रविवार, 26 फ़रवरी 2012

किसको दें धन्यवाद. . . .


किसको दें धन्यवाद. . . .



(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर हृदय प्रदेश के अंतिम जिले सिवनी के नामकरण के बारे में अनेक धारणाएं प्रचलित हैं। कोई कहता है सेवन के वृक्षों की अधिकता के कारण इसका नाम सिवनी पड़ा तो कोई इसे भगवान शिव की नगरी के बतौर सिवनी कहता है। इक्कीसवीं सदी के पहले ही दशक में सिवनी को किसी की नजर लग गई थी। एक के बाद एक यहां की सौगातें छिन रही थीं। परिसीमन में नेताओं की जुगलबंदी के चलते सिवनी लोकसभा और घंसौर विधानसभा का झटका बहुत ही बड़ा घाव दे गया था सिवनी को। इस रिसते घाव में एक और चीरा लगा जब स्वर्णिम चतुर्भुज के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले से गुजरने वाले हिस्से में फच्चर फंसा दिया गया। माननीय न्यायालय का डर बताकर सिवनी जिले के लखनादौन से लेकर खवासा तक के मार्ग का न केवल निर्माण रोका गया वरन् इसका रखरखाव भी नहीं किया गया। जर्जर गड्ढे वाली सड़कों में न जाने कितनी दुर्घटनाओं में लोग घायल हुए और प्राण तजे, पर किसी की नींद नहीं खुली। आज न्यायालयीन स्थिति कमोबेश पहले के मानिंद ही है, किन्तु अब पांच बरस के उपरांत गड्ढ़े भरने के काम को अंजाम दिया जा रहा है। पांच सालों से कांग्रेस केंद्र में सत्ता की मलाई चख रही है। मतलब साफ है कि कांग्रेस ही चाह रही थी लोग जर्जर सड़कों पर चलकर असमय ही काल कलवित हों, हाथ पैर तुड़वाएं और अपने वाहनों का सत्यानाश करवाएं. . .। गड्ढ़े भरने की औपचारिकताएं आरंभ हो गई हैं, सिवनी वासी सोच रहे हैं कि इसके लिए धन्यवाद ज्ञापित करें तो आखिर किसको?

कांग्रेस और भाजपा के नेताओं का आपसी सामंजस्य गजब का है। देश भर में किसी भी भाग में एसा कही हो या ना हो किन्तु सिवनी जिले में तो कांग्रेस और भाजपा का सामंजस्य देखते ही बनता है। कांग्रेस द्वारा मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के कार्यकर्ताओं, सांसद और विधायकों को तो भाजपा द्वारा केंद्र की कांग्रेस सरकार के नुमाईंदो, सांसद और विधायक को घेरने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी है। बावजूद इसके सिवनी में एक इंच भी विकास दर्ज नहीं किया गया है।
सिवनी लोकसभा का अवसान तो इक्कीसवीं सदी का पहला और सबसे बड़ा अजूबा था। सिवनी के विलोपन का प्रस्ताव कहीं भी दूर दूर तक नहीं था। दावे अपत्तियां भी सिवनी के विलोपन को लेकर नहीं लिए गए। अचानक ही सिवनी लोकसभा को विलोपित कर दिया गया। सिवनी के राजनैतिक बियावान के सारे पहलवानों ने उस वक्त घडियाली आंसू अवश्य ही बहाए, किन्तु किसी ने भी ठोस कदम उठाने की जहमत नहीं उठाई। अंत्तोगत्वा सिवनी लोकसभा का अस्तित्व ही समाप्त हो गया।
हमारी नजरों में इसके लिए कांग्रेस और भाजपा कतई जिम्मेवार नहीं कही जा सकती है। इसके लिए जिम्मेवार हैं सिवनी को कर्मभूमि बनाकर राजनैतिक पायदान चढ़ने या चढ़ने का प्रयास करने वाले नेता। इन नेताओं को इतनी भी गैरत नहीं बची कि ये अपनी कर्मभूमि या मातृभूमि की अस्मत बचा सकें। राजनैतिक और आर्थिक स्वार्थों की बलिवेदी पर सिवनी की अस्मत को चढ़ाने में इन्हें गुरेज नहीं है।
तत्कालीन वज़ीरे आज़म पंडित अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने शासनकाल में एक महात्वाकांक्षी परियोजना बनवाई जिसे स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना का नाम दिया गया। इसमें दिल्ली, कोलकता, मुंबई और चेन्नई को आपस में सड़क मार्ग से जोड़ना प्रस्तावित था। बाद में जब उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम सीधे जाने वालों के लिए सुलभ और कम दूरी वाले मार्ग की खोज की गई तो अस्तित्व में आया उत्तर दक्षिण और पूर्व पश्चिम गलियारा।
सिवनी के लोगों तब फूले नहीं समाए जब उनके संज्ञान में यह लाया गया कि उत्तर दक्षिण फोरलेन सड़क गलियारा सिवनी जिले से होकर गुजरने वाला है। इस समय महाकौशल के कांग्रेस और भाजपा के क्षत्रपों ने इस मार्ग को अपने अपने जिलों या कर्मभूमि से लेकर जाने के प्रयास किए, किन्तु इसका एलाईंमेंट बदलना बेहद दुष्कर था, इसलिए राजनेताओं के ना चाहने के बाद भी यह सिवनी से होकर ही गुजरने के मार्ग प्रशस्त हो गए।
इसी बीच सिवनी में शहर से बॉयपास की बात सामने आई। उल्लेखनीय है कि पूर्व में जिला मुख्यालय में नगझर से मण्डला, बालाघाट, कटंगी मार्ग को जोड़कर पूर्व दिशा में एक बायपास का निर्माण एस.के.बनर्जी के निर्देशन में करवाया गया था। गुणवत्ता विहीन इस मार्ग में जगह जगह गड्ढे आज भी इस बात को रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि बीसवीं सदी के अंतिम दशक और इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही नेताओं और ठेकेदारों की जुगलबंदी से किस तरह सिवनी को मेहमूद गज़नवी के मानिंद लूटा जा रहा है।
इस दौरान जब बायबास को पश्चिम दिशा से होकर गुजारने का एलाईंमेंट तैयार किया गया तो इसकी राह में अनेक रोढ़े अटकाए गए। रेल्वे के उपर के पुल को लेकर ना जाने कितने माहों तक काम को रोका गया। कांग्रेस और भाजपा की जुगलबंदी फिर एक बार सामने आई। दरअसल, यह देरी इसलिए की जा रही थी ताकि जबलपुर और नागपुर के बीच चलने वाले भारी वाहनों से एस.के.बनर्जी के गुर्गे टोल वसूल कर सकें। इस मामले में कांग्रेस और भाजपा के सियासी ठेकेदार मौन ही साधे रहे।
जैसे तैसे यह बायपास तैयार हुआ। इसके साथ ही साथ लखनादौन से खवास तक के हिस्से का रखरखाव बिना किसी कारण को सामने लाए ही रोक दिया गया। जिसके परिणामस्वरूप सड़क बेहद जर्जर हो गई और इस सड़क पर रोजना ही दुर्घटनाएं होने लगीं। यह सड़क सिवनी जिले में इतनी जर्जर हो चुकी है कि इस पर चलना सर्कस के बाजीगरों के बस की ही बात रह गई है। उल्लेखनीय होगा कि अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में गढ़ी गई स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना का अंग उत्तर दक्षिण गलियारा नेताओं के न चाहने के बाद भी सिवनी जिले से होकर ही गुजरा, क्योंकि सड़क का एलाईमेंट बदलना नेताओं के लिए दुष्कर कार्य था।
इसके बाद इस सड़क में अंड़गों की बौछारे आरंभ हो गईं। तत्कालीन जिलाधिकारी पिरकीपण्डला नरहरि के 18 दिसंबर 2008 के आदेश क्रमांक 3266/फो.ले./2008 जिसे 19 दिसंबर को पृष्ठांकित किया गया था के द्वारा राज्य सरकार से आदेश मिलने की प्रत्याशा में पूर्व कलेक्टर द्वारा सिवनी जिले में मोहगांव से खवासा तक के भाग में सड़क चौड़ीकरण हेतु जारी वन एवं गैर वन क्षेत्रों की वनों की कटाई पर रोक लगा दी थी। इसके उपरांत सड़क की राजनीति के गर्म तवे पर न जाने कितने ही शैफ (मुख्य रसोईए) आए और अपनी अपनी रोटियां सैंकते चले गए। न्यायालयीन प्रक्रियाओं के चलते इस सड़क पर हाथ लगाने से हर कोई घबरा रहा था।
एक एनजीओ द्वारा मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचाया गया। सिवनी का पक्ष भी यहां के समूहों द्वारा न्यायालय में रखा गया। अंत में इसे वर्ष 2011 के आरंभ में माननीय न्यायालय ने मामले को वाईल्ड लाईफ बोर्ड के पास भेज दिया। गौरतलब है कि वाईल्ड लाईफ बोर्ड कोई न्यायिक संस्था नहीं है। यह सब होने के बाद भी जिले की जनता का वोट लेकर विधानसभा और लोकसभा में बैठने वाले जनता के नुमाईंदे खामोश हैं? उनकी खामोशी क्या बयां कर रही है? क्या वे किसी नेता विशेष से भयाक्रांत हैं? क्या नेता विशेष सिवनी की जनता जनार्दन जिसने इन नेताओं को सर आखों पर बिठाया से कद में बड़े हो गए?
