‘जय हिन्द‘ का स्थान लिया ‘ठीक है‘ ने
(लिमटी खरे)
भारत गणराज्य के
वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह को कथित तौर पर महान अर्थशास्त्री माना जाता है पर देखा
जाए तो वे एक परिपक्तव राजनेता हैं। मनमोहन सिंह ने जिस तरह मौनी बाबा के रूप में
आठ साल पूरे कर लिए हैं उससे लगने लगा है कि उनका ब्रम्ह वाक्य मौन से बड़ा कोई
दूसरा मित्र और अस्त्र नहीं है, हो गया है। देश में भ्रष्टाचार, अनाचार, घपले घोटालों पर
मनमोहन सिंह का मौन सर्व विदित है। दिल्ली में हुए बलात्कार पर मनमोहन सिंह ने
मुंह खोला तो राष्ट्र के नाम उनके संदेश में उनकी धूर्तता इस बात से साफ हो गई कि
संदेश के अंत में वे बोले - ‘‘ठीक है।‘‘ और चालाक चतुर
सूचना प्रसारण मंत्री के कारिंदों ने इसे जस का तस प्रसारित करवा दिया। सूचना
प्रसारण मंत्रालय का अनुभाग ‘‘आकाशवाणी‘‘ या ‘दूरदर्शन‘ कभी संसदीय कार्य
मत्री कमल नाथ को वाणिज्य उद्योग मंत्री बताता है तो कभी प्रधानमंत्री के देश के
नाम संबोधन में पार्श्व में मोबाईल की धुन सुनाता है। महात्मा गांधी के देश में
सोनिया गांधी के राज में पुलिस के डंडे की हुकूमत से देश में रोष और असंतोष के साथ
ही साथ भय का वातावरण निर्मित हो चुका है।
सालों पुराना एक
किस्सा याद आया है। बात 1987 की है, उस वक्त हम देश के हृदय प्रदेश की राजधानी
भोपाल में एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र के उप संपादक हुआ करते थे। उस वक्त मालिक
महोदय के एक मित्र आए और अपने मकान या दुकान बेचने का एक विज्ञापन प्रकाशित करने
को दिया। मालिक ने उस विज्ञापन के नीचे निशुल्क लिखकर विज्ञापन विभाग को दे दिया।
विज्ञापन विभाग ने उसे कंपोजिंग के लिए भिजवा दिया। कंपोजिंग के बाद पू्रफ रीडिंग
के दौरान प्रूफ रीडर की हिम्मत नहीं हुई कि मालिक के लिखे निशुल्क को काट सके। अंत
में विज्ञापन प्रकाशित हुआ और दूसरे ही दिन मालिक के मित्र आए और विज्ञापन विभाग
के पास जाकर उन्होंने विज्ञापन के पैसे देने चाहे! मामला मालिक जी के पास तक
पहुंचा, मालिक को
पता नहीं था कि माजरा क्या है? उन्होंने अखबार बुलवाया और विज्ञापन के नीचे
‘निशुल्क‘ देखकर अपना माथा
पकड़ लिया।
कमोबेश यही स्थिति
दिल्ली में सामूहिक बलात्कार के बाद उपजी परिस्थितियों में मजबूरन डॉ.मनमोहन सिंह
को देश को संबोधति करने के दौरान उतपन्न हुईं। मनमोहन सिंह ने देश को अपना सादगी
भरा चेहरा दिखाते हुए संबोधित किया, किन्तु जब उनका संबोधन समाप्त हुआ तब मनमोहन
सिंह ने कहा -‘‘ठीक है।‘‘ अर्थात हो गई
तुम्हारे मन की, झुका लिया
मुझे। चलो अब बाद में देखते हैं।
प्रधानमंत्री देश
का सबसे ताकतवर संवैधानिक पद है। इस पद पर बैठे व्यक्ति के द्वारा देश को संबोधित
किया जाता है और उस दौरान पार्श्व में मोबाईल की सुरीली धुन बजती रहती है। अब आप
ही बताएं कि प्रधानमंत्री के पद की गरिमा क्या बची है? प्रधानमंत्री के
अधीन आने वाले सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधिकारी प्रधानमंत्री को कितने हल्के में
ले रहे हैं। प्रधानमंत्री के भाषण को रिकार्ड करने के उपरांत उसकी जांच की जाती
है। कांट छांट की जाती है।
विडम्म्बना ही कही
जाएगी कि प्रधानमंत्री के भाषण को रिकार्ड करने के बाद बिना एडिट किए ही उसका
प्रसारण करवा दिया जाता है। प्रधानमंत्री के भाषण के अंत में ‘‘जय हिन्द‘‘ आना चाहिए पर अंत
में सुनाई दिया ‘ठीक है।‘ यह वाकई भारत के
संवैधानिक इतिहास में बहुत ही बड़ी त्रूटी मानी जाएगी। इस त्रुटी के लिए भी सूचना
प्रसारण मंत्रालय शायद ही कोई कदम उठाए।
ज्ञातव्य है कि
इसके पहले तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के एक साक्षात्कार का फोटो
सोशल नेटवर्किंग वेब साईट पर जारी किया गया था। इस फोटो में एक पुरूष को महामहिम
के साथ वाली कुर्सी में तो एक महिला को महामहिम की कुर्सी से हाथ टिकाकर खड़ा
दिखाया गया था। यह प्रतिभा पाटिल का सवाल नहीं सवाल महामहिम राष्ट्रपति के ओहदे का
है।
इसके उपरांत सूचना
प्रसारण मंत्रालय के अधीन आने वाले आकाशवाणी ने अपनी एक नायाब कारस्तानी दिखाई।
आकाशवाणी ने शहरी विकास और संसदीय कार्य मंत्री कमल नाथ को वाणिज्य और उद्योग
मंत्री करार दे दिया। यह किसी निजी संस्थान द्वारा किया गया होता तो भी गलत था पर
जब देश की गरीब जनता से एकत्र करों से भारी भरकम वेतन पाने वाले भारतीय सूचना सेवा
के अधिकारी ही एसा करें तो फिर भला किसी को क्या दोष दिया जाए।
दिल्ली में चलती बस
में हुए गेंग रेप के बाद उपजे माहौल के नौ दिन बाद देश के ‘संवेदनशील‘ प्रधानमंत्री
डॉ.मनमोहन सिंह का पौरूष कथित तौर पर जाग गया और उन्होंने सरकारी समाचार माध्यम
दूरदर्शन के जरिए देश को संबोधित किया। पीएम का संबोधन वाकई मायने रखता है। पीएम
की रिकार्डिंग के लिए अनुभवी कर्मचारियों और भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ अफसरान
की पूरी टीम होती है।
पीएम के संबोधन को
रिकार्ड करने के उपरांत उसे बारीकी के साथ सुना जाता है फिर उसमें कांट छांट कर
उसे संपादित कर प्रसारण योग्य बनाया जाता है। इस बार एसा क्यों नहीं हुआ यह शोध
करना प्रधानमंत्री कार्यालय में काम के बिना निठल्ले बैठ एक लाख रूपए प्रतिमाह
वजीफा लेने वाले मनमोहन सिंह के मीडिया एडवाईजर पंकज पचौरी का काम है। कहा तो यहां
तक भी जा रहा है कि मनमोहन सिंह की मिट्टी खराब करने टीम राहुल के अहम सदस्य और
देश के सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी द्वारा जतन किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह के अतिविश्स्त कमल नाथ को भी डिफेम करने मंत्रीमण्डल की ताकतें सक्रिय
होती दिख रही हैं।
यह बात समझ से परे
ही है कि एक लाख रूपए हर माह का टीका होने के बाद भी पीएम के मीडिया एडवाईजर पंकज
पचौरी एवं लाखों रूपए प्रतिमाह का वेतन और अन्य सुविधाएं लेने वाले अखिल भारतीय
सेवा (भारतीय सूचना सेवा) के आला अफसरों की लंबी चौड़ी फौज के रहते एक साक्षात्कार
के दौरान महामहिम प्रतिभा पाटिल की संसदीय मर्यादाएं ध्वस्त करने वाली फोटो जारी
हो जाती है वह भी सोशल नेटवर्किंग वेब साईट पर। इसके आद वाणिज्य उद्योग मंत्री बता
दिया जाता है शहरी विकास मंत्री कमल नाथ को।
अब तो हद ही हो गई।
सहारा समय में लालू प्रसाद यादव एक साक्षात्कार देकर फारिग हुए। वहां से उठते समय
उन्होंने एंकरिंग करने वाले पत्रकार से हंसी ठठ्ठा आरंभ किया। बातों ही बातों में
कुछ आपत्ति जनक बातें सामने आईं यह सब कुछ चल रहा था तब जबकि वह वार्तालाप भी ऑन
एयर यानी प्रसारित हो रहा था। फिर क्या था उसकी सीडी पहुंची साहारा श्री के पास, हो गई एंकरिंग करने
वाले सज्जन की छुट्टी।
यह निजी तौर पर
चेनल्स की व्यवस्था है, किन्तु जहां सरकारी सिस्टम काम करता है वहां तो कुछ भी कहना
मुहाल है। जब लगभग एक पखवाड़े पहले आकाशवाणी द्वारा शहरी विकास और संसदीय कार्य
मंत्री कमल नाथ को वाणिज्य और उद्योग मंत्री करार दिया जाता है और अब तक उस मामले
में सूचना प्रसारण मंत्रालय तक मौन है तो क्या कहा जाए?
सही कहा है किसी ने
सारे सरकारी कओं में भांग घुली हुई है तो फिर क्या किया जा सकता है? कांग्रेस आज गांधी
के नाम पर मर मिटी है। देखा जाए तो महात्मा गांधी अहिंसा के पुजारी थे। आधी लंगोटी
और अहिंसा के बल पर उन्होंने उन गोरे ब्रितानियों को झुका दिया था जिनके बारे में
किंवदंती थी कि गोरे ब्रितानियों का सूरज कभी डूबता नहीं है। आजादी के उपरांत
कांग्रेस ने अपनी सत्ता की धुरी गांधी उपनाम के आसपास ही केंद्रित रखी है। पर
कांग्रेस की हरकतों से साफ हो गया है कि उसे महात्मा गांधी से कोई लेना देना नहीं
है।
आजादी के उपरांत जब
भी किसी नेता या मंत्री ने अपना संबोधन दिया है उसके उपरांत अंत में ‘जय हिन्द‘ कहने की परंपरा
लंबे समय से है। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को इसके लिए जवाबदेह माना जाए या फिर
मनीष तिवारी के नेतृत्व वाले सूचना प्रसारण मंत्रालय को, कि जय हिन्द की
उद्घोष के साथ भाषण समाप्त करने की परंपर अब बदलती दिख रही है। प्रधानमंत्री
डॉ.मनमोहन सिंह द्वारा जय हिन्द के उपरांत ठीक है कहना रिकार्डिंग का हिस्सा हो
सकता है पर उसका प्रसारण कर भारत सरकार क्या दिखाना या साबित करना चाह रही है यह
बात समझ से परे ही मानी जा रही है? (साई फीचर्स)
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