बुधवार, 30 नवंबर 2011

माल्या पर मेहरबानी की तैयारी


माल्या पर मेहरबानी की तैयारी

वायलर रवि बने माल्या के दरबारी


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। शराब माफिया या लिकर किंग की अघोषित उपाधि पाने वाले उद्योगपति सांसद विजय माल्या की ताल पर कांग्रेस अब ठुमके लगाती दिख रही है। विजय माल्या के पास अकूल दौलत है, उनकी शराब को पीकर समूचा देश झूमता है। उनके हवाई जहाज में राजनेता सैर करते हैं, तब फिर माल्या को सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस सर माथे पर भला क्यों न बिठाए। माल्या के पुत्र भी इन दिनों मीडिया की सुर्खियां बटोर रहे हैं।

देखा जाए तो किंगफिशर एयरलाईंस के मालिक विजय माल्या पर कांग्रेस की मेहरबानी की अनगिनत वजहें हैं। कांग्रेस के अंदरखाने में नागरिक विमानन मंत्री वायलर रवि और वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह के द्वारा विजय माल्या की तरफदारी के मायने खोजे जा रहे हैं। रवि और मनमोहन सिंह दोनों ही किंगफिशर की डूबती नैया को बचाने की पुरजोर कोशिशों में लगे हुए हैं।

कांग्रेस के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही चर्चाओं पर अगर यकीन किया जाए तो माल्या से कांग्रेस के नेता इसलिए भी खौफ खा रहे हैं क्योंकि कर्नाटक की राजनीति में माल्या की गहरी पकड़ है। सूबे के कम से कम एक दर्जन से अधिक विधायक माल्या के इशारों पर ही कदम ताल करते नजर आते हैं। वे माल्या के कहने पर दिन को रात तो रात को दिन तक कहने की स्थिति में हैं। इतना ही नहीं माल्या की मराठा क्षत्रप शरद पंवार से गलबहियां भी किसी से छिपी नहीं हैं।

त्रणमूल को तोड़ने में लगी कांग्रेस


त्रणमूल को तोड़ने में लगी कांग्रेस

ममता पर दबाव बनाने कांग्रेस की नई रणनीति



लिमटी खरे

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब कांग्रेस को गरिया रहीं हैं। इसी से हलाकान कांग्रेस के रणनीतिकार अब त्रणमूल कांग्रेस में फूट डालने के काम में लग गए हैं। ममता बनर्जी और रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी के बीच खाई खोदकर दोनों के बीच दूरियां जमकर बढ़ावा दी हैं कांग्रेस के प्रबंधकों ने। पिछले दिनों एक बैठक में भूतल परिवहन मंत्री जयराम रमेश ने दिनेश त्रिवेदी को बचा लिया वरना उनकी रेल तो कबकी पटरी से उतर गई होती।

दरअसल विज्ञान भवन में एनडीसी की बैठक आरंभ होने के लगभग दस मिनिट पहले वहां पहुंचे रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी की आसनी (कुर्सी) देश के ताकतवर गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम के ठीक बाजू में लगाई गई थी। यह दिनेश त्रिवेदी के लिए बेहद सम्मान की बात थी कि वे भारत गणराज्य के गृह मंत्री के ठीक बाजू में बैठे हों। कहा जा रहा है कि यह कांग्रेस की कूटनीति का एक हिस्सा ही था।

जब भूतल परिवहन मंत्री जयराम रमेश द्वारा रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी को उनकी कुर्सी ढूंढने में मदद की जा रही थी, तभी अनजाने में ही जयराम रमेश ने त्रिवेदी से कहा कि उनकी कुर्सी गृह मंत्री चिदम्बरम के साथ ही लगी है। आप मंच पर जाकर अपना स्थान ग्रहण करें। साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि त्रणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी अन्य प्रमुख उच्चाधिकारियों के साथ गैलरी में ही आसन ग्रहण करेंगी।

दिनेश त्रिवेदी इस बात से सहम गए। उन्होंने इस प्रोग्राम से भविष्य के परिदृश्य की कल्पना की और तत्काल ही एक एसा निर्णय लिया जिसने उनकी रेल मंत्री की कुर्सी को उस वक्त तो बचवा दिया। वे कांग्रेस की कुटिल चाल को भली भांति समझकर, चुपचाप मंच के बजाए नीचे गैलरी में बैठ गए। जब जयराम रमेश ने उनसे इसका कारण पूछा तो दिनेश त्रिवेदी ने फुसफुसाकर कहा -‘‘क्या मेरा दिमाग खराब है, जो मैं मंच पर बैठूं और मेरा नेता नीचे। अरे बाबा इस तरह तो मैं अपना मंत्री पद ही गंवा दूंगा।

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

लूट मची है मनरेगा के कामों में


लूट मची है मनरेगा के कामों में

रोजगार गारंटी का कोई लेखा जोखा ही नहीं पंचायतों के पास

अरबों की लूट मची है मनरेगा में

केंद्र की महात्वाकांक्षी योजना में भ्रष्टाचार की सड़ांध

एमपी में मनरेगा का कोई रिकार्ड नहीं!


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना (मनरेगा) में भ्रष्टाचार की कलई धीरे धीरे खुलने लगी है। एसा नहीं कि केंद्र को इसकी जानकारी नहीं है कि उसके द्वारा दी जाने वाली अरबों खरबों रूपयों की इमदाद को दिल खोलकर लूटा जा रहा हो। विडम्बना है कि कांग्रेस और केंद्र सरकार जनता के गाढ़े पसीने की कमाई में भ्रष्टाचार का इस्तेमाल महज चुनावी लाभ को मद्देनजर रखकर किया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होना तय हैं। इसी के मद्देनजर कांग्रेस में भविष्य के वजीरे आजम ने उत्तर प्रदेश में इस योजना को भ्रष्टाचार की बलिवेदी पर चढ़ने की बातें जोर शोर से उठाई जा रहीं हैं। हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि राहुल गांधी और कांग्रेस द्वारा जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से एकत्र धनराशि पर हो रही बंदरबांट को चुनावी मुद्दा ही बनाया जा रहा है।

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि भाजपा शासित राज्यों विशेषकर मध्य प्रदेश में इसकी हालत बेहद चिंताजनक है। बावजूद इसके मध्य प्रदेश विधानसभा में शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में इसका जिकर करना भी कांग्रेस ने उचित नहीं समझा। माना जा रहा है कि यह जनता से जुड़ा एक मुद्दा है जिसे कांग्रेस चुनावों के आसपास ही भुनाने का जतन करेगी।

सूत्रों ने कहा कि मध्य प्रदेश में अगर जिला स्तर पर इसकी मानिटरिंग करवा दी जाए तो देश का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है। गौरतलब है कि राज्य में पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 की धारा 69 (1) एवं धारा 92 के तहत यह अपराध योग्य मामला बनता है।

सूत्रों ने बताया कि पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के आला अधिकारियों के संज्ञान में यह लाया गया है कि एमपी में अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक प्रशिक्षु अधिकारी अभिजीत अग्रवाल द्वारा कांग्रेस के मण्डला सांसद बसोरी सिंह मसराम के संसदीय क्षेत्र में अपनी तैनाती के दौरान एक तहसील में मनरेगा से संबंधित कामों की मानीटरिंग आरंभ की है। उक्त अधिकारी द्वारा मनरेगा योजना के आरंभ होने से वर्तमान तक पूर्ण, अपूर्ण एवं कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी हो चुकी समस्त कार्यों की नस्ती को बुलाया गया है।

इतना ही नहीं प्रशिक्षु आईएएस अग्रवाल ने जॉब कार्ड रजिस्टर, परिसम्पत्ति रजिस्टर, मस्टरोल रजिस्टर, भुगतान पंजी आदि के अलावा अभिलेख तीन जी.पी. 01 से जी.पी. 14 प्रपत्र में अद्यतन जानकारी मंगाई है। उक्त अधिकारी ने उपयंत्रीवार पंचायतों का विवरण जारी कर बैठक निर्धारित कर दी गई है, जिसमें ग्राम पंचायत सचिव, ग्राम रोजगार सहायक, मेट आदि को आवश्यक प्रपत्र लेकर उपस्थित होना अनिवार्य किया गया है।

इस माह के अंत तक लगातार आहूत बैठकों का क्या निचोड़ निकलकर सामने आता है यह तो वक्त ही बताएगा किन्तु कहा जा रहा है कि अब तक हुई बैठकों में मनरेगा योजना के आरंभ से पिछले साल तक का कोई भी दस्तावेज ही उपलब्ध नहीं हो सका है जिससे साफ जाहिर हो रहा है कि संबंधित सब इंजीनियर्स द्वारा अपने राजनैतिक संरक्षण में शासकीय धन की जमकर होली खेली है।

सबसे अधिक आश्चर्यजनक तथ्य तो यह उभरकर सामने आया है कि मध्य प्रदेश में जिला स्तर पर हर साल पंचायतों का आडिट निजी तौर पर करवाया जाता है। अगर इनका आडिट हुआ है और सरकार ने निजी तौर पर किए गए इस आडिट का सरकारी भुगतान किया है तो फिर वे सारे प्रपत्र आखिर गए कहां। इसके आलवा जिला पंचायत और जनपद पंचायतों का आडिट हर साल महालेखा परीक्षक ग्वालियर द्वारा भी किया जाता है। इस तरह की गफलत होने पर आडिट विभाग पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक ही है।

कांग्रेस के सांसद बसोरी सिंह मसराम के संसदीय क्षेत्र में अगर केंद्र और कांग्रेस सरकार की महात्वाकांक्षी योजना में अगर भाजपा सरकार के कारिंदों द्वारा इस तरह धन की होली खेली जाती रही और जनता के सच्चे पहरूए खामोशी से सब कुछ देखते रह गए। वैसे मनरेगा की स्थिति कमोबेश संपूर्ण देश में इसी तरह की ही मानी जा रही है।

शक्तिशाली तिकड़ी में खिंच चुकी हैं तलवारें



बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 39

शक्तिशाली तिकड़ी में खिंच चुकी हैं तलवारें

पीएम, एफएम और एचएम के बीच नहीं रहा एका



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश की सबसे ताकतवर तिकड़ी वजीरेआजम (पीएम) डॉ.मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी (एफएम) और गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदंबरम (एचएम) के बीच अब समन्वय नहीं बचा है। वर्चस्व की जंग में तीनों महारथी अब एक दूसरे की जड़ें काटने की जुगत में लग चुके हैं। कांग्रेस की आलाकमान भले ही तीनों के बीच मचे इस घमासान पर पानी डालने के मुगालते में हो पर सच्चाई इससे इतर ही नजर आ रही है। तीनों महारथी अभी भी अंदर ही अंदर तलवारें पजा रहे हैं।

सियासी गलियारों में चल रही चर्चाओं के अनुसार एचएच और एफएम के बीच के रिश्ते अभी भी सामान्य नही नजर आ रहे हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि संसद के शीतकालीन सत्र में ही इनके बीच की रार उभरकर सामने आ सकती है। प्रणव मुखर्जी और चिदम्बरम के बीच की जंग अब उनके पुत्रों की जासूसी पर आकर टिक गई है जिससे लोग भयभीत हैं कि इनके बीच का शीत युद्ध भभक न जाए।

संसदीय इतिहास में पहली बार एसा हो रहा है कि प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री के बीच संबंध सामान्य न हों। इन तीन संवैधानिक पदों के बीच पहली बार तलवारें खिचीं नजर आ रही हैं। आलम इस कदर बिगड़ चुका है कि सत्ता के संवैधानिक केंद्र तीनों केंद्र एक दूसरे की जासूसी में लगे हुए हों। तीनों के साथ ही साथ कांग्रेस भी इस तथ्य से अनजान ही नजर आ रही है कि अगर इस राज से पर्दा हटेगा तो तीनों के साथ ही साथ कांग्रेस और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ही बेपर्दा नग्न नजर आएगी।

(क्रमशः जारी)

चेकिंग स्कवॉड अब नहीं दिखेगा स्लीपर कोच में!


चेकिंग स्कवॉड अब नहीं दिखेगा स्लीपर कोच में!

आधा दर्जन रेल में ग्रीन टायलेट अगले साल

सुस्त है रेल का अधुनिकीकरण



(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कंधे पर बैग टांगे सिविल यूनिफार्म में भारतीय रेल के शयनायन श्रेणी में जनरल टिकिट पर यात्रा करने वालों से जुर्माना वसूलने वाला चलित चेकिंग स्कवॉड आने वाले दिनों मे नहीं दिखाई पड़ेगा। इनके जिम्मे जनरल बोगी में ही बिना टिकिट यात्रा करने वालों की टिकिट चेकिंग की जवाबदारी डाली जा रही है। शयनायन श्रेणी में टिकिट चेकिंग का जिम्मा उसमें तैनात चल टिकिट परीक्षक (टीटीई) के जिम्मे ही होगा। इसके साथ ही साथ मंथर गति से होने वाले रेल्वे के आधुनिकरण के चलते महज छः रेल गाडियों में अगले साल ग्रीन टायलेट लगाने की कार्ययोजना को अंजाम दिया जाएगा।

रेल्वे बोर्ड के सूत्रों का कहना है कि लंबी या कम दूरी की रेलगाडियों में टीटीई के पास टिकिट की जांच के उपरांत इतना समय होता है कि वे आराम से अपनी तैनाती वाले कोच में बिना आरक्षण के यात्रा करने वाले यात्रियों की टिकिट की जांच कर उनसे जुर्माना वसूल करें। अमूमन ये टीटीई या तो कर्तव्य से अनुपस्थित ही रहते हैं और अगर रहते भी हैं तो ये सामान्य शयनायन श्रेणी में टिकिट चेक कर एसी कूपों में जाकर आराम फरमाते हैं।

सूत्रों ने कहा है कि बोर्ड ने अब नया फरमान जारी किया है जिसमें चेकिंग स्कवॉड का काम आरक्षित बोगी में वहां तैनात टीटीई के कांधों पर डाल दिया गया है। अब चेकिंग स्कवॉड न तो आरक्षित बोगी में टिकिट की जांच कर पाएगा और न ही अवैध वसूली। इन बोगियों में परीक्षण की जवाबदेही टीटीई के जिम्मे कर दी गई है। इस आशय के आदेश भी भारतीय रेल द्वारा जारी कर दिए गए हैं।

सामान्य बोगी में बिना टिकिट यात्रा करने वालों की टिकिट जांच का काम चेकिंग स्कवॉड करेगा। माना जा रहा है कि इससे इस स्कवॉड में शामिल कर्मचारियों पर गाज गिर सकती है। गौरतलब है कि स्कवॉड को हर साल जुर्माने से वसूली जाने वाली रकम का एक टारगेट दिया जाता है। साल भर सोने वाले इस स्कवॉड के सदस्य दिसंबर से मार्च तक पूरी सक्रियता दिखाकर जुर्माना वसूलकर अपना लक्ष्य पूरा करते हैं। इस स्क्वॉड के हाथ से अगर स्लीपर बोगी ले ली जाएगी तब इन्हें अपना लक्ष्य पूरा करने में काफी कठिनाई महसूस होगी।

उधर दूसरी ओर स्वयंभू प्रबंधन गुरू और तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपने कार्यकाल में एक सदी पुराने डायरेक्ट डिस्चार्ज टॉयलेट सिस्टम को बदलने की मंशा व्यक्त की थी। इससे जल मल निकासी सीधे प्लेटफार्म पर होने से गंदगी फैला करती है। रेल्वे ने सात सालों में भी इस व्यवस्था को बदला नहीं जा सका। भारतीय रेल में अभी भी चुनिंदा बोगियों में ही ग्रीन टायलेट की सुविधा उपलब्ध है।

सूत्रों ने बताया कि भारतीय रेल ने आईआईटी कानपुर से जीरो डिस्चार्ज का डिजाईन तैयार करवाया है। वर्तमान में ग्रीन टायलेट के लगभग दो सौ सेट के डीआरडीओ ने सफल परीक्षण किए हैं। रेल्वे की योजना है कि आने वाले दो सालों में आठ हजार से ज्यादा कोच में ग्रीन टायलेट लगाया जाए। रेल्वे के रिसर्च डेवलपमेंट एण्ड स्टेंडर्ड आर्गनाईजेशन ने अगले साल महज छः रेल गाडियों मं ग्रीन टायलेट लगाने की योजना बनाई है।

पटरी से उतर सकती है दिनेश त्रिवेदी की रेल


पटरी से उतर सकती है दिनेश त्रिवेदी की रेल

बदले जा सकते हैं रेल मंत्री त्रिवेदी

ममता हैं दिनेश से खासी खफा





(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। त्रणमूल खाते वाले देश के रेल मंत्रालय को जल्द ही नया निजाम मिल सकता है। इसके वर्तमान निजाम दिनेश त्रिवेदी और पश्चिम बंगाल की निजाम ममता बनर्जी के बीच रिश्तों में आई तल्खी से इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि दिनेश त्रिवेदी की रेल कभी भी पटरी पर से उतर सकती है। रेल्वे से जुड़े उद्योगपतियों से दिनेश त्रिवेदी का मंत्रालय के बजाए घर पर मिलना ममता को रास नहीं आ रहा है। साथ ही त्रणमूल के सांसदों को त्रिवेदी भाव नहीं दे रहे हैं।

रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी के करीबी सूत्रों का कहन है कि पूर्व रेल मंत्री और त्रणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी और वर्तमान रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी के बीच रिश्तों में खटास आ चुकी है। ममता के संज्ञान में यह लाया गया है कि दिनेश त्रिवेदी जानबूझकर त्रणमूल के सांसदों को तवज्जो नहीं दे रहे हैं। दिनेश त्रिवेदी पर आरोप है कि उन्होंने ममता कोटरी को दूध में से मख्खी की तरह निकालकर बाहर कर दिया है।

सूत्रों के मुताबिक दिनेश त्रिवेदी ने ममता के करीबी रहे अशोक सुब्रहमण्यम, रतन मुखर्जी, जयंतो साहा आदि के लिए अपने मंत्रालय के दरवाजे बंद करवा दिए हैं। इतना ही नहीं दिनेश त्रिवेदी ने अपनी पीएस भी बंगाल काडर की एक भारतीय प्रशासनिक सेवा की महिला अधिकारी को बनाया है पर वे हैं पंजाबी। ममता को यह नागवार गुजर रहा है। उक्त अधिकारी भी त्रणमूल की सिफारिशों पर कान नहीं दे रही हैं।

उधर ममता के करीबी सूत्रोें का कहना है कि पिछले दिनों जब रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी पश्चिम बंगाल प्रवास पर थे तब उन्होंने कलकत्ता मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से सोजन्य भेंट की थी। इस सोजन्य भेंट में ममता बनर्जी काफी उग्र नजर आईं। ममता ने दो टूक शब्दों में इस बात पर आपत्ति दर्ज कराई कि आखिर क्या वजह है कि दिनेश त्रिवेदी उद्योगपतियों से अपने रेल मंत्रालय के सरकारी कार्यालय में मिलने के बजाए अपने घर पर क्यों मिला करते हैं। सूत्रों ने संकेत दिए कि रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने अपना रवैया नहीं बदला तो उनकी रेल कभी भी पटरी से उतर सकती है।

सोमवार, 28 नवंबर 2011

यूपी में भ्रष्टाचार, यूपीए साफ सुथरी!


ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

यूपी में भ्रष्टाचार, यूपीए साफ सुथरी!
कांग्रेस की नजर में भविष्य के वजीरे आजम राहुल गांधी के दो चेेहरे देखकर दिल्लीवासी अचरज में हैं। राहुल गांधी के लिए प्रधानमंत्री आवास तक का रोड़ मैप तय करने में लगे हैं कांग्रेस के रणनीतिकार। इसीलिए राहुल गांधी को बने बनाए भाषण पढ़ने को दिए जाते हैं। राहुल के महिमा मण्डन के लिए मीडिया पर करोड़ों अरबों खर्च किए जा रहे हैं। राहुल की हर यात्रा में कितना खर्च होता है इस बात की कल्पना मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हाल ही में राहुल की नजरें यूपी के भ्रष्टाचार पर इनायत हैं। लोग उनके द्वारा माया मेम साहब पर तीखे वारों से काफी प्रसन्न हैं। महज बीस माह में केंद्र में कांग्रेसनीत यूपीए में अरबों करोड़ के सौ से अधिक घोटाले हो चुके हैं। जब केेंद्र के भ्रष्टाचार की बात आती है तो राहुल बाबा मौन हो जाते हैं। अब ऐसी स्थिति में यूपी में भ्रष्टाचार पर यूपीए साफ सुथरी! है न आश्चर्य की बात है राहुल बाबा को भ्रष्टाचार पर बोलने के वक्त यूपीए के भ्रष्टाचार न दिखने को क्या कहा जाएगा?

