पचास रूपए के काम
के लिए करोड़ों खर्च
(महेंद्र देशमुख)
नई दिल्ली (साई)।
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले के जिंदा मुजरिम
अजमल कसाब पर अब तक करोड़ों रूपए खर्च हो चुके हैं, जबकि उसे फांसी पर
चढ़ाने (हेंग टिल डेथ) के काम में महज पचास रूपए का ही खर्च आने की उम्मीद है।
26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए
टेररिस्ट अटैक में पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब की फांसी की सजा पर
सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहग लगा दी है। इसके बाद अब देशभर से उसे तुरंत फांसी पर
लटकाने की मांग हो रही है, मगर सबसे बड़ा सवाल है कि जल्लाद कहां से आएगा और कौन होगा जो
कसाब को मौत की नींद सुलाएगा। देश में हाल फिलहाल एक भी जल्लाद नहीं है।
देश में फांसी की
सजा पिछले कई साल से नहीं दी गई है। आखिरी बार पश्चिम बंगाल में बलात्कार के आरोपी
धनंजय चटर्जी को फांसी पर लटकाया गया था। धनंजय को फांसी देने वाले जल्लाद का नाम
था नाटा मल्लिक जो कि देश के चर्चित जल्लादों में गिने जाते थे। मगर उनकी मौत के
बाद देश में जल्लाद ही नहीं बचा। यानी कसाब को फांसी पर लटकाया जाता है तो उसे मौत
देने के लिए इस समय जल्लाद है ही नहीं। कुछ महीनों पहले आतंकी गतिविधियों में
शामिल पंजाब के बलवंत सिंह को इसलिए फांसी नहीं दी जा सकी, क्योंकि पंजाब में
कोई जल्लाद नहीं है। कानून के जानकार मानते हैं कि यदि कोई जल्लाद नहीं है तो
फांसी नहीं दी जा सकती।
उधर एक विदेशी
मीडिया को महाराष्ट्र के जेल महानिदेशक ने इंटरव्यू के दौरान बताया कि ऐेसे हालात
में जेल मैनुअल के मुताबिक कोई पुलिस अधिकारी भी ट्रेनिंग के बाद फांसी दे सकता
है। ट्रेनिंग का पूरा ब्यौरा जेल मैनुअल में दिया गया है। यदि उनके इशारों को समझा
जाए तो कसाब को फांसी के फंदे पर लटकाने के लिए मुंबई के किसी पुलिस अधिकारी को
राजी किया जा सकता है।
2010 में जब कसाब को निचली अदालत से फांसी की
सजा सुनाई गई उस दौरान नाटा मल्लिक के बेटे महादेव मल्लिक ने कसाब को फांसी पर
लटकाने के लिए जल्लाद बनने के लिए हामी भरी थी। मगर कुछ शर्तों के साथ। महादेव के
प्रस्ताव पर हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने गौर नहीं किया। महादेव फिलहाल पश्चिम
बंगाल की जेल में ही सफाई कर्मचारी के तौर पर नौकरी करते हैं। जल्लाद उनका खानदानी
पेशा है। महादेव के दादा ने अपने जीवन काल में 600 लोगों को फांसी दी
थी। वहीं महादेव के पिता नाटा ने 25 लोगों को फांसी पर लटकाकर मौत की नींद
सुलाया था। अब देखना होगा कि कसाब को फांसी देने के लिए कौन बनेगा जल्लाद।
मुंबई हमलों के
दौरान एक मात्र जिंदा पकड़े गए आतंकी अजमल आमिर कसाब मूल रूप से पाकिस्तानी नागरिक
है। लाहौर से 140 किलोमीटर
दूर फरीदकोट का रहने वाला कसाब इन दिनों मुंबई की आर्थर रोड जेल की विशेष कोठरी
में बंद है। देश का अब तक सबसे महंगा आतंकी है जिस पर सरकार ने तकरीबन 30 करोड़ खर्च किए
