कांग्रेस को
ग्लेमरस बनाने की जवाबदेही राजीव शुक्ला पर!
पुराने चेहरों से
उब चुके कार्यकर्ता चाह रहे नए लोकलुभावने चेहरे!
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)।
सवा सौ साल पुरानी और देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली अखिल भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस में उन्हीं पुराने चेहरों को देखकर कार्यकर्ता भी अब उबने लगे
हैं। समरसता की स्थिति को तोड़ने के लिए कांग्रेस के रणनीतिकारों ने नए ग्लेमरस
चेहरों को समाजवादी पार्टी की तर्ज पर पार्टी से जोड़ने का जतन आरंभ किया है, ताकि कार्यकर्ताओं
विशेषकर नए युवाओं को पार्टी की ओर आकर्षित किया जा सके।
इक्कीसवीं सदी के
आगाज तक कांग्रेस में रणीनीति बनाने के लिए कुंवर अर्जुन सिंह को पार्टी के अंदर
चाणक्य कहा जाता रहा, फिर उनके सक्रिय राजनीति से किनारा करने के साथ ही प्रणव
मुखर्जी ने पार्टी को संकट से उबारने की कमान संभाल रखी थी। प्रणव मुखर्जी के
महामहिम राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने के बाद अब कांग्रेस के अंदर संकटमोचक की
खोज तेजी से आरंभ हाो चुकी है।
कांग्रेस की सत्ता
और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को बतौर
सांसद आवंटित सरकारी आवास) के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस की राजमाता
को यह मशविरा दिया गया था कि कांग्रेस में पुराने उबाऊ चेहरों के बजाए अब नए
ग्लेमरस चेहरों को सामने लाया जाए ताकि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की ताजपोशी
के मार्ग प्रशस्त हो सकें।
सूत्रों ने कहा कि
इस कवायद के लिए पहले तो राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी राजी नहीं थीं, बाद में उन्होंने
इसके लिए अपनी सहमति दे दी। जब दिखने और बिकने वाले चेहरों को कांग्रेस से जोड़ने
की बात सामने आई तो इन्हें खीचकर लाने के लिए किसे पाबंद किया जाए इस बारे में
कांग्रेस के अंदर विमर्श आरंभ हुआ।
सूत्रों ने कहा कि
इसके लिए कुछ नेताओं ने सपा से टूटकर अलग हुए अमर सिंह का नाम सुझाया। जैसे ही अमर
सिंह का नाम सामने आया तो सोनिया सहित अनेक नेताओं का मुंह कसैला हो गया। फिर
मशविरे के बाद यह तय किया गया कि पार्टी के अंदर ही इस काम को करने के लिए किसी कुशल
प्रबंधक और लाईजनर को पाबंद किया जाए।
सूत्रों के अनुसार
इसके लिए कांग्रेस के संकट मोचक प्रणव मुखर्जी के समक्ष प्रस्ताव रखा जिसे उन्हें
आग्रह कि साथ ठुकरा दिया। इसके बाद अहमद पटेल और सुरेश पचौरी के नाम पर विमर्श
आरंभ हुआ, किन्तु
मामला परवान नहीं चढ़ पाया। तभी कांग्रेस के एक चतुर सुजान ने मूलतः पत्रकार (अब
अपने पेशे से विमुख होकर लाल बत्ती पा चुके) राजीव शुक्ला का नाम सुझाया।
फिर क्या था राजीव
शुक्ला के नाम पर मुहर लगा दी गई। कहा जाता है कि इसके बाद से पार्टी के अंदर
राजीव शुक्ला की पीठ पीछे को अमर सिंह कहकर ही बुलाया जाता है। यह अलहदा बात है कि
राजीव शुक्ला को अमर सिंह का चरित्र कभी भी रास नहीं आया। कहा जाता है कि राजीव
शुक्ला काफी हद तक अमर सिंह को नापसंद ही करते हैं।
पिछले दिनों पार्टी
से ग्लेमरस चेहरे के रूप में गुजरे जमाने की अभिनेत्री रेखा और तथाकथित तौर पर
क्रिकेट के भगवान की उपाधि पा चुके सचिन तेंदुलकर को कांग्रेस की ओर से राज्य सभा
में लाकर राजीव शुक्ला ने एक तरह से कांग्रेस के लिए अमर सिंह का किरदार बखूबी
निभाया है।
सूत्रों की मानें
तो राजीव शुक्ला अब दादा यानी प्रणव मुखर्जी के रायसीना हिल्स पहुंचने के मार्ग
प्रशस्त करने के लिए समाजवादी क्षत्रप मुलायम सिंह यादव से डील में जुटे हैं। कहा
जाता है कि वे राजीव शुक्ला ही थे जिन्होंने ममता और मुलायम के बीच खाई खोदकर
मुलायम को दादा के पक्ष में राजी किया है।
कहा तो यहां तक भी
जा रहा है कि मुलायम सिंह यादव और राजीव शुक्ला के बीच हुई गुप्त डील का ही नतीजा
था कि कन्नोज में कांगेस ने डिंपल यादव के खिलाफ कोई प्रत्याशी मैदान में नहीं
उतारा था। अब राष्ट्रपति चुनावों में प्रणव मुखर्जी को समर्थन देने के एवज में
मुलायम सिंह यादव ने अपनी खासी शर्तें कांग्रेस के सामने रख दी हैं।
सूत्रों की मानें
तो महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल और उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को
दूसरा कार्यकाल देने के पक्ष में कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी कतई नहीं
हैं। यही कारण है कि प्रतिभा देवी के स्थान पर कांग्रेस ने प्रणव मुखर्जी को
राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना दिया है।
वहीं दूसरी ओर अब
मुलायम सिंह यादव अपने भाई राम गोपाल यादव को भारत गणराज्य का उप राष्ट्रपति बनाना
चाह रहे हैं। सचिन तेंदुलकर के शपथ ग्रहण समारोह में राजीव शुक्ला के साथ रामगोपाल
यादव को देखकर यह चर्चा चल पड़ी थी कि मुलायम ने अपने भाई को उप राष्ट्रपति बनाने
की आखिर ना केवल ठानी है, वरन रामगोपाल को सही हाथों में भी सौंप दिया है। वहीं
कांग्रेस के व्ही.किशोर चंद देव भी इस पद के लिए लाबिंग करते नजर आ रहे हैं।
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