थप्पड़ पंवार के नहीं देश के गाल पर!
केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार के गाल पर झन्नाटेदार झापड़ क्या पड़ा मीडिया पिल पड़ा। सारा दिन चलती रही चेनल्स और वेब पोर्टल्स पर खबर, अगले दिन अखबारों ने भी जमकर शोर मचाया। भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक वजीरे आजम डाॅ.मनमोहन सिंह कह पड़े कि इसको ज्यादा तूल देने की जरूरत नहीं है। अरे भई क्यों न दिया जाए तूल। झापड़ किसी ओर को नहीं भारत गणराज्य के जिम्मेदार पद पर बैठी शख्सियत को पड़ा है। यह थप्पड़ राष्ट्र के मंत्री पर पड़ा है। दुनिया भर में भारत की क्या छवि बनी होगी? क्या मनमोहन सिंह इसे तूल न देने के बजाए राष्ट्र धर्म को गठबंधन धर्म से उपर बताकर शरद पंवार से त्यागपत्र मांग सकते हैं? नहीं, उन्हें सरकार जो चलाना है। भले ही इसके लिए देश के निवासी कोई भी कीमत चुकाते रहें, मनमोहन सिंह को तो बस अपनी कुर्सी की ही परवाह है।

जनता के पैसे हवा में उड़ाते दरिया दिल शिवराज
देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली के प्रेस क्लब में पिछले दिनों देश भर के हर सूबे के मुख्यमंत्रियों के बारे में चर्चा हो रही थी। सारे मुख्यमंत्रियों में दरियादिल मुख्यमंत्रियों के बारे में जब बारी आई तो देश के हृदय प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चैहान सबसे अव्वल दर्जे में आए। जनता के टेक्स से संग्रहित राजस्व को उड़ाने में शिवराज सिंह का कोई सानी नहीं है। अपना खुद का हवाई जहाज और चैपर होने के बाद भी शिवराज ने किराए के उड़न खटोलों में नौ करोड़ आठ लाख 21 हजार 764 रूपए फूंक दिए। सरकार ने भाजपा के मंत्रियों के अलावा जमुना देवी, कांग्रेस समर्थित राज्य सभा उम्मीदवार रहे विवेक तन्खा को हवा में सैर कराई। सबसे अधिक आश्चर्यजनक बात तो यह है कि शिवराज ने शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्ध्व ठाकरे जबर्दस्त प्यार उडेला और उन्हें भी एमपी के खर्चे पर हवा में सैर करवा दी।

गरमा गरम चिंकारा ले लो!
काले हिरण को विलुप्त प्रजाति का माना जा रहा है। इसके शिकार के आरोप में वालीवुड के न जाने कितने सितारों को सीखचों की हवा भी खानी पड़ी। फिर भी चिंकारा का शिकार नहीं रूक पा रहा है। सलमान खान, सैफ अली खान, नीलम, तब्बू, सोनाली बेंन्द्रे आदि को सपने में भी चिंकारा दिख जाता होगा तो वे जाग जाते होंगे। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक की समाप्ति के बाद इस साल भारतीय सेना सर्दियों में राजस्थान की दिन में तपती तो रात में हाड़ गलाने वाली ठंड में बड़ा युद्धाभ्यास कर रही है। सेना के केंप में से तीन चिंकारा के सिर मिलना वाकई हैरत की बात है। दुश्मनों का सिर काटने वाली सेना ने अपने ही भोजन के लिए काले हिरणों का शिकार कर डाला। यह वाकई भारतीय सेना के लिए शर्म की ही बात मानी जा रही है। अब सेना के आला अफसर चुप हैं, केंद्रीय गृह मंत्री चुप हैं, सबसे आश्चर्य तो इस बात का है कि विपक्ष को मानो पक्षाघात हो गया है इस मामले में।

सत्ता और संगठन में बढ़ी दूरियां
मध्य प्रदेश भाजपा में सब कुछ सामान्य नहीं है। शिवराज सिंह चैहान और सूबे के भाजपा महिला मोर्चा में तलवारों की खनक सुनाई पड़ने लगी हैं। एक तरफ महिला मोर्चा की प्रदेशाध्यक्ष श्रीमति नीता पटेरिया अपनी विधानसभा की चिंता में दुबली होती जा रहीं हैं और दूसरी ओर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान हैं कि उनकी ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। संभाग, आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, फोरलेन के मसले पर पीठ दिखाने के बाद अब शिवराज सिंह चैहान ने रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी से चर्चा के दौरान भी छिंदवाड़ा सिवनी नैनपुर की मांग न उठाकर नीता पटेरिया के प्रति अपना रवैया साफ कर दिया है। श्रीमति पटेरिया सांसद थीं और परिसीमन में सीट के अवसान के उपरांत तत्कालीन सिटिंग एमएलए नरेश दिवाकर की टिकिट कटवाकर विधायक बनीं हैं। श्रीमति पटेरिया का संसदीय अनुभव देखकर लग रहा था कि उन्हें लाल बत्ती से नवाजा जाएगा, वस्तुतः एसा हुआ नहीं।

फोरलेन हुआ दिल्ली भ्रमण का बहाना
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की राजग सरकार की महात्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में फंसा पेंच सिवनी के निवासियों के लिए दिल्ली भ्रमण का माध्यम बन चुका है। कांग्रेस और भाजपा के प्रतिनिधि जब चाहे तब दिल्ली की सैर करने जाते हैं और या तो दिल्ली से या फिर सिवनी जाकर विज्ञप्ति वीर नेता फोरलेन के रोडे हटाने की बात कहकर वाहवाही बटोर लेते हैं। हाल ही में विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर के नेतृत्व में एक पचास सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल दिल्ली आया। पता चला कि उन्होंने विज्ञप्ति जारी करवा दी कि केंद्रयी वन एवं पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन, भूतल परिवहन मंत्री जयराम रमेश और शहरी विकास मंत्री कमल नाथ इस मामले में जल्द ही कार्यवाही करेंगे। भले मानस, जब मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने ही प्रस्ताव केंद्र को नहीं भेजा तब भला केंद्रीय मंत्री किस बिनहा पर आश्वासन दे रहे हैं।

प्रणव मनमोहन में बढ़ी दरार
प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नजरें गड़ाए हुए प्रणव मुखर्जी अब दस जनपथ (सोनिया का सरकारी आवास) का विश्वास पुनः हासिल करने का जतन कर रहे हैं। कल तक मनमोहन सिंह और प्रणव मुखर्जी के बीच हुई संधि में प्रणव को उप प्रधानमंत्री बनाने की चर्चाएं थीं। कहा जा रहा था कि प्रणव ने कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ से दूरी बना ली थी। हालिया राजनैतिक समीकरणों से एक बार फिर प्रणव ने अपनी चाल बदल दी है। अब वे सोनिया के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने मशहूर नोबेल पुरूस्कार प्राप्त आर्थिक विश्लेषक जोसस इयूजिन स्टिगलिट्स को भारत आने का न्योता देकर सभी को चैंका दिया है। इन्होंने ही अमेरिका और यूरोप में आई आर्थिक मंदी की भविष्य वाणी की थी। उनका मिजाज सख्त बाजार समीक्षक का भी है। जानकारी इस न्योते को वजीरे आजम की मौजूदा बाजार नीति के खिलाफ प्रणव की पहल के तौर पर देख रहे हैं।

जन्म दिवस पर अभिनव अपील
ग्लोबल कायस्थ परिवार ने देश के पहले महामहिम राष्ट्रपति डाॅ.राजेन्द्र प्रसाद का जन्म दिन अंतर्राष्ट्रीय चित्रांश दिवस के तौर पर मनाने की अपील की है। डाॅक्टर राजेंद्र प्रसाद ने सादगी की प्रतिमूर्ति बनकर मूल्यों को कायम रख कायस्थ वंशजों का मान बढ़ाया है। ग्लोबल कायस्थ फेमली के अध्यक्ष संजय श्रीवास्तव ने उक्ताशय की अपील करते हुए कहा है कि भगवान चित्रगुप्त के वंशजों की एकता के लिए सभी चित्रांश बंधु राजेंद्र बाबू के जन्म दिवस पर 3 दिसंबर को स्थानीय स्तर पर सामाजिक संस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर उन्हें याद करें। उन्होंने अपील की है कि इस दिन स्थानीय स्तर पर रक्त दान शिविर जैसे प्रोग्राम का आयोजन सराहनीय हो सकता है।

