कड़कड़ाती ठंड में नौनिहाल व पालक हो रहे परेशान
शैक्षणिक संस्थाओं व प्रशासन का ध्यान आपेक्षित
सुबह होने वाली विद्युत कटौती भी बनी व्यवधान
(संतोष श्रीवास)
सिवनी (साई)। ठंड इन दिनों अपने पूरे यौवन पर है और न केवल बच्चों बल्कि नौजवानों और बुजुर्गों तक को हिलाकर रखे हुए है। लोग दिन के समय भी ठंड की मार से बचने के लिए अपने आपको गर्म कपड़ों में ढांके हुए हैं और दिन के समय सूर्य की तपन का सहारा लेने तथा सूर्य के ढलते ही घरों में अंगीठी जलाकर या फिर चौक-चौराहों में अलाव जैसी स्थिति बनाकर आग की तपन से ठंड का छुटकारा पाने की जुगत भिड़ाये हुए हैं।
उल्लेखनीय होगा कि विशेषकर सिवनी जिले में दिसम्बर और जनवरी माह कड़ाके की ठंड के होते हैं और इस दौरान न केवल लोगों को ठिठुराने और दांत कटकटाने वाली ठंड की अनुभूति होती है बल्कि कई बार तेज हवा, वर्षा और ओलावृष्टि के कारण घर से बाहर निकलने की स्थिति भी नहीं रहने देती। पिछले 03-04 दिनों में इस तरह का मौसम बना लेकिन वह ज्यादा गंभीर नहीं हो सका। उसके बाद जैसे ही मौसम खुला तो कड़ाके की ठंड ने अपना असर दिखा ही दिया।
इस मौसम के चलते जहॉं लोग विशेषकर सुबह के समय अपना बिस्तर छोड़ना भी उस समय तक पसंद नहीं करते जब तक कि सूर्य नारायण अपने पूरे तेज के साथ दिखाई न दे दें। इसके बाद भी सिवनी नगर में विपरीत मौसम के चलते अनेक शिक्षण संस्थाओं में विशेषकर 05 से 10 वर्ष तक के विद्यार्थियों की कक्षाओं को प्रातःकाल की पारी में लगाये जाने का सिलसिला जारी है जो न केवल उन नन्हे शिशुओं जो नर्सरी से लेकर कक्षा 05वीं तक विभिन्न शासकीय और अशासकीय शालाओं में अध्ययनरत हैं उन छात्र-छात्राओं की कक्षायें सुबह की पाली में लगायी जा रही हैं जो उनके साथ घोर अन्याय है। वैसे भी जन्म से लेकर 07 वर्ष की आयु तक बालक-बालिकाओं के लिए शैशवकाल और फिर 09 से 12 की आयु बाल्यकाल मानी जाती है। इस आयु में बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा तो मिलना आवश्यक होता ही है किंतु न केवल माता-पिता बल्कि उन्हें शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाओं की भी यह नैतिक जिम्मेदारी हो जाती है कि वे उन्हें मौसम के अनुरूप शिक्षण देने की व्यवस्था सुनिश्चित करें।
आज देखने में यह आ रहा है कि चाहे वे शासकीय अथवा अशासकीय या पूरी तरह निजी शैक्षणिक संस्थायें हों कम से कम 10 वर्ष की आयु तक के बच्चों को जो शैक्षणिक व्यवस्था उपलब्ध करायी जा रही है वह प्रातःकाल ही होती है जिसके लिए न केवल बच्चों को तड़के सबेरे बल्कि उनके माता-पिता को भी उठना पड़ता है। इस कड़ाके की ठंड में जबकि सुबह 06 बजे से विद्युत कटौती प्रारंभ हो जाती है उसके चलते बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना एक जटिल समस्या बनी हुई है। न तो विद्युत कटौती और न ही ठंड को रोका जा सकता है ऐसी स्थिति में अभिभावकगण किस परिस्थिति में अपने बच्चों को स्कूल भेजने की तैयारी करते होंगे इसका अनुभव वीआईपी वर्ग को छोड़ केवल आम आदमी ही समझ सकता है।
चूंकि इन दिनों शीत घ्तु अपने पूरे यौवन और शबाब पर है तो शासन-प्रशासन और विशेषकर शैक्षणिक संस्थाओं के प्रमुखों की यह नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है कि वे मौसम की गंभीरता को ध्यान में रखते कम से कम नर्सरी से प्राथमिक स्तर की कक्षाओं तक के समयचक्र में परिवर्तन करायें और आवश्यकता पड़ने पर इस कड़ाके की ठंड भरे मौसम में उन्हें या तो अवकाश प्रदान करें या फिर उनकी कक्षाओं के समय में कुछ ऐसा परिवर्तन करें जिससे वे बच्चे ठंड की मार से बचकर अध्यापन में अपनी रूचि ले सकें और अभिभावक भी निश्ंिचतता का अनुभव कर सकें।
उल्लेखनीय होगा कि नगर में शासकीय शालाओं के अलावा नर्सरी से लेकर प्राथमिक, माध्यमिक और हाई व हायर सेकेंड्री तक की शैक्षणिक व्यवस्थायें निजी शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा संचालित की जा रही हैं और ऐसी संस्थायें अपने विद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों के लिए स्वंय की या फिर विद्यार्थियों के अभिभावकों द्वारा विशेष वाहनों की व्यवस्था स्कूल जाने और घर वापस आने के लिए की जाती है। विशेषकर प्रायवेट स्कूलों में जो विद्यार्थी अध्ययनरत हैं उनके घरों की विद्यालय से दूरी इतनी अधिक होती है कि ले जाने वाला वाहन कई बार उनके घर विद्यालय लगने के 30 से 45 मिनट पूर्व पहुँच जाता है। मतलब यह कि यदि शाला लगने का समय प्रातः 08 बजे है तो किसी विद्यार्थी के घर में वाहन 07 से 07ः15 के बीच ही पहुँच जाता है और वाहन में बैठने के लिए विद्यार्थी और उसके अभिभावक को इस समय के 01 घंटे पूर्व उठना इसलिए आवश्यक हो जाता है क्योंकि उस दौरान उसे मुंह धोने, चाय पीने और साथ में बच्चों के टिफिन ले जाने और स्कूल वाहन तक छोड़ने की भी व्यवस्था करनी होती है। इस पर भी कई बार यदि बच्चे का मूड बिगड़ जाने या फिर विद्युत अवरोध के कारण व्यवस्था करने में व्यवधान उत्पन्न होने पर चूक हो गयी तो स्कूल वाहन आगे बढ़ जाता है।
मौसम की इस स्थिति को देखते हुए न केवल प्रशासन बल्कि शैक्षणिक संस्थाओं से भी यह अपेक्षा की जाती है कि वे विशेषकर नर्सरी से प्राथमिक कक्षाओं में अध्ययनरत बच्चों को या तो इस कड़कड़ाती ठंड में शाला से अवकाश प्रदान करें या फिर उनकी कक्षायें प्रातः के स्थान पर मध्यान्ह समय में लगाये जाने की व्यवस्था सुनिश्चित करें।
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