बदहाल पर्यटन व्यवस्थाओं के साए में उत्तराखण्ड
(अर्जुन कुमार)
देहरादून (साई)। पर्वतों के सोंदर्य को अपने दामन में समेटे उत्तराखण्ड में कहने को तो पर्यटन बढ़ाने के लिए जमकर योजनाएं चलाई जा रही हैं, पर ये सारी योजनाएं कागजों तक ही सीमित नजर आ रही हैं। सूबे में ना तो टूरिस्ट पुलिस है और ना ही चार धाम की आॅन लाईन यात्रा के लिए कोई व्यवस्था।
सूबे को पर्यटन प्रदेश बनाने की तैयारी हवा में चल रही है। यूं तो इस बारे में दावा अरसे से किया जा रहा है लेकिन धरातल पर स्थिति पूरी तरह से भिन्न है। राज्य गठन के बाद लोगों को उम्मीद जगी कि सूबे में पर्यटन को बढ़ावा मिलने से उनकी आर्थिकी सुधरेगी, रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे, सूबे में पलायन रुकेगा लेकिन सरकारी तंत्र की लापरवाही ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
सरकारी आंकड़ों में भले ही सूबे में आने वाले पर्यटकों की संख्या में वृद्धि दर्ज हो लेकिन पर्यटकों को सहूलियतें प्रदान करने को लेकर सरकार की एक भी योजना अभी तक मूर्त रूप नहीं ले सकी है। जाहिर है पर्यटक यहां अपने रिस्क व तैयारियों के बूते आ रहे हैं। वह भी जब जबकि केंद्र की ओर से सूबे में पर्यटन को बढ़ावा देने को व्यापक स्तर पर आर्थिकी मुहैया कराई जाती रही है।
आलम यह है कि पर्यटक पुलिस के लिए वर्ष 2006 से इसे लेकर कवायद चल रही है लेकिन अभी तक किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है, जबकि पड़ोसी सभी राज्यों में इस पर विशेष फोकस है। इतना ही नहीं पर्यटकों की सहूलियतों को ध्यान में रखकर सूबे में 44 स्थानों पर ये स्थापित किए गए हैं लेकिन दो तिहाई से अधिक केंद्रों पर ताला जड़ा है। एक वर्ष पूर्व इसे पीपीपी मोड पर संचालित करने की योजना बनी लेकिन अभी यह कागजों में ही चल रही है।
दो साल की मशक्कत के बाद गत नवंबर में इस पर काम शुरू किया गया लेकिन प्रोजेक्ट अभी तक पचास फीसदी भी पूरा नहीं हुआ। चारधाम यात्रा को इस साल से ऑनलाइन करने को लेकर एक साल पूर्व काम शुरू तो किया गया लेकिन 25 फीसदी भी पूरा नहीं हुआ। योजना को अब ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
0 ये हैं प्रमुख पर्यटन स्थल
चारधाम (बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री), हेमकुंड साहिब, नानकमत्ता, हरिद्वार, कैलाश मानसरोवर, फूलों की घाटी, मसूरी, नैनीताल, कार्बेट नेशनल पार्क, राजाजी नेशनल पार्क समेत करीब 28 जगहों को पर्यटन स्थल के रूप में चिन्हित किया गया है।
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