शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

निमोनिया से हारा भारत


निमोनिया से हारा भारत

(विपिन सिंह राजपूत)

नई दिल्ली (साई)। बच्चों में होने वाले निमोनिया ने भारत को हरा दिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भले ही अरबों खरबों करोड़ रूपयों की लागत से जनकल्याणकारी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के दावे करते हों पर जमीनी हकीकत इससे जुदा ही है। निमोनिया से होने वाली मौतों में भारत दुनिया भर में सबसे उपर वाली पायदान पर है।
निमोनिया से अपने होनहारों को बचाने के मामले में भारत गणराज्य, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सूडान और युगांडा जैसे देशों से भी पीछे है। इस बीमारी की वजह से हर साल पांच साल से कम उम्र के करीब चार लाख बच्चों की मौत के साथ भारत पहले नंबर पर बना हुआ है। दूसरा नंबर नाइजीरिया का है जहां हर साल निमोनिया से करीब 3.71 लाख बच्चों की मौत हो जाती है। यह बीमारी इतनी खतरनाक है कि पिछले साल इसके कारण दुनिया में 13 लाख बच्चों की मौत हो गई थी।
इंटरनैशनल ऐक्सेस वैक्सीन सेंटर और अमेरिका के जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की 2012 की निमोनिया प्रोग्रेस रिपोर्ट में इस बीमारी के खतरे के बारे में बताया गया है। रिपोर्ट में उन देशों को शामिल किया गया है जिनके खाते में दुनिया में निमोनिया से होने वाली 75 प्रतिशत मौतें जाती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, अफ्रीकी देश केन्या में इस बीमारी की वजह से सबसे कम (20 हजार) बच्चों की मौत होती है।
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया द्वारा जब रिपोर्ट को खंगाला गया तब यह तथ्य उभरकर सामने आया कि 2010 में भारत में निमोनिया से 3.96 लाख बच्चों की मौत हो गई। हालांकि, 2008 में ऐसे बच्चों की तादाद 3.71 लाख थी। यानी दो साल में सरकार के तमाम दावों के बावजूद इस बीमारी से होने वाली मौतों में 6.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
रिपोर्ट में कहा गया कि विकासशील देशों में पर्याप्त और अच्छी चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण निमोनिया ज्यादा बच्चों की मौत की वजह बन रहा है। यह भारत में बीमारियों के कारण होने वाली बच्चों की 30 प्रतिशत मौतों के लिए जिम्मेदार है। बच्चों को होने वाली बीमारियों में इसका हिस्सा 40 प्रतिशत है। हालांकि, भारत ने पेंटावैलेंट वैक्सीन के जरिए इस बीमारी पर लगाम लगाने की कोशिश की है, मगर अभी काफी लंबा रास्ता तय किया जाना है। 

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