नेहरू गांधी परिवार के सपनों पर पानी फेरती कांग्रेस!
सांप छछूंदर की स्थिति हो गई कांग्रेस की!
पत्ते खुलने के बाद कांग्रेस में उहापोह बरकरार
नेहरू गांधी परिवार का लगाव रहा है लखनादौन से
(संजीव प्रताप सिंह)
सिवनी (साई)। मध्य प्रदेश में एक के बाद एक मोर्चों पर पराजय झेलने के बाद महाकौशल अंचल के लखनादौन नगर पंचायत के चुनावों में कांग्रेस की स्थिति बहुत ही दयनीय स्तर पर पहुंच चुकी है। अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस प्रत्याशी द्वारा नाम वापस लिए जाने के बाद अब कांग्रेस इस स्थिति में नहीं रह गई है कि वह किसी को खुलकर समर्थन दे।
वहीं दूसरी ओर केंद्र में कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के घटक दल राकांपा ने अल्पसंख्यक प्रत्याशी नूर बी को समर्थन देकर कांग्रेस को मजबूर कर दिया है कि वह निर्दलीय सुधा राय से ध्यान हटाए। गौरतलब है कि लखनादौन का नेहरू गांधी परिवार से खासा रिश्ता रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी भी लखनादौन आ चुके हैं।
लखनादौन की जनता ने सदा ही कांग्रेस का साथ दिया है। राम लहर में भी आदिवासी बाहुल्य लखनादौन विधानसभा की जनता ने यहां कांग्रेस का परचम लहराया था। यह वही विधानसभा है जहां जनता पार्टी की लहर के बाद भी पंडित गार्गीशंकर मिश्र को 24 हजार मतों की बढ़त मिली थी। यह वही विधानसभा है जहां आजादी के बाद पचास सालों से ज्यादा आदिवासियों ने कांग्रेस पर भरोसा जताया है।
पिछले लगभग एक दशक से जिले में कांग्रेस की सत्ता के परितर्वन के कारण अब प्रवर्तकों की रीति नीति के चलते आदिवासियों का कांग्रेस से मोहभंग होता दिखने लगा है। नेहरू गांधी परिवार ने सदा ही लखनादौन के साथ न्याय किया है। कहा जा रहा है कि वर्तमान में कांग्रेस के निजाम नेहरू गांधी परिवार के सपनों पर ही पानी फेर रही है।
एक ओर कांग्रेस द्वारा आदिवासियों को एक बार फिर मुख्यधारा में लाने का जतन किया जा रहा है वहीं कांग्रेस के नुमाईंदों द्वारा आदिवासी बाहुल्य विकासखण्ड के मुख्यालय में होने वाले नगर पंचायत चुनावों में घिनौनी राजनीति कर कांग्रेस का गला घोंटने का प्रयास किया जा रहा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार लखनादौन नगर पंचायत के अध्यक्ष पद के लिए नाम वापस लेने के अंतिम दिन जब जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बी फार्म लेकर रिटर्निंग आफीसर के पास पहुंचे तो उन्हें पता चला कि वे जिसका फार्म लाए हैं वह तो रणछोडदास होकर मैदान से पलायन कर गईं हैं।
क्षेत्र में व्याप्त चर्चाओं के अनुसार लखनादौन नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष दिनेश राय निर्दलीय थे और समाचार पत्रों में उनके हवाले से ही विज्ञप्ति का प्रकाशन हुआ था कि उन्होंने लखनादौन की नब्ज टटोली और फिर उनकी माता जी श्रीमति सुधा राय मैदान में उतरीं। उसी समय से श्रीमति सुधा राय की जीत के दावे जोर शोर से किए जाने लगे थे। इसी समय आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं कि कांग्रेस और भाजपा भी पिछली बार की तरह इस बार भी मौन साध लेंगीं।
भाजपा द्वारा तो अपने प्रत्याशी को दम खम के साथ मैदान में उतारा गया है किन्तु कांग्रेस के प्रत्याशी ने नाम वापस लेकर उन आशंकाओं को पंख लगा दिए जिसमें कांग्रेस का उंट सुधा राय के पक्ष में बैठने की बात कही जा रही थी। इसके उपरांत जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया से मीडिया ने प्रश्न किए तो उन्होंने भी सुधा राय के पक्ष में ही कांग्रेस के समर्थन की ना केवल घोषणा जल्द ही करने की बात कही गई वरन् सुधा राय को कांग्रेस का डमी प्रत्याशी भी बताया गया था।
