शिक्षा की दुकानों पर अंकुश
(शरद खरे)
पालकों के लिए यह राहत भरी खबर कही
जा सकती है कि म.प्र.पाठ्य पुस्तक निगम के प्रबंध संचालक सतीश मिश्रा द्वारा एक
आदेश जारी कर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से संबद्ध विद्यालयों एवं
मध्य प्रदेश शासन के स्कूल शिक्षा विभाग, माध्यमिक शिक्षा
मण्डल के साथ संबद्ध या मान्यता प्राप्त विद्यालयों के परिसरों में किताब, कॉपियां, स्टेशनरी, गणवेश एवं अन्य सामग्रियों के विक्रय पर प्रतिबंध लगा दिया
गया है। अभी तक शिक्षा की दुकानें शैक्षणिक सत्र आरंभ होते ही सज जाया करती थीं।
निजि तौर पर संचालित होने वाली
शालाओं द्वारा अपनी ‘विशेष दुकानों‘ के माध्यम से (जो शालेय परिसर में नहीं हुआ करती हैं)
विद्यार्थियों को शिक्षण सामग्री और गणवेश आदि लेने पर बाध्य किया जाता रहा है। आज
भी सिवनी जिले में अनेक प्रतिष्ठान साल के चंद दिनों के लिए ही खुलते हैं, और विद्यार्थियों को मंहगी दरों पर इन सामग्रियों को बेचने के
बाद बंद कर दिए जाते हैं। वस्तुतः ये संस्थान महज दो तीन माह में ही साल भर का
मुनाफा कमा लेते हैं। अंततोगत्वा गाज तो पालकों के सिर पर ही गिरती है।
इसके साथ ही साथ शालाओं में प्रवेश
के समय विद्यालयों द्वारा हर साल दस से बीस हजार रूपए की रकम ली जा रही है। यह रकम
किस मद में ली जाती है, इस बारे में
विस्तार से संस्थाएं बताने की जहमत नहीं उठाती हैं। इतना ही नहीं इस राशि की कोई
रसीद आदि भी नहीं दी जाती है। इसके साथ ही साथ शालाओं द्वारा कंप्यूटर, खेल, कंप्यूटर लेब, पुस्तकालय आदि की मदों में भी भारी भरकम रकम ली जाती है।
पता नहीं प्रदेश सरकार और सीबीएसई के
नुमाईंदे इन शालाओं का निरीक्षण किस पॅरामीटर पर करते हैं। इन शालाओं में न तो
कंप्यूटर लेब ही हैं, न ही संपन्न
पुस्तकालय,
और न ही खेल मैदान। अगर यह सब कुछ है तो भला
बच्चों को मिलने वाले प्रोजॅक्ट असाईंमेंट्स के लिए विद्यार्थियों को इंटरनेट
पार्लर पर क्यों निर्भर रहना होता है। किसी स्वतंत्र एजेंसी से अगर इसकी जांच करवा
ली जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है, और तो और निरीक्षण के लिए आने वाले सरकारी नुमाईंदों की कलई
भी खुल सकती है।
सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार कम से कम
आठ दुकानों पर यह सामग्री उपलब्ध होगी एवं उसकी सूची शैक्षणिक सत्र के आरंभ होने
के पहले अपर कलेक्टर एवं जिला शिक्षा अधिकारी को उपलब्ध कराई जाएगी। अनेक शालाओं का
शैक्षणिक सत्र आरंभ हो चुका है पर यह सूची शायद ही सरकारी अधिकारियों के पास
पहुंची हो। सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि एसडीएम इन दुकानों और शालाओं का
आकस्मिक निरीक्षण करेंगे। याद नहीं पड़ता कि काम के बोझ तले दबे एसडीएम या किसी
अन्य अधिकारी यहां तक कि जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा भी कभी शालाओं का औचक
निरीक्षण किया गया हो। इस आदेश को अमली जामा कब पहनाया जाएगा यह बात तो प्रशासन ही
जानता होगा, किन्तु इस तरह के आदेश का समाचार
पढ़कर पालकों को झूठी ही सही पर कुछ हद तक तसल्ली तो हुई ही होगी।
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