बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

दम तोड़ता विजन ट्वंटी ट्वंटी


दम तोड़ता विजन ट्वंटी ट्वंटी

(लिमटी खरे)

देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस वैसे तो देश को इक्कीसवीं सदी में ले जाने की बात कहती है, किन्तु जब अमली जामा पहनाने की बात आती है, तो वह इस ओर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझती है। आज इंटरनेट का जादू सर चढ़कर बोल रहा है फिर भी देश के 61 जिलों की अपनी वेवसाईट ही नहीं है। सेट फारमेट के अभाव में अलग अलग जिलों की वेब साईट भी विभिन्न तरह की ही हैं। करोड़ों अरबों रूपए पानी में बहाने के बाद भी अनेक जिलों की वेव साईट तो हैं पर अपडेट नहीं होती।


बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में भविष्यदृष्टा की अघोषित उपाधि पाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सबसे पहले इक्कीसवीं सदी में जाने की परिकल्पना कर लोगों को अत्याधुनिक उपकरणों आदि के बारे में सपने दिखाए थे। आज वास्तव में उनकी कल्पनाएं साकार होती दिख रही हैं। विडम्बना यह है कि स्व.राजीव गांधी की अर्धांग्नी पिछले एक दशक से अधिक समय से कांग्रेस की कमान संभाले हुए हैं किन्तु कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ही आज इक्कीसवीं सदी में नहीं पहुंच सकी है।
आधुनिकता के इस युग में जब कम्पयूटर और तकनालाजी का जादू सर चढकर बोल रहा है, तब भारत गणराज्य भी इससे पीछे नहीं है। भारत में आज कंप्यूटर इंटरनेट का बोलबाला हर जगह दिखाई पड जाता है। जिला मुख्यालयों में भले ही बिजली कम ही घंटों के लिए आती हो पर हर एक जगह इंटरनेट पार्लर की धूम देखते ही बनती है। शनिवार, रविवार और अवकाश के दिनों में इंटरनेट पार्लर्स पर जो भीड उमडती है, वह जाहिर करती है कि देशवासी वास्तव में इंफरमेशन तकनालाजी से कितने रूबरू हो चुके हैं।
भारत गणराज्य की सरकार द्वारा जब भी ई गवर्नंसकी बात की जाती है तो हमेशा एक ही ख्वाब दिखाया जाता है कि ‘‘अब हर जानकारी महज एक क्लिक पर‘‘, किन्तु इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। देश के कुल 626 जिलों में से 565 जिलों की अपनी वेव साईट है, आज भी 61 जिले एसे हैं जिनके पास उनकी आधिकारिक वेव साईट ही नहीं है। भारत में अगर किसी जिले के बारे में कोई जानकारी निकालना हो तो इंटरनेट पर खंगालते रहिए, जानकारी आपको मिलेगी, पर आधिकारिक तौर पर कतई नहीं, क्योंकि वेव साईट अपडेट ही नहीं होती है।
ई गवर्नंस के मामले में सबसे खराब स्थिति बिहार की है। बिहार के 38 जिलों में से महज 6 जिलों की ही आधिकारिक वेव साईट है, जबकि यहां के मुख्यमंत्री नितीश कुमार खुद ही अपने ब्लाग पर लोगो से रूबरू होते हैं। इसी तरह आंध्र प्रदेश के 23 में से 19, असम के 27 में से 24, छत्तीसगढ के 18 में से 16, झारखण्ड के 24 में से 20, कर्नाटक के 28 में से 27, मध्य प्रदेश के 50 में से 49, मिजोरम में 8 में पांच, पंजाब में 20 में 18 और तमिलनाडू के 31 में से 30 जिलों की अपनी वेव साईट है।
भारत गणराज्य के जिलों में आधिकारिक वेव साईट के मामले में सबसे दुखदायी पहलू यह है कि केंद्र सरकार के डंडे के कारण वेव साईट तो बना दी गई हैं, किन्तु इन्हें अद्यतन अर्थात अपडेट करने की फुर्सत किसी को नहीं है। जिलों में बैठे अप्रशिक्षित कर्मचारियों के हाथों में इन वेव साईट्स को अपडेट करने का काम सौंपा गया है, जिससे सब ओर अपनी ढपली अपना राग का मुहावरा ही चरितार्थ होता नजर आ रहा है।
वस्तुतः समूचा मामला ही केंद्रीय मंत्रालयों के बीच अहं की लडाई का है। अदूरदर्शिता के चलते सारा का सारा गडबडझाला सामने आने लगा है। जब नेशनल इंफरमैटिक संेटर (एनआईसी) का गठन ही कंप्यूटर इंटरनेट आधारित प्रशासन को चलाने के लिए किया गया है तब फिर इस तरह का घलमेल क्यों? एनआईसी का कहना है कि उसका काम मूलतः किसी मंत्रालय या जिले की अथारिटी के मशविरे के आधार पर ही वेव साईट डिजाईन करने का है। इसे अद्यतन करने की जवाबदारी एनआईसी की नहीं है।
देखा जाए तो एनआईसी के जिम्मे ही वेव साईट को अपडेट किया जाना चाहिए। जब देश के हर जिले में एनआईसी का एक कार्यालय स्थापित है तब जिले की वेव साईट पर ताजा तरीन जानकारियां एनआईसी ही करीने से अपडेट कर सकता है। चूंकि इंटरनेट  और कम्पयूटर के मामले में जिलों में बहुत ज्यादा प्रशिक्षित स्टाफ की तैनाती नहीं है इसलिए या तो ये अपनी अपनी वेव साईट अपडेट नहीं कर पाते हैं, या फिर तकनीक की जानकारी के अभाव के चलते करने से कतराते ही हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में गौतम बुद्ध नगर पूर्व में (नोएडा) में न्यू का एक साईन लिए टेंडर नोटिस लगा हुआ है, जिसमें 2008 का एक टेंडर जो 2009 में जारी कर दिया गया है आज भी विद्यमान है। इसी तरह अनेक जिलों की वेव साईट में भी सालों पुरानी जानकारियां आज भी लगी हुई हैं।
इसके अलावा एक और समस्या मुख्य तौर पर लोगों के सामने आ रही है। हर जिले की वेव साईट अलग अलग स्वरूप या फार्मेट में होने से भी लोगों को जानकारियां लेने में नाकों चने चबाने पड जाते हैं। फार्मेट अलग अलग होने से लोगों को जानकारियां जुटा पाना दुष्कर ही प्रतीत होता है। अगर शिक्षा पर ही जानकारियां जुटाना चाहा जाए तो अलग अलग जिलों में प्रदेश के शिक्षा बोर्ड और कंेद्रीय शिक्षा बोर्ड के अधीन कितने स्कूल संचालित हो रहे हैं, उनमें कितने शिक्षक हैं, कितने छात्र छात्राएं हैं, यह जानकारी ही पूरी तरीके से उपलब्ध नहीं हो पाती है।
दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू काश्मीर, केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, उडीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल आदि सूबों में शत प्रति जिलों की अपनी वेव साईट हैं, पर यह कोई नहीं बात सकता है कि ये कब अद्यतन की गई हैं। लचर व्यवस्था के चलते सरकारी ढर्रे पर चलने वाली इन वेव साईट्स से मिलने वाली आधी अधूरी और पुरानी जानकारी के कारण लोगों में भ्रम की स्थिति निर्मित होना आम बात है।
देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस जिसने देश पर आधी सदी से अधिक तक राज किया है को चाहिए कि देश भर के समस्त जिलों, संभागों की आधिकारिक वेव साईट को एक सेट फार्मेट में बनाए, और इसको अपडेट करने की जवाबदारी एनआईसी के कांधों पर डालें क्योंकि इंफरमेशन टेक्नालाजी के मामले में एनआईसी के बंदे ही महारथ हासिल रखते हैं। इसके साथ ही साथ केंद्र सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ये वेव साईट समय समय पर अपडेट अवश्य हों, इसके लिए जवाबदेही तय करना अत्यावश्यक ही है, वरना आने वाले समय में लोग कांग्रेस के भविष्य दृष्टा स्व.राजीव गांधी के बाद वाली नेहरू गांधी परिवार की पीढी को बहुत इज्जत, सम्मान और आदर की नजर से देखेंगे इस बात में संदेह ही है।

(साई फीचर्स)

क्या है बसोरी, केडी की खामोशी का राज!


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . .  73

क्या है बसोरी, केडी की खामोशी का राज!

सिवनी के हितों को लोकसभा में उठाने से हिचकते क्यों हैं सांसद!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। अकूत धनसंपदा के मालिक मशहूर दौलतमंद उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकास खण्ड घंसौर में स्थापित किए जाने वाले 1200 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट में पर्यावरण एवं वन के नियम कायदों का खुलकर माखौल उड़ाया जा रहा है और सिवनी जिले के कांग्रेस और भाजपा के सांसद इस मामले में मौन ही साधे बैठे हैं।
गौरतलब है कि सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकासखण्ड घंसौर में स्थापित होने वाले इस कोल आधारित पावर प्लांट की लोकसुनवाई में गंभीर अनियमितताएं होने के आरोप लगे हैं। पहले चरण की लोकसुनवाई के बाद भी आपत्तियों के निराकरण के बिना ही मध्य प्रदेश सरकार के अधीन काम करने वाले प्रदूषण नियंत्रण मण्डल और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसकी पर्यावरणीय अनुमति प्रदान कर दी है।
इतना ही नहीं मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के पास जमा कराए गए कार्यकारी सारांश में बरेला संरक्षित वन शून्य किलोमीटर पर होना दर्शाया गया है। वन विभाग के सूत्रों के अनुसार शून्य किलोमीटर का तात्पर्य यह है कि पावर प्लांट बरेला संरक्षित वन में ही संस्थापित किया जा रहा है, जो नियमों का खुला उल्लंघन है।
इस संबंध में जब क्षेत्रीय कांग्रेस के सांसद बसोरी सिंह मसराम से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनके एमपी और दिल्ली के मोबाईल सदा की ही भांति स्विच्ड ऑफ मिले साथ ही साथ दिल्ली के लेण्ड लाईन पर नो रिप्लाई ही हुआ। श्री मसराम के डिंडोरी जिले के करंजिया ब्लाक के ग्रमा बोदर में भी उनका दूरभाष बंद मिला।
उधर, सिवनी जिले के दूसरे सांसद के.डी.देशमुख से संपर्क करने पर उनके निज सचिव श्री शर्मा ने बताया कि सांसद महोदय अभी क्षेत्र के भ्रमण पर हैं अतः उनसे चर्चा नही हो सकी।
जानकारों का मानना है कि आदिवासियों के नाम पर राजनैतिक रोटियां सेंकने वाले कांग्रेस और भाजपा के सांसदों को इस मामले को लोकसभा में उठाना चाहिए, किन्तु इस मामले में कांग्रेस के बसोरी सिंह और भाजपा के के.डी.देशमुख ने मौन साधा हुआ है जिससे तरह तरह की चर्चाओं का बाजार गर्मा गया है।
यहां इस बात का उल्लेख करना लाज़िमी होगा कि सिवनी के सांसदों (सुश्री विमला वर्मा को छोड़कर) ने सिवनी के हितों को सदा ही गौड रखा है। सांसद और केंद्रीय मंत्री रहते पंडित गार्गी शंकर मिश्र, प्रहलाद सिंह पटेल, रामनरेश त्रिपाठी, श्रीमति नीता पटेरिया आदि ने सिवनी के हितों को लेकर कभी भी आवाज बुलंद नहीं की है। इस बार में सिवनी का इतिहास लगभग मौन ही है।
संसदीय गलियारों में चल रही चर्चाओं के अनुसार देश में संभवतः सिवनी ही एसा जिला है जहां के सांसदों ने सिवनी के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया है। सिवनी को लेकर लोकसभा में प्रश्न लगाने से यहां के सांसद गुरेज ही करते हैं। परिसीमन के बाद सिवनी संसदीय क्षेत्र का अवसान हो गया और फिर इस जिले के आधे हिस्से को मण्डला तो आधे को बालाघाट संसदीय क्षेत्र का भाग बना दिया गया है।
वर्तमान में लोकसभा के साथ ही साथ मध्य प्रदेश का विधानसभा का बजट सत्र भी चल रहा है। इसके वावजूद सिवनी जिले के चार विधायकों द्वारा इस मामले को विधानसभा में न उठाया जाना और दो सांसदों को अपने दामन में सहेजने वाले सिवनी जिले के आदिवासी हित के इस ज्वलंत मुद्दे को संसद में न उठाया जाना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। यहां उल्लेखनीय होगा कि सिवनी जिले के हितों के लिए जिले के सांसदों ने कभी संसद में आवाज बुलंद नहीं की। नैनपुर से सिवनी छिंदवाड़ा अमान परिवर्तन का मामला भी 2005 में बिलासपुर के सांसद पुन्नू लाल माहौले ने ही उठाया था।

(क्रमशः जारी)

बजट तक शायद चलें मनमोहन. . . 95

. . . तो क्यों पाल रही है पीआईबी सफेद हाथी!

सरकारी नुमाईंदे के बाजाए निजी क्षेत्र से क्यों चुन रहे पीएम अपना एडवाईजर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के वज़ीरे आज़म डॉ.मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि पूरी तरह धूल धासारित हो चुकी है। आम जनता के बीच यह चर्चा आम हो चुकी है कि इस तरह की ईमानदारी आखिर किस काम की। पीएम ईमानदार हो सकते हैं किन्तु उनके सामने अलीबाबा चालीस चोर की मण्डली देश को तबियत से लूट रही है। आखिर क्या वजह है कि जनता के बीच अपनी छवि निर्माण के लिए प्रधानमंत्री को सरकारी नुमाईंदे के बजाए निजी क्षेत्र से अपना मीडिया एडवाईजर चुनने को मजबूर होना पड़ रहा है।
शास्त्री भवन स्थित सूचना प्रसारण मंत्रालय के पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि सूचना प्रसारण मंत्रालय के पास मीडिया मैनेज करने के लिए एक से बढ़कर एक महारथी हैं। इनमें से अनेक अफसरों को विभिन्न मंत्रियों ने अपने पास मीडिया मैनेजमेंट के लिए रखा हुआ है। यहां तक कि महामहिम राष्ट्रपति की छवि निर्माण के लिए भी श्रीमति प्रतिभा पाटिल ने भारतीय सूचना सेवा के अफसरों पर ही भरोसा किया है।
उन्होंने कहा कि फिर आखिर क्या वजह है कि प्रधानमंत्री को भारतीय सूचना सेवा के अफसरों पर भरोसा नहीं है। क्या वजह है कि मनमोहन सिंह ने पहले हरीश खरे फिर पंकज पचौरी को नौकरी पर रखा है? अगर एसा है तो सूचना प्रसारण मंत्रालय ने मोटी पगार और तमाम सुख सुविधाओं वाले सफेद हाथी क्यों पाल रखे हैं? मीडिया मैनेजमेंट के लिए अगर आउट सोर्स की आवश्यक्ता पड़ रही है तो फिर केंद्र सरकार को सूचना प्रसारण मंत्रालय का पत्र सूचना कार्यालय ही बंद कर देना चाहिए?
देखा जाए तो इन बातों में दम दिखाई पड़ रहा है। सूचना प्रसारण मंत्रालय के पत्र सूचना कार्यालय में मीडिया मैनेजमेंट के महारथियों की खासी फौज होने के बाद भी भारत गणराज्य के वज़ीरे आज़म को मीडिया को मैनेज करने के लिए आउट सोर्स कर एक अदद मीडिया एडवाईजर लाने पर मजबूर होना पड़ रहा है, यह बात लोगों को आसानी से गले नहीं उतर रही है।
कहा जा रहा है कि हो सकता है कि सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी और प्रधानमंत्री के बीच खाई गहरी हो गई हो, जिसके चलते उन्हें अपने मातहत मंत्री के विभाग के आला अफसरों पर भी यकीन नहीं हो रहा हो। बहरहाल, जो भी हो प्रधानमंत्री को निजी क्षेत्र से किसी को बतौर मीडिया एडवाईजर चुनने से पीएम की साख काफी प्रभावित हुए बिना नहीं है।

(क्रमशः जारी)

रहस्यमय बीमारी का चेकप कराने सोनिया विदेश में!


रहस्यमय बीमारी का चेकप कराने सोनिया विदेश में!

बीमारी के बारे में कांग्रेस का मौन संदिग्ध!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। हर क्षेत्र में आरक्षण की प्रबल समर्थक अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में जब भी कोई बड़ा नेता बीमार पड़ता है तो वह स्वदेशी चिकित्सकों पर ज़रा भी एतबार नहीं जताता है। इसी तर्ज पर कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी भी अपनी रहस्यमय बीमारी की शल्य चिकित्सा के छः माहों बाद एक बार फिर विदेश रवाना हुई हैं। कांग्रेस इसे रूटीन चेकप का नाम दे रही है।
विदेश में सर्जरी कराने के तकरीबन 6 महीने बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी रूटीन चेकअप के लिए विदेश गई हैं। कांग्रेस महासचिव जर्नादन द्विवेदी ने मंगलवार को कहा, कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने इलाज के 6 महीने बाद सामान्य जांच के लिए देश से बाहर गई हैं।
उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी 4-5 दिनों में वापस आएंगी। पार्टी सूत्रों ने बताया कि सोनिया गांधी सोमवार रात विदेश रवाना हुई हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या उनकी अनुपस्थिति में पार्टी का काम देखने के लिए कोई टीम बनाई गई है, सूत्रों ने कहा कि चूंकि यह बहुत ही छोटी विदेश यात्रा है इसलिए इस तरह की व्यवस्था की जरूरत नहीं है।
गौरतलब है कि 65 वर्षीय सोनिया गांधी पिछले साल अगस्त में अपनी बीमारी के इलाज के लिए विदेश गई थीं। उनकी बीमारी के बारे में खुलासा नहीं किया गया था। यक्ष प्रश्न अब भी वही खड़ा हुआ है कि सामान्य चेकप के लिए जहां 121 करोड़ देशवासी हिन्दुस्तान के चिकित्सकों पर निर्भर हैं तो फिर कांग्रेस की राजमाता लाखों करोड़ों रूपए खर्च कर विदेश जाकर अपना इलाज कराकर देशवासियों को क्या संदेश देना चाह रही हैं?
इसके पहले उनकी बीमारी के मामले में कांग्रेस और कांग्रेसनीत केंद्र सरकार मौन ही रही है। पूर्व में जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रम्हाण्यम स्वामी ने सोनिया गांधी पर अमेरिका में हुई सर्जरी में हुए खर्च पर सवाल उठाया था। बताया जाता है कि सर्जरी के बाद टीम सोनिया जिस अपार्टमेंट में रूकी थी उसका किराया अठ्ठारह लाख रूपए रोजना था।
वैसे तो सोनिया गांधी की बीमारी उनका निजी मामला है, किन्तु व्हीव्हीआईपी पर्सन्स के हर कदम को जानने के लिए रियाया उत्सुक रहती है। सोनिया की बीमारी पर कांग्रेस की चुप्पी ने लोगों की उत्सुकता बढ़ा दी है। कांग्रेस मुख्यालय के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो इस साल जून में वे अपनी बीमार मां का हाल जानने नहीं अपना ही इलाज करवाने विदेश गईं थीं।
कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (सोनिया का सरकारी आवास) के सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी का आपरेशन न्यूयार्क स्थित मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर में हुआ है। उनका आपरेशन साधारण नहीं था और उनकी सर्जरी लगभग सात घंटे से अधिक समय तक चली। अपुष्ट समाचारों के अनुसार सोनिया को पेंक्रियाज में कैंसर था। इस तरह का कैंसर असामान्य ही माना जाता है क्योंकि यह लाखों लोगों में एक को होता है।
बहरहाल, सूत्रों के अनुसार आपरेशन के बाद सोनिया गांधी अपने लाव लश्कर के साथ वे न्यूयार्क के प्लस मैनहट्टन अपार्टमेंट में दो मंजिला आवास में रूकी थीं। सूत्रों ने यह भी बताया कि सोनिया गांधी के द्वारा किराए पर लिए इस आवास का किराया 40 हजार अमरीकि डालर अर्थात लगभग 18 लाख रूपए प्रतिदिन था।
गौरतलब है कि अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं जबकि कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी द्वारा कांग्रेसियों को सादगी बरतने की नसीहत दी गई थी। सोनिया गांधी ने इसे अपनाते हुए दिल्ली से मुंबई तक की हवाई यात्रा इकानामी क्लास में बीस सीट खाली कराकर (सुरक्षा का हवाला देकर) और राहुल गांधी ने दिल्ली से चंडीगढ़ तक शताब्दी रेल में एक पूरी की पूरी बोगी बुक कराकर (सुरक्षा कारणों के चलते) सादगी का अद्भुत परिचय दिया था।
कहा जा रहा है कि सोनिया के इस लंबे चौड़े खर्च का भोगमान सोनिया के पीहर की ही एक फर्म ने भोगा है। अब देखना महज इतना है कि इस मसले पर विपक्ष क्या रूख अपनाता है? विपक्ष को यह एक बेहतरीन मुद्दा मिला है जिस पर वह कांग्रेस और सरकार को बुरी तरह घेर सकती है।

