शुक्रवार, 8 मार्च 2013

दलाई लामा ने भारत को दिया गुरू का दर्जा


दलाई लामा ने भारत को दिया गुरू का दर्जा

(आंचल झा)

रायपुर (साई)। देता ना दशमलव भारत तो यूं चांद पर जाना मुश्किल था . . .।पूरब और पश्चिम चलचित्र के इस गीत की आधारशिला एसे ही नहीं रखी गई थी। भारत वाकई में आध्यात्मिक, शिक्षा ज्ञान आदि के मामलों में सबसे उपर ही है। यह बात दुनिया मान चुकी है कि भारत के स्किल पावर को पाना मुश्किल ही है।
 तिब्बती धर्मगुरु तथा नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा ने कहा है कि भारत अपनी शिक्षा, ज्ञान और आध्यात्म के आधार पर तिब्बत का गुरु रहा है और तिब्बत उसका चेला है। दलाई लामा ने आज यहां कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षान्त समारोह में कहा कि भारत बुद्धिमता की भूमि है। भारत की भूमि के साथ तिब्बत का अत्यंत घनिष्ठ एवं विशेष संबंध रहा है। भारत अपनी शिक्षा, ज्ञान और अध्यात्म के आधार पर तिब्बत का गुरु रहा है और तिब्बत उसका चेला है।
उन्होंने कहा कि भारत हजारों सालों से समन्वय और उदारता की भूमि है। यह विश्व का ऐसा जीवंत उदाहरण है जहां अनेक धर्माे जैसे हिन्दू, जैन, बौद्ध आदि जिनका भारत में उदय हुआ और ऐसे अनेक धर्माे जो दूसरे क्षेत्रों से यहां आये जैसे पारसी, इस्लाम, जरस्थ्रु, पश्चियन आदि के नागरिक हजारों वर्षाे से एक दूसरे के साथ प्रेम, समन्वय और उदारता के साथ रहते आये हैं। निश्चय ही भारत एक शांतिमय और अद्भूत देश है।
लामा ने कहा कि वर्तमान शिक्षा पद्धति ऐसी होनी चाहिए जिसमें आधुनिक-पश्चिमी शिक्षा और परम्परागत भारतीय ज्ञान दोनों का समन्वय हो। आधुनिक पश्चिमी शिक्षा के माध्यम से भौतिक विकास तो संभव है, लेकिन यह आंतरिक या मानसिक शांति के लिए पर्याप्त नहीं है। आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों से भी अब यह साबित हो गया है कि केवल भौतिक विकास, मानव जीवन को सुखी बनाने की कुंजी नहीं है। आंतरिक शांति के लिए परम्परागत तथा अध्यात्मिक ज्ञान भी जरुरी है।
तिब्बती धर्म गुरु ने कहा कि वे पिछले 54 वर्षाे से भारत की भूमि पर निवास कर रहे हैं और भारत और भारतीयता ने उनके शरीर और मन दोनों को गहराई से प्रभावित किया है। जब वे सात-आठ वर्षाे के थे, तब से सुप्रसिद्ध बौद्ध चिंतक एवं भिक्षु नागाजरुन ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया है। नागाजरुन का मानना था कि किसी भी अवधारणा के प्रति अपना ज्ञान और समझ बढाओ और तभी उसे अपनाओ। उन्होंने कहा कि आज जब वे छत्तीसगढ के सुप्रसिद्ध स्थल सिरपुर गये तो उन्हें एक पुरातत्ववेत्ता ने सिरपुर से छह किलोमीटर दूर नागाजरुन गुफा होने की जानकारी दी। वे छत्तीसगढ के अगले प्रवास में उस गुफा में जाना चाहते हैं और कुछ समय वहां ध्यान भी करना चाहते हैं।
दीक्षांत समारोह में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए राज्यपाल शेखर दत्त ने कहा कि वर्तमान समय में तकनीक ने तीव्र गति से नए माध्यमों का सृजन किया है। यह देखने की जरुरत है कि हम मीडिया का कैसे उपयोग कर सकते हैं, चाहे वह सूचना प्रसार के क्षेत्र में हो या मनोरंजन अथवा समाचार के रुप में हों, इन्हें भारतीय संदर्भाे में जनसामान्य के लिए पुर्नपरिभाषित किया जाना चाहिये। दत्त ने कहा कि पिछले दो दशक में मीडिया की तकनीक एवं संरचना में हो रहे परिवर्तन देश के प्रजातंत्र और जनचेतना को शक्तिशाली एवं सशक्त बना रहे हैं, लेकिन यह बात सभी के लिए सत्य नहीं है। अभी भी विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों, महिलाओं तथा जनजातियों तक पहुंच नहीं बढी है। अभी भी सामाजिक न्याय प्राप्त करना हमारे लिए एक बडी चुनौती है। महिलाओं तथा जनजातियों का शोषण न हो सके तथा उन्हें सामाजिक न्याय मिले, इस दिशा में काफी कार्य करने की जरुरत है।
विश्वविद्यालय के इस पहले दीक्षांत समारोह में वर्ष 2007 से 2012 तक के 243 विद्यार्थियों को उपाधियां प्रदान की गईं। इस अवसर पर विभिन्न परीक्षाओं में प्रावीण्य सूची में प्रथम स्थान के लिए 24 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक तथा 46 विद्यार्थियों को प्रावीण्य सूची के लिए स्वर्ण पदक प्रदान किये गये।

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