शनिवार, 25 अगस्त 2012

शीरीं फरहाद की तो निकल पड़ी

फिल्म समीक्षा

(दीपक अग्रवाल)

शीरीं फरहाद की तो निकल पड़ी


कलाकार: बोमन ईरानी, फराह खान, कविन दवे, शम्मी, डेजी ईरानी
निर्माता: संजय लीला भंसाली, सुनील लुल्ला
निर्देशक: बेला सहगल
इस फिल्म की लीड जोड़ी चालीस प्लस है। ऐसे में इन दिनों बॉक्स ऑफिस पर फिल्मों को हिट-फ्लाप करने में अहम यंगस्टर्स की कसौटी पर फिल्म कितनी खरी उतरती है, इसका पता अगले दो-तीन दिनों में लग जाएगा। फिल्म की बॉक्स ऑफिस पर सबसे बड़ी चुनौती टीनेजर्स को थिएटर तक खींचने की रहेगी। बेशक, बोमन उन चंद ऐसे बेहतरीन कलाकारों में से हैं, जो नई फिल्म उस वक्त तक साइन नहीं करते, जब तक किरदार में खुद को पूरी तरह से फिट नहीं पाते। अगर किरदार फरहाद की बात की जाए तो बोमन ही सौ फीसदी फिट बैठते हैं। शायद यही वजह रही फिल्म की डायरेक्टर बेला सहगल ने स्क्रिप्ट पूरी करते सबसे पहले बोमन को साइन किया। इन दिनों जब लीक से हटकर बनी फिल्मों को मल्टिप्लेक्सों और बड़े शहरों के चुनिंदा सिंगल स्क्रीन थिएटरों में अच्छी ओपनिंग मिल रह है तो ग्लैमर इंडस्ट्री के मेकर्स भी सीमित बजट में अपनी पसंदीदा स्टार कास्ट को लेकर ऐसे प्रयोग करते नहीं हिचकिचाते है। बेला ने बॉक्स ऑफिस का मोह छोड़ एक्स्पेरिमेंट किया और फराह को कैमरे के पीछे से निकालकर फ्रंट में लाने का जोखिम उठाया। चर्चा है, बोमन ने इस रोल के लिए आसानी से हां कर दी, लेकिन फराह से हां कराने में बेला को उनके घर के कई चक्कर लगाने पडे़। दरअसल तीन बच्चों की ममी फराह खुद को इस किरदार में फिट महसूस नहीं कर पा रही थीं। खैर, कुछ मुश्किलों के बाद बेला को अपनी पसंदीदा कास्ट मिली तो उन्होंने तीन शेडयूल में फिल्म पूरी की। लीड जोड़ी के मामले में बेशक बेला ने रिस्क लिया, लेकिन पारसी फैमिली की पृष्ठभूमि में बनी इस फिल्म के लिए इससे बेहतर कोई कास्ट नहीं हो सकती थी।

कहानी: पैंतालीस साल के हो चुके फरहाद (बोमन ईरानी) का ज्यादा वक्त बिकीनी बीच गुजरता है। दरअसल, फरहाद एक बिकीनी शॉप में सेल्समैन है। फरहाद आने काम में इतना परफेक्ट है कि शॉप में एंट्री करने वाली हर महिला का साइज जान जाता है। दिन भर महिलाओं में घिरा रहने वाला फरहाद इस उम्र में भी कुंआरा है। फरहाद की बूढ़ी दादी (शम्मी) और मां नरगिस (डेजी ईरानी) को भी अब फरहाद की शादी के आसार नजर नहीं आते। दूसरी और फरहाद ने हिम्मत नहीं हारी। फरहाद को लगता है कि उसके सपनों की रानी एक दिन उसके दिल में दस्तक देगी। अचानक एक दिन उसकी वीरान जिंदगी में शिरीं फुग्गावाला (फराह खान) आती है। मुंहफट और तेज-तर्रार शिरीं को पहली नजर देखते ही फरहाद को उससे इकतरफा प्यार हो जाता है। इसके बाद फरहाद शिरीं को अपना बनाने के मिशन में लग जाता है। फरहाद जब शिरीं का दिल जीतने के इस मिशन की आखिरी मंजिल पर पहुंचने वाला होता है, तभी उसकी मां नरगिस बीच में आ जाती है। नरगिस को लगता है कि शिरीं अगर फरहाद की जिंदगी में आई तो उसकी मुश्किलें बढ़ जाएंगी और वह शीरीं को अपना दुश्मन मानने लगती है।

ऐक्टिंग: इंडस्ट्री के लेजंड बोमन ईरानी, डेजी ईरानी और शम्मी इस फिल्म में हैं। हर किसी ने अपने किरदार को जीवंत कर दिखाया है। कैमरे के पीछे से निकल ऐक्टिंग में आई फराह खान शिरीं के रोल में पूरी तरह से फिट है। छोटी सी भूमिका में कविन दवे निराश नहीं करते।

निर्देशन: बतौर डायरेक्टर बेला सहगल को अपनी पहली फिल्म में इंडस्ट्री के बेहतरीन अनुभवी कलाकार मिले। इससे बेला का काम काफी हद तक आसान हो गया। मजेदार शुरुआत के बाद फिल्म के क्लाइमेक्स में बेला कुछ नया करने की बजाय उसी ट्रैक पर आती है, जिसका अंदाजा दर्शकों ने बहुत पहले से लगा रखा था।

गीत संगीत: इस कहानी में गानों की ज्यादा गुंजाइश नहीं थी। ऐसे में जीतू गांगुली ने फिल्म में कहानी की पृष्ठभूमि पर फिट म्यूजिक जरूर दिया, लेकिन फिल्म में ऐसा कोई गाना नहीं जो थिएटर से निकलने के बाद आपको याद रह सके।

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