाद राज्य में विपक्ष के नेता से हटाने के लिए उनके विरोधियों ने एडी चोटी एक कर दी, पर महारानी हैं कि डिग भी नहीं रहीं हैं। वसुंधरा राजे ने बडी ही चतुराई के साथ अपना त्यागपत्र भाजपा नेतृत्व को तो भेज दिया, किन्तु उस त्यागपत्र की प्रति विधानसभा अध्यक्ष को अब तक नहीं भेजी है। वसुंधरा जानतीं हैं कि स्थानीय निकायों के चुनावों के चलते पार्टी अभी उन पर कोई कार्यवाही नहीं करने वाली, फिर आ जाएगा नेशनल प्रेजीडेंट चुनने का काम। सो इस साल के अंत तक तो वे अपनी कुर्सी बचा ही पाएंगी। इस तरह वे अपने विरोधियों को चारों खाने चित्त करने में सफल हो जाएंगी। औपचारिकता पूरी करने के लिए पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने राजे को संदेश जरूर भिजवा दिया है कि वे जल्द ही अपना त्यागपत्र विधानसभाध्यक्ष को सौंप दें, वरना उनके खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है।
बापू के दुदिZन
विवाद है कि स्वयंभू आध्याित्मक संत आशाराम बापू का पीछा छोडने को तैयार नहीं है। पिछले दिनों उनके आश्रमों में संचालित गुरूकुलों में संदेहास्पद अवस्था में मिलने वाली छात्रों फिर शिक्षिका के शव से वे विवादों में घिरे रहे, और अब अहमदाबाद में उनके समर्थकों द्वारा पुलिस से सीधा संघर्ष करने के आरोप मेें जलालत झेलनी पड रही है। आसाराम बापू के समर्थन में योग वेदांत समिति के द्वारा गांधी नगर में निकाली गई रेली में कुछ तत्वों ने पुलिस पर पथराव कर दिया। घायल पुलिस कर्मी उस वक्त तो लाठी भांजते रहे, फिर बाद में पुलिस ने उनके आश्रम में छापामार कार्यवाही की। इसका विरोध करने पर पुलिस ने तबियत से लाठियां बरसाईं। इस मामले को मीडिया ने जिस तरीके से पेश किया है, उससे जनता का मानस बापू के विरोध में ही बनता दिख रहा है। साधकों और पुलिस की इस भिडंत ने एक बार फिर आशाराम बापू को चर्चाओं के साथ विवादित करना आरंभ कर दिया है।
नाथ छाए रहे मध्य प्रदेश में

मध्य प्रदेश की फिजां में पिछले दिनों नाथ का दबदबा साफ तौर पर दिखाई दिया। एक तो स्थानीय निकाय चुनाव में ताकत दिखाकर कमल नाथ ने एक बार फिर कमाल कर दिया है, वहीं दूसरी ओर लव गुरू मटुक नाथ भी झीलों के शहर भोपाल पहुंचे। काफी समय से मध्य प्रदेश के राजनैतिक परिदृश्य से नदारत रहने वाले केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने इस बार प्रदेश में आए बिना ही अपने ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को उपकृत कर दिया है। उनके समर्थकों को टिकिट किस तरह मिली इस बारे में शोध कांग्रेस में ही चल रहा है। वहीं दूसरी ओर बाबा ऋषि दास द्वारा लिखी गई ``विवाह एक नैतिक बलात्कार`` के विमोचन हेतु लव गुरू मटुक नाथ अपनी ``मेनका`` जूली के साथ भोपाल पहुंचे जहां हिन्दुवादी संगठनों ने उन्हें आडे हाथों लिया और बाबा को तबियत से घुन दिया। पुलिस ने लवगुरू और जूली को किसी तरह बचाकर वहां से बिदा किया।
हाई मास्ट खंबे सहित चोरी!
दिल्ली में नगर पालिका निगम किस कदर बेसुध पडा हुआ है, इसका ताजा तरीन उदहारण झिलमिल वार्ड में देखने को मिला। यहां मुकेश नगर के एक पार्क में लगा चालीस फुट खम्बा और मंहगी हाई मास्ट लाईटें चोर चुराकर ले गए मगर निगम को पता तक नहीं चला। वैसे भी यमुना पार में चोरों के हौसले जबर्दस्त बुलंदी पर हैं। इस घटना की जानकारी अब कि दिल्ली नगर निगम प्रशासन को नहीं है, इस मामले की एफआईआर तक दर्ज नहीं करवाई गई है। बताया जाता है कि पूर्व में डिस्यूज केनाल मास्टर प्लान मार्ग, गीता कालोनी और कृष्णा नगर से हाई मास्ट चोरी की जा चुकीं हैं। सत्ता के मद में मदस्त महापौर सहित निगम के पार्षदों को इस तरह की वारदातों से लेना देना नहीं है। हो सकता है लाखों करोडों के वारे न्यारे करने वाले निगम में बैठे इन जनसेवकों को दो लाख रूपए के बिजली के खंबे और हाई मास्ट लाईट का मोल कम ही लग रहा हो, किन्तु मोहल्ले के बीचों बीच से खम्बा और लाईट एक साथ चोरी होने की यह पहली घटना ही होगी।
यूपी निगल रहा है बच्चे!
यूनीसेफ से बाल मित्र का तगमा पाने वाला उत्तर प्रदेश का पुलिस महकमा इन दिनों बुरी तरह असहाय ही नजर आ रहा है। यूपी पुलिस बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों पर अंकुश लगाने में अपने आप को पूरी तरह असफल नजर आ रहा है। सूबे मेें समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों ही कमजोर विपक्ष के तौर पर अपनी अपनी भूमिकाएं निभा रहे हैं। इस साल उत्तर प्रदेश से हर माह 11 बच्चे गायब हुए हैं, जो अपने आप में एक रिकार्ड माना जा सकता है। वैसे भी यूपी का निठारी गांव पहले ही बच्चों की हडि्डयां उगल चुका है। बावजूद इसके दिल्ली के सिंहासन पर नजर गडाने वाली बसपा चीफ एवं सूबे की निजाम मायावती चैन की बंसी बजा रहीं हैं। उत्तर प्रदेश के हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि उत्तर प्रदेश में अराजकता ही शासन कर रही है।
विधानसभा उपाध्यक्ष की सुध ले लें प्रदेशाध्यक्ष
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं मध्य प्रदेश के कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष को जेड प्लस की सुरक्षा नहीं मिल पाने को लेकर प्रदेश कांग्रेस ने भाजपा सरकार को आडे हाथों लिया है। पुलिस की अकर्मण्यता के चलते इंदौर के एयरपोर्ट पर बवाल पर उतारू कांग्रेस कार्यकर्ताओं को काबू में करने सुरेश पचौरी ने एक कार्यकर्ता को झापड जड दिया। इस मामले में कांग्रेस की राजनीति के चाणक्य दिग्विजय सिंह ने यह कहकर हवा दे दी कि अध्यक्ष पिता की तरह होता है, अगर लाफा (झापड) मार भी दिया तो इसे इश्यू क्यों बनाया जा रहा है। बहरहाल 23 नवंबर को प्रदेश कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष और सूबे की विधानसभा के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह दक्षिण एक्सप्रेस से दिल्ली से भोपाल आए, वह भी एसी थर्ड क्लास से। उनके साथ उनका सुरक्षा घेरा नहीं था। भाजपा को कोसने के पहले पीसीसी के आलंबरदार अगर संवैधानिक पद पर कब्जा जमाए सिंह की सुरक्षा के बारे में चिंता करे तो ज्यादा बेहतर होगा। अमूमन जनसेवकों द्वारा अपने सुरक्षा कर्मियों को साथ ही नहीं रखा जाता है। जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त नेता तो बुलट प्रूफ कार का प्रयोग करने से भी कतरात हैं, क्योंकि इसके कांच नहीं खुलते और मार्ग में वे कार्यकर्ताओं से रूबरू नहीं हो पाते हैं, और दोष मढ दिया जाता है पुलिस व्यवस्था पर।
मतलब जानबूझकर लगाई गई थी आग!
राजस्थान के जयपुर में पिछले दिनों आयल टेंक में लगी आग से सभी डरे हुए हैं। शहरों के आसपास डीजल पेट्रोल बडी मात्रा में एकत्र रहता है। जयपुर के सीतापुर औद्योगिक क्षेत्र में इंडियन आयल के डिपो में लगी आग के बारे में कहा जा रहा है कि वह आग दुघZटनावश नहीं वरन जानबूझकर लगवाई गई थी। पेट्रोलियम मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि मंत्रालय के जांच दल ने निरीक्षण के बाद यह पाया कि दाल में कुछ काला जरूर है। सूत्र कहते हैं कि पेट्रोल डिलेवरी पाईप के तीनों वाल्व वैसे तो कम स्तर पर खोले जाते हैं, किन्तु उस समय उन्हें उच्च स्तर पर खोला गया था। इस जांच के बाद शुरू होगा बचने बचाने का गंदा खेल। कोन दोषी कौन नहीं यह तो जांच के बाद सामने आएगा, किन्तु इससे देश का अरबों रूपए का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई जनता की जेब पर करारोपण के द्वारा ही की जाएगी, इस बात में कोई संदेह नहीं।
मीडिया की औकात बीस रूपए
दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में इस बार मीडिया ने जितनी जलालत झेली उतनी शायद पहले कभी न झेली होगी, फिर भी चुप ही रहा। हर बार की तरह इस बार भी मीडिया में व्यापार मेला कव्हर करने वाले पत्रकारों के पास बनाए गए थे। मीडिया को कार्ड बनवाने के लिए अपने संस्थान के परिचय पत्र की छाया प्रति, अंगूठे का निशान, सफेद पृष्ठभूमि वाले तीन फोटो, कद काठी का पूरा माप, पहचान चिन्ह आदि अनिवार्य तौर पर चाहा गया था। संभवत: मेला आयोजकों को डर था कि अनवांटिड एलीमेंटस और आतंकी मीडिया के भेष में अंदर प्रवेश कर सकते हैं। भले मानुषों को कौन बताए कि किसी को प्रवेश करना ही होगा तो वह टिकिट काउंटर से बीस रूपए का प्रवेश टिकिट लेकर प्रवेश न कर जाएगा।
राजनाथ, आडवाणी आमने सामने

जैसे जैसे पदों को तजने का समय आ रहा है वैसे वैसे लोकसभाा में नेता प्रतिपक्ष एल.के.आडवाणी और भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह अपनी अपनी तलवार पजाते जा रहे हैं। दोनों ही के खेमे अपना अपनी अपनी जमीन मजबूत करने की जुगत लगा रहे हैं। गौरतलब होगा कि इस साल के अंत तक भाजपाध्यक्ष चुन लिया जाएगा फिर उसके बाद आडवाणी पर नेता प्रतिपक्ष पद छोडने का दवाब बढ जाएगा। पद छोडने के बाद दोनों ही नेता इस जुगत मेें हैं कि उन्हें कोई सम्मानजनक प्लेटफार्म मिल जाए। दोनों ही जानते हैं कि संघ के इशारे के बिना यह संभव नहीं होगा, इसलिए दोनों ही नेताओं ने संघ में अपने अपने संपर्कों को जगाने का काम आरंभ कर दिया है। अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में राजनाथ सिंह पूरी गर्मजोशी के साथ हर प्रोग्राम में शिरकत कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आडवाणी को संघ ने मौन रहने का मशविरा दिया है। अब लोगों की निगाहें इस पर टिकी हैं कि संघ का वरद हस्त किसके सर होगा।
पुच्छल तारा
उत्तर भारतियों पर आंतक बरपाने वाले मध्य प्रदेश मूल के ठाकरे ब्रदर्स के बारे में अब लोग तरह तरह की बातें कहने लगे हैं। एक पाठक ने हमें एसएमएस किया है कि मराठियों के हित साधने का स्वांग करने वाले बाला साहेब ठाकरे और राज ठाकरे को अगर नहीं रोका गया तो आने वाले समय में वे बैंक में जाकर मराठी में छपे नोट की मांग करें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

रविवार, 29 नवंबर 2009

जनसेवक बनने की चाह में चार्टर्ड एकाउंटेंट



जनसेवक बनने की चाह में चार्टर्ड एकाउंटेंट





(लिमटी खरे)





कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी एक ओर जहां पढे लिखे सुसंस्कृत युवाओं को कांग्रेस से जोडने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं भाजपा पढे लिखे नौजवानों से कन्नी काट रही है। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में नगर पालिका के अध्यक्ष पद के लिए भारतीय जनता पार्टी की ओर से चार्टर्ड एकांउंटेंट अखिलेश शुक्ला ने टिकिट की मांग की है।


मध्य प्रदेश के इतिहास में संभवत: यह पहला मौका होगा जबकि किसी अर्थशास्त्र के ज्ञाता ने जनसेवा करने का मानस बनाया हो। वैसे अखिलेश शुक्ला की पृष्ठभूमि राजनैतिक मानी जा सकती है। शहर के युवा तुर्क आईकान बन चुके शुक्ला के पिता पंडित स्व.महेश प्रसाद शुक्ला, सुंदर लाल पटवा के मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य में मंत्री रहे हैं।


संघ और भाजपा में शुक्ल परिवार का दखल इस बात से ही समझा जा सकता है कि बीते वर्ष स्व. महेश शुक्ल के निधन पर राज्य सरकार द्वारा उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया था। इस मौके पर अपने व्यस्त क्षणों में से कुछ समय निकालकर खुद सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें अश्रुपूरित नेत्रों से बिदाई दी थी।


देश की बागडोर अर्थशास्त्र के ज्ञाता प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के हाथों में है, तो वित्त मंत्री का प्रभार भी आर्थिक ज्ञाता पी.चिदम्बरम संभाल चुके हैं। माना जाता है कि अगर किसी विषय के प्रकांड विद्वान को जनसेवा का मौका दिया जाए तो राजनीति में भ्रष्टाचार के घालमेल की संभावनाएं क्षीण होने के साथ ही साथ कुछ नया निकलकर सामने आने की उम्मीद रहती है।


मध्य प्रदेश में स्थानीय निकायों की माली हालत किसी से छिपी नहीं है। निकायों में भ्रष्टाचार इस कदर व्याप्त है कि हर ओर इसकी सडांध बदबू मार रही है। इन परिस्थितियों में अगर भाजपा अखिलेश शुक्ला पर दांव लगाती है, तो निश्चित तौर पर वे सबसे भारी उम्मीदवार के तौर पर सामने आ सकते हैं।


सिवनी नगर में भाजपाध्यक्ष के लिए ढाई दर्जन उम्मीदवार मैदान में हैं, एवं शहर की राजनैतिक फिजां के अनुसार अगर आखिलेश शुक्ला निर्दलीय तौर पर भी मैदान में उतरते हैं तो उनके अंदर मैदान मारने का माद्दा साफ दिखाई दे रहा है। युवाओं का एक बडा वर्ग उनके साथ नजर आ रहा है।


विभिन्न मीडिया के स्त्रोतों द्वारा कराए गए सर्वेक्षण भी कमोबेश यही बात सामने लाते हैं कि भ्रष्ट, निकम्मे, नपुंसक जनसेवकों से जनता उब चुकी है, जनता अब पढे लिखे सुसंस्कृत युवा के हाथों में अपना भविष्य सौंपने को आतुर दिख रही है। एसी स्थिति में सूबे में कांग्रेस और भाजपा ने अपेक्षाकृत युवाओं को ज्यादा तरजीह देने का प्रयास अवश्य किया है, किन्तु इनके राजनैतिक सामाजिक जीवन को नजर अंदाज करके।


अर्थशास्त्री, इंजीनियर्स, डाक्टर्स ने राजनीति में आकर इसकी दशा और दिशा को सुधारने का सराहनीय प्रयास किया है, और अब चार्टर्ड एकाउंटेंट ने भी अपनी दस्तक दे दी है। अगर भाजपा ने अखिलेश शुक्ला पर दांव लगा दिया तो आने वाले समय में यह एक इतिहास बन जाएगा कि भाजपा द्वारा एक युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट को मैदान में उतारा है।


हो सकता है कि भाजपा के लिए यह एक टनिZंग प्वाईंट भी बन जाए जिससे भाजपा से दूर भाग कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की ओर आकषिZत होते युवाओं का पलायन रूक जाए और दिसंबर के उपरांत नए भाजपाध्यक्ष के लिए भाजपा का युवा वोट बैंक सजोने के मार्ग प्रशस्त हो जाएं।

शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

राजमाता के निर्देश कूडे में

राजमाता के निर्देश कूडे में


(लिमटी खरे)


कांग्रेस की सबसे ताकतवर महिला अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और कांग्रेसियों की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी की मितव्ययता की नौटंकी का कांग्रेस के ही मंत्रियों पर कोई असर नहीं हो रहा है। अधनंगे, भूखे लोगों के इस देश में पिछले तीन सालों में केंद्रीय मंत्रियों ने महज तीन सौ करोड रूपए खर्च किए हैं, विदेश यात्राओं में।


फाईव स्टार सादगी की इससे अच्छी मिसाल और कहां मिलेगी कि एक ओर जहां आम जनता को दो वक्त का खाना नसीब नहीं वहीं कांग्रेस के मंत्री, सांसद और विधायक लाखों रूपए सिर्फ पार्टियों में ही खर्च कर रहे हैं। इस साल केंद्रीय मंत्रियों ने घरेलू यात्राओं में ही महज 94 करोड 40 लाख रूपए खर्च किए हैं।


बताते हैं कि अगर मंत्री अपने संसदीय क्षेत्र में भी जाते हैं तो वे चार्टर्ड प्लेन या हेलीकाप्टर का उपयोग करते हैं, साथ ही एकाध सरकारी कार्यक्रम का आयोजन महज रस्म अदायगी के लिए कर पूरा का पूरा भोगमान (हवाई जहाज या हेलीकाप्टर का बिल) मंत्रालय के मत्थे जड देते हैं।


वैश्विक मंदी की मार झेल रहे भारत में कांग्रेस की राजमात भले ही हवाई जहाज की बीस सीटें बुक करवा कर इकानामी क्लास में और युवराज राहुल गांधी शताब्दी की एक बोगी को बुक कराकर मितव्ययता बरतने का संदेश दे रहे हों, पर उनके अपने मंत्री ही इसका सरेआम माखौल उडा रहे हैं।


केंद्रीय सचिवालय से उपलब्ध आंकडे बयां करते हैं कि 2006 - 07 एवं 2008 - 09 के वित्तीय वर्ष में कैबनेट मंत्रियों ने अपनी विदेश यात्राओं पर 137 करोड रूपए फूंके हैं। सबसे अधिक राशि 2007 - 08 में 115 करोड रूपए खर्च किए हैं। जनता के गाढे पसीने की कमाई को इस कदर उडाने वाले मंत्रियों ने विदेश जाकर आखिर कौन सा तीर मारा है यह बात तो वे ही बेहतर बता सकते हैं।


जब भी प्रभावशाली मंत्री या संगठन का पदाधिकारी किसी दूसरे शहर की यात्रा करता है तो वह सरकारी गेस्ट हाउस के बजाय महंगे होटलों में रूकने में अपनी शान समझता है। इन होटलों का भोगमान (बिल) कहीं न कहीं जनता की जेब पर डाका डालकर ही भोगा जाता है।


मजे की बात तो यह है कि मंत्रियों के साथ अफसरान और उनका परिवार भी तर जाता है। जब भी मंत्री यात्रा पर जाते हैं उनके साथ महकमे के अफसरान भी हो लिया करते हैं। अगर विदेश यात्रा की बात आती है तो अफसरान अपने परिजनों को भी विदेश यात्रा कराने से नहीं चूकते हैं।


छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने एक मर्तबा विदेश यात्रा के दौरान सूबे के एक अफसर को विदेश में ही पकड लिया था। बाद में सवाल जवाब करने पर पता चला कि उक्त अधिकारी बिना विभागीय अनुमति के ही विदेश में सेर कर रहे थे। चूंकि मामला बडे अधिकारी का था सो दबा दिया गया।


कुछ नेता या मंत्रीनुमा जनसेवक तो अपने परिजनों के हवाई जहाज को ही बैलगाडी बनाकर देश नापते फिर रहे हैं, इन यात्राओं का खर्च भी उनका मंत्रालय या कोई उद्योगपति मित्र ही भुगत रहा हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अगर यही सच्चाई है तो फिर कांग्रेस की राजमात श्रीमति सोनिया गांधी और उनके साहेबजादे राहुल गांधी मितव्ययता का स्वांग रचकर देश की सवा करोड से अधिक जनता को बेवकूफ क्यों बना रहे हैं।


हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जनता के जीवन स्तर को सुधारने की जवाबदारी संभालने वाले देश के नीति निर्धाकर ``जनसेवकों`` को विलासिता वाले मंहगे सितारा युक्त होटल्स और एयरलाईंस का कारोबार चलाने के लिए नहीं वरन जनता जनार्दन की सुख सुविधा कैसे जुटे इसलिए देश प्रदेश की कमान सौंपी गई है।


आश्चर्य की बात तो यह है कि 2006 से 2009 तक देश की सोलह संसदीय समितियों ने स्टडी टूर की मद में ही दस करोड रूपए हवाई यात्रा और फाईव स्टार होटल को दे दिए। हवाई यात्रा और आलीशान होटल में रूकना आज मंत्रियों का स्टेटस सिंबाल बन चुका है।


जब भी कोई मंत्री या अफसर गांव में रात बिताने की नौटंकी करने की जुर्रत करता है तो वह अपने साथ जेनरेटर सेट ले जाना कतई नहीं भूलता, क्योंकि वह जानता है कि रात को गांव में बिजली के बिना मच्छर उसे खा जाएंगे। इस सब से आजिज आ चुके जनसेवक फिर हवाई जहाज की इकानामी क्लास को ``मवेशी का बाडा यानी केटल क्लास`` का दर्जा देने से भी नहीं चूकता है।


कांग्रेस के जनसेवक अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्देश को कितनी तवज्जो देते हैं, यह बात तो उनके मितव्ययता के निर्देश के पालन में समझ आ जाती है। इसके अलावा कांग्रेस अध्यक्ष ने जनसेवकों को अपने वेतन के बीस फीसदी हिस्से को राहत कोष में जमा कराने के निर्देश दिए थे, पर उनकी इस अपील का जनसेवकों पर कोई असर नहीं हुआ।


आज जनसेवकों की नैतिकता पूरी तरह समाप्त हो चुकी है, इस बात में कोई संदेह नहीं रह गया है। जंग लगी व्यवस्था के चलते जनता के गाढे पसीने की कमाई को जनसेवक दोनों हाथों से लुटाने पर तुले हुए हैं, और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी अपील पर अपील किए जा रहीं हैं, किन्तु जनसेवकों की मोटी चमडी पर उसका कोई असर नहीं हो पा रहा है।

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

जरा याद करो कुबाZनी. . . .




जरा याद करो कुबाZनी. . . .

शहीद को ही भूले ``जनसेवक``

(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश के चंबल की माटी में जन्मे सुशील शर्मा को मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार दोनों ही ने विस्तृत कर दिया है, वह भी महज एक साल के अंदर ही। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में हुए अब तक के सबसे बडे आतंकी हमले 26/11 में शर्मा की शहादत को अब तक सम्मान नहीं मिल सका है।

मध्य प्रदेश के मुरेना जिले में पैदा हुए सुरेश शर्मा मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के कंट्रोल रूम में कार्यरत थे। जब आतंकियों ने सीएसटी में आतंक बरपाना आरंभ किया तब सुरेश शर्मा ने रेल प्रशासन को इस बात की सूचना देते हुए सीएसटी पर रेल गाडियों का आवागमन रूकवाया था।

इसके साथ ही साथ जब उन्होंने एक बच्ची को प्लेटफार्म पर से गुजरते देखा तो आतंकियों के चंगुल से उसे बचाने की गरज से वे उसकी ओर लपके। सौभाग्यवश उक्त बच्ची की जान तो बच गई पर सुरेश शर्मा आतंकियों की गोली का शिकार हो गए। शहीद सुशील शर्मा के पिता को अपने बेटे की शहादत पर नाज है, पर वे इस बात से बुरी तरह आहत हैं कि उनके पुत्र को वह सम्मान नहीं मिला जिसका वह हकदार था।

विडम्बना ही कही जाएगी कि एक तरफ तो 26/11 में आतंकियों से लडने वाले एक एक जवान को ढूंढ ढूंढ कर पुरूस्कृत किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इस जांबाज रेल कर्मचारी की शहादत को भारतीय रेल ने साधारण मौत मानकर सुशील शर्मा के परिवार को उसकी आर्थिक देनदारियां देकर अपने कर्तव्यों की इति श्री कर ली।

आश्चर्य की बात तो यह है कि मध्य प्रदेश की भाजपा और केंद्र की कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने भी इस बारे में कोई कदम नहीं उठाया है। देश को गौरवािन्वत करने वाले जांबाज सुशील शर्मा के इस वीरता भरे कारनामे के लिए देश ने उसे नम आंखों से अपनी सलामी दी थी।

मध्य प्रदेश में विधानसभा फिर लोकसभा के बाद अब स्थानीय निकाय के चुनावों में उलझे शिवराज सिंह के सरकारी नेतृत्व ने इस शहीद के लिए 26/11 की पहली बरसी पर एक शब्द कहने की जहमत नहीं उठाई है, जिसकी जितनी भी निंदा की जाए कम होगी।

सत्ता के मद में चूर शिवराज सिंह चौहान के बर्ताव को तो समझा जा सकता है, किन्तु केंद्र में मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाले भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ, आदिवासी मामलों के मंत्री कांतिलाल भूरिया, वाणिज्य उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही साथ अरूण यादव जैसे मंत्रियों ने भी सुशील शर्मा के हक में आवाज न उठाकर उन्हें मिले जनादेश का सरेआम अपमान किया है।

सुशील के पिता विश्वंभर दयाल नगाईच का दर्द उनके कथन में समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि उन्हें अपने बेटे की कुबाZनी पर नाज है, पर मलाल इस बात का है कि कर्तव्य और मानवता की मिसाल देने वाले उनके पुत्र सुशील को देश की खातिर जान न्योछावर करने के बाद भी इस शहादत को सुरक्षा बलों के जाबांजों की शहादत से कमतर क्यों आंका जा रहा है।

देश की खातिर अपनी जान देने वाले मध्य प्रदेश के सपूतों की याद में तत्कालीन सरकारों ने पलक पांवडे बिछाए थे, जिनमें राजेश, बिन्दु कुमरे आदि के उदहारण हमारे सामने हैं। विडम्बना यह है कि इनकी याद में स्मारकों को मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समय स्थान दिया गया था।

मध्य प्रदेश के वर्तमान हाकिम शिवराज सिंह चौहान एक तरफ तो लाडली लक्ष्मी जनहितकारी योजनाओं के जनक बनकर मीडिया में छाए हुए हैं, वहीं दूसरी ओर सुशील शर्मा की शहादत पर एकाएक इतने निष्ठुर कैसे हो गए हैं, कि उनकी सरकार ने इस शहीद की याद में सम्मान देना तो दूर दो शब्द कहना भी मुनासिब नहीं समझा।

वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के केंद्रीय राजनीति में रहते हुए भी मध्य प्रदेश के इस सपूत के परिजनों को अपने पुत्र की शहादत के सम्मान के लिए यहां वहां ताकना पड रहा है, जो किसी भी दृष्टिकोण से क्षम्य नही कहा जा सकता है।

हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि देश प्रेम का जज्बा जगाने वाले गाने आज सिर्फ और सिर्फ स्वाधीनता और गणतंत्र दिवस पर ही सुनाई पडते हैं। स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने जब ``ए मेरे वतन के लोगों`` गाया तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की आंखें भी छलछला उठीं थीं।

अभी लोगों की स्मृति से विस्मृत नहीं हुआ होगा कि किसी नेता के आगमन या सरकारी आयोजनों में देशप्रेम से लवरेज गानों की बहार हुआ करती थी,, जो लोगों के मन में देश के प्रति कुछ करने का जज्बा जगा देती थी। विडम्बना ही कही जाएगी कि आज के समय में इस सबसे हटकर नेताओं की चरण वंदना करने वाले गीतों की भरमार हुआ करती है।

देश के लिए मर मिटने वाले जांबाज शहीद पहले युवाओं के पायोनियर (अगुआ, आदर्श) हुआ करते थे। देशप्रेम को लेकर सिनेमा बना करते थे। जगह जगह महात्मा गांधी, नेहरू, पटेल जैसे नेताओं की फोटो नजर आती थी। पर आज इनकी जगह राजनाथ सिंह और सोनिया गांधी ने ले ली है। पार्टियों के कार्यालयों में भी गणेश परिक्रमा साफ दिख जाती है।

बहरहाल, अभी भी देर नहीं हुई है, केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार को चाहिए कि 26/11 में शहीद हुए सुशील शर्मा को उसकी शहादत का वाजिब सम्मान दिलाए और लोगों के मन में देश प्रेम का जज्बा जगाने के मार्ग प्रशस्त करे।

बुधवार, 25 नवंबर 2009

इंद्रप्रस्थ में होता आधुनिक सागर मंथन

इंद्रप्रस्थ में होता आधुनिक सागर मंथन

(लिमटी खरे)


पाण्डव काल में इंद्रप्रस्थ का अपना अलग महत्व हुआ करता था। इक्कीसवीं सदी में एक बार फिर इंद्रप्रस्थ अर्थात दिल्ली नए क्लेवर में उभरकर आई है। इतिहास का घालमेल अगर कहीं देखने को मिल रहा है तो वह आज देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में।
सागर मंथन के उपरांत अमृत निकला था, जिसे देवताओं ने ग्रहण किया और वे अमर हो गए, असुर इसे नहीं पा सके तो वे मृत्युलोक गमन कर गए। आज अदने से पार्षद के टिकिट के लिए प्रदेश की राजधानी के बजाए छोटे छोटे नेता दिल्ली दरबार का मुंह ताक रहे हैं कि इंद्रप्रस्थ में होते ```टिकिट मंथन`` के अमृत की एक ही बूंद उन्हें मिल जाए और वे अमरत्व को प्राप्त कर लें, उनकी अपनी पार्टी के ही अन्य दावेदार इसे न पा सकें और वे असुर हो जाएं।

मध्य प्रदेश और राजस्थान में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों की गहमागहमी लोकसभा या विधान सभा से कही गुना ज्यादा ही प्रतीत हो रही है। अभी नामांकन दाखिल करने की तिथि में महज 24 घंटे बचे हैं, और देश के दोनों प्रमुख राजनैतिक दल कांग्रेस और भाजपा में कशमकश का दौर जारी है।

कितने आश्चर्य की बात है कि सभी राजनैतिक दल `तृणमूल` अर्थात जमीन से जुडे होने का दावा तो करते हैं पर जब भी आम आदमी के जनसेवक चुनने की कवायद में टिकिट की बारी आती है तो सारी की सारी पोटलियां दिल्ली में ही जाकर एकत्र हो जाती हैं, और फिर फैसला वहीं से होकर आता है।

कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री और युवराज राहुल गांधी भले ही गला फाड फाडकर नेताओं को जमीन से जुडने की दुहाई दे रहे हों, पर जब अपनी जमीन (अपने प्रदेश) में इसे टिकिट तय करने की बात आती है तो कथित तौर पर विवादों से बचने का बहाना बनाकर मामला आलाकमान पर छोडने की नौटंकी कर गेंद दिल्ली के पाले में डाल दी जाती है। नेता क्या उम्मदीवारी का दावा करने वाले भी हवाई जहाज से दिल्ली भोपाल एक कर देते हैं।

देश के बडे नेता जो कभी चुनाव नहीं लडे या चुनाव लडे भी तो हमेशा औंधे मुंह ही गिरे, वे दो तीन हजार जनसंख्या वाले वार्ड के प्रतिनिधि का निर्णय आखिर किस आधार पर लेने के अधिकारी हैं। विडम्बना ही कही जाएगी कि जिन्हें वार्ड का ज्योग्राफिया ही नहीं पता, वहां की स्थानीय जरूरतें समस्याओं से कभी दो चार नहीं हुए, वे निर्धारित करतें हैं वार्ड का भाग्य विधाता।

कांग्रेस हो या भाजपा हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि हर सियासी दल भले ही गणेश परिक्रमा को गलत माने पर कुनैन की गोली की तरह कडवी सच्चाई यही है कि बढावा उसे ही मिलता है जो अपने नेता की दहरी को बरांबार चूमता है। एक नहीं अनेकों उदहारण एसे हैं जिनमें लोकसभा हो या विधानसभा या फिर स्थानीय निकाय के चुनाव जिनमें नेताओं ने अपना वर्चस्व दिखाने के लिए हारने वाले उम्मीदवार पर ही दांव लगाया है।

लोकसभा और विधानसभा चुनावों में टिकिट बिकने की खबरें आम हुआ करतीं हैं। लगता है मानों ये ``जनसेवक`` बनने की नहीं किसी विलासिता भरे विदेशी टूर की टिकिट हो। उत्तर प्रदेश की एक सियासी पार्टी पर तो राज्य सभा तक की टिकिट बेचने के आरोप लग चुके हैं। इस बार स्थानीय निकाय के चुनावों में भी टिकिटों के बिकने की खबरें जोर पकड रहीं हैं।

होना यह चाहिए कि चुनाव चाहे लोकसभा के हों विधान सभा या स्थानीय निकाय के, हर मामले में क्षेत्र के कार्यकर्ताओं से रायशुमारी कर ही निर्णय लेना चहिए। कहने को पार्टियां जिला इकाई से नामों के पेनल बुलवा भेजती है पर जब सूची को अंतिम रूप देने की बात होती है, तब इन सूचियों को दरकिनार कर दिया जाता है। इस तरह की घालमेल की राजनीति देश को आखिर किस अंधी सुरंग में ले जा रही है, इस बारे में सोचने की फुरसत देश के नेताओं को नहीं है।

अब देखना तो यह है कि प्रमुख राजनैतिक दलों के द्वारा सतयुग के इंद्रप्रस्थ और कलयुग के दिल्ली में चल रहे इस टिकिट मंथन से निकलने वाले अमृत कलश में से किसे कितनी बंदे मिल पाती है, या फिर टिकिट काउंटर खोलकर अमृत कलश को यूं ही रीतने दिया जाएगा।

सोमवार, 23 नवंबर 2009

बालाघाटी ठाकरे किस हक से मुंबई पर अधिकार जताते हैं!

बालाघाटी ठाकरे किस हक से मुंबई पर अधिकार जताते हैं!

(लिमटी खरे)


कांग्रेस के शक्तिशाली महासचिव और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह ने महाराष्ट्र पर जातिवाद और क्षेत्रवाद का कहर बरपाने वाले बाला साहेब ठाकरे और उनके भतीजे राज ठाकरे के मुंबईया होने पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए एक धमाका कर दिया है।


बकौल राजा दिग्विजय सिंह, बाला साहेब ठाकरे मध्य प्रदेश के नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले के मूल निवासी हैं। इस लिहाज से वे मुंबईकर नहीं हैं। दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश पर दस साल लगातार राज किया है, इस लिहाज से उनकी जानकारी गलत नहीं मानी जा सकती है।


यह बात सच है कि मुंबई के बाहर वालों पर आतंक बरपाने वाले ठाकरे ब्रदर्स ही अगर मुंबई के मूल निवासी नहीं हैं, तो वे किस अधिकार से मुंबई को आपली मुंबई कहकर मराठा मानुष को भडका रहे हैं। इस तरह से देखा जाए तो ठाकरे ब्रदर्स मुंबई के लिए उसी तरह के प्रवासी हैं, जिस तरह अन्य लोग बाहर से जाकर मुंबई में बसे हैं।


मराठी मूल के ठाकरे ब्रदर्स अगर वाकई अपनी मातृभूमि के लिए सर्वस्व न्योछावर करने कृत संकल्पित हैं, तो उन्हें सबसे पहले मध्य प्रदेश और बालाघाट जिले के लिए कुछ करना चाहिए। वस्तुत: ठाकरे ब्रदर्स एसा करेंगे नहीं क्योंकि एसा करने से उन्हें राजनैतिक तौर पर कुछ लाभ होने वाला नहीं है।


मध्य प्रदेश के इंदौर में आयोजित मछुआरों के सम्मेलन में दिग्विजय सिंह ने यह रहस्योद्घाटन किया। वैसे देखा जाए तो मुंबई मूलत: कोलियों और मछली पकडकर जीवन यापन करने वाले मछुआरों का शहर है, जिस पर बाद में पारसी और गुजरातियों ने अपना वर्चस्व बना लिया था।


नब्बे के दशक में शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे ने मराठा कार्ड चलकर आतंक बरपाया और मुंबई पर कब्जा कर लिया। कांग्रेस ने अपने नफा नुकसान को देखते हुए बाला साहेब को आतंक बरपाने की पूरी छूट दी थी, जिसका नतीजा है ठाकरे ब्रदर्स का जातीवाद और क्षेत्रवाद के नाम पर होने वाला तांडव।


राज ठाकरे जब बाला साहेब ठाकरे के मातोश्री की मांद से बाहर निकले तब बाला साहेब को कमजोर करने के लिए सियासतदारों ने एक बार फिर वही पुरानी चाल चली और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के जनक राज ठाकरे को आतंक बरपाने की पूरी छूट दे दी।


ठाकरे ब्रदर्स ने मुंबई में उत्तर भारतीयों का जीना मुहाल कर रखा है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। कल तक सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को कोसने वाले ठाकरे ब्रदर्स की तोप का मुंह अब मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर पर आकर टिक गई है।


यह सच है कि धन दौलत और शोहरत उगलने वाले क्रिकेट पर मुंबई का कब्जा रहा है, पर इसका मतलब यह तो नहीं है कि शेष भारत के खिलाडियों को इस खेल को खेलने का कोई हक नहीं है। बाला साहेब ठाकरे एण्ड कंपनी सचिन को मराठों को आगे नहीं बढाने पर लानत मलानत भेज रहे हैं, जिसकी चहुंओर तीखी प्रतिक्रिया है। ठाकरे का अगर बस चले तो वे क्रिकेट जेसे लोकप्रिय खेल को मुंबई की बपौती बना डालें।


इस सब विवाद के चलते पहली बार कांग्रेस की ओर से कोई बयान आया है, वह भी कांग्रेस की आधुनिक राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले दिग्विजय सिंह का। दिग्गी राजा ने ``बात निकली है तो दूर तलक जाएगी`` की तर्ज पर बाला साहेब ठाकरे के खिलाफ मोर्चा खोला है, वरना इस मामले में प्रदेश और केंद्र में बैठी कांग्रेस बेकफुट पर ही नजर आ रही है।


समूचे महाराष्ट्र में वेमनस्य फैलाने का काम करने वाले ठाकरे ब्रदर्स का ``सामना`` का प्रकाशन प्रतिबंधित कर देना चाहिए। शिवसेना और मनसे का आतंक इतना अधिक है कि सामना में छपे आलेखों को महाराष्ट्र में किसी निजाम के फरमान से कम नहीं माना जाता है।


मुंबई के हालात देखकर लगता है मानो 1947 में भारत देश आजाद हुआ है पर इस अखण्ड भारत के नक्शे में मुंबई नहंी है। भारत गणराज्य का कानून देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई में लागू नहीं होता है। मुंबई में चलता है ठाकरे ब्रदर्स का अपना कानून। यह है पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा और राजीव गांधी के सपनों का इक्कीसवीं सदी का भारत, जिस पर नेहरू गांधी खानदान की चौथी और पांचवीं पीढी राज कर रही है।


