बुधवार, 4 जनवरी 2012

पर्यावरण प्रदूषण की जानबूझकर की जा रही है अनदेखी!


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 44

पर्यावरण प्रदूषण की जानबूझकर की जा रही है अनदेखी!

पर्यावरण प्रदूषण के बारे में स्थिति है पूरी तरह अस्पष्ट

झाबुआ पावर के संयंत्र से होगा पर्यावरण का जमकर नुकसान



(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)। केंद्र सरकार की छटवीं अनुसूची में शामिल मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकासखण्ड घंसौर में देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर जिनका राजनैतिक क्षेत्र में भी इकबाल बुलंद है, के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा दो चरणों में लगाए जा रहे कोल आधारित पावर प्लांट से क्षेत्र में कहर बरपने के साथ ही साथ पर्यावरण का जमकर नुकसान होने की उम्मीद जताई जा रही है।
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि 600 मेगावाट के पहले चरण की लोकसुनवाई के पूर्व मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल को जमा कराए गए कार्यकारी सारांश के सातवें सफे पर लिखी इबारत से साफ हो जाता है कि मेसर्स झाबुआ पावर प्लांट के द्वारा स्थापित किए जाने वाले इस संयंत्र का पर्यावरण प्रदूषण प्रभाव मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार के जिम्मेदार विभागों द्वारा जनबूझकर अनदेखा किया गया है। दोनों ही चरणों की लोकसुनवाई में पर्यावरण प्रदूषण के मामले में जब भी कोई प्रश्न दागा गया संयंत्र प्रबंधन और मध्य प्रदेश प्रदूषण मण्डल के सैटकारिंदों ने बात को घुमा फिरा कर प्रस्तुत कर दिया।
कार्यकारी सारांश में साफ कहा गया है कि पर्यावरण प्रदूषण प्रभाव का अनुमान संयंत्र में होने वाली कार्यवाही का प्रकार तथा मात्रा और प्रदूषण रोकथाम के लिए किए गए उपायों पर निर्भर करता है। आसपास के क्षेत्र में पर्यावरण पर प्रभाव दो स्थितियों में होगा।  प्रदूषण स्तर की निर्धारित सीमाओं के अंतर्गत रखने के लिए व्यवस्थापन द्वारा जो उपाय किए जाएंगे उनमें निर्माण और कार्यकारी अवस्था के अलग अलग प्रभाव दर्शाए गए हैं।
निर्माण अवस्था में एसपीएम, आरपीएम, सल्फर डॉय आक्साईड, एनओएक्स, एचसी, और कार्बन की अधिकता निर्माण कार्य गतिविधियों तथा वाहनों के आवागमन से होगी। संयंत्र प्रबंधन का दावा है कि यह प्रभाव अस्थाई तथा निर्धारित सीमाओं के अंतर्गत ही होगा। यक्ष प्रश्न यह हैै कि संयंत्र प्रबंधन द्वारा निर्धारित सीमाएं कहां तक रखी गई हैं इस बारे में संयंत्र प्रबंधन पूरी तरह मौन ही है।
मजे की बात तो यह है कि इस प्रदूषण को मापने के लिए क्षेत्र में न तो मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल और ना ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा कोई दल अब तक भेजा गया है जो यहां आकर प्रदूषण का पैमाना मापे। बताया जाता है कि कागजो।पर अवश्य ही खानापूरी की जा रही है कि क्षेत्र में पर्यावरण और प्रदूषण एकदम चाक चौबंद ही है। राजनैतिक रसूखदार संयंत्र प्रबंधन के मालिकान द्वारा अपने प्रभावों का उपयोग कर पर्यावरण के नियमों की सरेआम मुनादी पीटी जा रही है और यह सब देखने सुनने के बाद भी केंद्र सरकार का वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, जिला प्रशासन सिवनी सहित भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर चुपचाप नियम कायदों का माखौल सरेआम उड़ते देख रहे हैं।

(क्रमशः जारी)

कोई टिप्पणी नहीं: