बुधवार, 28 दिसंबर 2011

. . . मतलब महाकौशल का विकास नहीं चाहते क्षत्रप!


0 महाकौशल प्रांत का सपना . . . 20 (समापन किस्त)

. . . मतलब महाकौशल का विकास नहीं चाहते क्षत्रप!

अब सारा दारोमदार, कांग्रेस भाजपा के क्षत्रपों पर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के सच्चे हृदय प्रदेश महाकौशल प्रांत में सशक्त राजनैतिक नेतृत्व होने के बाद भी संयुक्त और प्रथक मध्य प्रदेश में भी इस क्षेत्र के विकास के मार्ग न खुल पाना निश्चित तौर पर राजनैतिक नेतृत्व को नपुंसक रेखांकित करने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है। केंद्र में मंत्री कमल नाथ, भाजपा के क्षत्रप प्रहलाद पटेल, फग्गन ंिसह कुलस्ते जैसे दिग्गजों के बाद भी महाकौशल अगर अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है तो निश्चित तौर पर इसका यही मतलब निकाला जा सकता है कि ये क्षत्रप इस क्षेत्र से जनादेश लेकर केंद्र में राजनीति तो करना चाहते हैं पर जब अपनी कर्मभूमि के विकास की बात आती है तो ये मौन साध लेते हैं।
इसी तरह मध्य प्रदेश में राजनैतिक बिसात पर अपनी माहिर चालें चलने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर के साथ ही साथ अखिल भारतीय कांग्रेस सेवादल के पूर्व अध्यक्ष और मध्य प्रदेश बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष रामेश्वर नीखरा, भारतीय जनता पार्टी के पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल, फग्गन ंिसह कुलस्ते के अलावा मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष ईश्वर दास रोहाणी के साथ ही साथ जनता दल यूनाईटेड के संयोजक शरद यादव, हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल उर्मिला सिंह, पूर्व मंत्री सत्येंद्र पाठक, दीपक सक्सेना, प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष विश्वनाथ दुबे, प्रवक्ता कल्याणी पांडे, श्रीमति नेहा सिंह, रेखा बिसेन, पुष्पा बिसेन, दयाल सिंह तुमराची गौरी शंकर बिसेन, अजय बिश्नोई, देवी सिंह सैयाम, नाना माहोड़ेत्र डॉ.ढाल सिंह बिसेन, चौधरी चंद्रभान सिंह, महाकौशल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष नरेश दिवाकर, प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष अनुसुईया उईके, विनोद गोटिया, राकेश सिंह और न जाने कितने नेताओं ने महाकौशल का पानी पीकर यहीं की माटी को अपनी कर्मभूमि बनया है।
अब तक महाकौशल अगर पिछड़ा रहा है तो इसके लिए निश्चित तौर पर सभी दलों के नेता ही जवाबदार माने जा सकते हैं, क्योंकि इनकी राजनैतिक इच्छा शक्ति महाकौशल क्षेत्र के विकास के प्रति कभी दिखाई ही नहीं पड़ी। केंद्र में सदा प्रतिनिधित्व पाने वाला महाकौशल औद्योगिक तौर पर भी आत्मनिर्भर नहीं है। आज आलम यह है कि भारतीय रेल की नजरों में भी इसे उपेक्षित ही रखा हुआ है। उच्च न्यायायल के होने के कारण बिलासुपर से नई दिल्ली के लिए राजधानी एक्सप्रेस रेलगाड़ी की सुविधा है किन्तु उच्च न्यायालय होने के बाद भी राजधानी एक्सप्रेस आज भी जबलपुर के लिए सपना है। मध्य प्रदेश से रेल मंत्री के पद पर स्व.माधवराव सिंधिया विराजे और उन्होंने ग्वालियर को चमन बना दिया। कितने दुर्भाग्य की बात है कि आज तक मध्य प्रदेश की झोली में एक भी राजधानी एक्सप्रेस नहीं आ पाई है। कद्दावर नेता कमल नाथ ने अपने संसदीय क्षेत्र में बड़ी रेल लाईन का जाल बिछाना आरंभ कर दिया है। उनसे ही उम्मीद की जा सकती है कि वे नई दिल्ली से बरास्ता भोपाल होकर छिंदवाड़ा जाने के लिए एक राजधानी एक्सप्रेस को चलाने की दिशा में प्रयास कर लें ताकि मध्य प्रदेश के माथे से कम से कम राजधानी एक्सप्रेस न होने का कलंक तो धोया जा सके। रही बात विमान सुविधा की तो विमान सुविधाओं के मामले में अन्य प्रदेशों की तुलना में मध्य प्रदेश काफी हद तक पिछड़ा हुआ है।

(समाप्त)

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