गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

पुण्‍य मिलता है महाशिवरात्रि पर पूजन से


पुण्‍य मिलता है महाशिवरात्रि पर पूजन से

(यशवंत श्रीवास्तव)

नई दिल्ली (साई)। महाशिवरात्रि शिव और शक्ति का एकाकार होने का पर्व है। यह मिलन कल्याणकारी भी है और प्रेरणादायी भी। यह पर्व हमें शिवत्व का बोध कराता है। धर्मनगरी ही शिव-शक्ति के एकाकार होने की स्थली मानी जाती है। इसलिए यहां इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आने वाले महाशिवरात्रि पर्व का धार्मिक महत्व सीधे-सीधे हरिद्वार से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन ही धर्मनगरी के कनखल में शिव शंकर और सती का विवाह हुआ था। इसीलिए हरिद्वार को आशुतोष की ससुराल भी कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शिव-सती के विवाह के समय पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र का योग था।
एक और मान्यता के अनुसार फाल्गुनी मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की मध्यरात्रि को ही भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसीलिए भी यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने का अर्थ भगवान शिव शंकर की आराधना और शिवत्व का बोध करना है।
स्कंद पुराण में महाशिवरात्रि के व्रत को भी विशेष महत्व दिया है। आराधना तीन प्रकार की बताई गई है। उपवास, शिर्वाचन और रात्रि जागरण। ज्योतिषाचार्य विपिन कुमार पाराशर बताते हैं कि इस बार बीस फरवरी को महाशिवरात्रि सोमवार और श्रवण नक्षत्र में आ रही है। सोमवार और श्रवण नक्षत्र शिव शंकर को अतिप्रिय हैं। ज्योतिषाचार्य धरणीधर शास्त्री ने बताया कि महाशिवरात्रि पर शिवालयों में जलाभिषेक करने से शिव शंकर समस्त मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं।

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