दिल के अरमा आंसुओं में बह गए. . .
कहते हैं कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान और कांग्रेस के नेताओं के बीच अघोषित अदृश्य समझौता है। शिवराज अपने सूबे में केंद्र और कांग्रेस पर जमकर बरसते हैं, पर जब दिल्ली आते हैं तब वे खामोशी ओढ़ लेते हैं। यह बात भाजपा और कांग्रेस के नेशनल लेवल के नेताओं के संज्ञान में आ चुकी है। पिछले दिनों शिवराज सिंह चैहान ने भोपाल में राजा भोज सहस्त्राब्दी समारोह में घोषणा कर दी कि भोपाल का नाम भोजपाल किया जाएगा। एमपी कोटे के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री को यह बात नागवार गुजरी। उन्होंने इसका प्रस्ताव केंद्र को ही न जाए इसके लिए एडी चोटी एक कर दी। बाद में जैसे तैसे मामला केंद्र के पास गया तो उन्होंने अपना वीटो पावर लगा दिया इसे रद्द करवाने में। केंद्र को तीस शहरों के नाम बदलने के प्रस्ताव मिले, भोपाल को छोड़कर शेष 29 को हरी झंडी मिली और शिवराज का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया।

राहुल की नजरें भूरिया पर तिरछी!
कांग्रेस की नजर में भविष्य के वजीरे आजम राहुल गांधी इन दिनों संगठन के काम काज में ज्यादा रूचि दिखाने लगे हैं। उनकी नजरें मध्य प्रदेश पर भी हैं। मध्य प्रदेश में 14 से 19 नवंबर तक चलने वाले पोल खोल अभियान पर उन्होंने विशेष नजर रखी थी। मध्य प्रदेश में यह अभियान चारों खाने चित्त गिरा। राहुल के करीबी सूत्रों का कहना है कि इसके लिए राहुल ने भूरिया को लताड़ा भी है। राहुल इस बात से ज्यादा चकित बताए जाते हैं कि मध्य प्रदेश में राजा दिग्विजय सिंह, कमल नाथ, ज्यातिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचैरी, अरूण यादव, मध्य प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर, खुद कांति लाल भूरिया, मीनाक्षी नटराजन, राहुल सिंह, श्रीनिवास तिवारी, जैसे प्रदेश के दिग्गजों के क्षेत्र में भी पोल खोल अभियान परवान नहीं चढ़ सका। सारी जमीनी हकीकत से रूबरू होने के बाद राहुल गांधी का पारा सातवें आसमान पर पहुंचना लाजिमी ही था।

हंगामा है क्यूं बरपा. . .
केंद्रीय मंत्री शरद पंवार को थप्पड़ पड़ा और हंगामा हो गया। सबसे ज्यादा चीख पुकार तो तब हुई जब सरकार को हिलाने वाले अण्णा हजारे ने कहा -‘‘क्या बस एक ही मारा!‘‘ दोनों ही महाराष्ट्र सूबे से हैं। पंवार और हजारे के बीच की अनबन किसी से छिपी नहीं है। दोनों एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। फिर क्या था पंवार समर्थकों ने बबाल काटा। पंवार समर्थक अण्णा के गांव रालेगण सिद्धि में जाकर हंगामे पर उतर आए और अनशन पर बैठ गए। अण्णा समर्थक भी पीछे नहीं रहे। झड़पों के कई दौर हुए उनके बीच। आरोप प्रत्यारोप के बीच अण्णा समर्थकों ने कहा कि जब किसानों पर गोलियां दागी जाती हैं तब कहां रहते हैं एनसीपी के लोग। इस सबका दुखद पहलू यह था कि अहिंसा का पाठ पढाने वाले अण्णा के गांव के लोग पत्थरबाजी तक पर उतर गए।

पुच्छल तारा
इस समय हरविंदर सिंह का पंजा और शरद पंवार का गाल हाट टापिक है। जिसे देखो वह इसी बात में लगा हुआ है। अहमदनगर से अखिल जैन से एक ईमेल भेजा है। अखिल लिखते हैं कि हरविंदर सिंह ने पहले सुखराम पर हमला बोला, सुखराम को जेल हो गई। अब हरविंदर ने शरद पंवार को मारा, तो क्या पंवार भी जेल जाएंगे। कभी कभी तो लगता है कि अण्णा हजारे ही गलत हैं। एसे लोगों को जेल में बंद करने का यही रास्ता शायद ठीक है। अधिकतर लोगों का मानना है कि हरविंदर जी आपका तरीका गलत हो सकता है पर आप किसी भी दृष्टिकोण से गलत नहीं हैं। इसके साथ ही वे आगे लिखते हैं 
एक सरदार, बैठा था बेकार!
मंहगाई से था लाचार!!
उसकी मां को आया विचार!
खिलाया उसको सिंधी अचार!!
हो गया चमत्कार!
लाफा खाया शरद पंवार!!

शिव के राज में बुरी तरह प्रदूषित हैं नदियां


शिव के राज में बुरी तरह प्रदूषित हैं नदियां

बैनगंगा है पूरी तरह प्रदूषण मुक्त!

उद्योगों की मार से बढ़ा नदियों में प्रदूषण

मोक्ष मांगती मोक्षदायनी क्षिप्रा

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश की जीवन रेखा मानी जाती है नर्मदा। इसके अलावा जीवनदायनी कल कल बहती नदियों में चंबल, क्षिप्रा, बेतवा, कलियासोत, मंदाकनी, टोंस, खान आदि नदियां हैं, जो देश के हृदय प्रदेश में जीवन बांटती चल रही हैं। इनमें से बैनगंगा नदी को छोड़कर शेष सारी नदियां मध्य प्रदेश में प्रदूषण के मानकों पर रडार पर ही हैं। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय नदियों की इस तरह हो रही दुर्दशा के लिए चिंतित नजर आ रहा है, पर मध्य प्रदेश के सांसदों को इस बात की कतई परवाह नहीं है।

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का दावा है कि एक सर्वेक्षण में यह बात उभरकर सामने आई है जो चिंताजनक मानी जा सकती है। सूत्रों ने कहा कि भविष्य की अचल संपत्ति अब पानी ही होने वाली है और राज्य सरकार पानी के मामले में इस कदर बेपरवाह है कि आने वाले सालों में स्थिति की भयावहता का अंदाजा लगाना कठिन ही है। विकास के नाम पर औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है किन्तु मानकों का पालन न किए जाने की स्थिति में यह विकास भविष्य में वास्तव में विनाश ही साबित होने वाला है।

सूत्रों के अनुसार नदियों में बाॅयो केमिकल आक्सीजन डिमांड अर्थात बीओडी की मात्रा का आंकलन किया गया, जिसके परिणाम चिंताजनक मिले हैं। पानी में इसका निर्धारित मानक प्रति लीटर में तीन मिली ग्राम होना चाहिए। आश्चर्य तो तब हुआ जब सूबे की आर्थिक राजधानी इंदौर में खान नदी में यह 17 फीसदी अधिक मिला। इंदौर की खान नदी में इसकी मात्रा पचास मिली ग्राम प्रति लीटर पाई गई। इंदौर में नदी के प्रदूषित होने का सबसे बड़ा कारण वहां जल मल निकासी का पानी खान नदी में मिलना है।

उज्जैन के नागदा क्षेत्र में औद्योगिक संयंत्रों के जहरीले अपशिष्ट से यहां क्षिप्रा बुरी तरह प्रदूषित हो रही है। नागदा में चंबल नदी में बीओडी का स्तर 34 मिली ग्राम मिला है। वहीं उज्जैन में क्षिप्रा में इसकी मात्रा प्रंदह पाई गई। अमरकंटक से निकलकर बरास्ता जबलपुर नरसिंहपुर होशंगाबाद पहुंची मध्य प्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा में इसकी मात्रा होशंगाबाद में 11.4 पाई गई। इसी तरह टोंस में 8 तो रायसेन में बेतवा नदी में 6.8, औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप में कलियासोत नदी में यह 5 तो चित्रकूट में मंदाकनी में इसकी मात्रा 5 मिली ग्राम प्रति लीटर पाई गई।

मध्य प्रदेश की इकलौती नदी बैनगंगा है जो प्रदेश में प्रदूषण मुक्त मानी गई है। भगवान शिव की नगरी सिवनी से सात किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में मंुडारा से प्रकट हुई बैनगंगा नदी पर सिवनी जिले में ही एशिया का सबसे बड़ा मिट्टी का बांध भीमगढ़ बनाया गया है। यहां से यह बालाघाट होते हुए महाराष्ट्र में प्रवेश कर जाती है। इस नदी में बीओडी की मात्रा आपेक्षाकृत निर्धारित ही पाई गई।

नदियों पर बीओडी के सर्वेक्षण से प्रदेश में पेयजल प्रदाय करने वाली नदियां ही बुरी तरह प्रभावित नजर आ रही हैं। नदियों में मानक स्तर से अधिक प्रदूषण पाए जाने से अब राजनैतिक राजधानी भोपाल, आर्थिक राजधानी इंदौर, संस्कारधानी जबलपुर, धार्मिक नगरी उज्जैन, चित्रकूट, सहित खण्डवा, रायसेन, नरसिंहपुर आदि शहरों में इन नदियों का पानी आचमन के योग्य भी नहीं बचा है। इस तरह के प्रदूषित पानी से स्नान करने पर चर्मरोगों का खतरा स्वयमेव ही बढ़ जाता है।

फोर जी सबसे पहले एमपी में


फोर जी सबसे पहले एमपी में

मंत्री सांसद उदासीन फिर भी एमपीसीजी आगे

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भले ही दूरसंचार के टू जी स्पेक्ट्रम में विवादों का सिलसिला अभी थमा नहीं हो पर देश का अविभाजित हृदय प्रदेश फोर जी सुविधा में बाजी मार ले जाएगा। अविभाजित मध्य प्रदेश (अब मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़) में फोर जी नेटवर्क कनेक्टिविटी सबसे पहले आने की संभावनाएं प्रबल हो गई हैं।

दूसरसंचार मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने उक्ताशय की जानकारी देते हुए कहा कि अगले साल हिन्दुस्तान पहुंचने वाली फोरजी तकनीक के लिए मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में धरातल तलाशा जा रहा है। सूत्रों के अनुसार यद्यपि इसके लिए मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के किसी मंत्री या सांसद ने प्रयास नहीं किए हैं, फिर भी इस सेवा के लिए एमपी सीजी को ही मुफीद माना जा रहा है।

सूत्रों ने आगे कहा कि अगले साल की दूसरी तिमाही में फोर जी नेटवर्क कनेक्टविटी मध्य प्रदेश की राजनैतिक राजधानी भोपाल, व्यवसायिक राजधानी इंदौर तथा छत्तीसगढ़ की राजनैतिक राजधानी रायपुर में लाॅच होने की उम्मीद है। औगेर नामक एक ब्रितानी कंपनी ने इरिक्सन के साथ किए अनुबंध के बाद इस नई टेलीकाम सेवा को जूश के नाम से आरंभ कर सकती है।

तानाशाह हैं दिग्विजय: राजा


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 38

तानाशाह हैं दिग्विजय: राजा

उल्टा पड़ा दिग्विजय का तीर

दिग्गी राजा के बयान पर सोनिया को घेरा भाजपा ने

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। वजीरे आजम डाॅ.मनमोहन सिंह के खिलाफ परोक्ष तौर पर माहौल बनाने वाले कांग्रेस के आला नेता अब अपने ही जाल में खुद घिरते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस की राजनीतिक बिसात में इक्कीसवीं सदी के चाणक्य की भूमिका निभाने वाले महासचिव राजा दिग्विजय सिंह को माकपा नेता डी.राजा ने तानाशाह तक कह डाला। उधर मार्शलों पर राजा दिग्विजय सिंह की टिप्पणी के चलते भाजपा ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को जमकर घेरा है।


कांग्रेस में चल रही चर्चाओं के अनुसार मनमोहन सिंह की रूखसती और राहुल गांधी की ताजपोशी का ताना बाना बुन रहे कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने हाल ही में एक विवादित बयान देकर कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं। पहले ट्टीट मंत्री के नाम से विख्यात शशि थरूर ने कांग्रेस के लिए अपने ट्वीट के माध्यम से मुश्किलें पैदा की थीं अब राजा दिग्विजय सिंह थरूर से प्रेरणा लेकर विवादित ट्वीट कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि दिग्गी राजा ने यह बयान इसलिए दिया था कि इससे मनमोहन की मुश्किलें बढ़ें पर उनका दांव उल्टा पड़ा और यह बयान कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब बनता दिख रहा है।


दिग्विजय सिंह ने हालिया ट्वीट में कहा है कि संसद का एक दिन और बर्बाद हो गया। 2004 से संसद में मार्शलों का इस्तेमाल नहीं हुआ है। अब इनके इस्तेमाल का उचित समय आ गया है। दिग्विजय सिंह का ट्वीट जैसे ही आॅन एयर हुआ वैसे ही विपक्ष ने इसे लपक लिया और कांग्रेस को घेरने की रणनीति बना डाली।


भाजपा के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने इस पर तल्ख आपत्ति दर्ज करते हुए इसकी निंदा की और कहा कि वे यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी से पूछना चाहते हैं कि क्या सरकार ताकत के बल पर संसद चलाना चाहती है। साथ ही सोनिया से प्रश्न करते हुए जावड़ेकर ने यह भी कहा कि सोनिया यह स्पष्ट करें कि वे दिग्विजय के बयान से सहमत हैं या उनके खिलाफ कार्यवाही करेंगीं।


उधर माकपा नेता डी.राजा तो दिग्गी राजा के बयान से बेहद ही असहज नजर आए। उन्होंने साफ कहा कि दिग्विजय सिंह चाहते हैं कि सांसदों को संसद से ही उठाकर बाहर फेंक दिया जाए। राजा का कहना है कि दिग्विजय सिंह एक सूबे के सीएम रहे हैं तो उन्हें बेहतर मालूम होगा कि विधान के लिए स्थापित संस्थाओं की कार्यप्रणाली क्या रहती है। उन्होंने कहा कि वे भी चाहते हैं कि संसद चले, पर इसका मतलब यह नहीं कि सरकार मनमानी करे और विपक्ष खामोश बैठा रहे। उन्होंने इसे तानाशाही निरूपित करते हुए दिग्विजय सिंह पर अनेक प्रहार किए।


(क्रमशः जारी)

जुंआ नहीं, कौशल का खेल है रमी!


जुंआ नहीं, कौशल का खेल है रमी!

रमी में लुट रहे कुलीन परिवार के लोग

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश की राजनैतिक राजधानी में कुलीनों के एकत्र होकर मनोरंजन करने के एक स्थान (क्लब) में धोखा धड़ी और लूट आम बात हो गई है। राजधानी के एक क्लब में पिछले काफी अरसे से रमी में लूटने की शिकायतें मिलने पर क्लब प्रबंधन ने काफी समय से नोटिस बोर्ड पर एक सूचना चस्पा कर रखी है जिसमें रमी कार्ड खेलने वालों के लिए चेतावनी साफ तौर पर अंकित है।

राजधानी के ख्यातिलब्ध जिमखाना क्लब जिसमें प्रधानमंत्री, मंत्री, महामहिम राज्यपाल, वरिष्ठ नौकरशाह, सांसद, विधायक, उद्योगपति, पूंजीपति सदस्य हैं के नोटिस बोर्ड पर ताश का खेल रमी खेलने वालों के लिए बाकायदा चेतावनी का नोटिस चस्पा होना आश्चर्यजनक ही है।

क्लब के एक सदस्य ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि क्लब प्रबंधन को शिकायतें मिल रही थीं कि रमी के खेल को गलत तरीके से प्रभावित करने के लिए जीतने पर ज्यादा प्वाईंट और हारने पर कलात्मक तरीके से कम अंक दर्शाए जाते हैं। इससे प्रति प्वाईंट लेन देन प्रभावित होता है।
उन्होंने कहा कि क्लब प्रबंधन ने बार बार खिलाडि़यों को चेताया पर खिलाड़ी नहीं माने तब मजबूरी में प्रबंधन को अपने नोटिस बोर्ड पर ही चेतावनी चस्पा कर दी। यह एक एसा प्रतिष्ठित क्लब है जहां सदस्य बनने के लिए तीन दशक अर्थात तीस साल तक इंतजार करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि एक पुरानी अदालत ने यह व्यवस्था दी थी कि रमी को जुंआ नहीं वरन् कौशल के एक खेल के रूप में देखा जाता है।

रविवार, 27 नवंबर 2011

भाजपा में स्थापित हो चुके हैं गड़करी


भाजपा में स्थापित हो चुके हैं गड़करी

महात्वाकांक्षा उजागर न कर सबको साध लिया है गड़करी ने

रिसाए नेता फिर लौटे घर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। महाराष्ट्र की संस्कारधानी और सूबाई राजनीति से एकाएक उठकर भाजपाध्यक्ष बनकर राष्ट्रीय परिदृश्य में उभरने वाले नितिन गड़करी को कम ही आंका जा रहा था। माना जा रहा था कि वे पार्टी में अपने समकक्ष नेताओं के सामने बौने ही साबित होंगे। महात्वाकांक्षाओं को पिंजरें में बंद कर गड़करी ने वो चाल चली कि सारे पूर्वानुमान और आंकलन ही ध्वस्त हो गए। गड़करी अब भाजपा की राजनीति में पूरी तरह स्थापित ही नजर आ रहे हैं।

गड़करी के अध्यक्ष बनने के वक्त लोगों का आश्चर्य जायज था कि आखिर महाराष्ट्र जैसे सूबे का नेतृत्व भी न करने वाले व्यक्ति को कैसे देश का अध्यक्ष बना दिया गया। दरअसल गड़करी की जडें संघ में काफी गहराई तक गई हुईं हैं। अध्यक्ष बनने के बाद गड़करी ने कोई चुनाव नहीं लड़ा और अपनी व्यक्गित महात्वाकांक्षांओं को अपने उद्देश्य के उपर हावी नहीं होने दिया।

गड़करी के करीबी सूत्रों का कहना है कि भाजपा में गुटीय राजनीति समाप्त करने के लिए उन्होंने पार्टी से विमुख होकर गए रिसाए अर्थात नाराज नेताओं की घर वापसी का अभियान चलाया। गड़करी दरअसल पार्टी में व्याप्त गुटबाजी से बुरी तरह आहत थे। जैसे ही उन्होंने संजय जोशी के पुर्नवास और उमा भारती की घर वापसी का कदम उठाया वैसे ही उनका विरोध होना आरंभ हुआ।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चाहते थे कि उमा भारती की घर वापसी ना हो पर पिछड़े वोट बटोरने के लिए उमा की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही थी। उधर गुजरात के निजाम नरेंद्र मोदी थे संजय जोशी के पुर्नवास में सबसे बड़ी बाधा। गड़करी ने दोनों ही अप्रिय फैसले लिए और आज पार्टी में सब कुछ सामान्य ही नजर आ रहा है।

मीरा भी बो रहीं हैं मन की राह में शूल


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 37

मीरा भी बो रहीं हैं मन की राह में शूल

लोस अध्यक्ष की नजरें हैं पीएम की कुर्सी पर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह की चला चली की अटकलों के बीच अब उनके स्थान पर प्रणव मुखर्जी, पलनिअप्पम चिदंबरम, राजा दिग्विजय सिंह के साथ ही साथ अब लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार का नाम भी सामने आ रहा है। कांग्रेस का एक धड़ा दलित और महिला कार्ड में मीरा कुमार को मुफीद मान रहा है। सोनिया गांधी को भी इस बारे में विस्तार से बता दिया गया है कि अगर मनमोहन सिंह को पदच्युत कर मीरा कुमार को प्रधानमंत्री बना दिया जाता है तो इसके सकारात्मक परिणाम उत्तर प्रदेश चुनावों में सामने आने की उम्मीद है।

पिछले महीने वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और गृह मंत्री चिदम्बरम के बीच चल रहे युद्ध के विराम के लिए सोनिया को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। इसी बीच मीरा कुमार ने भी सोनिया से भेंट कर उनसे लगभग एक घंटे चर्चा की थी। कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के उच्च पदस्थ सूत्रों ने उक्ताशय की बात बताते हुए कहा कि सोनिया और मीरा कुमार की चर्चा का लब्बो लुआब यह था कि सोनिया ने मीरा को इशारों ही इशारों में प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने की बात कह दी थी।

सूत्रों ने कहा कि हालिया राजनैतिक माहौल में यह तो यह हो गया है कि अब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 2014 में तो कांग्रेस चुनाव लड़ने से रही। कांग्रेस तो बजट सत्र के पहले ही मनमोहन की मन से बिदाई चाह रही है। मीरा कुमार वैसे भी स्व.जगजीवन राम की सुपुत्री हैं, जिन्हें कांग्रेस ने प्रधानमंत्री के बतौर स्वीकार करने से मना कर दिया था।

(क्रमशः जारी)

शनिवार, 26 नवंबर 2011

भूरिया से नाराज हैं युवराज



भूरिया से नाराज हैं युवराज

पोल खोल अभियान की असफलता से खफा हैं राहुल

आला नेताओं के क्षेत्रों ही फ्लाप शो बना अभियान

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कमान संभालने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री कांति लाल भूरिया के कदम तालों से कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी बुरी तरह खफा नजर आ रहे हैं। मध्य प्रदेश में 14 से 19 नवंबर तक चलने वाले पोल खोल अभियान की असफलता के बारे में राहुल को जब विस्तार से जानकारी दी गई तो उनकी भवें तन गईं। राहुल को यह भी बताया गया कि मध्य प्रदेश के क्षत्रपों के अपने इलाकों में ही यह अभियान परवान नहीं चढ़ पाया।

गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिन 14 नवंबर से 19 नवंबर तक केंद्र सरकार की जन लोककल्याणकारी नीतियों और योजनाओं की जानकारी ग्रामीण स्तर तक पहुंचाने के लिए कांग्रेस को अभियान चलाने के निर्देश दिए गए थे। इस दौरान कांग्रेस द्वारा मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के द्वारा केंद्र पोषित योजनाओं को अपनी बताए जाने की पोल भी खोली जानी थी।

प्राप्त जानकारी के अनुसार छः दिवसीय अभियान में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार, सर्व शिक्षा अभियान, मध्यान भोजन, राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन, इंदिरा आवास योजना, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क मिशन, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, राजीव गांधी आवास योजना, समनवित बाल विकास योजना (आईसीडीएस), समग्र स्वच्छता अभियान, सिंचाई लाभ अभियान, राष्ट्रीय उद्यानिकी मिशन, राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना, उर्जा विकास और सुधार जैसे जनता से जुड़े अभियानों के बारे में जन जन तक केंद्र और कांग्रेस की रीति नीति पहुंचाया जाना था।

मध्य प्रदेश में कांति लाल भूरिया की पकड़ संगठन पर इस कदर कमजोर है कि केंद्र की योजनाओं और भाजपा को घेरने में कांग्रेस पूरी तरह से असफल ही रही है। कांग्रेस की नजर में भविष्य के वजीरे आजम राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी को यह भी बताया गया है कि मध्य प्रदेश के क्षत्रपों राजा दिग्विजय सिंह, कमल नाथ, ज्यातिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी, अरूण यादव आदि के क्षेत्रों में यह अभियान टॉय टॉय फिस्स ही रहा।

इतना ही नहीं मध्य प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर, खुद कांति लाल भूरिया, मीनाक्षी नटराजन, राहुल सिंह, श्रीनिवास तिवारी, जैसे प्रदेश के दिग्गजों के क्षेत्र में भी पोल खोल अभियान परवान नहीं चढ़ सका। सूत्रों ने बताया कि राहुल के दरबार में हाजिरी भरने को आतुर मध्य प्रदेश के क्षत्रपों के इलाकों में जिला और ब्लाक कांग्रेस कमेटियों द्वारा इसका प्रचार प्रसार नहीं करवाया गया, जिससे कांग्रेस के सदस्योें को ही इसकी जानकरी नहीं मिल सकी। सारी जमीनी हकीकत से रूबरू होने के बाद राहुल गांधी का पारा सातवें आसमान पर पहुंचना लाजिमी ही था।

राहुल का मीडिया मैनेजमेंट आरंभ


राहुल का मीडिया मैनेजमेंट आरंभ

टीम राहुल में पत्रकारों का वर्चस्व बढ़ा

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। सियासी गलियारों में वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह की बिदाई की बेला नजदीक ही मानी जा रही है। राहुल गांधी को हालिया राजनैतिक परिस्थियों में प्रधानमंत्री बनाना आत्मघाती हो सकता है, इसीलिए उन्हें अपनी बीमारा माता श्रीमति सोनिया गांधी से अध्यक्ष पद लेने का मशविरा अखबरों के माध्यम से दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इक्कीसवीं सदी के कांग्रेस के अघोषित चाणक्य राजा दिग्विजय सिंह के इशारे पर ही सब कुछ प्लांट किया जा रहा है।

कांग्रेस के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो राहुल जल्द ही कांग्रेस की और राजा दिग्विजय सिंह देश की कमान संभालने वाले हैं। हाल ही नेहरू गांधी परिवार (महात्मा गांधी नहीं) के पारिवारिक और पेशे से पत्रकार पंडित मित्र के पुत्र जो एक बिजनिस दैनिक में लिखा भी करते हैं, को टीम राहुल में स्थान दिलाया गया है। टीम राहुल में अब जल्द ही पत्रकारों की तूती बोलती नजर आएगी।

टीम राहुल के उक्त युवा सदस्य दरअसल राजा दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में उनकी देश विदेश में अघोषित तौर पर पीआर संभालने वाले अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी और दिग्गी राजा के तत्कालीन सचिव रहे आर.गोपालकृष्णन के दमाद भी हैं। चर्चाओं पर अगर यकीन किया जाए तो टीम राहुल के उक्त युवा सदस्य ने दिग्गी राजा के इशारे पर ही लेख लिखकर इस बात को हवा दी है कि वक्त आ गया है कि अब राहुल को संगठन की बागडोर सोनिया से अपने हाथों में ले लेना चाहिए।

थप्पड़ ने दिया मनमोहन को एक नायाब मौका


बजट तक शायद चलें मनमोहन . . . 36

थप्पड़ ने दिया मनमोहन को एक नायाब मौका

अब सोनिया से फ्री हेण्ड की मांग कर सकते हैं मनमोहन

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार को गुरूवार को दिल्ली में पड़ सार्वजनिक और झन्नाटेदार थप्पड़ से अब मनमोहन सिंह नई रणनीति बना सकते हैं। बेकाबू मंहगाई, घपले, घोटाले और भ्रष्टाचार के ईमानदार संरक्षक बन बैठे मनमोहन ंिसंह चाहें तो यह झन्नाटेदार थप्पड़ उनके लिए टर्निंग प्वाईंट बन सकता है। मनमोहन जुंडाली इसकी रणनीति बनाने में जुट गई है।

पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि सत्ता और संगठन के बीच सब कुछ सामान्य नहीं है। मनमोहन सिंह और सोनिया के बीच खिची दुर्लभ्य खाई अब और गहरी होती जा रही हैै। एक तरफ सोनिया अपने पुत्र राहुल गांधी की ताजपोशी जल्द से जल्द चाह रहीं हैं तो दूसरी ओर सधे कदमों से मनमोहन सिंह सियासी कीचड़ इस कदर फैला रहे हैं कि राहुल के लिए ताजपोशी की राह कीचड़ से सन जाए।

सोनिया जुंडाली जब भी मनमोहन को हटाने का अभियान तेज करती है, उसके साथ ही मनमोहन सिंह अपने बचाव में मीडिया की शरण में जा पहुंचते हैं। इस साल के आरंभ में जब मनमोहन पर संकट के बादल छाए तब उन्होंने संपादकों की टोली को बुलाकर खुद को निरीह और बेबस बताकर गठबंधन धर्म को राष्ट्र धर्म के उपर रखने की अपनी मजबूरी को जाहिर कर परोक्ष तौर पर सोनिया को कटघरे में खड़ा कर दिया था।

सूत्रों का कहना है कि वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह को मशविरा दिया गया है कि वे अब मीडिया के सामने प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर जाएं या खबर प्लांट करवाएं कि वे शरद पंवार को पड़े इस कनकनाते थप्पड़ के बाद भ्रष्टों की मश्कें कसने के लिए सोनिया गांधी से फ्री हेण्ड चाह रहे हैं। अगर उन्हें आजादी मिल गई तब वे अपनी छवि सुधार लेंगे और अगर नहीं मिली तो भद्द तो सोनिया की ही पिटनी है।

(क्रमशः जारी)