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सिवनी में लगेगा प्रदेश का पहला परमाणु बिजली घर
कैसे होगा परमाणु कचरे का निष्पादन?
शिव की प्रयोगशाला बना सिवनी जिला
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा सरकार द्वारा विकास के नाम पर विनाश को न्योता दिया जा रहा है। बिना दूरगामी प्रभावों का अध्ययन किए हुए शिवराज सरकार ने भगवान शिव के सिवनी जिले को प्रयोगशाला बना लिया है। मध्य प्रदेश की जीवन रेखा पुण्य सलिला नर्मदा नदी को जहरीला करने के साथ ही साथ सिवनी जिले में प्रदेश के पहले परमाणु बिजली घर का काम गुपचुप तरीके से अस्तित्व मेें है।
इन सब के बावजुद अमरकंटक से समुद्र में मिलने तक नर्मदा के तट के निकट करीब 18 थर्मल पावर प्लांट लगाने की तैयारी है। जबलपुर से होशंगाबाद तक पांच पावर प्लांट को सरकारों ने मंजूरी दे दी है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सूत्रों के अनुसार इनमें सिवनी जिले के चुटका गांव में बनने वाला प्रदेश का पहला परमाणु बिजली घर भी शामिल है। यह बरगी बांध के कैचमेंट एरिया में है। परमाणु ऊर्जा का मुख्य केंद्र रहा अमेरिका अब परमाणु कचरे का निष्पादन नहीं कर पा रहा है।
इसके बावजूद भारत में इन परियोजनाओं से निकलने वाले परमाणु कचरे की निष्पादन की बात सरकारें नहीं कर रही हैं। इन परियोजनाओं के लिए नर्मदा का पानी देने का करार हुआ है। नरसिंहपुर के पास लगने वाले पावर प्लांट की जद में आने वाली जमीन एशिया की सर्वाेत्तम दलहन उत्पादक है। कोल पावर प्लांट के दुष्परिणामों का अंदाजा सारणी के आसपास जंगल और तवा नदी के नष्ट होने से लगाया जा सकता है।
सूत्रों ने आगे बताया कि दो हजार हैक्टेयर में बनने वाले चुटका परमाणु पावर प्लांट की जद में 36 गांव आएंगे। इनमें से फिलहाल चुटका, कुंडा, भालीबाड़ा, पाठा और टाडीघाट गांव को हटाने की तैयारी है। निर्माण एजेंसी न्यूक्लियर पावर कारपोरेशन और स्थानीय प्रशासन इस बाबत नोटिस दे चुका है। 1400 मेगावाट क्षमता के दो रिएक्टर वाले इस प्लांट में 100 क्यूसेक पानी लगेगा। एक अनुमान के मुताबिक चुटका परमाणु पावर प्लांट में जितना पानी लगेगा, उससे हजारों हैक्टेयर खेती की सिंचाई की जा सकती है। परमाणु बिजली के संयंत्र के ईंधन के रूप में यूरेनियम का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी रेडियोधर्मिता के दुष्परिणाम जन, जानवर, जल, जंगल और जमीन को स्थायी रूप से भुगतने पड़ते हैं। इसका अंदाजा रावतभाटा परमाणु संयंत्र की अध्ययन रिपोर्ट से लगाया जा सकता है।
जानकारों के मुताबिक परमाणु कचरे की उम्र 2.5 लाख वर्ष है। इसे नष्ट करने के लिए जमीन में गाड़ दिया जाए तो भी यह 600 वर्ष तक बना रहता है। इस दौरान भूजल प्रदूषित करता है। चुटका में प्लांट बनने से नर्मदा व सहायक नदियों के प्रदूषित होने की आशंका है। इतना ही नहीं, भूकंप की आशंका भी बढ़ जाती है। वहीं, चुटका में निर्माण एजेंसी अपनी आवासीय कॉलोनी प्लांट से करीब 14 किलोमीटर दूर बना रही है। प्लांट के लिए भूमि सर्वे और भूअर्जन की कोशिश जारी है, लेकिन आदिवासी और मछुआरे हटने को तैयार नहीं हैं। दरअसल ये सभी बरगी से विस्थापित हैं। हालांकि कंपनी के इंजीनियर करीब 40 फीट गहरा होल करके यहां की मिट्टी और पत्थरों का अध्ययन कर चुके हैं।
(क्रमशः जारी)
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