तेल कंपनियां घाटे
या मुनाफे में
(शरद)
नई दिल्ली (साई)।
पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों का अर्थशास्त्र बहुत दिलचस्प है. अगर कच्चे तेल की
मौजूदा कीमत 110 डालर
प्रति बैरल (एक बैरल= करीब 160 लीटर) है और प्रति डालर रूपये की कीमत है 54.8 रूपये है। इस
अर्थशास्त्र के बारे में सोशल नेटवर्किंग वेब साईट पर बहस चल पड़ी है।
कहा जा रहा है कि
उसकी कीमत का सामान्य अर्थशास्त्र यह बनता है कि एक बैरल कच्चे तेल की कीमतरू 110.54 डालर यानी 5970 रूपए प्रति बैरल। इस हिसाब से प्रतिलीटर की
कीमत आती है 37 रूपए 31 पैसे। इस के शोधन
और परिवहन पर प्रति लीटर 3 रूपए का खर्य आता है।
इसके अलावा उसकी
मार्केटिंग कमीशन और अन्यय व्यय पर दो रूपए प्रति लीटर का खर्च आता है। इस लिहाज
से प्रतिलीटर पेट्रोल की कीमत लगभग 42 रूपए 31 पैसे आती है। जबकि
बाजार में दोगने से अधिक कीमत पर बिकता है। इस लिहाज से केंद्र और राज्यों की
सरकारें पचास फीसदी का टेक्स वसूलती हैं। अब बताएं कि तेल कंपनियां घाटे में हैं
या मुनाफे में। आखिर अंडर-रिकवरी के दावों और कीमतें तय करने में पारदर्शिता क्यों
नहीं है? घाटे के
दावों के बावजूद तेल कंपनियों को साल दर साल मुनाफा कैसे हो रहा है?
फेसबुक पर कहा गया
है कि पेट्रोल के बाद अब डीजल की कीमतों को डी-रेगुलेट करने की हड़बड़ी क्यों है? कहीं यह पिछले
दरवाजे से रिलायंस से लेकर एस्सार तक के लिए बाजार खोलने की तैयारी तो नहीं है? आखिर उनके पेट्रोल
पम्प बहुत दिनों से बंद पड़े हैं और चुनाव भी नजदीक हैं?क्या राज्य क्या
केन्द्र सब सरकार मिल बाट कर जनता को लूट कर खजाना भरने पे लगे है और फालतू की
योजनाओ पे पैसा पार्टी फंड और नेताओ की जेब मे जा रहा है किसी को जनता की फिकर
क़हाँ?अब वक़्त है
सिर्फ अपने वोट से कुछ नही होगा लोगो को भी सही उम्मीदवार को चुनने के लिये कहना
परेगा भविष्य की जिम्मेदारी खुद पूरा करना होगा!!
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