बधाई पुलिस प्रशासन की त्वरित कार्यवाही के लिए
(एस.के.खरे )
मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में घटित तीन मामलों में पुलिस ने जिस तरह की
तत्परता दिखाई है उससे वह निश्चित तौर पर बधाई की पात्र है। पहला मामला घंसौर का
है जहां चार वर्ष की बालिका के साथ दुराचार किया गया था। दुराचार के उपरांत आरोपी
सदा की भांति फरार हो गए थे। पुलिस ने बालिका को स्थानीय स्तर पर उपचार के बाद
जबलपुर ले जाया गया जहां से उसे बाद में महाराष्ट्र की संस्कारधानी नागपुर के केयर
अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया। नागपुर में सिवनी की इस गुडिया की हालत नाजुक बनी
हुई है। पुलिस महानिरीक्षक संजय झा के अनुसार आरोपी बिहार का रहने वाला था संयोग
से संजय झा भी बिहार से ही हैं। संजय झा ने इसके लिए विशेष रणीनीति बनाई और अनेक
टीमें बिहार कोलकता दिल्ली आदि भेजीं।
इस मामले में मीडिया का रूख बहुत ही सकारात्मक रहा जिससे वह बधाई की पात्र
है। मीडिया विशेषकर इलेक्ट्रानिक मीडिया में आरोपी फिरोज के चित्र बार बार दिखाए
जाने, पुलिस की रणनीति के अनुसार आरोपी के चित्र वाले पंप्लेट्स और
पोस्टर्स वहां चिपकाए जाने से वहां के स्थानीय लोगों में जागरूकता आई और भीड़ ने आरोपी
को घेर लिया। बताते हैं कि चेनल्स पर पुलिस के मोबाईल और अन्य नंबर्स दिखाए जा रहे
थे, जिनका उपयोग जनता ने किया। जनता ने सिवनी के युवा एसपी मिथलेश
शुक्ला को फोन पर इसकी सूचना दी।
दूसरा मामला अरी थाने का है जहां ग्राम टिकारी में साढ़े पांच साल की एक
बच्ची के साथ छेड़छाड़ और गंदी हरकत करने की सूचना अरी थाने में दर्ज की गई। पुलिस
ने इस मामले में धारा 363, 376 (2) (ज) (झ)
तथा 8 लेंगिग अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम के तहत मामला
पंजीबद्ध कर कार्यवाही करते हुए आरोपी मेहतलाल उईके को धर दबोचा। इसी तरह किंदरई
में दर्ज अपराध में भी एक साढ़े पांच साल की बच्ची के साथ किए गए दुष्कर्म के मामले
में पुलिस ने जनता के सहयोग से आरोपी स्वरूप लाल को पकड़ लिया।
इन तीनों मामलों में पुलिस की तत्परता वाकई काबिले तारीफ है किन्तु जब बात
आती है इन अपराधों के घटने की तो ये अपराध क्यों घटित हुए इस मामले में अगर गहराई
से देखा जाए तो पहले मामले में पुलिस का दोष साफ नजर आता है। वर्ष 2008 से आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकासखण्ड में देश के मशहूर
उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स
झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा लगभग सात हजार करोड़ रूपयों की लागत से कोल आधारित पावर
प्लांट की स्थापना की जा रही है।
जाहिर है इतने बड़े पावर प्लांट की संस्थापना के लिए जो मेन पावर की जरूरत
होगी उसमें स्किल्ड और अनस्किल्ड मेनपावर सिवनी के अलावा बाहर से लाना ही होगा।
विडम्बना ही कही जाएगी कि प्रदेश सरकार को जमा कराए गए कार्यकारी सारांश में
संयंत्र प्रबंधन ने सिवनी के मेन पावर को रोजगार देने का वायदा किया था, किन्तु वह अपना वायदा निभाने में असफल ही साबित हुआ है।
इसका प्रत्यक्ष उदहारण घंसौर की गुडिया के पिता हैं, जो अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर पूना में नौकरी कर रहे
हैं। वहीं दूसरी ओर महाकौशल अंचल और स्थानीय स्तर पर नेता नुमा ठेकेदारों ने इस
संयंत्र पर कब्जा जमा लिया है। कृत्रिम विरोध कराकर ये पहले संयंत्र प्रबंधन को
भयाक्रांत करते हैं और बाद में अपनी मनमानी पर उतारू हो जाते हैं। य़क्ष प्रश्न तो
यह है कि इतना बड़ा संयंत्र यहां स्थापित हो रहा है और गुडिया के पिता को
महाराष्ट्र के पूना जाकर नौकरी करने की क्या आवश्यक्ता?
संयंत्र प्रबंधन बहुत ही दावे के साथ सीना ठोंककर सामाजिक जिम्मेदारी के
निर्वहन की बात कहता है। प्रबंधन कहता है कि उसने घंसौर में आईटीआई खुलवाया है।
अगर घंसौर में आईटीआई खुला है तो 2008 के पांच सालों
बाद यहां से प्रशिक्षित लोगों में से कितने लोागों को संयंत्र प्रबंधन ने आज तक
रोजगार दिया है? वैसे घंसौर में आईटीआई पहले से ही चल
रहा था। संयंत्र प्रबंधन द्वारा कुछ गैर संरकारी संगठन (एनजीओ) के माध्यम से
सामाजिक जिम्मेदारी की रस्म अदायगी भी की जा रही है। संयंत्र प्रबंधन यह बताने में
असफल है कि उसने प्राईमरी स्तर की शिक्षा का क्या प्रबंध किया है। देखा जाए तो
अनुविभागीय अधिकारी राजस्व के कांधों पर यह जिम्मेवारी आती है कि वह यह सब कुछ
सुनिश्चित करवाए।
वहीं दूसरी ओर पुलिस के सर पर यह जवाबदेही है कि वह नागरिकों की सुरक्षा
के माकूल इंतजामात पुख्ता करे। पुलिस के अधिकारी यह कहकर अपनी जवाबदेही से नहीं बच
सकते कि उनके पूर्ववर्ती थानेदारों या अफसरों ने एसा नहीं किया उनकी तैनाती अभी
अभी हुई है। 2008 के उपरांत घंसोर थाने में पदस्थ रहे
समस्त थानेदारों, अनुविभागीय अधिकारी पुलिस के खिलाफ
इस बात को लेकर कार्यवाही होना चाहिए कि उन्होंने बाहर से आए आगंतुकों की आमद
पुलिस थाने में दर्ज क्यों नहीं करवाई।
पुलिस को चाहिए कि वह अपराधियों में कानून का भय पैदा करे। इसके लिए उसे
कुछ मिसालें पेश करना ही होगा। घंसौर में घटित इस दिल दहला देने वाले मामले में
पुलिस अगर कठोर कार्यवाही करती है तो इसका बहुत अच्छा संदेश जा सकता है। इसके लिए
पुलिस को चाहिए कि वह संयंत्र प्रबंधन पर शिकंजा कसे, उसके बाद संयंत्र प्रबंधन से ठेकेदार और ठेकेदारों से पेटी
कांट्रेक्टर्स की सूची लेकर उन पर इस मामले में कार्यवाही करे के बाहर से आकर यहां
नौकरी करने वालों की सूचना पुलिस को आखिर दी क्यों नही गई। मामला बहुत सीधा साधा
नहीं होगा। चूंकि इसके मालिक गौतम थापर का इकबाल सियासी बियावान में जमकर बुलंद है
अतः उन पर हाथ डालना आसान नहीं होगा। (साई फीचर्स)
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