प्रदेश में पहली टिश्यू कल्चर लेब शुरू
(शिवेश नामदेव)
भोपाल (साई)। मध्यप्रदेश की पहली टिश्यू कल्चर लेब में उत्पादन शुरू हो गया है। बैतूल जिले के हमलापुर सोमवारी में स्थापित इस लेब में टिश्यू कल्चर से विकसित 25 लाख पौधे वितरण के लिए तैयार हैं। इनमें मुख्य रूप से केले की जी-9 किस्म के पौधे हैं। लेब की क्षमता तीन लाख पौधे प्रतिमाह है।
किसान
सुभाष मोहन पाण्डे ने यह लेब राष्ट्रीय उद्यानिकी मिशन की सहायता से
स्थापित की है। उन्होंने 2 करोड़ 52 लाख रुपये की पूँजी लगाई है। उन्हें 50
लाख रुपये का अनुदान मिला है। उन्होंने आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया है
और जर्मनी से आयातित संयंत्र भी लगाए हैं। लेब में सजावटी फूलों के पौधे
तैयार करने की भी योजना है। लेब में आलू, अनार और जरबेरा के पौधे तैयार
करने की भी योजना है। मण्डला के मनेरी फूड पार्क में भी टिश्यू कल्चर लेब
की स्थापना का काम चल रहा है।
इस
लेब में उत्पादन शुरू होने से महाराष्ट्र सहित अन्य प्रदेशों पर निर्भरता
कम हो गयी है। टिश्यू कल्चर पद्धति से अच्छी गुणवत्ता के रोग-मुक्त पौधे
उपलब्ध होते हैं।
रक्त बीज की तरह
पुराणों
में रक्त बीज की कथा आती है कि उसके रक्त की एक बूँद से सैकड़ों रक्त बीज
तैयार हो जाते थे। सकारात्मक अर्थ में ऐसा ही टिश्यू कल्चर में होता है।
कहीं से भी किसी अच्छे पेड़ के टिश्यू लेकर लाखों पौधे तैयार किये जा सकते
हैं। यह काम कम समय में और अधिक कुशलता से हो जाता है। गुणवत्ता में भी कोई
फर्क नहीं पड़ता। टिश्यू कल्चर से तैयार केले के पौधे से फसल 11-12 माह
में मिल जाती है और किसान को उसी साल में इसका फायदा मिलने लगता है। कंद से
तैयार किए गए पौधों से 18 माह में फसल मिलती थी। इस तरह पहले किसान 3 साल
में 2 फसल लेता था जबकि टिश्यू कल्चर पद्धति से अब 3 फसल लेता है। कंद से
प्रति पेड़ 12-15 किलो केला पैदा होता था जबकि टिश्यू कल्चर से 40 किलो
केला प्रति पेड़ मिलता है।
केला उत्पादन में अपार सफलता
केले
के पौधे पहले कंद (रायजोम) से तैयार होते थे, जिन्हें 'सकर' कहा जाता है।
बड़ी संख्या में केले के पौधों का महाराष्ट्र और दक्षिणी प्रदेशों से
परिवहन करना पड़ता था। इसमें पैसा, समय और मेहनत बहुत लगती थी। गुणवत्ता की
कमी और रोग का जोखिम तो होता ही था। अब टिश्यू कल्चर लेब से अच्छी
गुणवत्ता की किस्मों के अनुरूप पौधे वांछित संख्या में तैयार किये जा सकते
हैं।
मध्यप्रदेश
में बुरहानपुर जिला केला उत्पादन का सबसे बड़ा केन्द्र है, जहाँ 15 हजार
हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में केले का उत्पादन लिया जाता है। खण्डवा,
खरगोन, बड़वानी और होशंगाबाद में भी केले का उत्पादन होता है।
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