कार्पोरेट कल्चर में ढलती भाजपा!
राज्य सभा के लिए कार्पोरेट लाबी के सामने नतमस्तक है
भाजपा नेतृत्व
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। ‘‘चाल, चरित्र और चेहरे‘‘ के लिए अलग पहचान रखने वाली भारतीय जनता पार्टी अब कार्पोरेट लाबी के सामने घुटनों पर खड़ी दिख रही है। बड़े औद्योगिक घरानों के इशारों पर कत्थक करती दिखती भाजपा में कार्पोरेट कल्चर तेजी से हावी होता दिख रहा है। नैतिकता को बलाए ताक पर रखकर कांग्रेस की ही तर्ज पर अब भाजपा में भी पूंजी पतियों की तूती बोलती दिख रही है।
चुनाव लड़ने से डरे हुए योद्धाओं द्वारा पिछले दरवाजे यानी राज्य सभा से संसदीय सौंध तक पहुंचने की होड़ मची हुई थी। अगर सरकार गिरे और आम चुनाव हों तब भी राज्य सभा के सदस्य का कार्यकाल तो पूरे छः साल का ही रहता है। यही कारण है कि अनेक नेताओं ने बिना नींव और जमीन के अधपर में ही अपने महल खड़े कर लिए हैं। अनेक नेता तो राजनैतिक दलों की प्रदेश इकाईयों के अध्यक्ष भी हैं। देश के महामहिम प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह एक भी चुनाव नहीं जीते हैं और आठ सालों से देश के प्रधानमंत्री बने बैठे हैं।
बहरहाल, हेमा मालिनी, महेश शर्म, किरीट सौमेया, राजेश शाह, अजय संचेती, विनय सहत्रबुद्धे, श्याम बाजू, फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रहलाद पटेल, अनुसुईया उईके, कप्तान सिंह सोलंकी, विक्रम वर्मा, एस.एस.अहलूवालिया, नारायण सिंह केसनी, मेघराज जैन जैसे नेताओं की लंबी फौज बरास्ता राज्यसभा संसद में जाने के लिए कतारबद्ध थी। अहलूवालिया का शनि भारी हो गया और उनके स्थान पर अरूण जेतली ने अपने विश्वस्त संघ पृष्ठभूमि वाले वकील भूपेंद्र यादव को लाकर खड़ा कर दिया।
भाजपा छोड़कर उमा भारती के साथ भाजश का दामन थामने वाले प्रहलाद सिंह पटेल की घर वापसी तो हो गई है पर उनसे खफा नेताओं ने पटेल की जड़ों में मट्ठा डालना नहीं छोड़ा। यही कारण है कि भाजपा के असंगठित मजदूर मोर्चे का अध्यक्ष बनने के बाद भी प्रहलाद पटेल उतने ताकतवर होकर नहीं उभर सके हैं जितने वे पहले थे। पटेल के समर्थकों में भी निराशा ही है। माना जा रहा था कि इस बार मध्य प्रदेश से पटेल को राज्य सभा में भेज दिया जाएगा, किन्तु पार्टी अध्यक्ष नितिन गड़करी के सामने यह समस्या थी कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के डंपर कांड के जनक और कोई नहीं प्रहलाद पटेल ही थे।
उधर, कुबेर पुत्र मुकेश अंबानी ने अपने साथी वीरेन शाह के पुत्र राजेश शाह को महाराष्ट्र से राज्य सभा में भेजने के लिए एडी चोटी एक कर दी। एल.के.आड़वाणी के करीबी सूत्रों का दावा है कि मुकेश ने शाह के लिए आड़वाणी की जमकर चिरौरी की, किन्तु आड़वाणी राज्य सभा उम्मीदवारों के चयन की बैठक में इस बात को वजनदारी से नहीं उठा पाए।
शाह के स्थान पर गड़करी ने अपने विश्वस्त अजय संचेती को लाने में कामयाबी हासिल कर ली। गड़करी के करीबी सूत्रों का कहना है कि संचेती देश भर में अनेक पावर प्रोजेक्ट लगा रहे हैं। अनेक पावर प्लांट में उनकी भागीदारी भी बताई जाती है। छत्तीसगढ़ के निजाम रमन सिंह से संचेती की गलबहियां किसी से छिपी नहीं हैं। किरीट सौमेया के नाम पर बाबूसिंह कुशवाहा ने फच्चर फंसा दिया।
कुबेर पुत्रों और उद्योगपतियों के प्रति भाजपा का प्रेम देखते ही बन रहा है। झारखण्ड में नितिन गड़करी की पहली पसंद बनकर उभरे अशुंमान मिश्र ने सियासी भूचाल ला दिया है। भापजा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने पार्टी छोड़ने तक की धमकी दे डाली है। कहा जाने लगा है कि भाजपा में अब प्रजातंत्र के बजाए कांग्रेस के मानिंद ही हिटलरशाही व्याप्त हो चुकी है।
अशुंमान पर आरोप है कि गड़करी के समीप्य का लाभ उठाकर उन्होंने अपने भाई राजीव को रामपुर कारखाना सीट की टिकिट दिलवा दी थी। यह बात अलहदा है कि राजीव चौथी पायदान पर रहे। पैसों के बाजीगर अशुंमान के बारे में कहा जाता है कि वे कल्याण सिंह के काफी करीब रहे हैं। अंशुमान दरअसल गडकरी का पसंदीदा इसलिए भी है क्योकि उसने लंदन समेत तमाम अन्य देशों में गडकरी का निवेश और व्यापारिक संबंधों का प्रबंधन किया है।
संघ मुख्यालय झंडेवालान स्थित केशव कुंज के सूत्रों का कहना है कि अशुंमान की दावेदारी से संघ के आला नेता भी गड़करी से खफा नजर आ रहे हैं। अशंुमान को लेकर संघ में दो फाड़ हो चुका है। संघ के दबाव में अंशुमान का समर्थन करने वाले गडकरी ने देश और भाजपा के कार्यकर्ताओं को यह नहीं बताया कि दरअसल अंशुमान मिश्रा विश्व भर में कट्टर इस्लामिक शिक्षण संस्थाओं को फंडिंग करने वाली अबू धबी की प्रिंस अल्वालीद फाउंडेशन का कर्ताधर्ता और सहयोगी भी है।
कहा जाता है कि अशुंमान मन राखनलाल हैं अर्थात उनकी कांग्रेस में गहरी पकड़ है। अंशुमान का इकबाल कांग्रेस में जमकर बुलंद है। पूर्व कानून मंत्री और राज्यपाल हंसराज भरद्वाज का करीबी होने का ही फायदा है कि टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले के आरोपी शाहिद बल्वा का करीबी होने के बावजूद इसे सीबीआई ने जांच के दायरे में नही लिया। यही नहीं, अंशुमान मिश्रा प्रफुल्ल पटेल के साथ मिलकर विदेशों में तमाम निवेशों में शामिल है।
भाजपा में कौन राज्य सभा के रास्ते जाएगा इसके लिए नेताओं के अलावा धनपति कुमार मंगलम बिड़ला, मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी, एस्सार समूह के रईया बंधु, सहारा समूह आदि खासी दिलचस्पी दिखाते हैं। मतलब साफ है कि इनके व्यवसायिक हित इन राज्य सभा सदस्यों के माध्यम से सध जाते हैं। चाल चरित्र और चेहरे के लिए जानी जाने वाली भाजपा का यह कार्पोरेट चेहरा देश के लिए खतरनाक संकेत से कम नहीं है।
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