हास्य सरताज जसपाल
भट्टी का अवसान
(महेश रावलानी)
नई दिल्ली (साई)।
घरेलू घटनाक्रमों में हास्य का तड़का देकर लोगों को पेट पकड़कर हंसते हुए लोटपोट
होने पर मजबूर कर देने वाले मशूहर हास्य कलाकार जसपाल भट्टी का आज तड़के करीब तीन
बजे जालंधर में सड़क हादसे में मौत हो गई। उनके बेटे जसराज भी दुर्घटना में घायल
हुए हैं। जसपाल भट्टी ने अपना कैरियर चंडीगढ़ के एक दैनिक में कार्टूनकार के रूप
में शुरू किया था और वे अपने नुक्कड़ नाटकों से सामाजिक विसंगतियों पर व्यंग्य करते
थे।
३ मार्च १९५५ को
अमृतसर में जन्मे भट्टी की मोहाली के उनके स्टूडियो में चल रही जोंक फैक्टरी अब और
हमको हंसा नहीं पाएगी। लेकिन उनके हास्य व्यंग से लोटपोट हाने वाले दूरदर्शन के
दर्शक झ्उल्टा-पुल्टाश् और झ्फ्लॉप शोश् को कभी नहीं भुला पाएंगे। आम आदमी के दर्द
को हास्य के माध्यम से उजागर करने वाले के अद्भुत कलाकार थे। जसपाल भट्टी समाज में
व्याप्त भ्रष्टाचार और विसंगतियों का पर्दाफाश करने के लिए सड़कों पर भी उतरे और उन
पर अहिंसक रूप से चोट की और इसके लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे।
दुर्घटना के समय
भट्टी अपनी फिल्म ‘पावर कट‘ के प्रमोशन से लौट
रहे थे, तभी उनकी
कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस हादसे में जसपाल भट्टी के बेटे जसराज, फिल्म की हिरोइन और
पीआरओ नवीन जोशी घायल हो गए। आज दोपहर बाद उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। उनके
असमय निधन से बॉलीवुड के तमाम कलाकारों ने दुख जताया है।
दुर्घटना के बाद 57 वर्षीय भट्टी को
जालंधर के एक अस्पताल में ले जाया गया, जहां डॉक्टर्स ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
दुर्घटना में भट्टी का बेटा जसराज, उनकी फिल्म की हीरोइन सुरीली गौतम व एक अन्य
व्यक्ति भी घायल हो गए। चण्डीगढ़ से 150 किलोमीटर दूर जालंधर के एक अस्पताल में
उनका इलाज चल रहा है।
भट्टी ने अपनी नई
फिल्म ‘पॉवर कट-
का निर्माण व निर्देशन किया था। यह फिल्म शुक्रवार को प्रदर्शित होने वाली थी। इस
फिल्म से उनका बेटा जसराज अभिनय की दुनिया में शुरुआत कर रहा था। नजदीकी सूत्रों
ने बताया कि फिल्म के प्रचार के लिए वह 40 दिन के टूर पर थे। गुरुवार को जालंधर में
एक मीडिया सम्मेलन के साथ इस टूर का समापन होना था।
भट्टी भारतीय
टेलीविजन व बॉलीवुड फिल्मों का एक लोकप्रिय चेहरा थे। उन्होंने 80 के दशक के आखिर
में व 90 के दशक
में ‘उल्टा-पुल्टा‘ व ‘फ्लॉप शो‘ जैसे कार्यक्रम
देकर दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। उन्होंने 1999 में एक फिल्म ‘माहौल ठीक है‘ का निर्देशन भी
किया। यह फिल्म पुलिस, प्रशासन व समाज पर एक व्यंग्य है। भट्टी सबसे प्रसिद्ध सिख
हास्य अभिनेता रहे हैं, जिन्होंने कई बॉलीवुड फिल्मों में अभिनय किया।
इंजीनियर कहें या
कार्टूनिस्ट, अभिनेता
कहें या डायरेक्टर-प्रोड्यूसर, व्यंग्यकार कहें या फिर कॉमेडियन। जसपाल
भट्टी एक ऐसा नाम है जिन्होंने जहां भी हाथ आजमाया वहां अपनी छाप छोड़ी। 3 मार्च 1955 को अमृतसर में
पैदा हुए जसपाल भट्टी शुरू से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे हैं। चंडीगढ़ के पंजाब
इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले जसपाल का झुकाव
शुरू से ही अभिनय की तरफ रहा।
कॉलेज के दिनों में
नॉनसेंस क्लब के जरिये उन्होंने स्ट्रीट प्ले से शुरुआत की। इसके बाद द ट्रिब्यून
अखबार में कार्टूनिस्ट के तौर पर भी काम किया। लेकिन उन्होंने पहली बार तब
सुर्खियां बटोरी जब दूरदर्शन में उल्टा पुल्टा शो लेकर आए। विशुद्ध कॉमेडी और बिना
द्विअर्थी संवाद के ही उन्होंने कॉमेडी की एक नई मिसाल पेश की। 80 के दशक में शुरू
हुए इस शो के लोग दीवाने हो गए थे। हाल ये था कि लोग दूरदर्शन में सुबह सुबह इस शो
का बेसब्री से इंतजार करते थे।
उल्टा पुल्टा के
साथ कॉमेडी का जो करियर शुरू हुआ उसके बाद जसपाल भट्टी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उल्टा पुल्टा के बाद फ्लॉप शो में वो अपनी पत्नी के साथ नजर आए। एक्टिंग के साथ
साथ भट्टी ने निर्देशन में भी हाथ आजमाया। टीवी पर उनके दूसरे शोज में थैंक्यू
जीजा जी, हॉय
जिंदगी-बॉय जिंदगी,
फुल टैंशन भी चर्चित रहे। छोटे पर्दे पर एक्टिंग के साथ साथ
जसपाल भट्टी ने सब टीवी के शो कॉमेडी का किंग कौन में जज के भूमिका भी निभाई।
2008 में अपनी पत्नी सविता के साथ डांस शो नच
बलिए में उन्होंने अपने डांस का हुनर भी दिखाया। टीवी शो ही नहीं बल्कि फिल्मों
में भी जसपाल भट्टी ने कॉमेडी के रंग दिखाए। इनमें श्फनाश्, श्कुछ मीठा हो
जाएश्, श्कुछ ना
कहोश्, श्कोई मेरे
दिल से पूछेश्, श्हमारा
दिल आपके पास हैश्,
श्आ अब लौट चलेंश्, श्इकबालश्, श्कारतूसश् जैसी कई
फिल्में शामिल हैं। हाल के समय में वो अपने बेटे के साथ पावर कट फिल्म में व्यस्त
थे।
फिल्म और टीवी
सीरियल ही नहीं बल्कि सड़क पर उतरकर भी जसपाल भट्टी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम
छेड़ी। कॉमेडी और व्यंग्य के जरिये न सिर्फ उन्होंने लोगों का मनोरंजन किया बल्कि
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद की और हमेशा समसामयिक ज्वलंत मुद्दों को उठाया।
इसके लिए उन्होंने कभी भी फूहड़ा भाषा या द्विअर्थी संवाद का सहारा नहीं लिया।
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