शुक्रवार, 22 जून 2012

तलाशने होंगे टिकाउ रहन सहन के तरीके: सिंह


तलाशने होंगे टिकाउ रहन सहन के तरीके: सिंह

(टी.विश्वनाथन)

रीयो डि जिनेरियो (साई)। प्रधानमंत्री ने औद्योगिक देशों के उपभोग के मौजूदा तौर तरीकों को अस्थाई बताते हुए टिकाऊ रहन-सहन के नये रास्ते तलाशने की आवश्यकता पर बल दिया है। कल रात ब्राजील में रियो डि जिनेरियो में रियो प्लस-ट्वेन्टी शिखर सम्मेलन के पूर्ण सत्र में डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय सौर मिशन लागू कर रहा है। उन्होंने कहा कि अगर अतिरिक्त वित्तीय साधन और प्रौद्योगिकी उपलब्ध होती तो अनेक देश उत्सर्जन घटाने के लिए ज्यादा प्रयास कर सकते थे।
डॉ.सिंह ने कहा कि बहुत से देशों के पास अगर अतिरिक्त वित्त और तकनीक उपलब्ध हो तो वो और भी काफी कुछ कर सकते हैं। महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में औद्योगिक देशों द्वारा सहयोग के बहुत कम साक्ष्य मिलते हैं। टिकाऊ विकास के घटक के रूप में आर्थिक विकास, सामाजिक समावेश और पर्यावरणीय स्थिरता सभी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें जो भविष्य चाहिए उसमें सबके लिए टिकाऊ वृद्धि के वास्ते अनुकूल पारिस्थितिकी और आर्थिक जगह होनी चाहिए। रियो प्लस-ट्वेन्टी शिखर सम्मेलन में पृथ्वी शिखर सम्मेलन के साझा लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारी और बराबरी के सिद्धांत की फिर से पुष्टि किये जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसका अर्थ  यह नहीं है कि देशों को टिकाऊ विकास को प्रोत्साहन देने के लिए खुद प्रेरित होकर उपाय नहीं करने चाहिए।
उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर हमारा दृष्टिकोण समान भागीदारी के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए। इसी कारण प्रथम रियो शिखर सम्मेलन में समान किंतु अलग-अलग उत्तरदायित्व का सिद्धांत रखा गया। मुझे खुशी है कि हमने शिखर सम्मेलन के दौरान इस सिद्धांत के साथ ही समानता के सिद्धांत की भी पुनः पुष्टि की है।
टिकाऊ विकास के लिए भारत द्वारा अपनी ओर से किये गए उपायों का उल्लेख करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि पिछले दो दशकों में भारत के प्रयासों के रचनात्मक परिणाम हासिल हुए हैं। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि विकासशील देशों में विकास के लिए समावेशी वृद्धि और प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी जरूरी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्ष १९९२ में रियो शिखर सम्मेलन में इस बात का उल्लेख किया गया था कि ग़रीबी उन्मूलन विकासशील देशों की सर्वाेच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
उधर, प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने श्रीलंका सरकार से आज अनुरोध किया कि उसे यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए कि तमिल समुदाय गरिमा के साथ सामान्य जीवन बिता सके। प्रधानमंत्री ने रियो शिखर सम्मेलन के अवसर पर अलग से श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपक्से के साथ द्विपक्षीय बातचीत के दौरान यह मुद्दा उठाया।
पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए विदेश सचिव रंजन मथाई ने कहा कि श्रीलंका के राष्ट्रपति ने कहा  कि विस्थापित तमिलों के पुनर्वास का काम चल रहा है और केवल तीन हजार लोग शिविरों में रह रहे हैं। ये शिविर लड़ाई खत्म होने के बाद स्थापित किए गए थे। श्री मथाई ने कहा कि श्रीलंका के राष्ट्रपति ने सत्ता के विकेन्द्रीकरण के मुद्दे पर विभिन्न दलों के साथ हुए विचार-विमर्श से भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने श्रीलंका के राष्ट्रपति को आर्थिक क्षेत्र में सभी द्विपक्षीय सहायता कार्यक्रमों में सहयोग का आश्वासन दिया।

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