हैं।
मुंबई हमलों में
एकमात्र जिंदा पकड़ा गया पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब पर सरकार रोज करीब 3.5 लाख रुपये खर्च कर
रही है। इसमें कसाब का खाना, सुरक्षा, वकील का खर्च शामिल
हैं। इस हिसाब से पिछले 46 महीनों में कसाब पर कुल खर्च 48 करोड़ रुपये के
आसपास बैठता है। हालांकि, कुछ सरकारी अधिकारियों की बातों पर भरोसा करें तो यह रकम 65 करोड़ रुपये के आसपास
है। गौरतलब है कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस
चंद्रमौलि कुमार प्रसाद की बेंच ने कसाब की मौत की सजा को सही ठहराया था।
कॉन्स्टेबल तुकाराम
ओंबले की बहादुरी के चलते 27 नवंबर 2008 को एक मात्र जिंदा
पकड़ा गया आतंकवादी अजमल कसाब देश पर एक आर्थिक बोझ की तरह है। कसाब के लजीज भोजन
के साथ उसकी सुरक्षा और मुकदमे की सुनवाई पर होने वाला खर्च रोज लाखों में बैठ रहा
है।
ऑर्थर रोड जेल में
कसाब को जिस बैरक में रखा गया है उसके बुलेटप्रूफ पर 5.25 करोड़ रुपये खर्च
किए गए हैं। 1.5 करोड़
रुपये तो सिर्फ कसाब की गाड़ियों पर खर्च हुए हैं। 11 करोड़ रुपये
आईटीबीपी की सुरक्षा पर खर्च है। इसके अलावा और भी कई तरह के खर्च कसाब के ऊपर
हैं।
इन खर्चों को मिला
दें तो यह रोज का करीब 3.5 लाख रुपये है। 46 महीनों में यह रकम करीब 48 करोड़ रुपये के
आसपास बैठता है। गौरतलब है कि पिछले साल विधानसभा में महाराष्ट्र के गृह मंत्री
आर.आर.पाटिल ने करीब 20 करोड़ रुपये खर्च होने की बात कही थी। हालांकि, सरकारी सूत्रों पर
भरोसा किया जाए तो कसाब पर कुल खर्च 65 करोड़ रुपये बैठता है। सरकार की धीमी
न्यायिक प्रक्रिया को देखकर ऐसा लग रहा है कि कसाब के फांसी पर चढ़ने तक यह 100 करोड़ को पार कर
सकता है।
अजमल कसाब को
सुरक्षित रखने के लिए महाराष्ट्र सरकार अब तक करीब 50 करोड़ रुपए खर्च कर
चुकी है, लेकिन उसको
फांसी पर लटकाने का काम सिर्फ 50 रुपए में निपट जाएगा। यह हम नहीं कह रहे
हैं, देश का
कानून कह रहा है। कानून के मुताबिक किसी अपराधी को फांसी देने के लिए सरकारी बजट
में इतने ही रुपए खर्च करने का प्रावधान है।
यरवदा जेल के आईजी
मीरन बोरवनकर के मुताबिक फांसी देने वाले जल्लाद को किसी भी अपराधी को फांसी देने
के लिए अलग से कोई भी रकम नहीं दी जाती है। नियम के मुताबिक जेल सुपरिटेंडेंट एक
अपराधी की बॉडी को ले जाने और उसके अंतिम संस्कार के लिए 50 रुपए तक खर्च कर
सकता है।
96 देशों सहित भारत में भी मौत की सजा 1894 में बनाए गए कानून
के द्वारा ही दी जाती है। फांसी की तारीख मुकर्रर होने के बाद जेल सुपरिटेंडेंट
कसाब को इस बात की सूचना दे सकते हैं कि उसके पास 7 दिनों का वक्त है, जिसमें वह लिखित
दया याचिका दायर कर सकता है। इसके बाद महाराष्ट्र के गवर्नर और राष्ट्रपति पर यह
बात निर्भर करेगी कि आगे क्या हो। अगर दलीलों को ठुकरा दिया जाता है तो यह सजा दी
जा सकती है।
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