सोमवार, 23 जनवरी 2012

तो क्या ये अफीम तस्करों के साम्राज्य पर मल्टीनेशनल का डाका है!


तो क्या ये अफीम तस्करों के साम्राज्य पर मल्टीनेशनल का डाका है!

सालाना कई हजार करोड़ का काला/सफेद धन पैदा करती है अफीम की खेती!

अब लग गई है, इस पर भी नजर!

(सुरेंद्र सेठी)

नीमच (साई)। समूची दुनिया में कमाई देने वाले कारोबार पर कब्जा जमाने की होड़ मची है। लगता है, अपून के मालवा-मेवाड़ के लोग भी इसी कारोबारी साजिश का शिकार हो रहे है। अफीम से मार्फिन निकालने का काम निजी हाथों में सौंपे जाने का केन्द्र सरकार का निर्णय तो ये ही संकेत देता नजर आ रहा है। ये फैसला एनडीए सरकार के वक्त हुआ था और इस पर अमल अब यूपीए सरकार में होता नजर आ रहा है।
नियम, शर्तंे पहले ही तय हो गई थी और दो कंपनियों को इस कारोबार करने के लायक भी मान लिया गया था। अब केन्द्रीय केबिनेट की मोहर लग जाने के बाद दोनों चुनी गई कंपनियां अपना काम काज संचालन की दिशा में आगे बढ़ा सकेगी। नई तकनीक से ये कंपनिया सीधे पापी केप्सुल( डोडा) से मार्फिन निकालेगी। अफीम का उत्पादन लेने के झंझट से ही मुक्ति! ना अफीम होगी और न होगी उसकी तस्करी।
साफ जाहिर है, ये धंधा ही मानों हुआ खत्म। पर, हकीकत ये नहीं है। वास्तविकता कुछ ओर है। धंधा खत्म नहीं हुआ। वे खत्म होंगे जो अफीम से मादक पदार्थ बना रहे थे। जब अफीम से ही तैयार मार्फिन की डिमांड है तो वो ही तो उन कंपनियों के कारखानों में बनेगा जो सीधे पापी केप्सुल से निकाला जायेगा! डोडा चूरी की खरीदी का झंझट भी खत्म होगा। अभी ये भी नहीं बताया गया है कि नई तकनीक से मार्फिन निकाले जाने पर पोस्ता दाना का क्या होगा। वो निकलेगा या नड्ढ हो जायेगा।
कुल मिलाकर साफ दिख रहा है , मालवा मेवाड़ का अकुत धन संपदा देने वाला अफीम उद्योग अन्तर्राड्ढ­ीय कारोबारी ताकतो की साजिश का शिकार हो रहा है। ये भी कांच की तरह साफ नजर आ रहा है , इस भारी भरकम उद्योग को कुचलने मंे कांग्रेस और भाजपा दोनों उन अन्तर्राड्ढ­ीय ताकतों की साजिश का शिकार होने में बराबर की दोषी है।
जाहिर है, मालवा मेवाड़ के किसान की इस आर्थिक ताकत को कुचलने के पिछे उनके भी कोइ बड़े हित सधे होंगे। आश्चर्य है, इतना बड़ा फैसला हो जाने के उपरांत भी मालवा मेवाड़ का अफीम उत्पादक किसान चुप्पी साधे बैठा है। लगता है,वो किसान भी अफीम के खेतों मंे काम करते करते उसकी महक का शिकार होकर गाफिल हो गया है।
0 बदलते समीकरण
अफीम के पौधों से निकलने वाले मादक द्रव्यों के प्रसंस्करण का काम निजी हाथों में सौंपे जाने के फैसले से मालवा मेवाड़ के अफीम उत्पादक इस इलाके में दोनों मुख्य राजनीतिक दलों के समीकरण भी बदलते नजर आ रहे है! चूंकि फैसला (कांग्रेस)यूपीए सरकार के वक्त हुआ है तो अब सांसद मिनाक्षी मेडम सहित कांग्रेस के दुसरे नेताओं की मजबूरी हो गई है कि वे अब इस फैसले का स्वागत कर लोगों को ये बताये कि इससे तस्करी पर अंकुश लग जायेगा। इधर भाजपा के नेताओं का सुर कांग्रेसी नेताओं के उलट है। वे इस प्रस्ताव का जोर शोर से विरोध करते हुवे यूपीए सरकार को कौसने में जुट गये है। विचित्र बदलाव दोनों दलों की राजनीति में सामने आया है।
आरंभिक प्रस्ताव एनडीए सरकार के वक्त हुआ था। वो भाजपा तो खुलकर किसानों के हित में खड़ी नजर आ रही है और कांग्रेस की भूमिका खलनायक की नजर आने लगी है। इतना बड़ा फैसला अफीम की खेती को लेकर कांग्रेस की सरकार ने कर लिया और हमारी जागरूक और ताकतवर मानी जाने वाली सांसद मिनाक्षी मेडम इस पर संसद में एक शब्द भी नहीं बोल पाई। मिनाक्षी मेडम के लोक सभा सदस्य रहते हुवे इस फैसले का खामियाजा अतंतरू कांग्रेस को ही भोगना पड़ेगा।

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