शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

मिनी आम चुनावों की चिंता में दुबली होती कांग्रेस


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 30

मिनी आम चुनावों की चिंता में दुबली होती कांग्रेस

घाटे से उबरना है सबसे बड़ी समस्या

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को कांग्रेस मिनी आम चुनाव से कम नहीं आंक रही है। घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक की अघोषित उपाधि पा चुके वजीरे आजम डॉक्टर मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस अपने आप को असहज महसूस कर रही है। कांग्रेस को चिंता है कि अगर मनमोहन मिनी आम चुनाव तक रहे तो उसका बंटाधार तय है।

कांग्रेस के सत्ता और शीर्ष केंद्र 10, जनपथ (श्रीमति सोनिया का सरकारी आवास) के सूत्रों का दावा है कि कांग्रेस के रणनीतिकार लंबे समय से इसी जुगत में हैं कि मनमोहन से मुक्ति कैसे पाई जाए। इसके लिए वे हर संभव दृष्टिकोण को खंगाल रहे हैं। फिर समस्या यह भी है कि हालात इतने बदतर हैं कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री अभी तत्काल नहीं बनाया जा सकता है। इसलिए मनमोहन का विकल्प कौन होगा।

कांग्रेस के सामने एक और समस्या बहुत बड़ी यह उभरकर सामने आ रही है कि घाटे से कैसे उबरा जाए। संप्रग सरकार के कार्यकाल में फिजूल खर्ची, घपले घोटाले और भ्रष्टाचार से सरकारी खजाना रिक्त हो गया है। सरकार की आर्थिक नीतियों का खामियाजा देश को भुगतना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री पद पर नजर गड़ाए वित्त मंत्री भी अपने मंत्रालय पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रहे हैं, इसलिए उनका मंत्रालय भी अफसरों की मनमर्जी पर ही सांसें ले रहा है।

(क्रमशः जारी)

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