बहरहाल अगर दिग्विजय सिंह सच कह रहे हैं कि बाला साहेब ठाकरे का परिवार मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले का मूल निवासी है तो निश्चित तौर पर बालाघाट के निवासी फक्र के बजाए अपने आप को शर्मसार पा रहे होंगे कि महाराष्ट्र प्रदेश को अलगाववाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद की आग में झोंकने वाले ठाकरे ब्रदर्स बालाघाट की भूमि पर पैदा हुए हैं।

आडवाणी की गत से घबराए युवराज

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)





आडवाणी की गत से घबराए युवराज


अंतत: कांग्रेस की नजर में भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी  ने यह कह ही दिया है कि उन्हें भविष्य का प्रधानमंत्री न मानें। कांग्रेसियों के अतिउत्साह के चलते कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव राहुल गांधी को भविष्य का प्रधानमंत्री प्रचारित किया जा रहा है। राहुल गांधी को दूसरी बार अपनी छवि बचाने के लिए सामने आना पडा है। इसके पहले राहुल ने खुद को युवराज कहने पर आपत्ति जताई थी। राहुल गांधी के नजदीकी सूत्रों का कहना है कि राहुल को यह कदम इसलिए उठाना पडा है क्योंकि वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के ``पीएम इन वेटिंग`` लाल कृष्ण आडवाणी की गत देख चुके हैं, इसलिए उन्होंने यह कदम उठाया है। गौरतलब होगा कि अतिउत्साह और महात्वाकांक्षा के चलते पिछले लोकसभा चुनावों में एल.के.आडवाणी को राजग ने प्रधानमंत्री के तौर पर प्रस्तुत किया था। वे 7 रेसकोर्स रोड (प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) को अपना आशियाना तो नहीं बना पाए पर अपनी छवि पर खासा बट्टा अवश्य ही लगवा लिया। आडवाणी की इस तरह हुई दुर्गत से राहुल गांधी के कान खडे हो गए और उन्होंने अपने आप को पीएम इन वेटिंग की लाईन से प्रथक करने की मंशा जता ही दी।


मयखाना दिखता है मध्य प्रदेश के अक्स में
मध्य प्रदेश के सूबेदार शिवराज सिंह चौहान दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में आए और कहा कि अगले साल मध्य प्रदेश के मण्डप में मध्य प्रदेश का अक्स दिखने की बात कही। मध्य प्रदेश के मण्डप का उन्होंने अवलोकन किया। इतिहास में संभवत: यह पहला मौका होगा जब एमपी के पेवेलियन में शराब के स्टाल को भी स्थान दिया गया हो। एम पी पवेलियन में केंद्रीय आदिवासी विकास मंत्री कांतिलाल भूरिया के संसदीय क्षेत्र रतलाम के ग्राम टिटारी में पटेल वाईन और फ्रूट प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज द्वारा बनाई जाने वाली वाईन की बाटल्स को भी प्रदर्शित किया गया है। 12 फीसदी से अधिक एल्कोहल वाली एम्बी वाईनयार्डस के नाम से बाजार में उपलब्ध इस वाईन को इसमें स्थान दिया जाना आश्चर्यजनक ही है। एक ओर शराब को सामाजिक बुराई माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार द्वारा देश की राजनैतिक राजधानी में लगने वाले इस महत्वपूर्ण मेले में शराब को प्रोत्साहित किया जा रहा है। यही है श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीन दयाल उपाध्याय के आदशोZं पर चलने वाली भाजपा का एक चेहरा!



नाश्ते में देरी से बिफरीं सैलजा!
देश के जनसेवक भले ही सादगी और मितव्ययता का राग अलापते रहें किन्तु असल जिंदगी में वे कितने निष्ठुर और गुस्सैल होते हैं, इसका उदहारण केंद्रीय गरीबी उन्नमूलन मंत्री सैलजा ने दे दिया है। बीते दिनों वे हरियाणा में हांसी के एक रेस्ट हाउस पहंची। उनके स्टाफ ने पहले ही वहां तैनात नायब तहसीलदार हनुमान सिंह को संदेशा भिजवा दिया था कि मदाम और उनका लाव लश्कर वहां ब्रेक फास्ट लेगा। सैलजा प्रात: 9 बजे विश्राम गृह पहुंची तो नाश्ते में विलंब को देखकर भडक गईं और गुस्से में बिना नाश्ता किए ही वहां से रफत डाल दी। दरअसल सैलजा शायद भूल गईं कि वह विश्राम गृह था आईटीडीसी का कोई होटल नहीं जहां हर समय गर्मा गरम नाश्ता तैयार मिलता है। बाद में सैलजा ने एसडीएम को तलब किया। एसडीएम ने लाख समझाने की कोशिश की कि वे भी नाश्ता छोडकर ही आए हैं, पर उन्होंने एक न मानी और बिना नाश्ता किए ही वहां से रवानगी डाल दी।



कब फेंटेंगी राजमाता अपने पत्ते
कांग्रेस में संगठन स्तर पर फेरबदल की चर्चाएं गाहे बगाहे चल ही पडती हैं। एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत पर चलने वाली कांग्रेस में अनेक एसे नेता मौजूद है, जो संगठन में भी महत्वपूर्ण पद पर हैं, और सरकार में मलाईदार पद पर। कांग्रेस में फेरबदल की सुगबुगाहट एक बार फिर आरंभ हो गई है। पूर्व मे जब कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने मंत्री पद को ठोकर मार दी थी, तब माना जा रहा था कि सरकार में शामिल अनेक मंत्रियों को सत्ता या संगठन में से किसी एक को चुनना पडेगा, वस्तुत: एसा हुआ नहीं। मजे की बात तो यह है कि राहुल गांधी के इस फैसले को सभी से मुक्त कंठ से सराहा पर अमली जामा पहनाने की जब बात आई तो सभी ने चुप्पी साध ली। अगले माह 9 तारीख को कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी अपना जन्मदिन मनाने जा रहीं हैं। कांग्रेस की मितव्ययता की नौटंकी में मीडिया की निगाहें उनके जन्म दिन पर भी हैं। हाल ही में कांग्रेस के एक शक्तिशाली मंत्री ने अपना जन्म दिन धूमधाम से मनाकर मितव्ययता का माखौल उडाया है। माना जा रहा है कि सोनिया गांधी अपने ताश के पत्ते जन्म दिन के उपरांत ही फेंट पाएंगी।



प्रचार से दूर रहेंगी महारानी
भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को नाकों चने चबवाने वाली राजस्थान की महारानी वसुंधरा राजे की नाराजगी अभी दूर नहीं हुई है। बयानबाजी से खफा वसुंधरा ने अब सूबे के स्थानीय निकायों के चुनावों से खुद को अलग थलग रखने का फैसला कर लिया है। राजे के इन तेवरों से भाजपा नेतृत्व सकते में है। गौरतलब होगा कि पूर्व में टोडाभीम उपचुनावों में राजे ने नादौती क्षेत्र का दौरा किया था जहां से भाजपा को खासी बढत मिली थी। राजस्थान की सत्ता से राजे अवश्य उतर गईं हों पर सूबे में उनकी पूछ परख में कमी नहीं आई है। टोडाभीम चुनावों में भाजपा की जीत का सेहरा बांधने को लेकर प्रदेश भाजपा और राजे खेमे में ठन गई है। प्रदेशाध्यक्ष अरूण चतुर्वेदी संकेत दिए थे, कि यहां की भाजपा की जीत किसी बडे नेता के कारण नहीं हुई है। राजे के करीबी सूत्रों का कहना है कि अनर्गल बयानबाजी और जीत के श्रेय को लेकर मची जंग से बुरी तरह आहत हैं, राजस्थान की महारानी।



बढ रहा है युवा तुर्क का ग्राफ
कांग्रेस में युवा तुर्क के नाम से पहचान बनाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया की लोकप्रियता का ग्राफ दिनों दिन बढता ही जा रहा है। अस्सी के दशक में मध्य प्रदेश में कुंवर अर्जुन सिंह की लोकप्रियता चरम पर थी तो नब्बे के दशक में कमल नाथ ने अपना सिक्का चलाया। अब दोनों ही नेता उमर दराज होने जा रहे हैं, तब मध्य प्रदेश में कांग्रेसियों की निगाहें केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को ताक रहीं हैं। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की तर्ज पर अब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गांव में रात बिताना आरंभ कर दिया है। राहुल गांधी से एक कदम आगे बढकर महलों में बडे ही लाड प्यार से पले बढे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने न केवल झोपडी में रात बिताई वरन् रोटी भी पकाई और बच्चों को पढाया भी। इतना ही नहीं किसानों को बिठाकर खुद ही ट्रेक्टर चला गांव वालों के दिलों में जगह बना ली सो अलग। सिंधिया का पीआर सिस्टम भी जबर्दस्त है, तभी तो उनके इस कदम को नेशनल लेबल पर मीडिया ने हाथों हाथ लिया।



शिवराज, रमन की राह पर मुंडा
छत्तीसगढ में सुसाशन आया हो या नहीं पर ढाई रूपए किलो चावल की घोषणा ने रमन सिंह को दुबारा मुख्यमंत्री बना दिया। अब झारखण्ड में पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मण्डा भी रमन सिंह की राह पर चल दिए हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लाडली लक्ष्मी की तर्ज पर झारखण्ड में भी लाडली लक्ष्मी को लागू करने का एलान किया है। मुंडा ने दावा किया है कि अगर राज्य में भाजपा सत्ता में आई तो लोगों को एक रूपए किलो चावल और चार आने किलो में नमक मिलेगा। अपना घोषणा पत्र जारी करते समय राज्य की भाजपा ने छत्तीसगढ के निजाम रमन सिंह को तो आमंत्रित कर लिया किन्तु मध्य प्रदेश की लाडली लक्ष्मी योजना के जनक शिवराज सिंह चौहान से पर्याप्त दूरी बनाकर रखी है, जिसे लेकर सियासी गलियारों में अब तरह तरह की चर्चाएं आम हो गईं हैं।



फिर बोले थुरूर साहेब
केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर और विवादों का अच्छा खासा नाता है। पांच सितारा होटल में रूककर चर्चाओं में आए थुरूर ने होटल का लाखों का बिल अब तक सार्वजनिक नहीं किया है। फिर सोशल नेटवकिंग वेवसाईट पर सेलीब्रिटीज की तरह लोगों से सवाल जवाब के चलते उनकी किरकिरी हुई। अब वन्दे मातरम विवाद पर उन्होंने अपनी राय भी व्यक्त कर दी है। तिरूवनंतपुरम में सीएसआई चर्च में लोगों से रूबरू थुरूर का मानना था कि वन्देमातरम को वेकल्पिक बना देना चाहिए। पिछले दिनों जमात ए उलेमा हिन्द में वन्दे मातरम को लेकर एक फतवे के बाद उपजे विवाद में थुरूर की मंशा निश्चित तौर पर आग में घी का ही काम करेगी। बार बार नसीहतों के बाद भी विवाद थुरूर का पीछा नहीं छोड रहा है। वैसे भी थुरूर कह ही चुके हैं कि उनके उपर काम का खासा बोझ है। प्रधानमंत्री एम.एम.सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी हैं, कि उनका बोझ कम करने को तैयार ही नहीं।



साजन संग जाएंगी प्रतिभा
देश की पहली महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल 25 नवंबर को सुखोई 30 की सवारी करने वालीं हैं। प्रतिभा पाटिल को लेकर उडने वाले पायलट का नाम है साजन सिंह। साजन के साथ प्रतिभा ताई आसमान का सीना चीरकर भारतीय सेना की पहली महिला सर्वोच्च कमांडर बन जाएंगी। प्रतिभा ताई की इस यात्रा के चलते 24 नवंबर से 16 नवंबर तक पूना का लेहगांव स्थित हवाई अड्डा सामान्य उडानों के लिए बंद कर दिया जाएगा। गौरतलब होगा कि पूना में रोजाना 38 विमान आते जाते हैं। इस दौरान हवाई यात्रा करने वालों को अब रेल या सडक मार्ग से ही पूना जाना होगा।



सोशल नेटविर्कंग बनी अनैतिक व्यापार का साधन
इंटरनेट की सोशल नेटविर्कंग वेवसाईट्स इन दिनों अनैतिक व्यापार का अड्डा बनती जा रहीं हैं। इन वेव साईट्स पर गर्म गोश्त (देह व्यापार) की कम्यूनिटीज की न जाने कितनी शिकायतें हैं। अब दिल्ली के आबकारी महकमे ने ``विस्की ऑन व्हील्स`` नामक कम्यूनिटी से शराब के अवैध कारोबार का पर्दाफाश किया है। इस कम्यूनिटी में लिखा था कि वे लोग निजी या पार्टी में उपयोग के लिए किसी भी समय कहीं भी शराब मुहैया करवाते हैं। इसके जरिए तस्करों द्वारा महंगी अवैध शराब घरों घर तक पहुंचाने का काम किया जाता था। मजे की बात तो यह है कि यह सब कुछ ``फेसबुक`` और ``आरकुट`` जैसी वेव साईट पर हो रहा था, फेसबुक में कथित प्रशंसकों से सवाल जवाब के चलते विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर विवादों में घिरे थे।



ठाकरे के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा
महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार और केंद्र में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार मनसे चीफ राज ठाकरे के भडकाउ रवैए को लेकर उनके खिलाफ मुकदमा कायम करने से हिचक रही हो पर उत्तर प्रदेश के हरदोई की एक अदालत में राज ठाकरे और मनसे के चार विधायकों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हो गया है। इस अदालत में सपा विधायक अबू आजमी के द्वारा हिन्दी में शपथ लेने पर हुई मारपीट के चलते मनसे चीफ राज ठाकरे, विधायक रमेश बांजले, राम कदम, बसंत गीते एवं शिशिर शिंदे पर हरदोई के अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में मुकदमा कायम किया गया है। माना जा रहा है कि इसमें साक्ष्य के दौरान राज सहित चारों विधायकों को हरदोई में उपस्थिति देनी पड सकती है।



भोपाल गैस हादसे को विस्मृत किया मनमोहन ने
लगता है कि अमेरिका के दबाव में आकर केंद्र की मनमोहन सिंह सराकर ने भोपाल गैस त्रासदी जैसे अविस्मरणीय हादसे को भूल गई है। हाल ही में केबनेट (मंत्रीमण्डल की बैठक) में वजीरे आजम एम.एम.सिंह ने सिविल न्यूिक्लयर लाईबिलटी विधेयक को मंजूरी दे दी है। इसे अगर संसद ने पास कर दिया तो किसी भी परमाणु दुघZटना की स्थिति में मुजावजा 25 सौ करोड से अधिक नहीं होगा। इसके बाद अमेरिकी कंपनियों को भारत में रिएक्टर निर्माण और स्थिापित करने के मार्ग भारत में प्रशस्त हो जाएंगे। इसमें होने वाली दुघZटना की क्षतिपूर्ति में उन कंपनियों को बडी रियायत हो जाएगी। 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी में डाव कंपनी को जो मुआवजा देना पड रहा है वह 25 सौ करोड से कहीं अधिक है। माना जा रहा है कि मनमोहन की अमेरिका यात्रा के पहले अमेरिकी रिएक्टर सप्लाई लाबी के लिए मनमोहन सिंह ने यह तोहफा दिया है। गौरतलब बात तो यह है कि परमाणु हादसे के दुष्प्रभाव दूरगामी होते हैं।



आशाराम बापू फिर सुर्खियों में
केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की कर्मस्थली मध्य प्रदेश के छिंदवाडा जिले में आशाराम बापू एक बार फिर सुर्खियों में आ गए हैं। स्वयंभू आध्याित्मक गुरू आशाराम बापू के छिंदवाडा स्थिति आश्रम के गुरूकुल में एक शिक्षिका की रहस्यमय हालत में मौत हो गई है। पुलिस के अनुसार उक्त शिक्षिका संध्या चौरसिया के शव पर कोई चोट के निशान नहीं थे, वहीं पीएम रिपोर्ट बयां कर रही है कि उसकी मौत आंतरिक चोटों के कारण हुई। उसके कपडे भी जगह जगह से फटे हुए थे। गौरतलब होगा कि इसके पूर्व इसी गुयकुल में पढने वाले दो बच्चों की पिछले साल संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। एक के बाद एक रहस्यमय मौत से चर्चाओं में आए आशाराम बापू के आश्रम में इस घटना को लेकर तरह तरह की चर्चाएं व्याप्त हो गईं हैं।



थपडयाए आजमी अब सीख रहे मराठी!
मराठी में शपथ न लेने के कारण मनसे विधायकों की गुण्डा गदीZ का शिकार हुए समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आसिम आजमी अब मराठी सीखने का जतन कर रहे हैं। पूर्व सांसद आजमी यह पहली बार मराठी सीखने का प्रयास नहीं कर रहे हैं, इसके पूर्व उन्होंने पांच साल पहले भी एक मराठी शिक्षक रखकर मराठी जुबान सीखने की नाकाम कोशिश की थी। आजमी भले ही अगले साल टीवी पर राज ठाकरे से मराठी जुबान में परिचर्चा के कारण मराठी सीखने की बात कह रहे हों पर सियासी गलियारों में चर्चा है कि राज ठाकरे के आतंक से अबू आजमी भयाक्रांत हैं, और मराठी सीखकर वे राज ठाकरे को प्रसन्न करने का प्रयास कर रहे हैं।



गन्ना विवाद ने उडाई सोनिया की नींद
गन्ना के मूल्य विवाद का मुद्दा विपक्ष के हाथों में जाने से कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ में अफरा तफरी का आलम है। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी इसके लिए प्रधानमंत्री एम.एम.सिंह से खासी नाराज बताई जा रहीं हैं। दिल्ली को हिला देने वाले विशाल प्रदर्शन से सोनिया गांधी खुद भी हिल गईं हैं। बताया जाता है कि इसके लिए उन्होंने पीएम को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी, गृह मंत्री पी.चिदम्बरम और कानून मंत्री वीरप्पा माईली के साथ बैठकर बात करने को कहा। सूत्रों के अनुसार पीएम के साथ जब ये नेता सर जोडकर बैठे तब पीएम ने कहा कि जब हम किसानों का 70 हजार करोड माफ कर सकते हैं, तो गन्ना अधिक मूल्य पर क्यों नहीं खरीद सकते। इस पर वित्त मंत्री ने शुगर लाबी के कथित संरक्षक केंद्रीय कृषि मंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि इस मसले में शरद पवार के मंत्रालय को एहतियात बरतते हुए कदम उठाने चाहिए। कुल मिलाकर शरद पवार की कूटनीतिक चाल के चलते इस मुद्दे पर बिखरे विपक्ष को एक होने का मौका मिला जो सोनिया गांधी को गवारा नहीं गुजर रहा है।



पुच्छल तारा
दिल्ली में अतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले के चलते चहुं ओर जाम ही जाम है। सडकों पर फर्राटे भरने वाली गाडियां चीटियों के मानिंद रेंग रहीं हैं। किसी ने सच ही कहा है कि मयखाने के ``जाम`` से मदहोशी छाती है, और दिल्ली के ट्रेफिक ``जाम`` से बेहोशी।

रविवार, 22 नवंबर 2009

कुछ तो शर्म करते चव्हाण साहेब


कुछ तो शर्म करते चव्हाण साहेब




(लिमटी खरे)





शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे के बाद उनके भतीजे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के चीफ राज ठाकरे ने भाषावाद और प्रांत वाद की बलिवेदी पर अपनी राजनैतिक बिसात तैयार की है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। दिल्ली में तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने वाली शीला दीक्षित, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ भी क्षेत्रवाद के हिमायती ही दिख रहे हैं, जिन्होंने अपने अपने सूबों के लोगों को ज्यादा रोजगार देने की वकालत की है।




क्षेत्रीयता के इस जहर को आगे बढाते हुए अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने भी राज ठाकरे के सुर में सुर मिला दिया है। राज्य में जनाधार बढाने के लिए चव्हाण ने अब रेल मंत्री ममता बनर्जी से अपील की है कि रेल्वे में ``मराठी मानुष`` का विशेष ख्याल रखा जाए, उन्हें वरीयता के हिसाब से नौकरी प्रदान की जाए।




इसके पहले चव्हाण ने रेल्वे की परीक्षाओं में महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर हुए हमले के मद्देनजर ममता बनर्जी से आग्रह किया था कि रेल्वे की परीक्षाएं स्थानीय भाषाओं में कराई जाएं। रेल मंत्री ने ममता दिखाते हुए चव्हाण की अपील मान ली थी।




भाषावाद का जहर उगलने वाले राज ठाकरे पर किसी ने भी शिकंजा कसने का उपक्रम नहीं किया है। आजाद भारत का इससे बडा दुर्भाग्य और कुछ नहीं कहा जा सकता जहां देश की मातृभाषा, और राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त हिन्दी की सरेआम चिंदी उडाई जा रही हो। जहां हिन्दी में विधानसभा में शपथ लेने पर एक जनसेवक द्वारा जनता के चुने नुमाईंदे को थप्पड मारे जाएं।




आपला मानुष के नाम पर सियासत कहां तक उचित है। अगर राज और बाल ठाकरे के इन अश्वमेघ यज्ञ के घोडों को नहीं रोका गया तो आने वाले समय में समूचा हिन्दुस्तान इसकी आग में बुरी तरह झुलसा ही नजर आएगा, इस बात में कोई शक नहीं है।




बाला साहेब ठाकरे और राज ठाकरे के बुलंद होसलों के चलते इनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सका है। अब इन्हीं से प्रेरणा लेकर अन्य राजनेता भी क्षेत्रवाद की राजनीति पर उतर आए हैं। पहले उत्तर प्रदेश मूल की निवासी और दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित ने यूपी और बिहार को कोसा। फिर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सतना में मध्य प्रदेश के लोगों को नौकरी ज्यादा देने की बात पर विवाद खडा कर दिया।




तेरी साडी मेरी साडी से सफेद कैसे की तर्ज पर केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने भी मध्य प्रदेश की व्यवसायिक राजधानी इंदौर में मध्य प्रदेश मूल के लोगों को राज्य में अधिक रोजगार मुहैया कराने का शिगूफा छोड दिया। सवाल तो यह है कि इन राजनेताओं की जबान पर लगाम लगाए तो आखिर कौन!




राज ठाकरे की गुण्डागदीZ तो देखिए, मनसे ने धमकाया की कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी), बांबे स्टाक एक्सचेंज (बीएसई) की वेव साईट पर सूचनाएं मराठी में उपलब्ध कराई जाएं। ठाकरे ब्रदर्स के आक्रमक रवैऐ के आगे सेबी और बीएसई दोनों ही झुक गए और आ गईं सूचनाएं मराठी भाषा में।




भारत गणराज्य में कर किसी को अपना धर्म, भाषा आदि मानने की स्वतंत्रता है, पर किसी को आप मार मार कर मुसलमान तो नहीं बना सकते। भारत के संविधान को अक्षुण रखने की सौगंध उठाने वाले जनता का जनादेश प्राप्त और पिछले रास्तों से संसद या विधानसभा की दहलीज पर पहुंचने वाले ``जनसेवक`` आखिर इन आताताईयों के आगे झुकने पर मजबूर क्यों हैं।




जनवरी और फरवरी 2008 में राज ठाकरे के गुंडों ने महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों को तबियत से धुना। 04 फरवरी 2008 को फिर ये गुंडे सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के घर तोडफोड करने पहुंच गए। 19 अक्टूबर 08 को मंबई के रेल्वे स्टेशनों पर मनसे के गुंडों ने रेल्वे की परीक्षा देने आए उत्तर भारतीयों को बुरी तरह पीटा। इस साल 9 नवंबर को विधानसभा में अबू आजमी को मनसे विधायकों ने पीटा। मनसे ओर शिवसेना के गुर्गों की गुण्डई फिर भी नहीं रूकी। गत 20 नवंबर को मुंबई में आईबीएन 7 समाचार चेनल के कार्यालय में शिवसेना के गुण्डों ने तांडव मचाया।




यह सब कुछ उसी सूबे में हो रहा है जिसके निजाम कोई ओर नहीं अशोक चव्हाण खुद हैं। हमारे मतानुसार आशोक चव्हाण को कुछ तो शर्म करना चाहिए। शिवसेना चीफ एक बार फिर हुंकार भर रहे हैं कि मीडिया भगवान नहीं है। वह हिटलर हो गया है। उन्होंने कहा कि अगर दुबारा उनकी आलोचना हुई तो फिर हमले हो सकते हैं।




बाला साहेब ठाकरे के इस कथन से हम आंशिक तौर पर सहमत हैं कि मीडिया कुछ जगहों पर हिटलर की भूमिका में आ गया है, इसका कारण मीडिया का कार्पोरेट हाथों में जाना है। अपने निहित स्वार्थों के लिए अब उद्योगपतियों में मीडिया मुगल बनने का भूत सवार हो गया है।




किन्तु अगर ठाकरे यह कह रहे हैं कि उनकी दोबारा आलोचना होगी तो हमले फिर से हो सकते हैं। तो इस बात से हम इत्तेफाक नहीं रखते। यह तो सरेआम धमकी है प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ के लिए। हमारी अपनी राय में तो इस बीमारी को समूल नष्ट करने के लिए मीडिया को एक जुट हो जाना चाहिए और राज ठाकरे और बाला साहेब ठाकरे जैसे जहर फैलाने वाले तत्वों का सोशल बायकाट कर देना चाहिए।




शनिवार, 21 नवंबर 2009

ठाकरे बंधुओं की लौंडी बन गई है कानून व्यवस्था!


ठाकरे बंधुओं की लौंडी बन गई है कानून व्यवस्था!



(लिमटी खरे)





देश के संपन्न सूबे में शामिल महाराष्ट्र प्रदेश में शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे और उनसे टूटकर अलग हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख एवं आतंक का पर्याय बन चुके राज ठाकरे एक के बाद एक ज्यादती पर उतारू हैं, किन्तु सूबे पर काबिज कांग्रेस और केंद्र की कांग्रेस नीत संप्रग सरकार मूक दर्शक बन सब कुछ देख सुन रही है।


कभी गैर मराठियों पर आतंक की लाठी ठोंकते तो कभी मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को ही सरेआम धमकी दे डालते। यहां तक कि राज ठाकरे ने मुंबई के पुलिस कमिश्नर तक के सामने सरेआम ताल ठोंक दी। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को तक नहीं बख्शा कथित मराठियों के हितों को साधने वाले इन ठेकेदारों ने।


हद तो तब हो गई जब महाराष्ट्र की विधानसभा में समाजवादी पार्टी के चुने हुए विधायक अबू आजमी को हिन्दी में शपथ लेने पर सरेआम थप्पड मारे गए। समूचे देश ने इसे मीडिया के माध्यम से देखा। नहीं देखा तो देश के चुने हुए ``जनसेवकों`` ने। अगर देखा होता तो निश्चित तौर पर इन आतंक के पर्याय बन चुके समाज के दुश्मनों पर कार्यवाही करने का माद्दा रखते।


गत दिवस एक निजी समाचार चेनल के मुंबई और पुणे स्थित कार्यालय में शिवसेनिकों द्वारा कथित तौर पर की गई तोड़फोड के बाद लोगों के जेहन में यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि आखिर शासन और प्रशासन इस तरह की सरेआम गुण्डागदीZ करने वाले तत्वों को खुला कैसे छोड देता है।


आजादी के बाद अस्तित्व में आए भारत गणराज्य के विभिन्न प्रदेशों में सरकरोें द्वारा अलग अलग नजरों से कानून को देखा जाता है। विडम्बना ही कही जाएगी कि उत्तर प्रदेश में भडकाउ भाषण देने पर नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढी के भाजपाई वरूण गांधी को रासुका में नजर बंद कर उनके खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता के तहत कार्यवाही की जाती है, वहीं दूसरी ओर भाषा के आधार पर देश को बांटने वाले ठाकरे बंधुओं के खिलाफ महाराष्ट्र सरकर कार्यवाही करने से न जाने क्यों हिचकती रही है।


भाषा और प्रांतवाद की आग में समूचा महाराष्ट्र प्रदेश सुलग रहा है। उत्तर भारतीय इस सूबे से एक एक कर छिपकर भागने पर मजबूर हैं। उत्तर भारतीय नेता शिवसेना और मनसे के नेताओं के साथ नूरा कुश्ती खेलकर अपनी सियासत चमका रहे हैं। कुल मिलाकर हालात देखकर बुंदल खण्ड की एक कहावत चरितार्थ होती दिख रही है ``नउआ सीखे नाउ को, मूड कटे गंवार की`` अर्थात नाई तो अपने उस्तरे चलना सीख रहा है, पर सिर तो गांव के गंवार का ही कट रहा है।


ठीक उसी तरह से महाराष्ट्र में बाला साहेब ठाकरे और राज ठाकरे के साथ ही साथ मुलायम सिंह, लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान अपनी अपनी चालेंं चल रहे हैं, किन्तु अंततोगत्वा मरण तो सूबे में नौकरी करने वाले उत्तर भारतियों की ही हो रही है।


महाराष्ट्र के इस तरह के हालात को बनाने में मीडिया की भूमिका भी कम नहीं मानी जा सकती है। मीडिया ने ही नब्बे के दशक में बाल ठाकरे को तो पिछले लगभग पांच सालों से राज ठाकरे को जो तवज्जो दी है, उसी का नतीजा है कि आज इन दोनों ही का अतंक सूबे में सर चढकर बोल रहा है।


यह पहला मौका नहीं है जब ठाकरे बंधुओं या उनके अखबरा ने वेमनस्यता फैलाने का काम किया हो। पता नहीं क्यों महाराष्ट्र सरकार बाला साहेब ठाकरे और उनके समाचार पत्र ``सामना`` के खिलाफ भारतीय दण्ड संहित की धारा 153 क, 295 क, 503, 504 और 505 के तहत प्रकरण पंजीबद्ध करने किस महूर्त की तलाश कर रही है। लोगों की स्मृति से शायद अब तक विस्मृत नहीं हुआ होगा कि बाला साहेब ठाकरे को इसी तरह के कृत्य के लिए लगभग 14 साल पहले छ: साल के लिए मताधिकार से वंचित कर दिया गया था।


आज यह देखकर बहुत ही आश्चर्य होता है कि पीलिभीत में भाजपा के युवा गांधी, वरूण के उत्तेजक भाषण के लिए उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी, पर वहीं भारत गणराज्य के महाराष्ट्र सूबे मेें बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना लोगों को सरेआम उकसाने का काम कर रही है। भारत देश में दो सूबों में इस तरह की संवैधानिक विभिन्नताएं अपने आप में अनोखी मानी जा सकती हैं। भारत विविधता में एकता का प्रतीक माना जाता है, किन्तु इस तरह की विविधताओं का नहीं।

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

अहमद पटेल की उलटी गिनती शुरू



अहमद पटेल की उलटी गिनती शुरू




राजा दिग्विजय सिंह ने आरंभ किया शह और मात का खेल




(लिमटी खरे)



नई दिल्ली। लगता है कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के नौ रत्नों में से सबसे ताकतवर अहमद पटेल के दुदिन शुरू होने वाले हैं। अब तक सोनिया गांधी के नाक कान आंख माने जाने वाले अहमद पटेल को कमजोर करने में उनके विरोधियों को काफी हद तक कामयाबी मिल चुकी है।

पूर्व प्रधानमंत्री एवं 21 सदी के भविष्य दृष्टा राजीव गांधी के सचिव रहे विसेंट जार्ज पिछले कुछ सालों से वनवास भोग रहे थे। बताया जाता है कि जार्ज का राजनैतिक वनवास भी समाप्त हो गया है। कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ में एक बार फिर उनकी तूती बोलने लगी है।

कांग्रेस अध्यक्ष के करीबी सूत्रों का कहना है कि अहमद पटेल को कमजोर करने के लिए दिग्विजय सिंह ने जार्ज को ज्यादा तवज्जो दिलवाना आरंभ कर दिया है। कांग्रेस के भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू अब अपनी सधी हुई चालों के जरिए अहमद पटेल को 10 जनपथ से बाहर करने की जुगत लगा रहे हैं।

पिछले दिनों विसेंट जार्ज के इशारे पर हुई नियुक्तियों से कांग्रेसियों की भीड जार्ज के चाणक्यपुरी स्थित आवास पर लगने लगी है। एक अनजान भूमिहार अनिल शर्मा को जार्ज के इशारे पर ही बिहार प्रदेश का कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था। सूत्रों की मानें तो विसेंट जार्ज एक बार फिर 10 जनपथ में ताकतवर होकर उभर चुके हैं।

देश की राजनैतिक राजधानी में चल रही बयार के अनुसार कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह बहुत ही फूंक फूंक कर कदम रख रहे हैं। बताया जाता है कि दिग्विजय सिंह काफी समय से सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल को बदलने का प्रयास कर रहे हैं।

जैसे ही राजनैतिक फिजां में यह बात तैरी वैसे ही राजा दिग्विजय सिंह ने अपना स्टेंड बदल दिया। बताते हैं कि पिछले दिनों राजधानी के कुछ मीडिया पर्सन्स को अपने घर बुलाकर चाय की चुस्कियों के दरम्यान दिग्विजय सिंह ने अहमद पटेल की तारीफ में कसीदे गढकर उन्हें हीरो बना दिया।

राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुंवर अर्जुन सिंह के बाद कांग्रेस की राजनीति में चाणक्य की भूमिका में आए राजा दिग्विजय सिंह ने यह कृत्य इसलिए किया ताकि अहमद पटेल को बदलने के बारे में उनके नाम से जो अफवाहें फैल रहीं हैं, उन्हें रोका जा सके।

सियासी हल्कों में अब इस बात को खोजा जा रहा है कि कांग्रेस के भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी को पूरी तरह अपने बाहूपाश में ले चुके मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह 10 जनपथ में श्रीमति सोनिया गांधी के पास अहमद पटेल के स्थान पर किसे फिट करने वाले हैं।

क्या हिन्दुस्तान में महज 11 शहरों में ही जनता रहती है!



क्या हिन्दुस्तान में महज 11 शहरों में ही जनता रहती है!




(लिमटी खरे)




चलो देर से ही सही सरकार ने वायू प्रदूषण रोकने के नए मानक जारी कर इन पर कडाई से पालन सुनिश्चित करने का मानस बनाया है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने डेढ दशक के बाद वायू प्रदूषण को रोकने के लिए गुणवत्ता के नए मानक बनाकर उन्हें काफी हद तक सख्त कर दिया है।


सरकार के इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए जिसमें सरकार ने इन मानकों को रिहाईशी और औद्योगिक दोनों ही जगहों पर समान रूप से लागू करने की बात कही है। नए मानकों में घातक धातुओं और हानीकारक गैस को भी इसी श्रेणी में रखा गया है।


केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की यह बात समझी जा सकती है कि मानकों को लागू करना इतर बात है पर इन पर अमल कराना दुष्कर कार्य है। दरअसल देश की व्यवस्था को पूरी तरह जंग लग चुकी है। यही कारण है कि नियम कायदों को बलाए ताक पर रखने में सरकारी नुमाईंदे पल भर भी नहीं झिझकते।


केंद्र सरकार ने तय किया है कि अप्रेल 2010 से चुनिंदा 11 शहरों मेें यूरो तीन और चार मानकों पर अमल जरूरी हो जाएगा। इसका कडाई से अगर पालन किया गया तो इन शहरों में डीजल से चलने वाले वाहन नजर ही नहीं आएंगे, क्योंकि डीजल से चलने वाले वाहन सबसे अधिक प्रदूषण फैलाते हैं।


सवाल तो यह उठता है कि क्या देश में महज 11 शहरों में ही जनता निवास कर रही है। समूचे देश में यूरो मानकों का सरेआम माखौल उडाया जा रहा है। प्रदूषण के अनेक प्रकारों से देशवासियों को तरह तरह की बीमारियों से दो चार होना पड रहा है।


वर्तमान में केंद्र के अलावा राज्यों में भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अस्तित्व में है। क्या ये बोर्ड साफ मन से प्रदूषण रोकने की कार्यवाही कर रहा है। जाहिर है जवाब नकारात्मक ही मिलेगा। प्रदूषण नियंत्रण महकमे का काम प्रदूषण को नियंत्रित करने के बजाए धन उगाही ज्यादा हो गया है। देश भर में बिछ रहे सडकों के जाल के लिए पत्थर तोडकर गिट्टी बनाने वाले क्रेशर गांव गांव शहर शहर धूल उडा रहे हैं, पर इस ओर देखने वाला कोई नहीं है।


देश में शहरों के साथ ही साथ अब गांव में भी स्वास जनित बीमारियों के मरीजों की खासी तादाद हो गई है। इसका कारण वायू प्रदूषण ही है। इसके अलावा शादी ब्याह, मेले ठेले में कान फोडू आवाज में बजने वाले डीजे साउंड सिस्टम ने लोगों को बहरा बनाना भी आरंभ कर दिया है।


पश्चिमी देशों में पूरी तरह बैन हो चुकी पालीथिन ने भारत को अपना घर बना लिया है। आज शहरों के इर्द गिर्द पेड पौधों पर लटकी पालीथिन की थैलियों को देखकर लगता है मानो हरे भरे झाडों नहीं वरन पालीथिन के जंगल लगे हों। सरकार कई मर्तबा चेतावनी भी जारी कर चुकी है कि पालीथिन का उपयोग मानव के लिए घातक है, पर किसी के कानों में जूं नहीं रेंगती।


अभी ज्यादा समय नहीं बीत जबकि लोग कपड़े के थैले लेकर बाजार जाया करते थे, आज लोग खाली हाथ जाते हैं, और बाजार से इस विनाशकारी पालीथिन में सामान लेकर हाथ झुलाते लौट आते हैं। उपयोग के उपरांत पालीथिन को फेंक दिया जाता है, जिसे मवेशी खा जाते हैं, जिससे उनकी सेहत पर भी प्रतिकूल प्रभाव पडता है।


देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में सरकार ने पालीथिन के उपयोग पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है, बावजूद इसके दिल्ली मेें पालीथिन का उपयोग धडल्ले से किया जा रहा है। यहां तक कि लोगों को चाय तक पालीथिन में ही पार्सल होकर मिल रही है।


पश्चिमी देशों की चकाचौंध ने हमें आकषिZत कर रखा है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। वस्तुत: हम इस चकाचौंध की जद में आकर पश्चिमी देशों के कचरे को अपना रहे हैं। अमेरिका और यूके से आने वाले उपयोग किए हुए इलेक्ट्रानिक समान, चीन के सस्ते उपकरण आदि हमारे यहां कुछ दिन तो बेहतर काम करते है, फिर ये कचरे के ढेर में तब्दील हो जाते हैं, इन कचरों को ठिकाने लगाने की उचित व्यवस्था हमारे पास नहीं है। ये इलेक्ट्रानिक कचरे देश में पर्यावरण असंतुलन बनाने के मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।


पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में आरंभ की गई स्विर्णम चतुभुZज और उत्तर दक्षिण तथा पूर्व पश्चिम कारीडोर सकड परियोजना के चलते न जाने कितने झाड काट दिए गए। इसके बदले ठेकेदारों ने कितने झाड लगाए हैं, इसका हिसाब किताब किसी के पास नहंी है। देश में पर्यावरण असंतुलन का एक बडा कारण यह भी है।


हम जयराम रमेश की इस बात का समर्थन करते हैं कि कानून या मानक बनाना आसान है, पर उसका पालन कराना दुष्कर। हमारा कहना महज इतना ही है कि सरकर ही जब इस तरह से काम आरंभ करने के पहले हाथियार डालने की मुद्रा में आ जाएगी तो हो चुका कानूनों का पालन।

महज दिखावे या आत्म संतोष के लिए कानून बनाने का क्या फायदा। सरकार को चाहिए कि इस तरह की कार्ययोजना बनाए जिसमें कानूनों का पालन सुनिश्चित किया जा सके। और इसके लिए सरकार को सबसे पहले अपने घर से ही शुरूआत करनी होगी।