इसी दौरान केंद्रीय मंत्री कमल नाथ पर यह आरोप भी लगे कि उन्होंने ही इस काम में अडंगा लगवाया है। वे इस मार्ग को लखनादौन से हर्रई, अमरवाड़ा, छिंदवाड़ा, चौरई के रास्ते नागपुर ले जाना चाह रहे थे। कमोबेश इसी आशय का वक्तव्य उन्होंने राज्य सभा में भी दिया था। फिर फिजां में एक बात तैरी कि यह रास्ता सिवनी से चौरई, छिंदवाड़ा, सौंसर होकर छिंदवाड़ा जाएगा। आज सिवनी से खवासा होकर नागपुर मार्ग इतना जर्जर हो चुका है कि लोग सिवनी से छिंदवाड़ा सौंसर के रास्ते ही नागपुर जाने पर मजबूर हैं।
ज्ञातव्य है कि दो साल पहले सितम्बर माह में सिवनी जिले के कथित विकास पुरूष हरवंश ंिसह ठाकुर ने जिला मुख्यालय सिवनी में एतिहासिक दलसागर तालाब के किनारे इस मार्ग जीर्णोद्वार के काम का बाकायदा भूमिपूजन कर यह जानकारी दी थी कि यह राशि दो माह पूर्व अर्थात जुलाई में ही स्वीकृत करा ली गई थी। बारिश के उपरांत आबादी के अंदर सड़कों का काम तेजी से आरंभ हो जाएगा। हरवंश सिंह की इस पहल से नागरिकों में हर्ष व्याप्त था कि कम से कम शहरों के अंदर की सड़कों का हाल तो सुधर जाएगा। पूरे दो साल बीत गए किन्तु शहरों की सड़कें सुधरना तो दूर अब तो उनके धुर्रे ही उड़ चुके हैं। आलम यह है कि पिछले दिनों कुरई के ब्लाक कांग्रेस अध्यक्ष ने सड़क पर भरे गड्ढ़े के पानी से बाकायदा स्नान किया और इसका वीडियो यूट्यूब पर सुपर डुपर हिट बना हुआ है।
अब असली मरण तो आम जनता की होती है। अब तो लदे फदे ट्रक भी गड्ढ़े बचाने के चक्कर में सड़कों पर लोट रहे हैं। इसके साथ ही साथ रख रखाव के अभाव में यह मार्ग भी अब बली लेने लगा है। गड्ढ़ों में एक के बाद एक दुर्घटनाएं और असमय काल कलवित होने की घटनाओं के बाद भी न तो एनएचएआई ही जागा है और ना ही सांसद विधायक साहेबान भी। सांसद के.डी.देशमुख ने तो इस बात को भी स्वीकारा है कि उन्होने इस मामले को संसद में अब तक नहीं उठाया है। सवाल यह उठता है कि संसद में इस मामले को उठाने की जवाबदेही आखिर किसकी है? देखा जाए तो यह मार्ग सिवनी मण्डला के कांग्रेसी सांसद बसोरी मसराम, सिवनी बालाघाट के सांसद के.डी.देशमुख के साथ ही साथ भाजपा विधायक शशि ठाकुर, नीता पटेरिया, कमल मस्कोले के साथ ही साथ कांग्रेस के क्षत्रप और केवलारी विधायक हरवंश सिंह ठाकुर के विधानसभा क्षेत्र से होकर भी गुजरता है। जनता ने जनादेश देकर इन्हें चुना है, फिर ये जनादेश का अपमान करने का साहस आखिर कैसे जुटा पा रहे हैं?
मध्य प्रदेश के घोषणावीर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि भले ही सूरज पश्चिम से उग आए पर यह सड़क सिवनी से होकर ही गुजरेगी। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय में मध्य प्रदेश सरकार अपना वकील भी खड़ा करेगी। सवोच्च न्यायालय ने इस साल के आरंभ में मामले को खारिज करते हुए वाईल्ड लाईफ बोर्ड के पास भेज दिया है। सूरज आज पूर्व से ही निकल रहा है। न तो शिवराज सरकार का वकील ही सर्वोच्च न्यायालय में गया और न ही सड़क बन पाई।
इतना ही नहीं दो साल पहले ही भाजपा प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा द्वारा नेशनल हाईवे की बदहाली के उपरांत सूबे से गुजरने वाले नेशनल हाईवे पर पड़ने गांव, कस्बे और शहरों में हस्ताक्षर अभियान के उपरांत मानव श्रंखला बनाने की घोषणा की थी। इसके बाद यह योजना टॉय टॉय फिस्स हो गई। इस वक्त भूतल परिवहन मंत्री की आसनी पर प्रदेश के क्षत्रप कमल नाथ काबिज थे। कमल नाथ के रहते शिवराज सिंह चौहान भी सड़कों की दुर्दशा का रोना रोते रहे हैं। कमल नाथ के हटते ही प्रदेश भाजपा और सरकार का एजेंडा मानो बदल ही गया हो। मंत्रीमण्डल फेरदबल के बाद महज जो बार ही सरकार ने सड़कों की बदहाली का रोना रोया है। सरकार ने केंद्र को पत्र लिखकर 10 एनएच वापस मांग लिए हैं। यहां उल्लेखनीय होगा कि भोपाल से महज सत्तर किलोमीटर दूर होशंगाबाद की यात्रा इन दिनों चार से पांच घंटों में पूरी हो पा रही है, जिसमें मुख्यमंत्री का विधानसभा क्षेत्र भी आता है। अब प्रभात झा ने सिवनी में यह बात कह दी कि इस बार नेशनल हाईवे को लेकर मध्य प्रदेश भाजपा का महिला मोर्चा कमान संभालेगा। गौरतलब है कि महिला मोर्चा की प्रदेशाध्यक्ष पद पर सिवनी लोकसभा की अंतिम सांसद और सिवनी विधायक श्रीमति नीता पटेरिया विराजमान हैं।
सिवनी के हितों को यहां के जनप्रतिनिधियों के बजाए बाहर के लोगों ने साधने का प्रयास किया है। ब्राडगेज और रामटेक गोटेगांव नई रेल लाईन के लिए भले ही प्रयास के स्वांग रचे जा रहे हों किन्तु यह बात उतनी ही सच है जितनी कि दिन और रात कि सिवनी के किसी भी सांसद ने सिवनी के ब्राडगेज के बारे में संसद में प्रश्न नहीं उठाया है। इतिहास गवाह है कि 28 अगस्त 2005 को बिलासपुर के सांसद पुन्नू लाल माहोले ने अतारांकित प्रश्न संख्या 4502 के तहत चार बिन्दुओं पर जानकारी चाही थी। इसमें बिलासपुर से मण्डला होकर नैनपुर और नैनपुर से सिवनी होकर छिंदवाड़ा रेलमार्ग के अमान परिवर्तन की जानकारी चाही गई थी। इसके जवाब में तत्कालीन रेल राज्यमंत्री आर.वेलू ने पटल पर जानकारी रखते हुए कहा था कि नैनपुर से बरास्ता छिंदवाड़ा के 139.6 किलोमीटर खण्ड का छोटी लाईन से बड़ी लाईन में परिवर्तन हेतु 2003 - 04 में सर्वेक्षण किया गया था। सर्वेक्षण प्रतिवेदन के अनुसार इस परियोजना की लागत ऋणात्मक प्रतिफल के साथ 228.22 करोड़ रूपए आंकी गई थी। वेलू ने यह भी कहा था कि इस प्रस्ताव की अलाभकारी प्रकृति, चालू परियोजनाओं के भारी थ्रोफारवर्ड एवं संसाधनों की अत्याधिक तंगी को देखते हुए स्वीकार नहीं किया जा सका। इसके बाद बार बार रेल बजट में छिंदवाड़ा से सिवनी होकर नैनपुर तक अमान परिवर्तन का झुनझुना सिवनी वासियों को दिखाया जाता रहा। कांग्रेस और भाजपा ने इसका पालीटिकल माईलेज लेने की गरज से विज्ञापनों की बौछार कर दी। आज फरवरी 2012 में भी एक इंच काम आरंभ नहीं हो सका है।
बहरहाल, फोरलेन के मामले में सिवनी जिले में लखनादौन से खवास तक की स्थिति कमोबेश आज भी वही है जो पहले थी। बावजूद इसके अब जाकर गड्ढ़े भरने का काम आरंभ किया गया है। जिससे साफ है कि सिवनी के राजनैतिक तौर पर सक्रिय ठेकेदार यही चाह रहे थे कि लोग गड्ढ़ों में चलकर दुख तकलीफ का अनुभव अवश्य करें। अपने वाहनों का नाश करें और लोग हाथ पैर तुड़वाकर असमय ही काल के गाल में समाएं। अगर नहीं तो क्या कारण है कि शहर के अंदर और बाहर गड्ढ़े भरने का काम का  सिवनी के कथित विकास पुरूष हरवंश सिंह ठाकुर के द्वारा दो साल पहले भूमिपूजन करवाने के बाद आरंभ क्यों नहीं करवाया जा सका।
इस संबंध में एक वाक्या याद पड़ता है। नब्बे के दशक में ओला पाला से फसलें तबाह हो गईं। उस समय बैतूल में किसानों पर गोली चालन भी हुआ। राजधानी भोपाल में एक केंद्रीय मंत्री के निज सहायक से चर्चा में हमने कहा कि मंत्री के संसदीय क्षेत्र में मुआवजे की कार्यवाही आरंभ करवाई क्यों नहीं हो रही है। निज सहायक ने मुस्कुराते हुए कहा कि पहले क्षेत्र से मांग तो आने दो, किसान धरना प्रदर्शन तो करें? बिन मांगे दे देंगे तो उन्हें इसकी कीमत समझ में नहीं आएगी। आज फोरलेन की स्थिति भी वही दिख रही है। अगर कष्ट के बिना ही सब कुछ मिल जाता तो सिवनी वाले इसकी कीमत नहीं समझते (हो सकता है नेताओं की यह सोच हो)। अब जबकि सड़क के गड्ढ़े भरने का काम आरंभ हो गया है तो विचारणीय प्रश्न यह है कि इसके लिए धन्यवाद किसका ज्ञापित करें सिवनी वासी? मनमोहन सिंह का, सोनिया गांधी का, जयंती नटराजन का, सीपी जोशी का, सिवनी के कथित विकास पुरूष हरवंश सिंह का, प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का, प्रभात झा का या फिर सिवनी के सांसद विधायकों का!
वैसे 2004 से केंद्र में कांग्रेस काबिज है। फोरलेन के रखरखाव का जिम्मा केंद्र सरकार का है, इसलिए यह बात स्थापित हो चुकी है कि कांग्रेस चाहती थी कि सिवनी के लोग गड्ढ़ों में अपने वाहनों का नास कराएं, हाथ पैर तुड़ावाएं इतना ही नहीं अनेक घरों के दिए बुझें। अगर नहीं तो क्या वजह है कि न्यायालयीन स्थिति वही रहने पर अब जाकर सड़कों के गड्ढ़े भरने की औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं? कांग्रेस में रहकर कांग्रेस के क्षत्रपों, भाजपा में रहकर भाजपा के क्षत्रपों की तलवारें इस मसले में रेत में ही गड़ी हैं। कांग्रेस को लेकर भाजपा तो भाजपा को लेकर कांग्रेस मौन है! रहे क्यों ना नूरा कुश्ती का अद्भुत और अकल्पनीय नजारा जो दिखता है सिवनी में।

(साई फीचर्स)

कोई टिप्पणी नहीं: