बंटवारे पर खुश नहीं थे कायदे आज़म
(आकाश कुमार)
(आकाश कुमार)
नई दिल्ली (साई)। पाकिस्तान के कायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना भारत के टुकड़े कर पाकिस्तान बनाने पर कतई खुश नहीं थे। इस बात का खुलासा वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर की आत्मकथा ‘बियांड द लाइंस’ में हुआ है। नैयर की आत्मकथा ने सियासी हल्कों में अनेक खुलासे कर हलचल मचा दी है।
देश के बंटवारे को लेकर मोहम्मद अली जिन्ना की भूमिका से ज्यादातर लोग वाकिफ हैं। पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना को भारत के बंटवारे पर कभी अफसोस भी हुआ? इस सवाल के अलावा कई सनसनीखेज तथ्यों का खुलासा कर रही है वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर की आत्मकथा ‘बियांड द लाइंस’।
अपनी आत्मकथा के बारे में नैयर कहते हैं, ‘लोगों को अपना जीवन बांटने के लिए यह किताब लिखी है। जिंदगी में अधिक से अधिक काम करने की तमन्ना है। एक पत्रकार रहते हुए मैंने हमेशा प्रयास किया कि कुछ और काम करूं।’ इस किताब का हिंदी संस्करण जल्द बाजार में आयेगा।
अपनी आत्मकथा में नैयर लिखते हैं कि समस्तीपुर जाने से पहले की मध्य रात्रि को तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र ने मुझे फोन किया। उन्होंने बताया कि वे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से व्यक्तिगत तौर पर मिल कर इस्तीफा देना चाहते हैं। साथ ही उन्होंने दुखी मन से कहा कि उन्हें समस्तीपुर में मारे जाने की आशंका है और फोन रख दिया। आशंका सच साबित हुई। उनकी मृत्यु के रहस्यों से पर्दा अब तक नहीं उठ सका है।
आपातकाल के बारे में बताते हुए नैयर का कहना है कि संजय गांधी ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि उनकी इच्छा देश में 20-25 वर्षाे तक आपातकाल जारी रखने की थी। इस बीच, कोई चुनाव नहीं होता और वे क्षेत्रीय क्षत्रपों जैसे हरियाणा में बंसीलाल और अन्य प्रदेशों में समान विचारवाले नौकरशाहों के जरिये दिल्ली से शासन चलाते। संजय चुनाव कराये जाने की घोषणा के अंतिम समय तक विरोधी रहे। चुनाव से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा, उनसे (मां इंदिरा गांधी) पूछिए।
नैयर की पुस्तक का सबसे महत्वपूर्ण और दिलचस्प पहलू पाकिस्तान का अस्तित्व में आने वाला है। इस बारे में खुलासा करते हुए उन्होंने कहा है कि मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के तत्कालीन पुनर्वास मंत्री इफ्तिखारुद्दीन और पाकिस्तान टाइम्स के संपादक मजहर अली खान के साथ विभाजित पंजाब के दौरे पर गये।
जिन्ना ने देखा कि लोगों का हुजूम या तो पाकिस्तान की ओर भागा आ रहा है या यहां से दूसरी ओर भाग रहा है। यह देख कर जिन्ना ने माथा पीट लिया और मायूसी से कह उठे, ‘मैंने क्या किया?’ इफ्तिखार और मजहर ने उन्हें इस बात को दोबारा नहीं कहने की कसम दिलायी। दोनों ने जिन्ना की पत्नी ताहिरा को यह बात बतायी। जिन्ना की मौत के काफी दिनों के बाद ताहिरा ने यह वाकया मुझसे साझा किया।
लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मौत के बारे में भी नैयर ने अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला है। वे लिखते हैं कि उस रात मैं लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु का सपना देख रहा था। तभी दरवाजे पर हुई दस्तक से मैं जागा। गलियारे में खड़ी एक महिला ने कहा, ‘आपके प्रधानमंत्री मर रहे हैं।’ मैं हड़बड़ी में एक भारतीय अधिकारी के साथ कुछ ही दूरी पर स्थित शास्त्री जी के कमरे की ओर दौरा। पता चला, शास्त्री नहीं रहे। शास्त्री जी का कमरा काफी बड़ा था। उनका बेड भी। उनके चप्पल कारपेट पर सही तरीके से रखे थे।
कमरे के एक कोने में ड्रेसिंग टेबल पर थर्मस लुढ़का पड़ा था। आधिकारिक फोटोग्राफर और मैंने शास्त्री के पार्थिव शरीर पर तिरंगा ओढ़ा दिया और श्रद्धांजलि के साथ कुछ फूल चढ़ाये। बाद में मैंने जो खबर जुटायी, उसके अनुसार, शास्त्री जी 10 बजे रात अपने कमरे में आये। इसके बाद उन्होंने अपने निजी सेवादार रामनाथ को भोजन लाने को कहा। उनका भोजन राजदूत टीएन कौल के घर से आता था, जिसे खानसामा जान मोहम्मद पकाता था। खाने के बाद शास्त्री ने रामनाथ से कहा कि काबुल जाने के लिए सुबह जल्दी उठना है।
ताशकंद के समयानुसार, रात 1.20 बजे शास्त्री के सहयोगी सामान बांधने में लगे थे। तभी जगन्नाथ सहाय (शास्त्री के निजी सचिव) के कमरे के दरवाजे तक जाकर परेशान हालत में शास्त्री ने पूछा,’डाक्टर साहब कहां हैं?’ तब सहयोगियों ने उन्हें पानी पिलाया और सहयोगियों के सहारे अपने कमरे के बेड पर लेट गये। इसके बाद उन्होंने अपनी छाती पर हाथ फेरा और अचेत हो गये।
पाकिस्तान के जनरल अयूब मौके पर चार बजे सुबह पहुंचे और शास्त्री की मृत्यु पर गहरा दुख व्यक्त किया। अयूब ने पाकिस्तान के विदेश सचिव अजीज अहमद को इसकी जानकारी जुल्फिकार अली भुट्टो को देने को कहा। भुट्टो ने मौत शब्द सुनते ही पूछा,’वह दो कमीने कौन!’।
ताशकंद से लौटने के बाद शास्त्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने मुझसे पूछा कि उनका शरीर नीला क्यों पड़ गया था? मैंने जवाब दिया कि जब पार्थिव शरीर पर लेप लगाया जाता है, तो।। इसके बाद उन्होंने शास्त्री के शरीर पर कुछ कटे के निशान के बारे में पूछा। इसकी जानकारी मुझे नहीं थी। लेकिन ललिता की एक बात मुझे अचंभित कर गयी कि शास्त्री का पोस्टमार्टम न तो ताशकंद में हुआ था, न दिल्ली में।
इसके कुछ दिनों बाद ललिता के गुस्सा होने का पता चला। वे इसलिए गुस्से में थीं कि शास्त्री के दो सहयोगियों ने उनकी मौत के अप्राकृतिक होने की बातवाले बयान पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था। समय गुजरने के साथ ही शास्त्री के परिवार का यह विश्वास पुख्ता होता चला गया कि उन्हें जहर दिया गया था।
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