मध्यावधि चुनाव का खतरा मण्डरा रहा
है देश में
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)। केंद्र में सत्ता
रूढ कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही के कदमताल देखकर लगने लगा है कि इस साल
के अंत तक यह तय हो जाएगा कि देश में मध्यावधि चुनाव होगा या 2014 में ही आम चुनाव का बिगुल
बजेगा। पांच राज्यों के चुनावों में कांग्रेस की हालत और दिल्ली नगर निगम चुनावों में
भाजपा का परफार्मेंस आश्चर्यजनक रहा है जिस पर मंथन चल ही रहा है। आने वाले समय में
साल के अंत में होने वाले गुजरात और हिमाचल चुनाव तय करेंगे कि देश को मध्यावधि चुनावों
की आग में झोंका जाएगा या फिर तयशुदा समय पर ही चुनाव होंगे।
पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों
में औंधे मुंह गिरी कांग्रेस को एक और बड़ा झटका दिल्ली नगर निगम चुनावों में लगा। घपले,
घोटाले
और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की छवि अब लगभग ना के
बराबर ही बची है। सेना के साथ विवाद से यह भी साफ हो गया कि यूपीए टू में कुशल प्रशासकों
की कमी है।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष
केंद्र 10, जनपथ के सूत्र बताते हैं कि रणनीतिकार इस समय इस बात को मथने
में लगे हैं कि आखिर क्या वजह है कि पांच राज्यों में खराब प्रदर्शन के बाद दिल्ली
एमसीडी में तीनों स्थानों पर कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। इसके अलावा बंग्लुरू,
चेन्नई
और मुंबई में भी कांग्रेस के प्रदर्शन पर प्रश्नवाचक चिन्ह लग चुके हैं।
राज्यों में खराब प्रदर्शन से साफ
हो गया है कि कांग्रेस का ग्रामीण अंचलों में तो जनाधार खिसका ही है साथ ही साथ उसने
शहरों में भी अपने परंपरागत वोटर्स को दूर कर दिया है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस
ने एक अंदरूनी सर्वे करवाया है जिससे उसके आला नेताओं की नींद उड़ी हुई है। सर्वे के
अनुसार कांग्रेस की हालत हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में
आज भी बेहद पतली ही है।
एमपी में सूबाई इकाई पर भाजपा के
इशारों पर नाचने का आरोप है। कहा जा रहा है कि एमपीसीसी के प्रेजीडेंट कांतिलाल भूरिया
ने एक सूची कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को सौंपी है जिसमें उन आला नेताओं
के नाम हैं जो भाजपा से गलबहियां कर कांग्रेस को कमजोर कर रहे हैं।
महाराष्ट्र में पूर्व सीएम विलास
राव देशमुख पर निर्माता निर्देशक सुभाष घई को जमीन देने का आरोप है। महामहिम राष्ट्रपति
के लिए बन रहे आशियाने पर भी सूबे में विवाद है। सूबे में राकांपा सुप्रीमो शरद पंवार
एकला चलो की राह पर चलते दिख रहे हैं। पंवार के इस कदम से कांग्रेस के आला नेता सकते
में ही दिख रहे हैं।
कुल मिलाकर कांग्रेस और भाजपा के
अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों का लब्बो लुआब यही सामने आ रहा है कि इस साल
के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों के परिणामों पर रिसर्च कर दोनों ही
बड़ी पार्टियां इस नतीजे पर पहुंच सकती हैं कि उनका अगला गठबंधन किस किस के साथ होगा
और वे 2013 में मध्यावधि चुनावों की ओर कदम बढ़ाएं अथवा नहीं!
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