ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
सरकारी नुमाईंदे सो
रहे, देशवासी रो
रहे
16 दिसंबर की रात देश
की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में जो कुछ हुआ वह भयावह ही था। अनाम पीडिता के साथ हैवानों
ने जो कुछ किया वह निश्चित तौर पर रोंगटे खड़े करने के लिए काफी है पर उसके उपरांत लगातार
तेरह दिन तक जिस तरह देश के युवाओं के मन में आक्रोश दिखा और सरकार का दमन चक्र चला
उससे लगने लगा कि निश्चित तौर पर इससे अच्छा तो गोरे ब्रितानियों का ही राज था। कांग्रेस
सत्ता में रहकर लोगों पर जुल्म कर रही है तो विपक्ष में रहकर भाजपा द्वारा कांग्रेस
का पूरा पूरा साथ दिया जा रहा है। कुल मिलाकर कांग्रेस और भाजपा मिलकर देश को लूटने
में लगी हुईं हैं। बाकी के राजनैतिक दल भी इस लूट में अपना अपना हिस्सा लेकर शांत हैं।
विरोध दिखावटी ही लगता है। मीडिया भी ध्यान भटकाने के लिए नए नए शिगूफे छोड़ने से पीछे
नहीं रहता। कुल मिलाकर नेताओं सहित सरकारी नुमाईंदे सो रहे और देशवासी रो रहे की कहावत
ही देश में चरितार्थ होती दिख रही है।
मनमोहन और रेपिस्ट में
क्या अंतर है?
दिल्ली में हुए गैंग
रेप ने देश ही नहीं समूची दुनिया को हिलाकर रख दिया है। नहीं हिले तो भारत के हुक्मरान!
सोशल नेटवर्किंग वेब साईट पर एक अन्य विदेशी पीडिता ने भारत गणराज्य के वज़ीरे आज़म डॉ.मनमोहन
सिंह और उनकी सरकार की तुलना बलात्कारियों से ही कर दी है। खूंखार तालिबानियों से लोहा
लेने वाली 15 वर्षीय मलाला यूसुफजाई भी दिल्ली में सामूहिक दुराचार से बुरी तरह आहत
नजर आ रही है। दिल्ली गैंग रेप पीडिता को सिंगापुर भेजने पर मलाला ने भारत सरकार को
आड़े हाथों लिया है। सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट पर मलाला का कहना है कि भारत सरकार और
रेपिस्ट में अंतर ही क्या है? बालात्कारियों ने पीडिता को सड़क पर फेंक दिया
और भारत सरकार ने उसे सिंगापुर ले जाकर पटक दिया। दोनों ही की हरकत एक समान है, दोनों ही में अंतर क्या
रह जाता है?
नपुंसक, निर्लज्ज, निर्मम, संवेदनहीन नेतृत्व में
सांसे ले रहा भारत गणराज्य
देश को जगाकर एक दामिनी
मौत की नींद सो गई! इस तरह के ट्वीट और फेसबुक अपडेट से अटी पड़ी हैं सोशल नेटवर्किंग
वेब साईट्स। कहीं जया बच्चन देश से माफी मांग रहीं हैं तो कही लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष
संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग कर रहे हैं। सोनिया कह रहीं कि उसकी मौत जाया नहीं
जाएगी! मीडिया भी इन नेताओं की ताल और ठुमरी गान पर अपनी कमर मटका रहा है। किसी भी
समाचार चेनल, प्रिंट मीडिया
आदि ने इतना नैतिक साहस नहीं दिखाया कि वे सीधे सीधे, प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन
सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष
श्रीमति सोनिया गांधी, कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी, भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी, लोस नेता प्रतिपक्ष
सुषमा स्वराज, रास के अरूण
जेतली आदि को सीधे कटघरे में खड़ा करें। कहां हैं कांग्रेस के तीखे बाण चलाने वाले सूचना
प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी। आधे से ज्यादा नेता तो साल के अंत में छुट्टियां मनाने
दिल्ली से बाहर हैं,
सो मीडिया उन पर सवालिया निशान लगाने से रहा।
क्या किया गृह राज्य
मंत्री ने!
16 दिसंबर की घटना के
बाद एक दिन कुछ पत्रकारों के साथ गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने जिस रूट पर यह बलात्कार
कांड हुआ था उसका दौरा किया। जोश में मंत्री जी ने सरकारी बस की सवारी गांठी, ताकि उन्हें पब्लिसिटी
मिल सके। बस से जब वे छतरपुर मेट्रो स्टेशन वाले स्टेंड तक गए तो उन्हें रास्ते में
एक भी पुलिस की पीसीआर नहीं मिली। उल्टे बस स्टेंड पर रात में खड़ी बस को उन्होंने अपनी
नंगी आंखों से मयखाना बना देखा। पुलिस के बारे में मीडिया के पूछने पर बस के अंदर सुरा
सेवन करने वाले चालक परिचालकों ने कहा कि पुलिस आती ही होगी और वह भी छककर पिएगी उनके
साथ। सकुचाए शर्माए भारत गणराज्य के जिम्मेदार गृह राज्य मंत्री महोदय ने कहा पुलिस
अगर इस रूट पर नहीं तो कहीं ना कहीं तो होगी ही! मंत्री जी को पब्लिसिटी तो नहीं मिली
पर यह खबर आम होते ही विपक्षी दलों ने भी केंद्र की कांग्रेस सरकार से इस बारे में
प्रश्न ना पूछकर उसे क्लीन चिट दे दी। पर मंत्री महोदय से समूचा देश पूछना चाह रहा
है कि उस बस यात्रा के बाद उन्होने क्या कार्यवाही की?
हिटलर बन गए मनमोहन
भारत गणराज्य के वजीरे
आज़म डॉ.मनमोहन सिंह को देश के निवासी कमोबेश मौन मोहन सिंह की उपाधि देते रहे हैं।
किसी भी मामले में वे मौन रहना ही पसंद करते हैं। अनाम बाला के साथ जब सामूहिक दुराचार
हुआ उसके बाद देश उबल पड़ा। यह उबला सिर्फ दुराचार के खिलाफ नहीं था। देश की जनता बुरी
तरह आहत हो चुकी है। कांग्रेस भाजपा के द्वारा देश को लूटने से आजिज आ चुकी जनता ने
हुक्मरानों को अपना गुस्सा दिखाया। निर्मम मनमोहन सिंह ने इस गुस्से से भड़ककर बजरिया
पुलिस देश की जनता को कुचलना आरंभ कर दिया। वातानुकूलित घर आफिस, कार के आदी हो चुके
मनमोहन सिंह सहित सारे नेताओं को इस बात का भान भी नहीं होगा कि दिल्ली की हाड़ गलाने
वाली सर्दी में अगर पुलिस आंदोलनकारियों पर ठण्डा पानी फेंक रही है तो वे किस स्थिति
से गुजरे होंगे। अबोध बालाओं को पुलिस ने इस तरह पीटा मानो कपड़े धोए जा रहे हों। पुलिस
की इस हरकत से साफ हो गया कि मनमोहन सिंह अब हिटलर की भूमिका में आ चुके हैं।
आरक्षक की मौत से भी
नहीं पसीजी दिल्ली!
दिल्ली अर्थात देश के
हुक्मरान अपने ही एक आरक्षक की मौत से भी नहीं हिले। उसमें भी षणयंत्र का तानाबाना
बुना जाने लगा। पुलिस और नेताओं ने कभी भीड़ तो कभी आम आदमी की पार्टी पर इसकी हत्या
का आरोप मढ़ने का कुत्सित प्रयास किया। मीडिया ने भी हवा का रूख भांपकर सरकार की ताल
पर ठुमके लगाना आरंभ कर दिया। बाद में जब दो पत्रकारों ने कुछ चित्रों के माध्यम से
यह बात सार्वजनिक की कि उनके साथ जनता ने उस कांस्टेबल को बचाने का प्रयास किया था, तब जाकर सरकार, नेताओं और मीडिया के
चेहरे पर कालिख लगना आरंभ हुआ। हड़बड़ी में सरकार और नेता बैकफुट में आए। जल्दबाजी में
सरकार और नेताओं को यह बात नहीं सूझी वरना वे सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स पर पड़े इन
चित्रों की विश्वसनीयता पर ही प्रश्नचिन्ह लगाकर इसकी फोरहंसिक जांच की मांग ही कर
बैठते।
खबरों की सैंसरशिप और
सोशल मीडिया
देश में कांग्रेस के
खिलाफ इस घटना को लेकर जमकर माहौल बनना आरंभ हो गया है। इसका कारण दिल्ली और केंद्र
दोनों ही जगह कांग्रेस की सरकार का होना है। दिल्ली के मीडिया से ही देश को हांका जा
सकता है, संभवतः यही
सोच है देश के हुक्मरानों की। दिल्ली में बैठे देश के विभिन्न मीडिया के प्रतिनिधियों
के साथ ही समाचार एजेंसियों को भी सरकार ने साधना आरंभ किया। खबरों को नए एंगिल से
परोसना आरंभ हुआ। मीडिया का यह रोल सकारात्मक था या नकारात्मक इसका फैसला तो मीडिया
ही करे किन्तु सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट्स ने इस बात की कलई खोल दी कि वास्तविकता क्या
है और मीडिया क्या परोसा रहा है। हर तरफ मीडिया को कोसा जाने लगा। दरअसल, जबसे घराना पत्रकारिता
ने देश के मीडिया को अपने कब्जे में लिया है तबसे देश का मीडिया बिक गया है। जो एक
लाईन ना लिख पाए वह मीडिया का मालिक या प्रधान संपादक की भूमिका में है। इससे मीडिया
की दिशा और दशा का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
क्या पीडिता का शव ले
जाया गया था सिंगापुर!
नेहरू गांधी परिवार
की छोटी बहू एवं सांसद मेनका गांधी का सनसनीखेज आरोप दहला देने वाला है कि पीडिता की
मौत तो उसे सिंगापुर ले जाने के पहले ही हो गई थी। मेनका के आरोप का आधार क्या है इस
बारे में तो वे ही बेहतर बता सकती हैं पर सालों से सांसद और जिम्मेदार महिला मानी जाने
वाली मेनका गांधी का आरोप सिरे से खारिज करने लायक नहीं लगता है। एक निजी समाचार चेनल
के साथ चर्चा के दौरान मेनका गांधी ने कहा कि पीडिता को सिंगापुर भेजने की बात वाकई
हैरान करने वाली है। देश के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह, गृह मंत्री सुशील कुमार
शिंदे, स्वास्थ्य मंत्री
गुलाम नवी आजाद से देश पूछ रहा है कि आखिर कौन से चिकित्सकों की टीम ने पीडिता के परीक्षण
के उपरांत उसे सिंगापुर भेजने की सिफारिश की? अगर की है तो सिफारिश को दिखाया जाए और नहीं
की है तो आखिर किस आधार पर उसे बोरे की तरह भारत से सिंगापुर भेजा गया और वापस बुलाया
गया? अगर उसमें प्राण
शेष नहीं थे तो उसे भारत से सिंगापुर भेजने और वापस बुलाने पर हुए खर्च का वहन क्या
सोनिया गांधी निजी तौर पर करने वाली हैं?
जनता को मामा बना रही
कांग्रेस!
उमर दराज लोग अब कांग्रेस
से नफरत करने लगे हैं। लोग बताते हैं कि कांग्रेस ने सदा ही जनता को मामा बनाया है।
जब सैद्धांतिक राजनीति होती थी उस समय भी जनता को लूटा जाता था और अब जब मूल्य आधारित
राजनीति नहीं है तब भी जनता लुट ही रही है। मीडिया ने तो इस मामले में हाथ नहीं लगाया
पर सोशल नेटवर्किंग वेब साईट ने एक नई बहस खडी कर दी है कि क्या सुशील कुमार शिंदे
ने जनता से झूट बोला? पीडिता के सिंगापुर भेजने पर मेदांता हस्पताल के डॉ.नरेश त्रेहन
की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह लगे तो डॉ.त्रेहन से ट्वीट किया कि पीडिता उनकी पेशेंट ही
नहीं थी, सरकार ने उनसे
एयर एंबूलेंस और अन्य मेडीकल सहायता मांगी थी, अतः पीडिता के सिंगापुर
भेजने के बारे में वे फैसला कैसे करते? इसी बीच एक अन्य ट्वीट आया कि शिंदे तो साफ साफ
कह रहे हैं कि पीडिता को डॉ.त्रेहान की सलाह पर सिंगापुर भेजा जा रहा है, इस पर डॉ.त्रेहान ने
कहा कि नेताओं को बली का बकरा चाहिए होता है।
यह है नेताजी का असली
चेहरा!
नेताजी यानी मुलायम
सिंह यादव के बारे में दुनिया के चौधरी अमरीका की राय बेहद खराब है। नेताजी मौकापरस्त
व्यक्तित्व के स्वामी हैं एसा माना जाता है। कभी कांग्रेस के खिलाफ तो कभी कांग्रेस
की गोदी में। दिल्ली में गैंगरेप की शिकार पीडिता के जीने मरने की आशंकाओं कुशंकाओं
के बारहवें दिन देश गमगीन था। सरकार मन ही मन युवाओं के आक्रोश से निपटने के तरीके
खोज रही थी। सरकार के मंत्री, सांसद इयर एण्ड में अपनी मस्ती में खलल नहीं
पड़ने देना चाहते सो वे निकल पड़े न्यू इयर सेलीब्रेट करने। कुछ नेता मंत्री जो मजबूर
हैं कि उन्हें मीडिया के सामने आकर मोर्चा संभालना ही है वे दिल्ली में बुझे हुए मन
से अपनी उपस्थिति दर्ज कराते दिखे। इसी बीच नेताजी 28 दिसंबर को रात में पीडिता को
उसके हाल पर ही छोड़कर अपने संगी साथियों के साथ सैफई में मलईका अरोड़ा, विपाशा बसु, ईशा कोप्पिकर के साथ
ऋतिक रोशन आदि के ठुमकों पर झूम रहे थे। कहते हैं लगभग दस करोड़ रूपए एक रात में पानी
में बहाकर नेताजी ने पीडिता को श्रृद्धांजली दी है।
राहुल की चुप्पी टूटी, बनी बड़ी खबर!
देश के मीडिया को पता
नहीं क्या हो गया है? राहुल गांधी ने बलात्कार की पीडित युवती की तेरह दिन बाद हुई मौत
के उपरांत राहुल गांधी की चुप्पी टूटने को बड़ी खबर में तब्दील कर दिया। स्वार्थी मीडिया
ने 13 दिन तक गायब और मौन रहे राहुल गांधी से यह पूछने की हिमाकत नहीं की कि आखिर क्या
वजह थी कि एक दो नहीं 13 दिन तक वे मुंह सिए बैठे रहे। क्या वे बोलने के लिए किसी पंडित
से महूर्त निकलवा रहे थे या फिर उनके सलाहकार कहीं अवकाश पर गए थे। अगर कोई चेनल का
रिपोर्टर यह पूछने की हिमाकत धोखे से कर बैठता और न्यूज एडीटर उसे दिखा देता तो अगले
ही पल उसकी बिदाई हो जाती। अरे साहेब एक गरीब की सरेराह इज्जत लुटी है, उसने अपनी जान गंवाई
है, समूचा देश उबला
है इस घटना पर, जेड प्लस सिक्यूरिटी
वाले राहुल गांधी से सवाल पूछने से डर क्यों रहा है मीडिया? क्या विज्ञापन अथवा
अन्य बिजनिस प्रोजेक्ट पर राहुल से प्रश्न पूछने पर खतरा मंडराने लगेगा?
पुच्छल तारा
दिल्ली में हुए सामूहिक
बालात्कार के मामले ने देश दुनिया को हिला दिया है। देश के हुक्मरान अंदर ही अंदर सहमे
हैं पर बाहर से सामान्य होने का दिखावा अवश्य ही कर रहे हैं। घराना पत्रकारिता का पोषक
मीडिया भले ही सरकार को बचाता नजर आए पर सोशल नेटवर्किंग वेब साईट्स अपना काम बखूबी
कर रही हैं। सोशल नेटवर्किंग वेब साईट पर एक पोस्ट ने बरबस ही ध्यान खींचा जिसमें लिखा
था -‘‘अगर पीडिता
को इलाज के लिए सिंगापुर भेजा गया है तो दोषियों को सजा के लिए भारत में क्यों रखा
गया है? दोषियों को
सजा के लिए साउदी अरब भेज दो, साउदी वाले उन्हें इस कुकर्म की माकूल और वाजिब
सजा महज दो मिनिट में दे देंगे।‘‘