... और चुपचाप सब देख रहे हैं अटल बिहारी वाजपेयी
(अमित कौशल)
नई दिल्ली (साई)। अशोक रोड स्थित बीजेपी मुख्यालय से पांच मिनट की दूरी पर
अटल बिहारी वाजपेयी का घर है। अपने कृष्णा मेनन मार्ग वाले बंगले में अटल बिहारी
वाजपेयी खामोशी से वीलचेयर पर बैठे या तो टीवी देखते रहते हैं या अखबारों की
सुर्खियां पढ़ते रहते हैं। 2009 में एक स्ट्रोक पड़ने के बाद से अपने भाषणों से भीड़
को बांध देने वाले वाजपेयी अब खामोश रहते हैं।
कुल तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल जी ने करीब एक दशक पहले राजनीति
को अलविदा कह दिया था। आज बीजेपी पर नरेंद्र मोदी की पकड़ मजबूत हो गई है जिन्हें
वह 2002 दंगों के बाद मुख्यमंत्री पद से हटा देना चाहते थे। पार्टी में वाजपेयी के
कुछ करीबी दोस्त और फॉलोअर खुद को अलग-थलग सा महसूस कर रहे हैं।
पुराने सुनहरे दिनों की तरह अब कोई उनके पास न पार्टी से संबंधित शिकायतें
लेकर आता है और न ही उनकी कविताएं सुनने। अटल जी के 60 साल पुराने दोस्त एनएम
घटाटे, लाल कृष्ण आडवाणी और बीसी खंडूरी ही नियमित रूप से उनसे मिलने
या उनकी बेटी नमिता से उनका हालचाल पूछने चले आते हैं।
घटाटे लगभग हर हफ्ते या कभी हफ्ते में दो बार भी उनसे मिलने आते हैं। वह
कहते हैं,
‘मनमोहन सिंह नियमित रूप से अटल जी के
स्वास्थ्य के बारे में पूछते हैं और उनके जन्मदिन पर उन्हें खुद कॉल कर विश करना
कभी भी नहीं भूलते।‘ घटाटे ने कहा, ‘इन दोनों का साथ बहुत पुराना है।‘ घटाटे बताते हैं कि कैसे तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी
नरसिम्हा राव ने अटल जी के पास शिकायत करने के लिए फोन किया था कि विपक्ष द्वारा
की गई बजट की बुराई दिल पर लेकर उनके वित्त मंत्री (मनमोहन सिंह) ने रिजाइन करने
की पेशकश की है।
अपने करियर का अधिकतर वक्त विपक्ष में बैठकर बिताने वाले वाजपेयी के
निशाने पर नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक रहे, लेकिन उन्हें अहसास नहीं था कि उनकी आलोचना किसी को इतना दुख
पहुंचा सकती है। घटाटे ने बताया कि वाजपेयी ने तुरंत मनमोहन सिंह को फोन लगाया और
उन्हें कहा कि इस तरह की बातें दिल पर न लें। यह बातें सिर्फ राजनीतिक पॉइंट्स
बनाने के लिए कही गई हैं। इस तरह राव सरकार को वाजपेयी ने बड़ी फजीहत से बचा लिया।
वहीं से इस नई दोस्ती की शुरुआत हुई।
घटाटे कहते हैं कि वाजपेयी आज भी मेंटली अलर्ट हैं, लेकिन स्ट्रोक ने उनसे बोलने की ताकत छीन ली है। वह खुद को
किताबों और लेखन में ही व्यस्त रखते हैं। घटाटे को वाजपेयी की खुशमिजाजी की कमी
सबसे ज्यादा खलती है।
2004 में चुनाव हारने के बाद वाजपेयी ने एनडीए के गठबंधन के एक्सपेरिमेंट
की सफलता पर चार पेज का आर्टिकल लिखा। उसमें उन्होंने लिखा कि कैसे कांग्रेस ने भी
यही फॉर्म्युला अपनाया और गठबंधन की राजनीति का महत्व हमेशा बरकरार रहेगा।
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