0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 28
कितने मेगावाट की इकाई लगा रहा है झाबुआ पावर!
विज्ञापन में 660 तो कागजों पर 600 मेगावाट का है जिकर
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। देश के मशहूर औद्योगिक घराने आवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा केंद्र सरकार की छटवीं अनुसूची में शमिल आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील के ग्राम बरेला में स्थापित किए जाने वाले पावर प्लांट के बारे में धीरे धीरे रहस्यों पर से पर्दा उठता जा रहा है। आवंथा समूह के मालिक गौतम थापर और मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के बीच की जुगलबंदी भी सामने आती जा रही है।
सिवनी जिले की घंसौर तहसील में 22 अगस्त 2009 और 22 नवंबर 2011 को आहूत लोकसुनवाई में मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के कोल आधारित पावर प्लांट का कार्यकारी सारांश देखने पर यह बात उभरकर सामने आती है कि 18 हजार 400 करोड़ रूपयों की मिल्कियत के स्वामी गौतम थापर के स्वामित्व वाले आवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा केंद्र सरकार की छटवीं अनुसूची में शामिल आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील में दो चरणों में छः छः सौ मेगवाट के कोल आधारित पावर प्लांट की स्थापना की जा रही है।
जब इसके संबंध में मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के क्षेत्रीय कार्यालय जबलपुर द्वारा सीधे सीधे चुनिंदा समाचार पत्रों को विज्ञापन जारी किया जाता है तो यह बात उभरकर सामने आती है कि जनसुनवाई छः सौ मेगावाट के बजाए 660 मेगावाट की है। कंपनी 600 मेगावाट के पावर प्लांट डालने का दावा करती है तो लोकसुनवाई 660 मेगावाट की होती है। लोकसुनवाई स्थल पर भी जिस डायस पर मण्डल के अफसरान के साथ जिला प्रशासन के प्रतिनिधि बैठे थे उसके पीछे के बोर्ड पर भी 660 मेगावाट का ही उल्लेख किया गया था। यक्ष प्रश्न यह है कि आखिर प्रदूषण नियंत्रण मण्डल जबलपुर द्वारा इस अतिरिक्त 60 मेगावाट का उल्लेख करने का क्या ओचित्य है। यह साठ मेगावाट का लाभ वह आखिर गौतम थापर को पहुंचाने पर आमदा क्यों है? क्या एमओयू 600 मेगावाट का हुआ है और कर बचाने के लिए 660 मेगावाट की जनसुनवाई करवा दी गई है!
वैसे देखा जाए तो मण्डल को यह विज्ञापन अपने चुनिंदा समाचार पत्रों को सीधे जारी करने के बजाए मध्य प्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग अथवा केंद्र सरकार के विज्ञापन दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) के माध्यम से जारी किया जाना चाहिए था। चूंकि यह विज्ञापन सीधे ही चुनिंदा समाचार पत्र (इनमें संयंत्र की स्थापना वाले सिवनी जिले का एक भी समाचार पत्र शामिल नहीं है, जबकि सिवनी से प्रकाशित होने वाले अनेक समाचार पत्र मध्य प्रदेश के जनसंपर्क संचालनालय और डीएवीपी के विज्ञापन पेनल में हैं) में जारी करने के पीछे षणयंत्र की ही बू आ रही है।
मण्डल के जबलपुर कार्यालय द्वारा 660 मेगावाट के लिए केंद्र सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय नई दिल्ली द्वारा परियोजना को जारी टी.टो.आर. पत्र दिनांक 8 दिसंबर 2010 एवं 6 सितम्बर 2011 में लोक सुनवाई के निर्देश का हवाला दिया गया है। इस विज्ञापन में साफ उल्लेख है कि इसे बोर्ड की आधिकारिक वेबसाईट डब्लूडब्लूडब्लू डॉट एमपीपीसीबी डॉट एनआईसी डॉट इन पर भी देखा जा सकता है।
मजे की बात यह है कि पूर्व में 22 अगस्त 2009 की जनसुनवाई के बारेे में शोर शराबा होने पर मण्डल ने इसे पांच दिन पूर्व 17 अगस्त को अपलोड किया था, वहीं दूसरी ओर 22 नवंबर 2011 की जनसुनवाई के बारे में मण्डल ने इसकी जनसुनवाई की तारीख भी एक दिन के उपरांत 23 नवंबर को अपलोड किया। इस तरह यह साफ जाहिर हो रहा है कि मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल निहित स्वार्थों के चलते गौतम थापर की देहरी पर जाकर मुजरा कर रहा है।
(क्रमशः जारी)
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