अब तक नहीं खुले 2000 वसुधा केंद्र
(प्रतिभा सिंह)
पटना (साई)। छह साल
बीत गये राज्य में करीब दो हजार वसुधा केंद्र नहीं खुल पाये। सरकार ने 2007 में इंटरनेट के
जरिये सरकारी योजनाओं की जानकारी और प्रमाणपत्र देने के लिए साढ़े आठ हजार वसुधा
केंद्र आरंभ करने की घोषणा की थी। 2012 के छह माह से अधिक बीत गये, अब भी दो हजार
वसुधा केंद्र नहीं खुल पाये हं।। जिन जगहों पर यह केंद्र खुले, उनकी नियमित
मॉनीटरिंग नहीं हो रही।
कई जगहों पर यह ठीक
से काम नहीं कर रहा। अधिकतर केंद्रों पर बिजली नहीं होने और महंगे सोलर उपकरण के
कारण काम ठप है। वहीं कम पैसे में कंप्यूटर के जानकारों का अभाव भी इस योजना को
गति नहीं पकड़ने दे रहा। सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत चार जिलों में
डिस्ट्रिक्ट-इ पायलट योजना शुरू की, पर यहां भी पूरी तरह काम आरंभ नहीं हो
पाया।जरूर, कुछ केंद्र
ऐसे भी हैं, जहां बेहतर
काम हो रहे हं।। इन केंद्रों पर आम आदमी इंटरनेट के जरिये शादी के कार्ड भेजने से
लेकर हवाई जहाज व रेल टिकट तक आरक्षित करा रहे हैं।
सरकारी सूत्रों ने
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि सूचना एवं प्रावैधिकी विभाग की निगरानी में 8463 वसुधा केंद्र की
स्थापना की जानी थी। इनमें अब तक 8138 स्थानों की पहचान हो चुकी है। विभाग का
दावा है कि 6600 वसुधा
केंद्रों से लोग सरकार की सेवाएं ले रहे हैं। वहीं, वास्तविकता यह है
कि कई जिले में स्थापित वसुधा केंद्रों पर अब भी समुचित सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी
है। मुजफ्फरपुर में संचालक सरकारी काम के अभाव में फोटो स्टेट व स्टूडियो का काम
कर रहे हैं। बेगूसराय में प्रमाणपत्र नहीं मिल रहे हैं। नवादा के 187 केंद्रों में
मात्र 50 ही सक्रिय
हैं।
हालांकि, सासाराम, नालंदा सहित कुछेक
जिले में आम लोग इन केंद्रों का लाभ उठा रहे हैं। विगत विधानसभा चुनाव में
निर्वाचन आयोग ने कई बूथों के मतदान का सीधा प्रसारण वसुधा केंद्रों की सहायता से
किया। औसतन हर महीने वसुधा केंद्रों से 64 हजार लोग लाभ उठाते हैं।
वसुधा केंद्र
पब्लिक -प्राइवेट-पार्टनरशिप के तहत काम कर रहा है। सरकार, प्राइवेट कंपनी व
ग्रामीण उद्यमी के माध्यम से एक पंचायत या हर छह - सात गांव पर एक आइटी संसाधनों
से लैस केंद्र की स्थापना की जानी है। केंद्र के संचालकों को यह अधिकार दिया गया
है कि वे किसी भी सरकारी सेवा के लिए सेवा शुल्क वसूल सकें। राशि राज्य सरकार की
ओर से निर्धारित की गयी है। सेवा शुल्क का एक हिस्सा वसुधा केंद्रों की स्थिति
सुधारने पर खर्च किया जाता है।
वसुधा केंद्रों में
निगरानी का अभाव है। कहने को हर जिले में डिस्ट्रिक्ट इ-गवर्नेस सोसाइटी काम करती
है। इसके अध्यक्ष जिलाधिकारी या उपविकास आयुक्त होते हैं। एजेंसियों ने भी जिला
मुख्यालय में अपना कार्यालय खोल रखा है। इसमें जिला प्रबंधक, एकाउंट प्रबंधक, आइटी इंजीनियर, सर्विस एक्सक्यूटिव
सहित कुल छह कर्मी होते हैं। काम बढ़ा, तो हर 30 केंद्र पर एक
एक्सक्यूटिव का प्रावधान है। विभाग के प्रमुख खुद समय-समय पर इसकी समीक्षा करते
हैं, पर जमीनी
स्तर पर यह उतना कारगर नहीं है। केंद्र के संचालकों की मानें, तो अगर कोई खराबी आ
जाये, तो एजेंसी
पहल नहीं करती है। इसमें सुधार तभी हो सकता है, जब एजेंसियों के
कार्यकलापों पर नजर रखी जाये। समय-समय पर वसुधा केंद्रों के लाभुकों से फीडबैक
लिया जाये। वैसे आइटी विभाग ने स्टेट परपस विकिल शुरू करने का निर्णय लिया है, जो पूरे प्रदेश में
घूम-घूम कर वसुधा केंद्रों की स्थिति का जायजा लेंगे।
सासाराम के
ईश्वरचंद्र सिंह का बेटा मैट्रिक की परीक्षा में शामिल हुआ। रिजल्ट आने की सूचना
मिली। पंचायत मोहद्दीगंज में स्थापित वसुधा केंद्र गये। बिहार बोर्ड की वेबसाइट पर
रिजल्ट देख लिया। अपने जमाने को याद करते हुए ईश्वरचंद्र कहते हैं - हमें दूसरे
दिन जिला मुख्यालय में जाकर अखबार खरीदने के बाद ही रिजल्ट की जानकारी मिली थी। वे
कहते हैं कि अभी जो केंद्र खुले हैं, उसका लाभ ग्रामीणों को मिल रहा है। जाति, आय व आवासीय
प्रमाणपत्र के लिए भी प्रखंड मुख्यालय का चक्कर नहीं काटना पड़ रहा है। अपने
पंचायतों में ही स्थापित वसुधा केंद्र के माध्यम से लोग प्रमाणपत्रों के लिए आवेदन
दे रहे हैं। तय अवधि में उन्हें प्रमाणपत्र बिना कोई परेशानी के प्रखंड मुख्यालय
से मिल रहे हैं।
राष्ट्रीय इ-शासन
योजना के तहत केंद्र सरकार ने सितंबर, 2006 में इस योजना की शुरुआत की। बिहार को वसुधा
केंद्र के लिए 80 करोड़
रुपये आवंटित किये गये। इसमें से 32 करोड़ रुपये राज्य सरकार ने खर्च किये। इस
राशि में से हरेक केंद्र को सहायता के तौर पर औसतन 1500-1600 रुपये दिये जाते
हैं। बाकी रकम बैंकों से कर्ज के रूप में मिलता है। शुरू में वसुधा केंद्रों से
रेलवे, हवाई जहाज, पीडीएस कूपन आदि की
सेवाएं मिलती थीं। लोक सेवा का अधिकार कानून आने के बाद जाति, आय व आवासीय आदि
प्रमाणपत्र बनाये जाने लगे।
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