शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

गड़करी के लिए खतरे की घंटी है मोदी का अभ्युदय


गड़करी के लिए खतरे की घंटी है मोदी का अभ्युदय

सेकंड टर्म दिख रहा मुश्किल में गड़करी का


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी में सियासत की धुरी इन दिनों राजग के पीएम इन वेटिंग से हटे एल.के.आड़वाणी, भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी और सर्वशक्तिशाली होकर उभरे नरेंद्र मोदी के इर्दगिर्द ही घूम रही है। तीनों के बीच आपसी मतभेद और मनभेद होने के बाद भी सियासी फिजां में कुछ अस्पष्ट तस्वीरें उभरने लगी हैं, जिनके आधार पर कहा जाने लगा है कि गड़करी को पार्श्व में ढकेलने के लिए मोदी और आड़वाणी कभी भी हाथ मिला सकते हैं।

झंडेवालान स्थित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्यालय ‘केशव कुंज‘ के सूत्रों का कहना है कि संघ नेतृत्व ने नरेंद्र मोदी से अपना पुराना वेमनस्य भुला दिया और संघ के इशारे पर ही एल.के.आड़वाणी ने भी मोदी को आगे करना आरंभ कर दिया है। उधर आड़वाणी ने सदा से ही यही चाहा है कि गड़करी किसी भी कीमत पर दूसरी बार भाजपाध्यक्ष न बन पाएं। गड़करी हैं कि अपने सधे कदमों से भाजपा के अंदर अपनी पैठ बनाते जा रहे हैं। पुराने भूले बिसरे गीत (भाजपा छोड़कर गए नेताओं) बजाकर नेताओं की घर वापसी से गड़करी ने कुछ नेताओं को नाराज अवश्य किया किन्तु इससे गड़करी ने पार्टी को मजबूती प्रदान की है।

अड़वाणी जुंडाली इन दिनों गड़करी के खिलाफ ताना बाना बुनने में लग चुकी है। सूत्रों का कहना है कि संघ के संकेतों को भांपकर अब अड़वाणी की मित्र मण्डली भी इस बात को जोर शोर से प्रचारित करवा रहा है कि मोदी ही भाजपा के अगले निजाम होंगे। मोदी और आड़वाणी की युती अगर बन गई तो निश्चित तौर पर यह नितिन गड़करी के लिए खतरे की ही घंटी साबित होगी।

नरेंद्र मोदी ने अब अपनी चाल चलते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को कब्जे में करना आरंभ कर दिया है। मोदी के करीबी सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश के चुनावों को देखते हुए मोदी ने पार्टी आलाकमान से पूछा है कि वहां के लिए कितनी रसद (पैसा और मसल पावर) चाहिए। उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन खराब भी रहा तो यह गड़करी के खाते में जाएगा और अगर प्रदर्शन अच्छा रहा तो मैन और मसल पावर का हवाला देकर मोदी गेंद अपने पाले में ले आएंगे।

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