नाम वापसी के चार दिनों के बाद भी ना तो प्रदेश कांग्रेस कमेटी और ना ही जिला कांग्रेस कमेटी द्वारा किसी को अपना समर्थन देने की घोषणा की गई है। मजे की बात तो यह है कि कांग्रेस को घुटनों पर खड़ा कर देने वाली कांग्रेस की उस प्रत्याशी जिसने अंतिम दिन अपना नाम वापस लिया है के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करने का कांग्रेस साहस भी नहीं जुटा पा रही है।
इसी बीच नाम वापसी के तीन दिन बाद केंद्र की कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के घटक दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी द्वारा निर्दलीय अल्पसंख्यक नूर बी को अपना समर्थन देने की घोषणा कर कांग्रेस को आईना दिखा दिया है। राकांपा की जिला इकाई द्वारा नूर बी को अपना पूरा समर्थन दिया जा चुका है।
इन परिस्थितियों में कांग्रेस की स्थिति सांप छछूंदर की सी हो गई है। कांग्रेस अगर शांत बैठती है तो उसकी बुरी तरह भद्द पिटना स्वाभाविक ही है। वहीं दूसरी ओर अगर कांग्रेस द्वारा श्रीमति सुधा राय को समर्थन दिया जाता है तो कांग्रेस के अंदर बगावत तय मानी जा रही है। इसका कारण यह है कि सुधा राय के पुत्र दिनेश राय ने लखनादौन नगर पंचायत के अध्यक्ष रहते हुए सिवनी विधानसभा से 2008 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था। कहा जाता है कि दिनेश राय के कारण ही कांग्रेस के प्रत्याशी प्रसन्न चंद मालू की जमानत जप्त हुई थी। सिवनी में कांग्रेस के इतिहास में जमानत जप्त होने का यह पहला ही मामला था।
इसके साथ ही साथ यह चर्चा भी चल पड़ी है कि अगर कांग्रेस द्वारा नूर बी को समर्थन नहीं दिया जाता है तो माना जाएगा कि कांग्रेस में अल्प संख्यकों का कोई स्थान नहीं है। जिला कांग्रेस कमेटी में अल्प संख्यकों को वैसे भी खास तवज्जो नहीं देने के आरोप जब तब लगते आए हैं। इन परिस्थितियों में संदेश कांग्रेस के पक्ष में कतई नहीं जाएगा, साथ ही साथ प्रदेश में अल्पसंख्यकों का कांग्रेस से मोहभंग होने की संभावनाएं भी बलवती ही हैं।
वहीं यह भी कहा जा रहा है कि अल्पसंख्यकों को प्रसन्न करने की गरज से अगर कांग्रेस ने दिखावे के लिए ही सही नूर बी को समर्थन दिया और उनकी स्थिति सम्मानजनक नहीं रहती है और परिणाम सुधा राय के पक्ष में आते हैं तब भी अल्पसंख्यक इसे कांग्रेस का उनके साथ धोखा ही मानेंगे।
सारे समीकरणों के हिसाब से बनी परिस्थितियां इस ओर इशारा कर रही हैं कि कांग्रेस की मजबूरी अब नूर बी को समर्थन देकर उन्हें विजयश्री का वरण कराने की बन चुकी हैं। वहीं लखनादौन की वर्तमान हालात तो स्पष्ट नजर नहीं आ रही है। मतदाता अभी खामोश है, वह कांग्रेस और भाजपा की निर्दलीय प्रत्याशियों के साथ हो रही नूरा कुश्ती और सौदेबाजी को चुपचाप देख रहा है।
इस चुनाव से मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का भविष्य भी तय हो सकता है। 2003 के उपरांत लगातार दो बार सत्ता से बाहर रहने वाली कांग्रेस उपचुनावों में भी भाजपा के हाथों बुरी तरह परास्त हो चुकी है। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का मनोबल पूरी तरह टूटता ही दिख रहा है। प्रदेश स्तर पर नेताओं की आपसी खींचतान के कारण कांग्रेस रसातल में समाती जा रही है, फिर भी राहुल गांधी को उम्मीद है कि कांग्रेस कुछ करिश्मा कर दिखाएगी, जो दिवास्वप्न ही साबित होता दिख रहा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें