हर्बल खजाना .... 3
बडे काम की मेंहदी
(डॉ दीपक आचार्य)
घरों में बाडे के रूप में लगायी जाने वाली मेंहदी न सिर्फ़ सौंदर्य कला में उपयोग में लायी जाती है बल्कि ये औषधिय गुणों से भी भरपूर है और जिसका उपयोग ग्रामीण अंचलों और आदिवासी बाहुल्य भागों में प्रचुरता से होता है। इसका वानस्पतिक नाम लासोनिया इनर्मिस है।
आधुनिक विज्ञान भी किटाणुओं और फ़फ़ूँदो के नाश के लिये मेंहदी की उपयोगिता साबित कर चुका हैं। मेंहदी शरीर के तापमान को नियंत्रित करती है जिससे पैर के तालुओं की जलन, सरदर्द, बुखार और गुस्से पर काबू पाने में काफ़ी हद तक सफ़लता मिलती है।
यदि मेंहदी को नाखूनों पर लगाया जाए, नाखूनों की चमक बढ जाती है और यदि कोई बर्निन्ग फ़ीट सिन्ड्रोम से परेशान है, मेंहदी का लेप तालुओं मे लगातार लगाया जाए, कुछ ही दिनों में समस्या का अंत हो जाता है। डाँग- गुजरात के आदिवासी इसकी पत्तियों को रात में पानी में डुबोकर रखते है और सुबह इसे छानकर पीलिया ग्रसित रोगी को देते है।
शहजीरा और मेंहदी के बीजों को साथ मिलाकर पीस लिया जाए और इसमें सिरका या पानी मिलाकर इसका लेप तैयार कर माथे पर २५ मिनट लगाया जाए तो सरदर्द और माईग्रेन में आराम मिलता है। मेंहदी बालों के लिये उत्तम है, ये बालों का झडना भी कम कर देती है।
पातालकोट के आदिवासी भुमकाओं का मानना है कि यदि कपडों और किताबों की अलमारी में इसकी सूखी पत्तियाँ रख दी जाए तो कीडे नही पडते। जानवरों को यदि बार बार मल के साथ खून आ रहा हो तो मेंहदी की पत्तियाँ खिलाने से आराम मिलता है।
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