खरबों के शेयर बेचेगी सरकार


खरबों के शेयर बेचेगी सरकार

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। सरकार ने तेल और प्राकृतिक गैस निगम - ओएनजीसी में अपने पांच प्रतिशत शेयर बेचने का फैसला किया है। पहली मार्च को होने वाली इस कंपनी के शेयरों की बिक्री से सरकार को करीब एक खरब बीस अरब रूपये मिलेंगे। कल नई दिल्ली में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में अधिकार प्राप्त मंत्री समूह की बैठक के बाद पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री जयपाल रेड्डी ने यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि ओएनजीसी में सरकार की ७४ दशमलव एक चार प्रतिशत हिस्सेदारी है और पांच प्रतिशत इक्विटी यानी ४२ करोड ७७ लाख ७० हजार शेयरों की बिक्री का प्रस्ताव है।श्री रेड्डी ने कहा कि ईरान से कच्चे तेल की खरीद के मुद्दे पर भारत किसी बाहरी दबाव का सामना नहीं कर रहा है।
ईरान के साथ भारत के दोस्ताना संबंध हैं और वहां से तेल का आयात जारी रहेगा।ईरान के विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम के मुद्दे पर पश्चिमी देशों और ईरान के बीच हाल में तनाव के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ गई हैं। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि चिन्ता का कारण है, लेकिन अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि देश की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर होगा।
उधर, वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि कच्चे तेल की कीमतों में बढोतरी चिंता का विषय है। श्री मुखर्जी ने आज नई दिल्ली में कहा कि अभी यह कहना तो जल्दबाजी होगी कि इस बढोतरी का अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा। ईरान के विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम को लेकर ईरान और पश्चिमी देशों में तनाव के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में हाल ही में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आया है। इस बीच, पेट्रोलियम मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने कहा है कि भारत पर ईरान से कच्चा तेल खरीदने के बारे में किसी तरह का बाहरी दबाव नहीं है।

श्रमिक संघ की हड़ताल का मिला जुला असर


श्रमिक संघ की हड़ताल का मिला जुला असर

(प्रियंका श्रीवास्तव)

नई दिल्ली (साई)। केन्द्रीय मजदूर संघों द्वारा सरकार की कथित श्रमिक विरोधी नीतियों और महंगाई के विरोध में की गई राष्ट्रव्यापी हड़ताल का मिलाजुला असर रहा। कुछ राज्यों में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कामकाज और परिवहन सेवाओं में रुकावट आई, लेकिन आमतौर पर जनजीवन आम दिनों की तरह रहा। विमान सेवाएं सामान्य थीं जबकि पूर्वी रेलवे और दक्षिण पूर्व रेलवे के कुछ डिवीजनों में प्रदर्शनकारियों के धरने के कारण रेल सेवाएं बाधित रहीं।
मुंबई साई ब्यूरो अतुल खरे ने बताया कि देश की आर्थिक राजधानी में केवल वित्तीय संस्थान हड़ताल से प्रभावित रहे, लेकिन विशेषरूप से सार्वजनिक परिवहन जैसी अनिवार्य सेवाएं सामान्य रहीं। केरल में जनजीवन पर हड़ताल का असर रहा क्योंकि वाहन नहीं चले तथा दुकानें बंद रहीं। पंजाब, चंडीगढ़ और हरियाणा में भी बैंकिंग तथा परिवहन सेवाएं ठप्प रहीं।
दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन और मेट्रो सेवाएं जारी रहीं और निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार उड़ानें भी सामान्य रहीं। दिल्ली सरकार ने हड़ताल को ध्यान में रखते हुए अनिवार्य सेवा अधिनियम- एस्मा लागू किया। पश्चिम बंगाल में आमतौर से हड़ताल के कारण जन-जीवन पर कोई असर नहीं रहा। राज्य सरकार की बसें, टैक्सियां, ट्राम, रेलगाड़ियां और मेट्रो रेल सेवाएं सामान्य रूप से चलती रहीं। लेकिन निजी बसें कुछ ही मार्गों पर चलीं। विमान सेवाएं सामान्य रहीं। उत्तर-पूर्वी राज्यों में हड़ताल का असर कम रहा।

सिवनी को मिली आयुर्विज्ञान महाविद्यालय की सौगात


सिवनी को मिली आयुर्विज्ञान महाविद्यालय की सौगात

हो गई मेडीकल की घोषणा, नहीं पता चला जनसेवकों को!

(नंद किशोर)

भोपाल (साई)। प्रदेश सरकार ने इस साल पेश किए बजट सत्र में सिवनी जिले को मेडीकल कालेज की सौगत मिल गई है। बजट आया पर किसी को इस बात का भान ही नहीं हुआ कि बजट में सिवनी को यह उपलब्धि मिली है। यही कारण है कि मंगलवार को पेश किए गए बजट के बाद बुधवार को समाचार पत्र इस मामले में कांग्रेस और भाजपा के विज्ञापनों से रीते हैं।
मध्य प्रदेश में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने की दृष्टि से शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने जननिजी भागीदारी के माध्यम से सिवनी, रतलाम, सतना, विदिशा एवं देवास में जिला चिकित्सालयों की सुविधाओं से संबंद्ध कर पांच नये मेडिकल कालेज खोले जाने का सैद्धांतिक निर्णय लिया गया है।
मध्य प्रदेश का बजट प्रस्तुत करते हुए वित्त मंत्री राघवजी ने इस बात की घोषणा की। इसमें सबसे अहम बात यह है कि मेडीकल कालेज खोलने का निर्यण लिया गया है, किन्तु इसके लिए राशि का प्रावधान नहीं किए जाने से यह निर्णय एक झुनझुना ही साबित हो सकता है। इसके लिए जन निजी भागीदारी के माध्यम से कार्य कराया जाना प्रस्तावित है।
जानकारों का मानना है कि इसके लिए पहले धनाड्यों को खोजना होगा जो मेडीकल कालेज खोलने में दिलचस्पी दिखाएं। इसके उपरांत मेडीकल कॉउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के कड़े मापदण्डों में इस आर्युविज्ञान महाविद्यालय को खरा उतरना होगा। वैसे सिवनी का जिला चिकित्सालय तत्कालीन मंत्री सुश्री विमला वर्मा की सिवनी वासियों को दी गई अनुपम सौगात है जिसे उनके सक्रिय राजनीति से किनारा करने के बाद आए विधायक सहेजकर नहीं रख पाए। यही कारण है कि आज चिकित्सकों और पेरामेडीकल स्टाफ के अभाव में जिला चिकित्सालय खुद ही बीमारी से कराह रहा है।
बहरहाल, इसी माह में फोरलेन में खवासा से मोहगांव तक के टूलेन मार्ग के 16 करोड़ 41 लाख रूपए की निविदा जारी होने के बाद यह दूसरा मौका है जब किसी भी बात का श्रेय लेने के प्यासे कांग्रेस और भाजपा के विधायकों द्वारा उपलब्धि पर मौन रहा गया हो। दरअसल, किसी को उम्मीद नहीं थी कि बजट में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस तरह की दरियादिली दिखा पाएंगे।
मंगलवार को पेश किए गए मध्य प्रदेश के बजट में पांच आयुर्विज्ञान महाविद्यालय खोलने की घोषणा के बाद भी सिवनी जिले में राजनैतिक हलचल न होना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। छोटी छोटी बात पर विज्ञप्ति और विज्ञापन के माध्यम से श्रेय बटोरने वाले विधायकों ने बजट को पढ़ना ही संभवतः मुनासिब नहीं समझा। संभवतः यही कारण है कि सिवनी के मेडीकल कालेज की घोषणा पर सभी खामोश बैठे हैं।

कमाल के गुण हैं अदरख में


हर्बल खजाना ----------------- 33

कमाल के गुण हैं अदरख में

(डॉ दीपक आचार्य)

अहमदाबाद (साई)। आम घरों के किचन में पाया जाने वाला अदरख खूब औषधिय गुणों से भरपूर है। सम्पूर्ण भारत में इसकी खेती की जाती है। अदरख का वानस्पतिक नाम ज़िन्ज़िबर आफ़ीसिनेल है। सभी प्रकार के जोड़ों की समस्याओं में रात्रि में सोते समय लगभग ४ ग्राम सूखा अदरख, जिसे सोंठ कहा जाता है, नियमित लेना चाहिए।
स्लिपडिस्क या लम्बेगो में इसकी इतनी ही मात्रा चूर्ण रूप में मधु के साथ ली जानी चाहिए। आदिवासियों के अनुसार बरसात में खान पान में हल्का भोजन करना चाहिये और भोजन के साथ मे आधा निंबू का रस तथा अदरख जरूर खाना चाहिये। नींबू और अदरख बरसात समय होने वाली अनेक तकलीफों का निवारण स्वतरू ही कर देते है।
दो चम्मच कच्ची सौंफ और ५ ग्राम अदरख  एक ग्लास पानी में डालकर उसे इतना उबालें कि एक चौथाई पानी बच जाये। एक दिन में ३-४ बार लेने से पतला दस्त ठीक हो जाता है। गैस और कब्ज में भी लाभदायक होता है। गाउट और पुराने गठिया रोग में अदरख एक अत्यन्त लाभदायक औषधि है।
अदरख लगभग (५ ग्राम) और अरंडी का तेल (आधा चम्मच) लेकर दो कप पानी में उबाला जाए ताकि यह आधा शेष रह जाए। प्रतिदिन रात्रि को इस द्रव का सेवन लगातार किया जाए तो धीमें धीमें तकलीफ़ में आराम मिलना शुरू हो जाता है। आदिवासियों का मानना है कि ऐसा लगातार ३ माह तक किया जाए तो पुराने से पुराना जोड दर्द भी छू-मंतर हो जाता है।

(साई फीचर्स)

सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

. . . तो इतिहास में शामिल हो जाएगी जबलपुर का मार्बल राक


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . .  72

. . . तो इतिहास में शामिल हो जाएगी जबलपुर का मार्बल राक

धवल संगमरमर पर चढ़ जाएगी राख की काली परत

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के मशहूर दौलतमंद उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकास खण्ड घंसौर में स्थापित किए जाने वाले 1200 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट से न केवल पर्यावरणीय खतरा पैदा होने की आशंका है वरन् पुण्य सलिला नर्मदा के विषैले होने और खेतों की उर्वरक क्षमता कम होने की आशंकाओं के साथ ही साथ विश्व प्रसिद्ध जबलपुर के साफ्ट मार्बल पर भी खतरा मण्डाराता दिख रहा है।
गौतम थापर के स्वामित्व वाले 1200 या 1260 मेगावाट के इस पावर प्लांट में 275 मीटर की दो चिमनियां प्रस्तावित बताई जा रही हैं। इन दोनों ही चिमनियों से प्रति घंटा 285 टन राख हवा में उड़ेगी। यह बात ओर कोई नहीं वरन् मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के दो चरणों में लगने वाले कोल आधारित पावर प्लांट के कार्यकारी सारांश में संयंत्र प्रबंधन ने ही स्वीकार की है। संयंत्र प्रबंधन की इस स्पष्ट स्वीकारोक्ति के बाद भी गौतम थापर के इशारों पर अवंथा समूह की देहरी पर मुजरा करने वाले मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के कारिंदों ने इस बात को दरकिनार रख थापर के हितों को ही साधने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई है।
लगभग एक हजार फिट उंची चिमनी से उड़ने वाली राख की मारक क्षमता कितने किलोमीटर होगी यह बात तो हवा की दिशा और बहाव पर ही निर्भर करता है, किन्तु संयंत्र प्रबंधन द्वारा जो सर्वेक्षण करवाकर प्रतिवेदन मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के माध्यम से केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को भेजा है उसमें हवा की दिशा उत्तर पूर्व और उत्तर दर्शाई गई है। इसके साथ ही साथ वायू की गति 29.8 प्रतिशत स्थिर तौर पर बताई गई है।
गौरतलब है कि संयंत्र से उत्तर पूर्व और उत्तर दिशा में ही बरगी बांध का रिजर्वेवायर क्षेत्र गाढाघाट और पायली है। अपने अंदर अकूल जल संपदा सहेजने वाले रानी अवंती बाई सागर परियोजना के बरगी बांध का सर्वाधिक जल भराव क्षेत्र इसी दिशा में है। अब सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक हजार फिट उंची चिमनी से उड़ने वाली राख बांध में क्या कहर बरपाएगी?
इतना ही नहीं हवा में राख के कण उड़कर भेड़ाघाट के इर्दगिर्द नैसर्गिक छटा बिखेरने वाले मार्बल राक को भी श्वेत धवल से स्याह रंग में तब्दील करने के लिए पर्याप्त माने जा रहे हैं। गौरतलब है कि संस्कारधानी जबलपुर के मार्बल राक्स को देखने देश विदेश से हर साल लाखों की तादाद में सैलानी आते हैं। मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा मिलकर जबलपुर से पर्यटन की संभावनाओं का गला घोंटने का ताना बाना बुना जा रहा है। अगर आलम यही रहा तो संसकारधानी की शान समझा जाने वाला संगमरमर इतिहास की वस्तु हो जाएगा।
आश्चर्य तो इस बात पर हो रहा है कि सारी स्थितियां सांसद विधायकों के सामने होने के बावजूद भी न तो कांग्रेस और न ही भाजपा के जनसेवकों के कानों में जूं रेंग रही है। कुल मिलाकर केंद्र सरकार की छटवीं अनुसूची में अधिसूचित सिवनी जिले के घंसौर विकासखण्ड के आदिवासियों, जल जंगल और जमीन को परोक्ष तौर पर दौलतमंद गौतम थापर के पास रहन रख दिया गया है और बावजूद इसके केंद्र सरकार का वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, जिला प्रशासन सिवनी सहित भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर चुपचाप नियम कायदों का माखौल सरेआम उड़ते देख रहे हैं।

(क्रमशः जारी)

सुपर पीएम बन गए हैं पुलक चटर्जी!


बजट तक शायद चलें मनमोहन. . . 94

सुपर पीएम बन गए हैं पुलक चटर्जी!

चावला की राह पर चल पड़े चटर्जी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। प्रधानमंत्री कार्यालय में इन दिनों सभी की भाव भंगिमाएं बदली सी दिख रही हैं। दबी जुबान से पीएमओ में यह चर्चा चल पड़ी है कि पीएमओ को अब नया बॉस मिल गया है। जिस तरह आपात काल के दौरान दिल्ली में एलजी (उपराज्यपाल) के सचिव नवीन चावला और 1993 से 2003 तक मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के सचिव डॉ.अमर सिंह की और मायावती के राज में सतीश मिश्र की तूती बोला करती थी, उसी तरह अब देश में पुलक चटर्जी की हैसियत सुपर पीएम की आंकी जाने लगी है।
मीडिया में चल रही चर्चाओं के अनुसार इस बात पर शोध अत्यावश्यक है कि मीडिया का एक बड़ा तबका प्रधानमंत्री के बजाए अब उनके प्रधान सचिव पुलक चटर्जी की छवि निर्माण का काम क्यों कर रहा है? जब से तीक्ष्ण बुद्धि के धनी पीएम के मीडिया एडवाईजर हरीश खरे ने पीएमओ में आमद देना बंद किया है तबसे पुलक चटर्जी काफी पुलकित नजर आ रहे हैं। पीएम के (अस्थाई) मीडिया एडवाईजर पंकज पचौरी भी चटर्जी के सुर में सुर मिलाकर राग मल्हार गाने में लगे हुए हैं।
सियासी हल्कों में इस बात को लेकर कानाफूसी आरंभ हो गई है कि पुलक चटर्जी अब पीएमओ की अंतिम शक्ति बनकर उभर रहे हैं। गौरतलब है कि पुलक इसके पहले भी सरकार में अपने जलवे दिखा चुके हैं। कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि यह सब इसलिए संभव हो पा रहा है क्योंकि चटर्जी के प्रभुत्व का लट्टू दरअसल, 10, जनपथ की बेटरी से उर्जा पा रहा है। यही कारण है कि उन्हें किसी की परवाह नहीं है, और वे नित नए प्रयोग करने में लगे हुए हैं।
सूत्रों ने आगे कहा कि वैसे भी प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह प्रतिरोध का रास्ता ही नहीं अख्तियार करते हैं और वे सरकार के औपचारिक मुखिया बनकर ही प्रसन्न और संतुष्ट हैं। वे पुलक चटर्जी या अन्य किसी के बढ़ते प्रभुत्व से कतई विचलित नहीं होंगे। साथ ही साथ वे किसी भी बात या समीकरण का बुरा नहीं मानेंगे।
यहां एक बात का उल्लेख करना लाजिमी होगा कि जिस तरह आपात काल में 1975 से 1977 तक हुई ज्यादती के लिए जस्टिस जे.सी.शाह की अध्यक्षता वाले आयोग में दिल्ली सरकार के खिलाफ लगे संगीन आरोपों जिनमें हत्याओं के आरोप भी थे, में अपना पक्ष रखते हुए दिल्ली के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर किशन चंद ने सभी निर्णयों से पल्ला झाड़ते हुए अपने आप को बेदाग बताते हुए सभी निर्णयों के लिए अपने सचिव नवीन चावला को ही जवाबदार बताया था।
उस वक्त जस्टिस शाह ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि हालात देखकर लगता है कि आप महज लेफ्टिनेंट थे और चावला गवर्नर। कहने का तात्पर्य यह कि कहीं इतिहास फिर से न दुहरा जाए। जिस तरह दिल्ली के एलजी किशन चंद की आसनी बाद में नवीन चावला ने ले ली थी उसी तरह कहीं मनमोहन सिंह की गद्दी पर पुलक चटर्जी विराजमान न हो जाएं।
पुलक चटर्जी की हैसियत का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि अब तक उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा नहीं मिला है और कबीना मंत्री, राज्य मंत्री और दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री उनकी चौखट पर उसी तरह लाईन लगाकर खड़े हुए हैं जिस तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय विसेंट जार्ज की देहरी पर मंत्री खड़े रहा करते थे।
पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि टी.के.नायर को राज्यमंत्री का दर्जा बरकरार ही रहेगा। नायर राज्य मंत्री का दर्जा लेने के बाद भी गैर दर्जा प्राप्त पुलक चटर्जी को रिपोर्ट करेंगे। पीएमओ असमंजस में है कि चटर्जी को एमओएस का दर्जा दें या नहीं। यही कारण है कि चटर्जी का वेतन अभी निर्धारित नहीं हो सका है। कहा जा रहा है कि चटर्जी वर्तमान में अस्सी हजार रूपए प्रतिमाह पगार पा रहे हैं।

(क्रमशः जारी)

नेता ने कहा नेता चोर, जनता ने कहा वन्स मोर


नेता ने कहा नेता चोर, जनता ने कहा वन्स मोर

(संजय तिवारी)

उत्तर प्रदेश में महाचुनाव के छठे चरण के लिए चुनाव प्रचार चरम पर पहुंचा या चरमराकर गिर गया कहना मुश्किल है लेकिन चुनाव आयोग की नियमावली के तहत आज शाम समाप्त जरूर हो गया. अंधाधुंध सभाओं और हडहड़ाते हेलिकॉप्टरों का शोर थम गया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 13 जिलों की 68 सीटों के लिए मंगलवार को मतदान होगा. प्रचार और मतदान के बीच चुनाव आयोग एक दिन का अंतराल क्यों देता है यह तो नहीं पता लेकिन यह एक दिन हर उम्मीदवार के लिए उन तैयारियों को अंजाम देने के लिए किया जाता है जो आमतौर पर स्वस्थ चुनाव प्रणाली में निषिद्ध कार्य समझा जाता है.
अगले पूरे दिन राजनीतिक दल और उनके उम्मीदवार इसी निषिद्ध कार्य को संपन्न करेंगे और उसके बाद आखिरी चरण के लिए बची खुची सीटों पर प्रचार के लिए कूच कर जाएंगे. उत्तर प्रदेश के इस छठे चरण सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा के अलावा एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी भी है इंडियन नेशनल लोकदल. बुढ़ाने के बाद भी छोटे चौधरी बड़े नहीं हुए हैं इसलिए पल पल में दल बदलने की उनकी पुरानी रवायत कायम है. इस दफा वे कांग्रेस के साथ मिलकर मैदान में उतरे हैं और जाटों के पहरुआ बनकर प्रचार कर रहे हैं.
मायावती और मुलायम के लिए भी यह इलाका महत्वपूर्ण है. मायावती का मायका गौतमबुद्ध नगर इसी इलाके में है तो मौलाना मुलायम की अलीगढ़ में स्वीकार्यता का औपचारिक परीक्षण भी इसी दौर में हो जाएगा. देवबंद से लेकर अलीगढ़ तक मौलाना मुलायम की स्वीकार्यता का ही सवाल था कि नेता जी आगरा से लेकर अलीगढ़ तक दौड़ लगाते रहे और खुद को छोड़कर बाकियों को चोर ठहराते रहे. मायावती मायके में आईं तो उन्होंने भी यही किया. बसपा को छोड़कर बाकी सभी दल या तो चौर और भ्रष्टाचारी हैं या फिर सांप्रदायिकता फैलाते हैं.
कांग्रेस के आलाकमान की आलाकमान सोनिया गांधी मयपुत्र राहुल गांधी के साथ हरवाहों चरवाहों के बीच जाने से खुद को रोक नहीं पाई और कांग्रेस को छोड़कर बाकी दलों को चोर ठहराती रहीं. मीडिया के जरिए शायद उन्होंने जान लिया था कि काले धन की जो बहस चल रही है उसमें उनका भी नाम घसीटा जाता है इसलिए कालेधन पर बहस शुरू करनेवाले राजनीतिक प्राणी आडवाणी को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें काले धन की इतनी ही चिन्ता है तो अपने शासनकाल में उन्होंने काला धन वापस लाने की पहल क्यों नहीं की. चुनाव प्रचार के आखिरी दिन भी वे साहरनपुर में जनता को बताने से बाज नहीं आई कि तीनों दलों (सपा, बसपा और भाजपा) ने आपको लूटा है इसलिए आप उनको वोट न करें. भैया राहुल तो चार कदम आगे जाकर चौंका देते हैं. चुनाव प्रचार में धूल फांककर काले पड़ चुके गोरे राहुल की नजर में माया मुलायम दोनों लुटेरे हैं सिर्फ अजीत सिंह सबसे ईमानदार नेता और लोकदल सबसे सही दल है.
भारतीय जनता पार्टी ने तो मानों कसम खा ली है कि कुछ भी हो जाए वह अच्छा परिणाम लाकर रहेगी. छठे चरण के लिए थोक में नेताओं ने चुनाव प्रचार किया जिसमें नितिन गडकरी से लेकर नकवी तक शामिल हैं. पार्टी के हर छोटे बड़े नेता को गाजियाबाद में स्थापित किये गये अस्थाई मुख्यालय से जोड़ दिया गया है और सारे हवाई साधनों और हवाई नेताओं को कहा गया कि जहां मौका मिल जाए कूदकर सभा कर आयें. भाजपा वाले एक सुर में नहीं बोल रहे हैं. सपा और बसपा को केन्द्र की राजनीति से कुछ लेना देना नहीं है इसलिए उनके लिए सुभीता है कि वे प्रदेश को ही प्लेग्राउण्ड बनाकर खेल रहे हैं लेकिन भाजपा को सेन्टर की पॉलिटिक्स भी हैंडल करनी है इसलिए कहीं माया निशाने पर हैं तो कहीं कांग्रेस और सोनिया गांधी.
अगर पहले चरण से छठे चरण तक के चुनाव प्रचार का याद करें तो पायेंगे कि पूरे चुनाव प्रचार के दौरान हर नेता दूसरे नेता को चोर ठहरा रहा है. उत्तर प्रदेश बदहाल है इसे तो सभी मान रहे हैं लेकिन मायावती इसके लिए कांग्रेस के 22 साल पहले के शासन को जिम्मेदार बता रहीं हैं तो कांग्रेस को सारा कोढ़ पिछले पांच साल में पैदा हुआ नजर आ रहा है. भाजपा और सपा को तो दोनों ही दल भ्रष्ट नजर आ रहे हैं क्योंकि ये दोनों दल न इधर न उधर, कहीं भी सत्ता में नहीं हैं.
तो फिर जनता किसकी सुन रही है? यह जानने के लिए हम 6 मार्च का इंतजार करेंगे लेकिन मौका मुआइना यह है कि जनता जमकर तमाशा देख रही है. प्रदेश के चुनावी दंगल में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में हैलिकॉप्टर उतारे गये हैं जो पहले कभी नहीं उतारे गये थे. हर नेता हवा से हरहराता हुआ जमीन पर आता है और जमीन चूमकर फिर हवा हो जाता है. जनता उन आते जाते नेताओं को बड़े चाव से देख रही है और उनके हैलिकॉप्टरों की उड़ती धूल के आंख में पड़ने से पहले ही अपनी आंख बंद कर लेती है. हैलिकॉप्टर के हवा में गायब हो जाने के बाद आंख खोलती है और बड़े चाव से बोल पड़ती है- वन्स मोर।

(लेखक विस्फोट डॉट काम के संपादक हैं)

निःशक्त जनों को पदोन्नति में मिले आरक्षण का लाभ!



निःशक्त जनों को पदोन्नति में मिले आरक्षण का लाभ!

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई)। केंद्र सरकार की तरह ही मध्य प्रदेश सरकार में भी शारीरिक और मानसिक तौर पर विकलांग सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का पूरा पूरा लाभ मिलना चाहिए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मुख्य सचिव, सामाजिक न्याय विभाग, समान्य प्रशासन विभाग मंत्री सहित समस्त प्रमुख सचिवों को भेजे गए ज्ञापन में उक्ताशय की बात कही गई है।
ज्ञापन में म.प्र. शासन, समान्य प्रशासन विभाग का आदेश क्रमांक एफ. 8-5/2004/आ.प्र./एक , भोपाल दिनांक 31/03/2005. का हवाला देते हुए कहा गया है कि म.प्र. शासन, समान्य प्रशासन विभाग के उक्त सन्दर्भित आदेश के द्वारा निःशक्त के लिये निर्धारित 6 प्रतिशत होरिजोण्टल आरक्षण सुनिश्चित करने हेतु भारत सरकार की सेवाओं मे लागु तीन खण्ड स्तरीय व्यवस्था राज्य शासन की सेवाओं में भी लागू की गई है। इस हेतु निरूशक्त शासकीय कर्मचारियों हेतु 100 बिन्दु आरक्षण् रोस्टर मे प्रथम खण्ड रोस्टर बिन्दु क्रमांक 1 से 33 तक द्वितिय खण्ड रोस्टर बिन्दु क्रमांक 34  से 6 7 तक तथा तृतिय खण्ड रोस्टर बिन्दु क्रमांक 6 8   से 1 00  तक निर्धरित किया गया है।
भारत शासन के कार्मिक जनशिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के आदेश क्रमांक 36035/7/95- 1997 के द्वारा समस्त शासकीय सेवाओं मे निःशक्त शासकिय कर्मचारियों हेतु पदोन्नती मे आरक्षण्  का प्रावधान किया गया है एवं म.प्र. शासन, समान्य प्रशासन विभाग के उक्त सन्दर्भित आदेश के द्वारा भी भारत शासन की शासकीय सेवाओ मे निरूशक्त शासकिय कर्मचारियों हेतु लागु आरक्षण व्यवस्थाओं को ही म.प्र. शासन मे लागु किया गया है अतः प्रदेश की शासकीय सेवाओं मे भी निरूशक्त शासकीय कर्मचारियों हेतु पदोन्नती मै आरक्षण् लागु होना चाहिये, परंतु प्रदेश के किसी भी शासकीय विभाग द्वारा विगत वर्षाे मे की गई पदोन्नतियो मे न तो निःशक्त शासकिय कर्मचारियों हेतु आरक्षण का प्रावधान किया गया है एवं न ही रोस्टर सन्धारित किया गया है।
 निःशक्तजन मानसिक रूप से सामन्य व्यक्तियो के समान सक्षम होने के बाद भी  शाररिक रुप से समर्थ नही होने के कारण सामन्य व्यक्तियो के समतुल्य स्पर्धा नही कर पाते है अतः उन्हे प्रोत्सहान देने हेतु शासकिय सेवाऑं मे पदोन्नतियो मे आरक्षण् दिया जाना मानवीय द्रष्टिकोण से आवश्यक है। ज्ञापन में आग्रह किया गया है कि म.प्र. शासन के उक्त सन्दर्भित आदेश मे निःशक्त शासकीय कर्मचारियों हेतु पदोन्नती मै आरक्षण् के आशय को स्पष्ट करने हेतु प्रथक से निर्देश जारी कए जाएं।

अवैध कमाई का अड्डा बना खवासा चौकपोस्ट


अवैध कमाई का अड्डा बना खवासा चौकपोस्ट

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। सिवनी नगर से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम खवासा भ्रष्ट अधिकारियों का चहेता ग्राम है, क्योंकि यहां स्थापित जांच चौकियां भ्रष्ट अधिकारियों को चंद महिने में ही करोड़ों का आसामी बना देती है और यहां के भ्रष्टाचार पर किसी की नजर भी नही होती। क्योंकि यहां हो रहे भ्रष्टाचार पर नेता भी नजर नहीं डालते, चाहे वह किसी भी पार्टी के हों। खवासा चौक पोस्ट में सभी नेताओं एवं अधिकारियों को मैनेज करने की परंपरा है, जिसे बड़ी ईमानदारी से इन भ्रष्ट अधिकारियों को निभाना पड़ता है, क्योंकि यह बहुत अच्छी तरह जानते है कि अगर यहां ईमानदारी नहीं दिखाई गई तो इनके भी मंसूबों पर पानी फिर सकता है।
खवासा चौक पोस्ट पर स्थापित कृषि उपज, वाणिज्य कर एवं परिवहन जांच चौकी, जिन्हें सरकार ने अपने राज्य के सुरक्षा और आयात- निर्यात कर की देखरेख के लिए स्थापित की थी, लेकिन अब यह मूल उद्देश्य से भटक चुकी हैं। यहां पदस्थ अधिकारी- कर्मचारी सिर्फ पैसे की भूख रखता है। नोटों की चमक के आगे ये यह भूल चुके हैं कि यह स्वार्थ भावना पूरी करने के लिए राज्य को प्रतिमाह करोड़ों की चपत लगा रहे हैं। खवासा जांच चौकियों पर बरसने वाले धन का कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता। अगर इसका अनुमान हमें लगाना है तो पूर्व में रहे त्रिविभागीय मंत्री की आर्थिक उन्नति देखकर बड़ी आसानी से यहां की कमाई का अनुमान लगाया जा सकता है और अब तक यहां पदस्थ रहे आरटीआई की स्थिति भी देखें तो यही समझ में आएगा कि खवासा में बेशुमार धन बरसता है।
सूत्र बताते हैं कि  खवासा में पोस्टिंग के लिए ये अधिकारी अपने मुख्यालय पर लाखों की चढ़ोत्तरी चढ़ाकर खवासा पर पदस्थापना पाते हैं और वह लाखों की चढ़ौत्तरी को सूद समेत वसूल करने के लिए भ्रष्टाचार की परकाष्ठा को भी पार कर जाते हैं। खवासा पर चल रहे भ्रष्टाचार के खुले खेल पर हमारे जिले के जनप्रतिनिधि भी हरी झंडी दे रहे हैं। न तो कांग्रेस, भाजपा, सपा, राकांपा, बसपा जैसे प्रमुख राजनैतिक दल भी यहां के भ्रष्टाचार को लेकर मौन साधे बैठे हैं।
विगत वर्ष राकांपा युवा मोर्चा के एक नेता ने अपनी आवाज बुलंद करते हुए यहां हो रहे भ्रष्टाचार पर माननीय मुख्यमंत्री को पत्र से अवगत कराया, जिसकी जांच के आदेश भी दिए गए और जांच अधिकारी के रूप में कुरई थाना प्रभारी को नियुक्त किया गया, लेकिन यह जांच ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है, जिससे यह प्रतीत होता है कि संभवतः दोनों के बीच में सेटिंग हो गई है और अगर नहीं तो फिर नेता का शांत बैठना समझ से परे है। कहते हैं गधे की लात और नेता की बात का कभी भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि जहां से पैसा मिले नेता उसी पक्ष को सही ठहराते हैं और जहां से न मिले उस पक्ष को गलत ठहरा देते हैं, लेकिन खवासा चौकपोस्ट एक ऐसा स्थान है, जिसके खिलाफ में कोई भी नेता और तो और कोई भी राजनीतिक दल यहां हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर अपनी आवाज बुलंद करने के लिए तैयार नहीं है।
खवासा चौकपोस्ट में आज भी टोकन सिस्टम विधिवत चल रहा है और बिना बिल बाऊचरों के कई माल सिवनी से दूसरे राज्य और दूसरे राज्यों से सिवनी लाया जा रहा है। यह बात और है कि कुछ माह से एक ईमानदार अधिकारी डी. पुरोहित की कार्यप्रणाली के चलते व्यापार जगत में हड़कंप मचा हुआ है और बिना बाऊचरों के माल के आवागमन पर रोक लगी हुई है। बताया जाता है कि किराना व्यवसायियों पर यह ईमानदारी बहुत भारी पड़ी है, जिसके कारण आज बाजार में जीरा भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, लेकिन कई ऐसी खाद्य सामग्री, कपड़ा, लोहा, गल्ला एवं जनरल सामग्री है, जो आज भी पीछे के रास्ते से जिले के बाहर दूसरे राज्यों में और दूसरे राज्यों से जिले के अंदर लाई जा रही है, जिसमें पूर्णतः खवासा चौकपोस्ट पर बैठे भ्रष्ट अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है। 
सूत्रों की माने तो यहां पर भ्रष्टाचार का जो भी खेल खेला जाता है, उसकी समस्त जानकारी उच्चाधिकारियों को भी होती है, लेकिन अधिकारी इस भ्रष्टाचार को नजर अंदाज इसीलिए करते हैं, क्योंकि यहां की काली कमाई का कुछ हिस्सा इनक ो भी दिया जाता है और इसी हिस्से के बोझ पर दबकर ये अधिकारी इस भ्रष्टाचार को लेकर कोई कार्यवाही करने की बजाय इस भ्रष्टाचार को नजर अंदाज कर देते हैं। विभागीय सूत्रों की माने तो इस काली का हिस्सा जिले के अदने से अधिकारी से लेकर प्रदेश के प्रमुख मंत्रियों तक जाता है और यही कारण माना जाता है कि खवासा चौकपोस्ट पर कोई भी ईमानदारी अधिकारी अपनी निष्पक्ष कार्यवाही का डंडा घुमाने से कतराता है।
यह बात बहुत कम लोग ही जानते हैं कि खवासा चौक पोस्ट पर एक दिन की आय लाखों पर होती है, जिसमें यह भ्रष्ट अधिकारी सभी को अपना- अपना हिस्सा पहुंचाकर खुद का हिस्सा भी मोटी रकम के रूप में बचाते हैं। बताया जाता है कि खवासा चौक पोस्ट पर रजिस्टर मेंटनेंस की परंपरा है, जिसमें दागी नेताओं के नाम के साथ- साथ बिकाऊ कलमकारों के नाम भी दर्ज है। इस रजिस्टर में इनके नाम के आगे प्रतिमाह  इन्हें दी जाने वाली रकम भी अंकित है, जो ये प्रतिमाह खवासा चौक पोस्ट में जाकर ले लेते हैं, तो कुछ रूआबदार नेता और कलमकारों को यह रकम लिफाफे में पैक करके सम्मानपूर्वक उनके निवास तक पहुंचा दी जाती है।  जब देश का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता और सच्चाई को उजागर करने वाले कलमकार ही इस भ्रष्टाचार के समुंदर में गोते लगा रहे हैं तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस भ्रष्टाचार की जड़े कितनी मजबूत हैं और इन भ्रष्टाचारियों के मंसूबों के आगे कोई भी ईमानदार शख्स ज्यादा दिन तक टिक नहीं सकता। अब तो इस बात का इंतजार है कि कब कोई ईमानदार जनप्रतिनिधि इनके भ्रष्टाचार को लेकर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की नई शुरूआत करेगा...।

एम.पी. ऑनलाईन के नाम पर बेरोजगारों से लूट


एम.पी. ऑनलाईन के नाम पर बेरोजगारों से लूट

(विपिन सिंह)

सिवनी (साई)। उपनगरीय क्षेत्र भैरोगंज में एम.पी. ऑनलाईन के माध्यम से भर्ती के लिए जमा किए जा रहे फार्मों में अधिक शुल्क वसूलने की खबरें आ रही हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार शासकीय भर्तियों में अब एम.पी. ऑनलाईन के माध्यम से ही फार्म जमा हो रहे हैं।
इस माध्यम से फार्म जमा करने पर शासन की आय तो ज्यादा हो रही है किंतु वे बेरोजगार लुट रहे हैं, जो अधिक तकनीकी नही है। ऐसा ही खेल भैरोगंज क्षेत्र में खेला जा रहा है, जहां पर कुछ एम.पी. ऑनलाईन धारकों के द्वारा तय मानक से अधिक जमा शुल्क लिया जा रहा है, इतना ही नही ओपन स्कूल के परीक्षा फार्म जमा करने वाले छात्रों से भी अधिक राशि ली जाने की खबरें भी प्राप्त हुई हैं। प्रशासन को इस ओर जल्द से जल्द कार्यवाही करनी चाहिए, जिससे कल का नागरिक विद्यार्थी और आज का पढ़ा- लिखा बेरोजगार लुटने से बचे।

चर्चा का विषय बना पेट्रोल पंप आवंटन


चर्चा का विषय बना पेट्रोल पंप आवंटन

(ए.के.दुबे)

सिवनी (साई)। जिले के दो कद्दावर नेताओं को आवंटित पेट्रोल पंप की गूंज इन दिनों चौक - चौराहों में हो रही है। बताया जाता है कि ये दोनों ही नेता एक दूसरे के धुर - विरोधी भी हैं, किंतु एक साथ पेट्रोल पंप इन्हें प्राप्त होना बाकी लोगों के गले नहीं उतर रही है और इनके ही समर्थक आम जनता के बीच जाकर यह बताने से नहीं चूक रहे हैं कि इन्हें किस प्रकार से पेट्रोल पंप प्राप्त हुए हैं।
बताया जाता है कि कांग्रेस के एक कद्दवर नेता और भाजपा की चर्चित नेत्री के साथ ही साथ कांग्रेस या भाजपा में घुसने का प्रयास करने वाले शराब व्यवसाई नेता के परिजन को सिवनी जिले में पंप का आवंटन इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है।


रामबाण औषधी है पूज्यनीय तुलसी


हर्बल खजाना ----------------- 32

रामबाण औषधी है पूज्यनीय तुलसी

(डॉ दीपक आचार्य)

अहमदाबाद (साई)। भारत के प्रत्येक भाग में तुलसी के पौधे पाये जाते हैं इसका पौधा बड़ा वृक्ष नहीं बनता केवल डेढ़ या दो फुट तक बढ़ता है। तुलसी का वानस्पतिक नाम ओसीमम सैन्कटम है। आदिवासी अंचलों मे पानी की शुध्दता के लिए तुलसी के पत्ते जल पात्र में डाल दिए जाते है और कम से कम एक सवा घंटे पत्तों को पानी में रखा जाता है।
इसके उपरांत कपड़े से पानी को छान लिया जाता है और फ़िर यह पीने योग्य माना जाता है। औषधीय गुणों से भरपूर तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है जिससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है। तुलसी एक ऐसी रामबाण औषधि है जो हर प्रकार की बीमारियों में काम आती है जैसे- स्मरण शक्ति, हृदय रोग, कफ, श्वास के रोग, प्रतिश्याय, खून की कमी, खॉसी, जुकाम, दमा और दंत रोग आदि।
किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढा शहद के साथ नियमित ६ माह सेवन करने से पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकल आती है। दिल की बीमारी में यह वरदान साबित होती है क्योंकि यह खून में कोलेस्ट्राल को नियंत्रित करती है।
इसकी पत्तियों का रस निकाल कर बराबर मात्रा में नींबू का रस मिलायें और रात को चेहरे पर लगाये तो झाईयां नहीं रहती, फुंसियां ठीक होती है और चेहरे की रंगत में निखार आता है। फ्लू रोग तुलसी के पत्तों का काढ़ा, सेंधा नमक मिलाकर पीने से ठीक होता है।
पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकार तुलसी को थकान मिटाने वाली एक औषधी मानते है, इनके अनुसार अत्यधिक थकान होने पर तुलसी के पत्तियों और मंजरी के सेवन से थकान दूर हो जाती है। इसके नियमित सेवन से क्रोनिक-माइग्रेनके निवारण में मदद मिलती है।

(साई फीचर्स)

रविवार, 26 फ़रवरी 2012

किसको दें धन्यवाद. . . .


किसको दें धन्यवाद. . . .



(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर हृदय प्रदेश के अंतिम जिले सिवनी के नामकरण के बारे में अनेक धारणाएं प्रचलित हैं। कोई कहता है सेवन के वृक्षों की अधिकता के कारण इसका नाम सिवनी पड़ा तो कोई इसे भगवान शिव की नगरी के बतौर सिवनी कहता है। इक्कीसवीं सदी के पहले ही दशक में सिवनी को किसी की नजर लग गई थी। एक के बाद एक यहां की सौगातें छिन रही थीं। परिसीमन में नेताओं की जुगलबंदी के चलते सिवनी लोकसभा और घंसौर विधानसभा का झटका बहुत ही बड़ा घाव दे गया था सिवनी को। इस रिसते घाव में एक और चीरा लगा जब स्वर्णिम चतुर्भुज के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले से गुजरने वाले हिस्से में फच्चर फंसा दिया गया। माननीय न्यायालय का डर बताकर सिवनी जिले के लखनादौन से लेकर खवासा तक के मार्ग का न केवल निर्माण रोका गया वरन् इसका रखरखाव भी नहीं किया गया। जर्जर गड्ढे वाली सड़कों में न जाने कितनी दुर्घटनाओं में लोग घायल हुए और प्राण तजे, पर किसी की नींद नहीं खुली। आज न्यायालयीन स्थिति कमोबेश पहले के मानिंद ही है, किन्तु अब पांच बरस के उपरांत गड्ढ़े भरने के काम को अंजाम दिया जा रहा है। पांच सालों से कांग्रेस केंद्र में सत्ता की मलाई चख रही है। मतलब साफ है कि कांग्रेस ही चाह रही थी लोग जर्जर सड़कों पर चलकर असमय ही काल कलवित हों, हाथ पैर तुड़वाएं और अपने वाहनों का सत्यानाश करवाएं. . .। गड्ढ़े भरने की औपचारिकताएं आरंभ हो गई हैं, सिवनी वासी सोच रहे हैं कि इसके लिए धन्यवाद ज्ञापित करें तो आखिर किसको?

कांग्रेस और भाजपा के नेताओं का आपसी सामंजस्य गजब का है। देश भर में किसी भी भाग में एसा कही हो या ना हो किन्तु सिवनी जिले में तो कांग्रेस और भाजपा का सामंजस्य देखते ही बनता है। कांग्रेस द्वारा मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के कार्यकर्ताओं, सांसद और विधायकों को तो भाजपा द्वारा केंद्र की कांग्रेस सरकार के नुमाईंदो, सांसद और विधायक को घेरने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी है। बावजूद इसके सिवनी में एक इंच भी विकास दर्ज नहीं किया गया है।
सिवनी लोकसभा का अवसान तो इक्कीसवीं सदी का पहला और सबसे बड़ा अजूबा था। सिवनी के विलोपन का प्रस्ताव कहीं भी दूर दूर तक नहीं था। दावे अपत्तियां भी सिवनी के विलोपन को लेकर नहीं लिए गए। अचानक ही सिवनी लोकसभा को विलोपित कर दिया गया। सिवनी के राजनैतिक बियावान के सारे पहलवानों ने उस वक्त घडियाली आंसू अवश्य ही बहाए, किन्तु किसी ने भी ठोस कदम उठाने की जहमत नहीं उठाई। अंत्तोगत्वा सिवनी लोकसभा का अस्तित्व ही समाप्त हो गया।
हमारी नजरों में इसके लिए कांग्रेस और भाजपा कतई जिम्मेवार नहीं कही जा सकती है। इसके लिए जिम्मेवार हैं सिवनी को कर्मभूमि बनाकर राजनैतिक पायदान चढ़ने या चढ़ने का प्रयास करने वाले नेता। इन नेताओं को इतनी भी गैरत नहीं बची कि ये अपनी कर्मभूमि या मातृभूमि की अस्मत बचा सकें। राजनैतिक और आर्थिक स्वार्थों की बलिवेदी पर सिवनी की अस्मत को चढ़ाने में इन्हें गुरेज नहीं है।
तत्कालीन वज़ीरे आज़म पंडित अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने शासनकाल में एक महात्वाकांक्षी परियोजना बनवाई जिसे स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना का नाम दिया गया। इसमें दिल्ली, कोलकता, मुंबई और चेन्नई को आपस में सड़क मार्ग से जोड़ना प्रस्तावित था। बाद में जब उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम सीधे जाने वालों के लिए सुलभ और कम दूरी वाले मार्ग की खोज की गई तो अस्तित्व में आया उत्तर दक्षिण और पूर्व पश्चिम गलियारा।
सिवनी के लोगों तब फूले नहीं समाए जब उनके संज्ञान में यह लाया गया कि उत्तर दक्षिण फोरलेन सड़क गलियारा सिवनी जिले से होकर गुजरने वाला है। इस समय महाकौशल के कांग्रेस और भाजपा के क्षत्रपों ने इस मार्ग को अपने अपने जिलों या कर्मभूमि से लेकर जाने के प्रयास किए, किन्तु इसका एलाईंमेंट बदलना बेहद दुष्कर था, इसलिए राजनेताओं के ना चाहने के बाद भी यह सिवनी से होकर ही गुजरने के मार्ग प्रशस्त हो गए।
इसी बीच सिवनी में शहर से बॉयपास की बात सामने आई। उल्लेखनीय है कि पूर्व में जिला मुख्यालय में नगझर से मण्डला, बालाघाट, कटंगी मार्ग को जोड़कर पूर्व दिशा में एक बायपास का निर्माण एस.के.बनर्जी के निर्देशन में करवाया गया था। गुणवत्ता विहीन इस मार्ग में जगह जगह गड्ढे आज भी इस बात को रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि बीसवीं सदी के अंतिम दशक और इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही नेताओं और ठेकेदारों की जुगलबंदी से किस तरह सिवनी को मेहमूद गज़नवी के मानिंद लूटा जा रहा है।
इस दौरान जब बायबास को पश्चिम दिशा से होकर गुजारने का एलाईंमेंट तैयार किया गया तो इसकी राह में अनेक रोढ़े अटकाए गए। रेल्वे के उपर के पुल को लेकर ना जाने कितने माहों तक काम को रोका गया। कांग्रेस और भाजपा की जुगलबंदी फिर एक बार सामने आई। दरअसल, यह देरी इसलिए की जा रही थी ताकि जबलपुर और नागपुर के बीच चलने वाले भारी वाहनों से एस.के.बनर्जी के गुर्गे टोल वसूल कर सकें। इस मामले में कांग्रेस और भाजपा के सियासी ठेकेदार मौन ही साधे रहे।
जैसे तैसे यह बायपास तैयार हुआ। इसके साथ ही साथ लखनादौन से खवास तक के हिस्से का रखरखाव बिना किसी कारण को सामने लाए ही रोक दिया गया। जिसके परिणामस्वरूप सड़क बेहद जर्जर हो गई और इस सड़क पर रोजना ही दुर्घटनाएं होने लगीं। यह सड़क सिवनी जिले में इतनी जर्जर हो चुकी है कि इस पर चलना सर्कस के बाजीगरों के बस की ही बात रह गई है। उल्लेखनीय होगा कि अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में गढ़ी गई स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना का अंग उत्तर दक्षिण गलियारा नेताओं के न चाहने के बाद भी सिवनी जिले से होकर ही गुजरा, क्योंकि सड़क का एलाईमेंट बदलना नेताओं के लिए दुष्कर कार्य था।
इसके बाद इस सड़क में अंड़गों की बौछारे आरंभ हो गईं। तत्कालीन जिलाधिकारी पिरकीपण्डला नरहरि के 18 दिसंबर 2008 के आदेश क्रमांक 3266/फो.ले./2008 जिसे 19 दिसंबर को पृष्ठांकित किया गया था के द्वारा राज्य सरकार से आदेश मिलने की प्रत्याशा में पूर्व कलेक्टर द्वारा सिवनी जिले में मोहगांव से खवासा तक के भाग में सड़क चौड़ीकरण हेतु जारी वन एवं गैर वन क्षेत्रों की वनों की कटाई पर रोक लगा दी थी। इसके उपरांत सड़क की राजनीति के गर्म तवे पर न जाने कितने ही शैफ (मुख्य रसोईए) आए और अपनी अपनी रोटियां सैंकते चले गए। न्यायालयीन प्रक्रियाओं के चलते इस सड़क पर हाथ लगाने से हर कोई घबरा रहा था।
एक एनजीओ द्वारा मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचाया गया। सिवनी का पक्ष भी यहां के समूहों द्वारा न्यायालय में रखा गया। अंत में इसे वर्ष 2011 के आरंभ में माननीय न्यायालय ने मामले को वाईल्ड लाईफ बोर्ड के पास भेज दिया। गौरतलब है कि वाईल्ड लाईफ बोर्ड कोई न्यायिक संस्था नहीं है। यह सब होने के बाद भी जिले की जनता का वोट लेकर विधानसभा और लोकसभा में बैठने वाले जनता के नुमाईंदे खामोश हैं? उनकी खामोशी क्या बयां कर रही है? क्या वे किसी नेता विशेष से भयाक्रांत हैं? क्या नेता विशेष सिवनी की जनता जनार्दन जिसने इन नेताओं को सर आखों पर बिठाया से कद में बड़े हो गए?
इसी दौरान केंद्रीय मंत्री कमल नाथ पर यह आरोप भी लगे कि उन्होंने ही इस काम में अडंगा लगवाया है। वे इस मार्ग को लखनादौन से हर्रई, अमरवाड़ा, छिंदवाड़ा, चौरई के रास्ते नागपुर ले जाना चाह रहे थे। कमोबेश इसी आशय का वक्तव्य उन्होंने राज्य सभा में भी दिया था। फिर फिजां में एक बात तैरी कि यह रास्ता सिवनी से चौरई, छिंदवाड़ा, सौंसर होकर छिंदवाड़ा जाएगा। आज सिवनी से खवासा होकर नागपुर मार्ग इतना जर्जर हो चुका है कि लोग सिवनी से छिंदवाड़ा सौंसर के रास्ते ही नागपुर जाने पर मजबूर हैं।
ज्ञातव्य है कि दो साल पहले सितम्बर माह में सिवनी जिले के कथित विकास पुरूष हरवंश ंिसह ठाकुर ने जिला मुख्यालय सिवनी में एतिहासिक दलसागर तालाब के किनारे इस मार्ग जीर्णोद्वार के काम का बाकायदा भूमिपूजन कर यह जानकारी दी थी कि यह राशि दो माह पूर्व अर्थात जुलाई में ही स्वीकृत करा ली गई थी। बारिश के उपरांत आबादी के अंदर सड़कों का काम तेजी से आरंभ हो जाएगा। हरवंश सिंह की इस पहल से नागरिकों में हर्ष व्याप्त था कि कम से कम शहरों के अंदर की सड़कों का हाल तो सुधर जाएगा। पूरे दो साल बीत गए किन्तु शहरों की सड़कें सुधरना तो दूर अब तो उनके धुर्रे ही उड़ चुके हैं। आलम यह है कि पिछले दिनों कुरई के ब्लाक कांग्रेस अध्यक्ष ने सड़क पर भरे गड्ढ़े के पानी से बाकायदा स्नान किया और इसका वीडियो यूट्यूब पर सुपर डुपर हिट बना हुआ है।
अब असली मरण तो आम जनता की होती है। अब तो लदे फदे ट्रक भी गड्ढ़े बचाने के चक्कर में सड़कों पर लोट रहे हैं। इसके साथ ही साथ रख रखाव के अभाव में यह मार्ग भी अब बली लेने लगा है। गड्ढ़ों में एक के बाद एक दुर्घटनाएं और असमय काल कलवित होने की घटनाओं के बाद भी न तो एनएचएआई ही जागा है और ना ही सांसद विधायक साहेबान भी। सांसद के.डी.देशमुख ने तो इस बात को भी स्वीकारा है कि उन्होने इस मामले को संसद में अब तक नहीं उठाया है। सवाल यह उठता है कि संसद में इस मामले को उठाने की जवाबदेही आखिर किसकी है? देखा जाए तो यह मार्ग सिवनी मण्डला के कांग्रेसी सांसद बसोरी मसराम, सिवनी बालाघाट के सांसद के.डी.देशमुख के साथ ही साथ भाजपा विधायक शशि ठाकुर, नीता पटेरिया, कमल मस्कोले के साथ ही साथ कांग्रेस के क्षत्रप और केवलारी विधायक हरवंश सिंह ठाकुर के विधानसभा क्षेत्र से होकर भी गुजरता है। जनता ने जनादेश देकर इन्हें चुना है, फिर ये जनादेश का अपमान करने का साहस आखिर कैसे जुटा पा रहे हैं?
मध्य प्रदेश के घोषणावीर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि भले ही सूरज पश्चिम से उग आए पर यह सड़क सिवनी से होकर ही गुजरेगी। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय में मध्य प्रदेश सरकार अपना वकील भी खड़ा करेगी। सवोच्च न्यायालय ने इस साल के आरंभ में मामले को खारिज करते हुए वाईल्ड लाईफ बोर्ड के पास भेज दिया है। सूरज आज पूर्व से ही निकल रहा है। न तो शिवराज सरकार का वकील ही सर्वोच्च न्यायालय में गया और न ही सड़क बन पाई।
इतना ही नहीं दो साल पहले ही भाजपा प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा द्वारा नेशनल हाईवे की बदहाली के उपरांत सूबे से गुजरने वाले नेशनल हाईवे पर पड़ने गांव, कस्बे और शहरों में हस्ताक्षर अभियान के उपरांत मानव श्रंखला बनाने की घोषणा की थी। इसके बाद यह योजना टॉय टॉय फिस्स हो गई। इस वक्त भूतल परिवहन मंत्री की आसनी पर प्रदेश के क्षत्रप कमल नाथ काबिज थे। कमल नाथ के रहते शिवराज सिंह चौहान भी सड़कों की दुर्दशा का रोना रोते रहे हैं। कमल नाथ के हटते ही प्रदेश भाजपा और सरकार का एजेंडा मानो बदल ही गया हो। मंत्रीमण्डल फेरदबल के बाद महज जो बार ही सरकार ने सड़कों की बदहाली का रोना रोया है। सरकार ने केंद्र को पत्र लिखकर 10 एनएच वापस मांग लिए हैं। यहां उल्लेखनीय होगा कि भोपाल से महज सत्तर किलोमीटर दूर होशंगाबाद की यात्रा इन दिनों चार से पांच घंटों में पूरी हो पा रही है, जिसमें मुख्यमंत्री का विधानसभा क्षेत्र भी आता है। अब प्रभात झा ने सिवनी में यह बात कह दी कि इस बार नेशनल हाईवे को लेकर मध्य प्रदेश भाजपा का महिला मोर्चा कमान संभालेगा। गौरतलब है कि महिला मोर्चा की प्रदेशाध्यक्ष पद पर सिवनी लोकसभा की अंतिम सांसद और सिवनी विधायक श्रीमति नीता पटेरिया विराजमान हैं।
सिवनी के हितों को यहां के जनप्रतिनिधियों के बजाए बाहर के लोगों ने साधने का प्रयास किया है। ब्राडगेज और रामटेक गोटेगांव नई रेल लाईन के लिए भले ही प्रयास के स्वांग रचे जा रहे हों किन्तु यह बात उतनी ही सच है जितनी कि दिन और रात कि सिवनी के किसी भी सांसद ने सिवनी के ब्राडगेज के बारे में संसद में प्रश्न नहीं उठाया है। इतिहास गवाह है कि 28 अगस्त 2005 को बिलासपुर के सांसद पुन्नू लाल माहोले ने अतारांकित प्रश्न संख्या 4502 के तहत चार बिन्दुओं पर जानकारी चाही थी। इसमें बिलासपुर से मण्डला होकर नैनपुर और नैनपुर से सिवनी होकर छिंदवाड़ा रेलमार्ग के अमान परिवर्तन की जानकारी चाही गई थी। इसके जवाब में तत्कालीन रेल राज्यमंत्री आर.वेलू ने पटल पर जानकारी रखते हुए कहा था कि नैनपुर से बरास्ता छिंदवाड़ा के 139.6 किलोमीटर खण्ड का छोटी लाईन से बड़ी लाईन में परिवर्तन हेतु 2003 - 04 में सर्वेक्षण किया गया था। सर्वेक्षण प्रतिवेदन के अनुसार इस परियोजना की लागत ऋणात्मक प्रतिफल के साथ 228.22 करोड़ रूपए आंकी गई थी। वेलू ने यह भी कहा था कि इस प्रस्ताव की अलाभकारी प्रकृति, चालू परियोजनाओं के भारी थ्रोफारवर्ड एवं संसाधनों की अत्याधिक तंगी को देखते हुए स्वीकार नहीं किया जा सका। इसके बाद बार बार रेल बजट में छिंदवाड़ा से सिवनी होकर नैनपुर तक अमान परिवर्तन का झुनझुना सिवनी वासियों को दिखाया जाता रहा। कांग्रेस और भाजपा ने इसका पालीटिकल माईलेज लेने की गरज से विज्ञापनों की बौछार कर दी। आज फरवरी 2012 में भी एक इंच काम आरंभ नहीं हो सका है।
बहरहाल, फोरलेन के मामले में सिवनी जिले में लखनादौन से खवास तक की स्थिति कमोबेश आज भी वही है जो पहले थी। बावजूद इसके अब जाकर गड्ढ़े भरने का काम आरंभ किया गया है। जिससे साफ है कि सिवनी के राजनैतिक तौर पर सक्रिय ठेकेदार यही चाह रहे थे कि लोग गड्ढ़ों में चलकर दुख तकलीफ का अनुभव अवश्य करें। अपने वाहनों का नाश करें और लोग हाथ पैर तुड़वाकर असमय ही काल के गाल में समाएं। अगर नहीं तो क्या कारण है कि शहर के अंदर और बाहर गड्ढ़े भरने का काम का  सिवनी के कथित विकास पुरूष हरवंश सिंह ठाकुर के द्वारा दो साल पहले भूमिपूजन करवाने के बाद आरंभ क्यों नहीं करवाया जा सका।
इस संबंध में एक वाक्या याद पड़ता है। नब्बे के दशक में ओला पाला से फसलें तबाह हो गईं। उस समय बैतूल में किसानों पर गोली चालन भी हुआ। राजधानी भोपाल में एक केंद्रीय मंत्री के निज सहायक से चर्चा में हमने कहा कि मंत्री के संसदीय क्षेत्र में मुआवजे की कार्यवाही आरंभ करवाई क्यों नहीं हो रही है। निज सहायक ने मुस्कुराते हुए कहा कि पहले क्षेत्र से मांग तो आने दो, किसान धरना प्रदर्शन तो करें? बिन मांगे दे देंगे तो उन्हें इसकी कीमत समझ में नहीं आएगी। आज फोरलेन की स्थिति भी वही दिख रही है। अगर कष्ट के बिना ही सब कुछ मिल जाता तो सिवनी वाले इसकी कीमत नहीं समझते (हो सकता है नेताओं की यह सोच हो)। अब जबकि सड़क के गड्ढ़े भरने का काम आरंभ हो गया है तो विचारणीय प्रश्न यह है कि इसके लिए धन्यवाद किसका ज्ञापित करें सिवनी वासी? मनमोहन सिंह का, सोनिया गांधी का, जयंती नटराजन का, सीपी जोशी का, सिवनी के कथित विकास पुरूष हरवंश सिंह का, प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का, प्रभात झा का या फिर सिवनी के सांसद विधायकों का!
वैसे 2004 से केंद्र में कांग्रेस काबिज है। फोरलेन के रखरखाव का जिम्मा केंद्र सरकार का है, इसलिए यह बात स्थापित हो चुकी है कि कांग्रेस चाहती थी कि सिवनी के लोग गड्ढ़ों में अपने वाहनों का नास कराएं, हाथ पैर तुड़ावाएं इतना ही नहीं अनेक घरों के दिए बुझें। अगर नहीं तो क्या वजह है कि न्यायालयीन स्थिति वही रहने पर अब जाकर सड़कों के गड्ढ़े भरने की औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं? कांग्रेस में रहकर कांग्रेस के क्षत्रपों, भाजपा में रहकर भाजपा के क्षत्रपों की तलवारें इस मसले में रेत में ही गड़ी हैं। कांग्रेस को लेकर भाजपा तो भाजपा को लेकर कांग्रेस मौन है! रहे क्यों ना नूरा कुश्ती का अद्भुत और अकल्पनीय नजारा जो दिखता है सिवनी में।

(साई फीचर्स)